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==परिचय॥ Introduction==
 
==परिचय॥ Introduction==
ज्योतिष शास्त्र के प्रधान तीन स्कन्ध हैं - सिद्धान्त, संहिता और होरा। इन प्रधान स्कन्धत्रय में से जिसमें सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र के विषयों का वर्णन हो, उसको संहिता कहते हैं। संहिता ज्योतिष में बिन्दु से सिन्धु तक, व्यक्ति से समष्टि तक, भूगर्भ से अन्तरिक्ष तक, ग्रह-नक्षत्र-तारादिपिण्डों से लेकर धूमकेतु-उल्कादि पिण्डों तक, वृष्टि-कृषि-पर्यावरणादि से लेकर समस्त सृष्टि पर्यन्त की यात्रा है। संहिता स्कन्ध में ग्रह नक्षत्रों के द्वारा भू-पृष्ठ पर पढने वाले सामूहिक प्रभाव का विवेचन किया जाता है। इस स्कन्ध को भौतिक एवं वैश्विक ज्योतिष भी कहा जाता है।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/history-of-skandha-samhita-nzm870/#mz-expanded-view-1558356145648 भारतीयज्यौतिष - संहिता स्कन्ध का इतिहास], भारतीय विद्या संस्थान, वाराणसी (पृ० ५)।</ref> संहिता स्कन्ध के विषय में आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि - <blockquote>ज्योतिः शास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम्। तत्कार्त्स्न्योपनयस्य नाम मुनिभिः संकीर्त्यते संहिता॥ (बृहत्संहिता)</blockquote>अर्थात सिद्धान्त और होरा का सम्मिलित रूप में विवेचन ही संहिता है। जिसमें वक्ष्यमाण विषय का वर्णन होता है उसी का नाम संहिता है। सूर्य आदि ग्रहों के संचार, उस संचार में होने वाला ग्रहों का स्वभाव, विकार, विम्ब का परिमाण, वर्ण, किरण, किरण ऊर्ध्वाधोगामी तोरण, उदय, अस्त, मार्ग, मार्गान्तर वक्र, ग्रहों की भक्ति, नक्षत्रों के व्यूह, ग्रह समागम, अंक विद्या, वास्तु विद्या, वातचक्र, प्रतिमा प्रतिष्ठा, उदगार्गल आदि का शुभाशुभ फल कथन का मनन, चिंतन, अध्ययन ही इस स्कंध में वर्णित है। इसमें ग्रह गति, ग्रह युति, मेघ लक्षण, वृष्टि विचार, उल्का विचार, भूकम्प विचार, जल शोधन, विभिन्न शकुनों का विचार, वास्तु विद्या तथा ग्रहणादि का समस्त चरार जगत पर पड़ने वाला सामूहिक प्रभाव का विचार किया जाता है। संहिता के विषयों को मुख्यतया तीन रूपों में विभक्त किया गया है -  
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ज्योतिष शास्त्र के प्रधान तीन स्कन्ध हैं - सिद्धान्त, संहिता और होरा। इन प्रधान स्कन्धत्रय में से जिसमें सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र के विषयों का वर्णन हो, उसको संहिता कहते हैं। संहिता ज्योतिष में बिन्दु से सिन्धु तक, व्यक्ति से समष्टि तक, भूगर्भ से अन्तरिक्ष तक, ग्रह-नक्षत्र-तारादिपिण्डों से लेकर धूमकेतु-उल्कादि पिण्डों तक, वृष्टि-कृषि-पर्यावरणादि से लेकर समस्त सृष्टि पर्यन्त की यात्रा है। संहिता स्कन्ध में ग्रह नक्षत्रों के द्वारा भू-पृष्ठ पर पढने वाले सामूहिक प्रभाव का विवेचन किया जाता है। इस स्कन्ध को भौतिक एवं वैश्विक ज्योतिष भी कहा जाता है।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/history-of-skandha-samhita-nzm870/#mz-expanded-view-1558356145648 भारतीयज्यौतिष - संहिता स्कन्ध का इतिहास], भारतीय विद्या संस्थान, वाराणसी (पृ० ५)।</ref> संहिता स्कन्ध के विषय में आचार्य वराहमिहिर कहते हैं कि - <blockquote>ज्योतिः शास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम्। तत्कार्त्स्न्योपनयस्य नाम मुनिभिः संकीर्त्यते संहिता॥ (बृहत्संहिता)<ref name=":1" /></blockquote>अर्थात सिद्धान्त और होरा का सम्मिलित रूप में विवेचन ही संहिता है। जिसमें वक्ष्यमाण विषय का वर्णन होता है उसी का नाम संहिता है। सूर्य आदि ग्रहों के संचार, उस संचार में होने वाला ग्रहों का स्वभाव, विकार, विम्ब का परिमाण, वर्ण, किरण, किरण ऊर्ध्वाधोगामी तोरण, उदय, अस्त, मार्ग, मार्गान्तर वक्र, ग्रहों की भक्ति, नक्षत्रों के व्यूह, ग्रह समागम, अंक विद्या, वास्तु विद्या, वातचक्र, प्रतिमा प्रतिष्ठा, उदगार्गल आदि का शुभाशुभ फल कथन का मनन, चिंतन, अध्ययन ही इस स्कंध में वर्णित है। इसमें ग्रह गति, ग्रह युति, मेघ लक्षण, वृष्टि विचार, उल्का विचार, भूकम्प विचार, जल शोधन, विभिन्न शकुनों का विचार, वास्तु विद्या तथा ग्रहणादि का समस्त चरार जगत पर पड़ने वाला सामूहिक प्रभाव का विचार किया जाता है। संहिता के विषयों को मुख्यतया तीन रूपों में विभक्त किया गया है -  
    
