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| − | प्रयागराज (संस्कृतः तीर्थराज) समस्त तीर्थों के अधिपति हैं इसे तीर्थराज प्रयाग भी कहा जाता है। प्रयागराज का प्राचीन नाम प्रयाग है, जिसका अर्थ है यज्ञों का स्थान। इसका वर्णन पुराणों में ऋषियों के यज्ञस्थल के रूप में मिलता है। यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, जिसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। प्रति माघ मासमें माघ मेला होता है इसे कल्पवास कहते हैं एवं 6 वर्षमें अर्धकुंभ और 12 वर्षों में पूर्ण [[Kumbha Mela (कुम्भ मेला)|कुम्भपर्व]] आयोजित होता है। यह स्थान ध्यान, योग और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है। प्राचीन काल से ही यहाँ ऋषि-मुनि तप और साधना करते रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थों एवं यात्रा वृत्तांतों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है, आधुनिक काल में भी 7 वीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग ने प्रयागराज को अपार प्राकृतिक सुंदरता, समृद्धि और सांस्कृतिक गहराई वाला क्षेत्र बताया था। | + | प्रयागराज (संस्कृतः प्रयागराजः) समस्त तीर्थों के अधिपति हैं इसे तीर्थराज प्रयाग भी कहा जाता है। प्रयागराज का प्राचीन नाम प्रयाग है, जिसका अर्थ है यज्ञों का स्थान। इसका वर्णन पुराणों में ऋषियों के यज्ञस्थल के रूप में मिलता है। यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, जिसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। प्रति माघ मासमें माघ मेला होता है इसे कल्पवास कहते हैं एवं 6 वर्षमें अर्धकुंभ और 12 वर्षों में पूर्ण [[Kumbha Mela (कुम्भ मेला)|कुम्भपर्व]] आयोजित होता है। यह स्थान ध्यान, योग और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है। प्राचीन काल से ही यहाँ ऋषि-मुनि तप और साधना करते रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थों एवं यात्रा वृत्तांतों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है, आधुनिक काल में भी 7 वीं शताब्दी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग ने प्रयागराज को अपार प्राकृतिक सुंदरता, समृद्धि और सांस्कृतिक गहराई वाला क्षेत्र बताया था। |
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| | ==परिचय॥ Introduction== | | ==परिचय॥ Introduction== |
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| | सृष्टिके आदिमें यहाँ श्रीब्रह्माजी का प्रकृष्ट यज्ञ हुआ था। इसीसे इसका नाम प्रयाग कहलाया।<ref>कल्याण पत्रिका - [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.346899/page/n169/mode/1up तीर्थांक], सन 2018, गीताप्रेस, गोरखपुर (पृ० 171)।</ref> | | सृष्टिके आदिमें यहाँ श्रीब्रह्माजी का प्रकृष्ट यज्ञ हुआ था। इसीसे इसका नाम प्रयाग कहलाया।<ref>कल्याण पत्रिका - [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.346899/page/n169/mode/1up तीर्थांक], सन 2018, गीताप्रेस, गोरखपुर (पृ० 171)।</ref> |
| | ==प्रयागराज एवं त्रिवेणी संगम॥ Prayagraj and Triveni Sangam== | | ==प्रयागराज एवं त्रिवेणी संगम॥ Prayagraj and Triveni Sangam== |
| | + | [[File:संगम .png|thumb|331x331px|प्रयागराज: त्रिवेणी संगम]] |
