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सुधार जारी
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== परिचय॥ Introduction ==
 
== परिचय॥ Introduction ==
नगर एक ऐसा विशाल समूह है, जिसकी जीविका के प्रधान साधन उद्योग तथा व्यापार हैं। वह व्यावसायिक ग्राम से खाद्यान्न प्राप्त करता है, जबकि ग्राम उस क्षेत्र को कहते हैं, जहाँ जीविका के साधन-स्रोत प्रधान रूप से कृषि एवं कृषि उत्पाद हुआ करते हैं। वर्तमान में भी नगर वसाने की परम्परा चली आ रही है। अग्निपुराण के अनुसार नगर वसाने के लिए चार कोस, दो कोस या एक कोस तक का स्थान चुनना चाहिए तथा नगरवास्तु की पूजा करके परकोटा खिंचवा देना चाहिए।
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नगर विन्यास यह एक कला है, जिसका उद्देश्य नगर की भौतिक संरचना (physical growth) का विकास और मार्गदर्शन करना है जिससे वहाँ की इमारतें और परिवेश (environments) सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और मनोरंजन आदि जैसी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। वर्तमान में भी इसी प्रकार के नगर वसाने की परम्परा चली आ रही है। इसका मुख्य उद्देश्य -
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* समृद्ध और गरीब दोनों के लिए ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें वे समान रूप से रह सकें, काम कर सकें, खेल सकें और विश्राम कर सकें।
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* सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिकतर लोगों के कल्याण (well-being) को सुनिश्चित करना।
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* सामाजिक और आर्थिक विकास का संतुलन (Well-balanced social and economic development) '''-''' समाज और अर्थव्यवस्था का समन्वित एवं संतुलित विकास।
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* जीवन गुणवत्ता में सुधार (Improvement of life quality) '''-''' नागरिकों के जीवन स्तर और रहन-सहन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना।
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* संसाधनों का उत्तरदायी उपयोग और पर्यावरण संरक्षण (Responsible administration of resources and environment protection''') -''' प्राकृतिक संसाधनों का उचित और जिम्मेदार उपयोग तथा पर्यावरण की रक्षा।
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* भूमि का तर्कसंगत उपयोग (Rational use of land) - भूमि का बुद्धिमत्तापूर्वक, सही उद्देश्य के लिए और नियोजित तरीके से उपयोग करना।
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अग्निपुराण के अनुसार नगर वसाने के लिए चार कोस, दो कोस या एक कोस तक का स्थान चुनना चाहिए तथा नगरवास्तु की पूजा करके परकोटा खिंचवा देना चाहिए।
 
* नगर के पूर्व दिशा का द्वार सूर्य पद के सम्मुख
 
* नगर के पूर्व दिशा का द्वार सूर्य पद के सम्मुख
 
*दक्षिण दिशा का द्वार गन्धर्व पद में
 
*दक्षिण दिशा का द्वार गन्धर्व पद में
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*नगर निवेश के वास्तुशास्त्रीय दृष्टिकोण से चारों दिशाओं में द्वार होने चाहिये।
 
*नगर निवेश के वास्तुशास्त्रीय दृष्टिकोण से चारों दिशाओं में द्वार होने चाहिये।
*नगर के सभी द्वार गोपुरों से परिवेष्ठित होने चाहिये।
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* नगर के सभी द्वार गोपुरों से परिवेष्ठित होने चाहिये।
 
*नगरमें वास भवनों का सम्यक विन्यास होना चाहिये।
 
*नगरमें वास भवनों का सम्यक विन्यास होना चाहिये।
 
*नगर मापन
 
*नगर मापन
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नगर-व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग थे - 1. परिख (Moat), 2. प्राकार - नगर के चारों ओर बनी सुरक्षा दीवार (Rampart) 3. द्वार (Gate)। बौद्ध जातक ग्रंथो में पत्तन (Port Town), निगम (Market Town) एवं दुर्ग (Fort) का वर्णन है।
 
नगर-व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग थे - 1. परिख (Moat), 2. प्राकार - नगर के चारों ओर बनी सुरक्षा दीवार (Rampart) 3. द्वार (Gate)। बौद्ध जातक ग्रंथो में पत्तन (Port Town), निगम (Market Town) एवं दुर्ग (Fort) का वर्णन है।
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==नगर विन्यास एवं भवन निवेश॥ Nagar Vinyasa evam Bhavan Nivesh==
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==नगर विन्यास एवं भवन निवेश॥ Nagar Vinyasa evam Bhavan Nivesh ==
 