# '''पंचांग विषयक -''' तिथि, वार, नक्षत्र, योग करण के द्वारा समष्टिगत चिंतन और मुहूर्त आदि का विधान पंचांग विषयक संहिता स्कन्ध के अन्तर्गत आता है।
 
# '''पंचांग विषयक -''' तिथि, वार, नक्षत्र, योग करण के द्वारा समष्टिगत चिंतन और मुहूर्त आदि का विधान पंचांग विषयक संहिता स्कन्ध के अन्तर्गत आता है।
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==परिभाषा॥ Definition==
 
==परिभाषा॥ Definition==
ज्योतिष शास्त्र के जिस स्कन्ध में ग्रहचारवश ग्रह- नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण से पशु-पक्षी-कीटादियों का भूसापेक्ष सामूहिक विवेचन, आकाशीय घटनाओं का ज्ञान किया जाता हो, उसे संहिता शास्त्र कहते हैं - <blockquote>सम्यक् हितं प्रतिपाद्यं यस्याः सा संहिता। (शब्दकल्पद्रुमः)</blockquote>ज्योतिषशास्त्र के जिस स्कन्ध में सभी का सम्यक् प्रकार से हित प्रतिपादित किया गया हो वह संहिता है। सभी में केवल मनुष्यों का समावेश नहीं है अपितु क्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र, पशु पक्षी प्राणिमात्र सहित सम्पूर्ण विश्व से संबंधित विषयों का समावेश है। जैसे- पर्यावरण विज्ञान, रसायन विज्ञान, मौसम विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वृष्टि विज्ञान, दकार्गल, प्राकृतिक आपदा, वनस्पति विज्ञान, ग्रहचार, ग्रह-नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण, पशु- पक्षी-कीटादियों से संबंधित विषय, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, विचित्र आकाशीय व भौमिक घटनाओं का ज्ञान व उनके प्रभाव का अध्ययन इत्यादि अनेकानेक विषयों का अध्ययन जिसमें किया जाता हो, उसे संहिता कहते हैं।
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ज्योतिष शास्त्र के जिस स्कन्ध में ग्रहचारवश ग्रह- नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण से पशु-पक्षी-कीटादियों का भूसापेक्ष सामूहिक विवेचन, आकाशीय घटनाओं का ज्ञान किया जाता हो, उसे संहिता शास्त्र कहते हैं - <blockquote>सम्यक् हितं प्रतिपाद्यं यस्याः सा संहिता। (शब्दकल्पद्रुमः)</blockquote>ज्योतिषशास्त्र के जिस स्कन्ध में सभी का सम्यक् प्रकार से हित प्रतिपादित किया गया हो वह संहिता है। सभी में केवल मनुष्यों का समावेश नहीं है अपितु क्षेत्र, प्रदेश, राष्ट्र, पशु पक्षी प्राणिमात्र सहित सम्पूर्ण विश्व से संबंधित विषयों का समावेश है। जैसे- पर्यावरण विज्ञान, रसायन विज्ञान, मौसम विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, वृष्टि विज्ञान, दकार्गल, प्राकृतिक आपदा, वनस्पति विज्ञान, ग्रहचार, ग्रह-नक्षत्रादि बिम्बों के शुभाशुभ लक्षण, पशु- पक्षी-कीटादियों से संबंधित विषय, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, विचित्र आकाशीय व भौमिक घटनाओं का ज्ञान व उनके प्रभाव का अध्ययन इत्यादि अनेकानेक विषयों का अध्ययन जिसमें किया जाता हो, उसे संहिता कहते हैं।<ref>पं० अच्युतानन्द झा, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20Brihat%20Samhita%20-1/page/n4/mode/1up बृहत्संहिता-विमला हिन्दीव्याख्या समेत], भूमिका, सन् 2014, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० 4)।</ref>
    