| | प्रयागराज का सर्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थान त्रिवेणी है। यहाँ दृश्य गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। जैसे तीन वेणी (बालों की लट) गूंथने पर दो ही दिखाई देती है, तीसरी वेणी लुप्त हो जाती है वैसे ही तीसरी वेणी सरस्वती भी यहाँ अदृश्य है। त्रिवेणी के संगम में अनेक तीर्थ हैं। प्राचीन काल में प्रयागराज में सरस्वती नदी (प्राची सरस्वती) थी इसके प्रमाण शास्त्रों में प्राप्त होते हैं, जैसे पश्चिम वाहिनी सरस्वती लुप्त हो गई, वैसे ही पूर्व वाहिनी सरस्वती भी लुप्त हो गई। मान्यता है कि सभी नदियाँ ऊपर से सूख जाती है परन्तु उनका जल अन्दर ही अन्दर रहता है इसलिये प्रयागराज तीन नदियों के संगम के नाम से प्रसिद्ध है।<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/03.-dharma-shastra-ka-itihas-tatha-anya-smritiyan/03.Dharma%20Shastra%20Ka%20Itihas%20of%20Dr.%20Pandurang%20Vaman%20Kane%20Vol.%203%20-%20Uttar%20Pradesh%20Hindi%20Sansthan%20Lucknow-Reduced/page/n333/mode/1up धर्मशास्त्र का इतिहास - तृतीय भाग] , सन २००३, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० १३२६)।</ref> | | प्रयागराज का सर्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थान त्रिवेणी है। यहाँ दृश्य गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है। जैसे तीन वेणी (बालों की लट) गूंथने पर दो ही दिखाई देती है, तीसरी वेणी लुप्त हो जाती है वैसे ही तीसरी वेणी सरस्वती भी यहाँ अदृश्य है। त्रिवेणी के संगम में अनेक तीर्थ हैं। प्राचीन काल में प्रयागराज में सरस्वती नदी (प्राची सरस्वती) थी इसके प्रमाण शास्त्रों में प्राप्त होते हैं, जैसे पश्चिम वाहिनी सरस्वती लुप्त हो गई, वैसे ही पूर्व वाहिनी सरस्वती भी लुप्त हो गई। मान्यता है कि सभी नदियाँ ऊपर से सूख जाती है परन्तु उनका जल अन्दर ही अन्दर रहता है इसलिये प्रयागराज तीन नदियों के संगम के नाम से प्रसिद्ध है।<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/03.-dharma-shastra-ka-itihas-tatha-anya-smritiyan/03.Dharma%20Shastra%20Ka%20Itihas%20of%20Dr.%20Pandurang%20Vaman%20Kane%20Vol.%203%20-%20Uttar%20Pradesh%20Hindi%20Sansthan%20Lucknow-Reduced/page/n333/mode/1up धर्मशास्त्र का इतिहास - तृतीय भाग] , सन २००३, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० १३२६)।</ref> |
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| − | ==प्रयागराज के देवस्थान॥ Devsthan of Prayagraj== | + | ===प्रयागराज के देवस्थान॥ Devsthan of Prayagraj=== |
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| | त्रिवेणी, बिन्दुमाधव, सोमेश्वर, भरद्वाज, वासुकिनाग, अक्षयवट और शेष (बलदेवजी) - ये प्रयागके मुख्य स्थान हैं। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से देवस्थान प्रयाग क्षेत्र है - <blockquote>त्रिवेणी माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकिम्। वन्देऽक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम्॥<ref>डॉ० मीनू सिंह, [https://www.anantaajournal.com/archives/2019/vol5issue3/PartB/5-2-10-900.pdf प्रयाग में समुद्रकूप एवं नागवासुकि का माहात्म्य], सन् २०१९, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ संस्कृत रिसर्च (पृ० ७८)।</ref></blockquote>प्रयागके आसपासके तीर्थोंमें दुर्वासा-आश्रम, लाक्षागृह, सीतामढी, इमिलियनदेवी, ऋषियन, राजापुर, शृंगवेरपुर और कड़ा है। | | त्रिवेणी, बिन्दुमाधव, सोमेश्वर, भरद्वाज, वासुकिनाग, अक्षयवट और शेष (बलदेवजी) - ये प्रयागके मुख्य स्थान हैं। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से देवस्थान प्रयाग क्षेत्र है - <blockquote>त्रिवेणी माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकिम्। वन्देऽक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम्॥<ref>डॉ० मीनू सिंह, [https://www.anantaajournal.com/archives/2019/vol5issue3/PartB/5-2-10-900.pdf प्रयाग में समुद्रकूप एवं नागवासुकि का माहात्म्य], सन् २०१९, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ संस्कृत रिसर्च (पृ० ७८)।</ref></blockquote>प्रयागके आसपासके तीर्थोंमें दुर्वासा-आश्रम, लाक्षागृह, सीतामढी, इमिलियनदेवी, ऋषियन, राजापुर, शृंगवेरपुर और कड़ा है। |