गृह में वास करने के कारण ही गृहस्थ कहा जाता है। एक निश्चित स्थान में स्थित रहकर त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) का सेवन करते हुए एक धार्मिक समाज का निर्माण करने वाला ही गृहस्थ कहलाता है -<ref>प्रो० देवीप्रसाद त्रिपाठी, [https://archive.org/details/bWMC_vastu-shastra-vimarsha-of-prof.-vachaspati-upadhyaya-with-prof.-prem-kumar-sharm/page/n3/mode/1up वास्तुशास्त्रविमर्श-सम्पादकीय,] सन २०१०, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नव देहली (पृ० ४)।</ref> <blockquote>त्रिवर्गसेवी सततं देवतानां च पूजनम्। कुर्यादहरहर्नित्यं नमस्येत् प्रयतः सुरान्॥
 
गृह में वास करने के कारण ही गृहस्थ कहा जाता है। एक निश्चित स्थान में स्थित रहकर त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ एवं काम) का सेवन करते हुए एक धार्मिक समाज का निर्माण करने वाला ही गृहस्थ कहलाता है -<ref>प्रो० देवीप्रसाद त्रिपाठी, [https://archive.org/details/bWMC_vastu-shastra-vimarsha-of-prof.-vachaspati-upadhyaya-with-prof.-prem-kumar-sharm/page/n3/mode/1up वास्तुशास्त्रविमर्श-सम्पादकीय,] सन २०१०, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नव देहली (पृ० ४)।</ref> <blockquote>त्रिवर्गसेवी सततं देवतानां च पूजनम्। कुर्यादहरहर्नित्यं नमस्येत् प्रयतः सुरान्॥
    
विभागशीलः सततः क्षमायुक्तो दयालुकः। गृहस्थस्तु समाख्यातो न गृहेण गृही भवेत्॥ (कूर्मपुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%83/%E0%A4%AA%E0%A4%9E%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%BD%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 कूर्म पुराण], उत्तर भाग, अध्याय-15, श्लोक-24-25।</ref></blockquote>गुण सम्पन्न कोई भी गृहस्थ अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन बिना स्वगृह के सम्यक्तया नहीं कर सकता है। दूसरे के गृह में किये गये श्रौत-स्मार्त कर्म का फल कर्ता को प्राप्त नहीं होता है। वह सम्पूर्ण फल गृहेश को ही चला जाता है। अतः सर्वप्रथम गृहस्थ को यत्नपूर्वक गृह का निर्माण करना चाहिए।
 
विभागशीलः सततः क्षमायुक्तो दयालुकः। गृहस्थस्तु समाख्यातो न गृहेण गृही भवेत्॥ (कूर्मपुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%83/%E0%A4%AA%E0%A4%9E%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%BD%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83 कूर्म पुराण], उत्तर भाग, अध्याय-15, श्लोक-24-25।</ref></blockquote>गुण सम्पन्न कोई भी गृहस्थ अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन बिना स्वगृह के सम्यक्तया नहीं कर सकता है। दूसरे के गृह में किये गये श्रौत-स्मार्त कर्म का फल कर्ता को प्राप्त नहीं होता है। वह सम्पूर्ण फल गृहेश को ही चला जाता है। अतः सर्वप्रथम गृहस्थ को यत्नपूर्वक गृह का निर्माण करना चाहिए।
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=== समरांगण सूत्र एवं नगर निवेश॥ Samarangan Sutradhar and Nagar Nivesha ===
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===समरांगण सूत्र एवं नगर निवेश॥ Samarangan Sutradhar and Nagar Nivesha===
 
जिस नगर में राजा रहता है उसको राजधानी कहते हैं और अन्य नगर शाख-नगर की संज्ञाओं से कहे जाते हैं। शाखा-नगर को ही नगरोपम कर्वट कहा जाता है। कुछ गुणों से कम कर्वट को ही निगम कहते हैं। निगम से कम ग्राम, ग्राम से कम गृह होता है। गोकुलों के निवास को गोष्ठ कहा जाता है और छोटे गोष्ठ को गोष्ठक कहते हैं। राजाओं का जहां पर उपस्थान होता है उसको पत्तन कहते हैं। जो पत्तन बहुत विस्तृत और वैश्यों से युक्त होता है उस पत्तन को पुटभेदन कहते हैं। जहां पर पत्तों, शाखाओं, तृणों एवं उपलों से कुटिया बनाकर पुलिन्द लोग रहते हैं, उसको पल्ली कहते हैं और छोटी पल्ली को पल्लिका कहते हैं। नगर को छोड कर और सब जनपद कहलाता है और नगर को मिलाकर सम्पूर्ण राष्ट्र को देश अथवा मंडल कहते हैं।<ref name=":1" />
 