== संहिता स्कन्ध का महत्व॥ Importance of Samhita Skandha==
 
== संहिता स्कन्ध का महत्व॥ Importance of Samhita Skandha==
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आचार्य वराहमिहिर द्वारा विरचित बृहत्संहिता एक अद्वितीय एवं विलक्षण संहिता ग्रन्थ है। उसमें दैवज्ञ प्रशंसा के सन्दर्भ में निर्देश किया है कि जो दैवज्ञ संहिता शास्त्र को सम्यक् रूप से जानता है, वहीं दैवचिन्तक होता है-<blockquote>
 
आचार्य वराहमिहिर द्वारा विरचित बृहत्संहिता एक अद्वितीय एवं विलक्षण संहिता ग्रन्थ है। उसमें दैवज्ञ प्रशंसा के सन्दर्भ में निर्देश किया है कि जो दैवज्ञ संहिता शास्त्र को सम्यक् रूप से जानता है, वहीं दैवचिन्तक होता है-<blockquote>
 
संहितापारगश्च दैवचिन्तको भवति।</blockquote>
 
संहितापारगश्च दैवचिन्तको भवति।</blockquote>
जो दैवज्ञ गणित व होरा शास्त्र के साथ संहिता शास्त्र में भी पारंगत होता है उसकी संवत्सर संज्ञा दी गई। संवत्सर का अत्यधिक महत्त्व प्रतिपादित किया गया। सांवत्सर किसी देश, प्रदेश, जिले या नगर का शुभाशुभ फलकथन करने में समर्थ होता है, अतएव कहा गया कि अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को साम्वत्सर रहित देश में निवास नहीं करना चहिये। जैसा कि आचार्य का कथन है- <blockquote>
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जो दैवज्ञ गणित व होरा शास्त्र के साथ संहिता शास्त्र में भी पारंगत होता है उसकी संवत्सर संज्ञा दी गई। संवत्सर का अत्यधिक महत्त्व प्रतिपादित किया गया। सांवत्सर किसी देश, प्रदेश, जिले या नगर का शुभाशुभ फलकथन करने में समर्थ होता है, अतएव कहा गया कि अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को साम्वत्सर रहित देश में निवास नहीं करना चहिये। जैसा कि आचार्य का कथन है - <blockquote>
नासांवत्सरिके देशे वस्तव्यं भूतिमिच्छता। चक्षुर्भूतो हि यत्रैष पापं तत्र न विद्यते॥ (बृह० सं० १/११)</blockquote>सांवत्सर का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए आचार्य वराहमिहिर ने वर्णन किया- जैसे दीप्तिरहित रात्रि अन्धकार युक्त होता है, जैसे सूर्यरहित आकाश अन्धकारयुक्त होता है उसी प्रकार दैवज्ञ विहीन राजा अन्धकार में ही भ्रमण करता हैं- <blockquote>अप्रदीपा यथा रात्रिः अनादित्यं यथा नभः। तथा असांवत्सरो राजा भ्रम्यत्यन्ध इवाध्वनि॥ (बृह० सं० २/)</blockquote>जो राजा विजय की कामना करता है उसे सिद्धान्त संहिता होरा रूप त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषशास्त्र में पारंगत सांवत्सर की अभ्यर्चना कर अपने राज्य में स्थान देना चाहिये।
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नासांवत्सरिके देशे वस्तव्यं भूतिमिच्छता। चक्षुर्भूतो हि यत्रैष पापं तत्र न विद्यते॥ (बृहत्संहिता 2/29)<ref>पं० अच्युतानन्द झा, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20Brihat%20Samhita%20-1/page/n4/mode/1up बृहत्संहिता-विमला हिन्दीव्याख्या समेत], अध्याय-2, श्लोक-29, सन् 2014, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० 61)।</ref></blockquote>सांवत्सर का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए आचार्य वराहमिहिर ने वर्णन किया- जैसे दीप्तिरहित रात्रि अन्धकार युक्त होता है, जैसे सूर्यरहित आकाश अन्धकारयुक्त होता है उसी प्रकार दैवज्ञ विहीन राजा अन्धकार में ही भ्रमण करता हैं- <blockquote>अप्रदीपा यथा रात्रिः अनादित्यं यथा नभः। तथा असांवत्सरो राजा भ्रम्यत्यन्ध इवाध्वनि॥ (बृहत्संहिता  2/26)<ref>पं० अच्युतानन्द झा, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20Brihat%20Samhita%20-1/page/n4/mode/1up बृहत्संहिता-विमला हिन्दीव्याख्या समेत], अध्याय-2, श्लोक-26, भूमिका, सन् 2014, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० 61)।</ref></blockquote>जो राजा विजय की कामना करता है उसे सिद्धान्त संहिता होरा रूप त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषशास्त्र में पारंगत सांवत्सर की अभ्यर्चना कर अपने राज्य में स्थान देना चाहिये।
    
==संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य॥ Major texts and Acharyas of Samhita Skandha==
 
==संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य॥ Major texts and Acharyas of Samhita Skandha==
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नीति शास्त्रगत मानवीय तथा सामाजिक सौहार्द्र को स्थापित करना सुख-शान्ति, आरोग्य, निर्भयत्व, कल्याण तथा दुःखहीन जीवन भारतीय संस्कृति तथा संहिता स्कन्ध का मूल लक्ष्य है।  
 
नीति शास्त्रगत मानवीय तथा सामाजिक सौहार्द्र को स्थापित करना सुख-शान्ति, आरोग्य, निर्भयत्व, कल्याण तथा दुःखहीन जीवन भारतीय संस्कृति तथा संहिता स्कन्ध का मूल लक्ष्य है।  
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==संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध॥ Samhita Skandha ke Upaskandha==
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== संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध॥ Samhita Skandha ke Upaskandha==
 
संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref name=":0">श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं-
 
संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref name=":0">श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं-
    
'''संहिता स्कन्ध-''' शकुन, स्वप्न, सामुद्रिकशास्त्र, वास्तु, मुहूर्त, अर्घ और वृष्टि। इन उपस्कन्धों के भी विषय की दृष्टि से और विभाग हो सकते हैं, जिससे कि संहिता में शोध को नई दिशा मिल सके।
 
'''संहिता स्कन्ध-''' शकुन, स्वप्न, सामुद्रिकशास्त्र, वास्तु, मुहूर्त, अर्घ और वृष्टि। इन उपस्कन्धों के भी विषय की दृष्टि से और विभाग हो सकते हैं, जिससे कि संहिता में शोध को नई दिशा मिल सके।
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====शकुन॥ Shakuna====
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====शकुन॥ Shakuna ====
 