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| | #गंगा-यमुना का मध्य भाग - प्रयाग। | | #गंगा-यमुना का मध्य भाग - प्रयाग। |
| − | # गंगा के पूर्व में स्थित भाग - प्रतिष्ठान पुर। | + | #गंगा के पूर्व में स्थित भाग - प्रतिष्ठान पुर। |
| | #यमुना के दक्षिण में स्थित भाग - अरैल अर्थात अलर्क क्षेत्र। | | #यमुना के दक्षिण में स्थित भाग - अरैल अर्थात अलर्क क्षेत्र। |
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| | ==प्रयागराज की परिक्रमा॥ Prayagaraja ki Parikrama== | | ==प्रयागराज की परिक्रमा॥ Prayagaraja ki Parikrama== |
| | + | [[File:Kumbh triveni sangama.jpg|thumb|364x364px|प्रयागराजः तीर्थस्थल एवं प्रदक्षिणा]] |
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| | प्रयागराज को तीर्थों की तीन कोटियों में रखा गया है - गंगा यमुना के मध्य स्थित तीर्थ अन्तर्वेदी तीर्थ कहलाते हैं। यमुना के दक्षिणी क्षेत्र के तीर्थ मध्यवेदी तीर्थ कहलाते हैं और गंगा के पूर्व एवं उत्तर में स्थित तीर्थ बहिर्वेदी तीर्थ कहलाते हैं। इन क्षेत्रों अथवा वेदियों में क्रमशः ४४, १७ एवं १३ प्रमुख तीर्थ अवस्थित हैं। तीर्थराज प्रयाग की तीर्थ सेवन एवं पूजा की दृष्टि से दो प्रकार की परिक्रमाओं का विधान है - अन्तर्वेदी और बहिर्वेदी। प्रयागकी अन्तर्वेदी परिक्रमा दो दिनमें होती है और बहिर्वेदी परिक्रमा दस दिनमें। इनमें बहुत से तीर्थ यमुनामें या गंगामें हैं, कुछ तीर्थ लुप्त हो गये हैं। इनका प्रदक्षिणा का विधान था -<ref>त्रिनाथ मिश्र, [https://archive.org/details/AWlP_kumbh-gatha-by-trinath-mishra-anamika-publication/page/66/mode/1up कुंभ गाथा], सन १९८९, अनामिका पब्लिकेशन नया बैरहना, इलाहाबाद (पृ० ६६-६७)</ref> <blockquote>प्रदक्षिणां त्रयं कुर्यात् प्रयागस्य तु यो नरः। भूतभव्य-भविष्यदेतेषु न स शोच्यः कदाचन॥ (कुंभ गाथा)</blockquote>प्रयाग तीर्थ की जो तीन परिक्रमा करता है वह मनुष्य त्रिकाल-चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। इन दोनों वेदियों के परिक्रमा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है -<ref>डॉ० श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव, [https://archive.org/details/wg978/page/n22/mode/1up प्रयाग की पाण्डित्य परम्परा], सन् २०१६, ईस्टर्न बुक लिंकर्स (पृ० २०)।</ref> | | प्रयागराज को तीर्थों की तीन कोटियों में रखा गया है - गंगा यमुना के मध्य स्थित तीर्थ अन्तर्वेदी तीर्थ कहलाते हैं। यमुना के दक्षिणी क्षेत्र के तीर्थ मध्यवेदी तीर्थ कहलाते हैं और गंगा के पूर्व एवं उत्तर में स्थित तीर्थ बहिर्वेदी तीर्थ कहलाते हैं। इन क्षेत्रों अथवा वेदियों में क्रमशः ४४, १७ एवं १३ प्रमुख तीर्थ अवस्थित हैं। तीर्थराज प्रयाग की तीर्थ सेवन एवं पूजा की दृष्टि से दो प्रकार की परिक्रमाओं का विधान है - अन्तर्वेदी और बहिर्वेदी। प्रयागकी अन्तर्वेदी परिक्रमा दो दिनमें होती है और बहिर्वेदी परिक्रमा दस दिनमें। इनमें बहुत से तीर्थ यमुनामें या गंगामें हैं, कुछ तीर्थ लुप्त हो गये हैं। इनका प्रदक्षिणा का विधान था -<ref>त्रिनाथ मिश्र, [https://archive.org/details/AWlP_kumbh-gatha-by-trinath-mishra-anamika-publication/page/66/mode/1up कुंभ गाथा], सन १९८९, अनामिका पब्लिकेशन नया बैरहना, इलाहाबाद (पृ० ६६-६७)</ref> <blockquote>प्रदक्षिणां त्रयं कुर्यात् प्रयागस्य तु यो नरः। भूतभव्य-भविष्यदेतेषु न स शोच्यः कदाचन॥ (कुंभ गाथा)</blockquote>प्रयाग तीर्थ की जो तीन परिक्रमा करता है वह मनुष्य त्रिकाल-चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। इन दोनों वेदियों के परिक्रमा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है -<ref>डॉ० श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव, [https://archive.org/details/wg978/page/n22/mode/1up प्रयाग की पाण्डित्य परम्परा], सन् २०१६, ईस्टर्न बुक लिंकर्स (पृ० २०)।</ref> |
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| | *योग वशिष्ठ और वाल्मीकि रामायण में भगवान राम द्वारा प्रयागराज की तीर्थ यात्रा का उल्लेख किया गया है। रामायण काल में प्रयाग सूर्यवंशी राजा दशरथ के अन्तर्गत था। उस समय निषादराज गुह वहाँ के राजा और राजधानी शृंगवेरपुर थी। अयोध्या से वन गमन के समय एक रात निषादराज के यहाँ ठहरे थे। उस समय प्रयाग भरद्वाज ऋषि के कारण प्रसिद्ध था। भरद्वाज ऋषि के आश्रम में जाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण ने आशीर्वाद प्राप्त किया था। | | *योग वशिष्ठ और वाल्मीकि रामायण में भगवान राम द्वारा प्रयागराज की तीर्थ यात्रा का उल्लेख किया गया है। रामायण काल में प्रयाग सूर्यवंशी राजा दशरथ के अन्तर्गत था। उस समय निषादराज गुह वहाँ के राजा और राजधानी शृंगवेरपुर थी। अयोध्या से वन गमन के समय एक रात निषादराज के यहाँ ठहरे थे। उस समय प्रयाग भरद्वाज ऋषि के कारण प्रसिद्ध था। भरद्वाज ऋषि के आश्रम में जाकर राम, सीता तथा लक्ष्मण ने आशीर्वाद प्राप्त किया था। |
| | *कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्य काल में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग जब अपनी भारत यात्रा के बाद उन्होंने कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया था। इसी के साथ उन्होंने राजा हर्षवर्धन का भी जिक्र किया है। उनके दयालु स्वभाव के बारे में भी उन्होंने जिक्र किया था। ह्वेनसांग ने कहा था कि राजा हर्षवर्धन लगभग हर 5 साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे। जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों को दान में दे दिया करते थे।<ref>डॉ० असीम श्रीवास्तव, [https://archive.org/details/20200715_20200715_0757/page/n5/mode/1up प्रयाग-कुम्भः उत्पत्ति तथा इतिहास-एक विश्लेषण], सन् २०१९, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० २)।</ref> | | *कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्य काल में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग जब अपनी भारत यात्रा के बाद उन्होंने कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया था। इसी के साथ उन्होंने राजा हर्षवर्धन का भी जिक्र किया है। उनके दयालु स्वभाव के बारे में भी उन्होंने जिक्र किया था। ह्वेनसांग ने कहा था कि राजा हर्षवर्धन लगभग हर 5 साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे। जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों को दान में दे दिया करते थे।<ref>डॉ० असीम श्रीवास्तव, [https://archive.org/details/20200715_20200715_0757/page/n5/mode/1up प्रयाग-कुम्भः उत्पत्ति तथा इतिहास-एक विश्लेषण], सन् २०१९, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० २)।</ref> |