जिस नगर में राजा रहता है उसको राजधानी कहते हैं और अन्य नगर शाख-नगर की संज्ञाओं से कहे जाते हैं। शाखा-नगर को ही नगरोपम कर्वट कहा जाता है। कुछ गुणों से कम कर्वट को ही निगम कहते हैं। निगम से कम ग्राम, ग्राम से कम गृह होता है। गोकुलों के निवास को गोष्ठ कहा जाता है और छोटे गोष्ठ को गोष्ठक कहते हैं। राजाओं का जहां पर उपस्थान होता है उसको पत्तन कहते हैं। जो पत्तन बहुत विस्तृत और वैश्यों से युक्त होता है उस पत्तन को पुटभेदन कहते हैं। जहां पर पत्तों, शाखाओं, तृणों एवं उपलों से कुटिया बनाकर पुलिन्द लोग रहते हैं, उसको पल्ली कहते हैं और छोटी पल्ली को पल्लिका कहते हैं। नगर को छोड कर और सब जनपद कहलाता है और नगर को मिलाकर सम्पूर्ण राष्ट्र को देश अथवा मंडल कहते हैं।<ref name=":1" />
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#भू-परीक्षा - Examination of land and soil
 
#भू-परीक्षा - Examination of land and soil
# भूमि-चयन - Site Selection
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#भूमि-चयन - Site Selection
 
#दिक्-परिच्छेद - Determination of Cardinal Points
 
#दिक्-परिच्छेद - Determination of Cardinal Points
 
#पद विन्यास - Survey and mapping of the arc and marking into squares
 
#पद विन्यास - Survey and mapping of the arc and marking into squares
 
#बलिकर्मविधान - Sacrificial rituals
 
#बलिकर्मविधान - Sacrificial rituals
# ग्राम-नगर विन्यास - Layout and planning of Village and City
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#ग्राम-नगर विन्यास - Layout and planning of Village and City
 
#भूमि-विन्यास - Layout of the plot
 
#भूमि-विन्यास - Layout of the plot
 
#गोपुर-विधान - Construction of Palace
 
#गोपुर-विधान - Construction of Palace
Line 87: Line 96:  
कौटिल्य का नगर नियोजन न केवल भौतिक संरचना तक सीमित था, अपितु उसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और नैतिक पक्षों का गहरा समावेश था। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण आज के स्मार्ट सिटी मॉडल की नींव रखने वाला एक समग्र एवं दूरदर्शी विचार है।
 
कौटिल्य का नगर नियोजन न केवल भौतिक संरचना तक सीमित था, अपितु उसमें सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, धार्मिक और नैतिक पक्षों का गहरा समावेश था। कौटिल्य का यह दृष्टिकोण आज के स्मार्ट सिटी मॉडल की नींव रखने वाला एक समग्र एवं दूरदर्शी विचार है।
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== सारांश॥ Summary==
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==सारांश॥ Summary==
 
रामायण और महाभारत में वर्णित नगर-निवेश के परिशीलन से स्पष्ट है कि वहाँ राजा, राजकुमारों, प्रधान अमात्यों, पुरोहितों और सेनानायकों के महल तो निर्मित होते ही थे, साथ ही साथ मध्यमवर्गीय नागरिकों के लिए साधारण आवास भवन थे। इन विशाल प्रासादों के अतिरिक्त विभिन्न सभागृह, स्थानक-मण्डप तथा व्यवसाय-वीथियाँ (स्वर्णकार आदि की कार्यशालाएँ) भी विद्यमान थी।<ref name=":0">डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://www.sanskrit.nic.in/books_archive/014_Vedo_Me_Vigyana_of_Dr_Kapila_Deva_Dwivedi.pdf वेदों में विज्ञान], सन २०००, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० १२२)।</ref>
 
रामायण और महाभारत में वर्णित नगर-निवेश के परिशीलन से स्पष्ट है कि वहाँ राजा, राजकुमारों, प्रधान अमात्यों, पुरोहितों और सेनानायकों के महल तो निर्मित होते ही थे, साथ ही साथ मध्यमवर्गीय नागरिकों के लिए साधारण आवास भवन थे। इन विशाल प्रासादों के अतिरिक्त विभिन्न सभागृह, स्थानक-मण्डप तथा व्यवसाय-वीथियाँ (स्वर्णकार आदि की कार्यशालाएँ) भी विद्यमान थी।<ref name=":0">डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://www.sanskrit.nic.in/books_archive/014_Vedo_Me_Vigyana_of_Dr_Kapila_Deva_Dwivedi.pdf वेदों में विज्ञान], सन २०००, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० १२२)।</ref>
  
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