| − | * प्राचीन काल में प्रयागराज के पास स्थित प्रतिष्ठानपुर (झूसी) चन्द्रवंशी राजा पुरूरवा की राजधानी थी। इनके पूर्वज पुरुरवा थे, जो मनु की पुत्री इला और बुध के पुत्र थे। इला का जन्म प्रयाग में हुआ था एवं प्रयाग में ही वास था इसलिए प्रयाग को इलावास भी कहा जाता था, मुगल काल में जिसे बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया। यह स्थान भी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था। पुरूरवा को चंद्र वंश का संस्थापक माना जाता है और उनके शासनकाल में यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्धि को प्राप्त हुआ। | + | *प्राचीन काल में प्रयागराज के पास स्थित प्रतिष्ठानपुर (झूसी) चन्द्रवंशी राजा पुरूरवा की राजधानी थी। इनके पूर्वज पुरुरवा थे, जो मनु की पुत्री इला और बुध के पुत्र थे। इला का जन्म प्रयाग में हुआ था एवं प्रयाग में ही वास था इसलिए प्रयाग को इलावास भी कहा जाता था, मुगल काल में जिसे बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया। यह स्थान भी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था। पुरूरवा को चंद्र वंश का संस्थापक माना जाता है और उनके शासनकाल में यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्धि को प्राप्त हुआ। |
| − | * कालिदास ने रघुवंश के 13वें सर्ग में गंगा-यमुना के संगम का मनोहारी वर्णन किया है तथा गंगा-यमुना के संगम के स्नान को मुक्तिदायक माना है - | + | *कालिदास ने रघुवंश के 13वें सर्ग में गंगा-यमुना के संगम का मनोहारी वर्णन किया है तथा गंगा-यमुना के संगम के स्नान को मुक्तिदायक माना है - |
| | <blockquote>समुद्र-पत्न्योर्जलसन्निपात पूतात्मनामत्र किलाभिषेकात्, तत्त्वावबोधेन विनापि भूय: तनुस्त्यजां नास्ति शरीरबंध:। (रघुवंश महाकाव्य)<ref name=":2">महाकवि कालिदास, [https://archive.org/details/raghuvansh_mahakavya_032598_std_202109/page/n1046/mode/1up?view=theater रघुवंश महाकाव्य] मल्लिनाथ-सञ्जीवनी टीका, धारादत्त मिश्र-संस्कृत व्याख्या एवं हिन्दी अनुवाद सहित, सन १९८७, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी (पृ० १७४)।</ref></blockquote>भाषार्थ - समुद्र की दो पत्नियों (गंगा-यमुना) के संगम में स्नान करने से, पवित्र मन वाले पुरुष तत्त्वज्ञानी न होने पर भी वर्तमान शरीर छूट जाने पर शरीर के बन्धन से छूट जाते हैं। अर्थात अन्यत्र सब स्थानों में ज्ञान से ही मुक्ति होती है किन्तु यहां संगम में स्नान करने मात्र से मुक्ति मिल जाती है। पुनः शरीर धारण नहीं करना पडता है।<ref name=":2" /> | | <blockquote>समुद्र-पत्न्योर्जलसन्निपात पूतात्मनामत्र किलाभिषेकात्, तत्त्वावबोधेन विनापि भूय: तनुस्त्यजां नास्ति शरीरबंध:। (रघुवंश महाकाव्य)<ref name=":2">महाकवि कालिदास, [https://archive.org/details/raghuvansh_mahakavya_032598_std_202109/page/n1046/mode/1up?view=theater रघुवंश महाकाव्य] मल्लिनाथ-सञ्जीवनी टीका, धारादत्त मिश्र-संस्कृत व्याख्या एवं हिन्दी अनुवाद सहित, सन १९८७, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी (पृ० १७४)।</ref></blockquote>भाषार्थ - समुद्र की दो पत्नियों (गंगा-यमुना) के संगम में स्नान करने से, पवित्र मन वाले पुरुष तत्त्वज्ञानी न होने पर भी वर्तमान शरीर छूट जाने पर शरीर के बन्धन से छूट जाते हैं। अर्थात अन्यत्र सब स्थानों में ज्ञान से ही मुक्ति होती है किन्तु यहां संगम में स्नान करने मात्र से मुक्ति मिल जाती है। पुनः शरीर धारण नहीं करना पडता है।<ref name=":2" /> |
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