प्राकृतिक संकेत या जानवरों एवं पक्षियों की चेष्टाएं और ध्वनियां अंगस्फुरण (अंगों का फ़डकना) तथा पल्लीपतन आदि मुख्यतया शकुन के विचारणीय विषय हैं। वसन्तराज का 'वसन्तराजशकुनम् ' शकुनशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। शुभ और अशुभ इन दोनों प्रकार के शकुनों के फल इस ग्रन्थ में वर्णित हैं। बृहत्संहिता में उत्पातों भूकम्प आदि के लक्षण में एवं कृषि की सूचना में पक्षियों की विशेष चेष्टाओं का वर्णन है, जिनके आधार पर उत्पातों, भूकंप आदि का पूर्वानुमान प्राचीन समय में सांहितिक आचार्य किया करते थे। कालक्रम से इसका लोप हो गया। किन्तु विडम्बना यह है कि पाश्चात्य देशों एवं जापान आदि में पशु-पक्षियों की इन चेष्टाओं पर गंभीर अध्ययन और शोध हो रहे हैं जिनके आधार पर प्राकृतिक-उत्पात आदि के पूर्वानुमान में वैज्ञानिक सफल भी हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त बृहत्संहिता में एवं वास्तु के ग्रन्थों में भी वास्तु-निर्माण के पूर्व सूत्रपात शल्योद्धार के समय शकुन का विचार किया गया है। मुहूर्त-ग्रन्थों यथा- मुहूर्तचिंतामणि, मुहूर्तमार्तण्ड, रत्नमाला आदि में यात्रा-मुहूर्त के वर्णन के प्रसंग में भी शकुनों का विचार है। इन शकुनों परे भारत में भी शोध की संभावनायें अनंत हैं।<ref name=":0" />
 
प्राकृतिक संकेत या जानवरों एवं पक्षियों की चेष्टाएं और ध्वनियां अंगस्फुरण (अंगों का फ़डकना) तथा पल्लीपतन आदि मुख्यतया शकुन के विचारणीय विषय हैं। वसन्तराज का 'वसन्तराजशकुनम् ' शकुनशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। शुभ और अशुभ इन दोनों प्रकार के शकुनों के फल इस ग्रन्थ में वर्णित हैं। बृहत्संहिता में उत्पातों भूकम्प आदि के लक्षण में एवं कृषि की सूचना में पक्षियों की विशेष चेष्टाओं का वर्णन है, जिनके आधार पर उत्पातों, भूकंप आदि का पूर्वानुमान प्राचीन समय में सांहितिक आचार्य किया करते थे। कालक्रम से इसका लोप हो गया। किन्तु विडम्बना यह है कि पाश्चात्य देशों एवं जापान आदि में पशु-पक्षियों की इन चेष्टाओं पर गंभीर अध्ययन और शोध हो रहे हैं जिनके आधार पर प्राकृतिक-उत्पात आदि के पूर्वानुमान में वैज्ञानिक सफल भी हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त बृहत्संहिता में एवं वास्तु के ग्रन्थों में भी वास्तु-निर्माण के पूर्व सूत्रपात शल्योद्धार के समय शकुन का विचार किया गया है। मुहूर्त-ग्रन्थों यथा- मुहूर्तचिंतामणि, मुहूर्तमार्तण्ड, रत्नमाला आदि में यात्रा-मुहूर्त के वर्णन के प्रसंग में भी शकुनों का विचार है। इन शकुनों परे भारत में भी शोध की संभावनायें अनंत हैं।<ref name=":0" />
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वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण का विचार अर्घ नाम से प्रसिद्ध है। मूल्य-वृद्धि को महर्घ एवं सामान्य को समर्घ कहते हैं। नक्षत्रों में ग्रहों के संचरण, ग्रहों की शर-क्रान्ति-युति, संक्रान्ति, सर्वतोभद्र-चक्र आदि के द्वारा वस्तुओं के अर्घ का विचार संहितास्कन्ध में मिलता है, जिस पर शोध एवं अध्ययन वर्तमान समय की मांग है। शेयर-मार्केट में वस्तुओं के मूल्य का आंकलन जैसे वाणिज्य-शास्त्र के जानकार करते हैं वैसे ही यदि ज्योतिषी भी इसका अध्ययन करके पूर्व अनुमान करे तो ये आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं।<ref name=":0" />
 
वस्तुओं के मूल्य-निर्धारण का विचार अर्घ नाम से प्रसिद्ध है। मूल्य-वृद्धि को महर्घ एवं सामान्य को समर्घ कहते हैं। नक्षत्रों में ग्रहों के संचरण, ग्रहों की शर-क्रान्ति-युति, संक्रान्ति, सर्वतोभद्र-चक्र आदि के द्वारा वस्तुओं के अर्घ का विचार संहितास्कन्ध में मिलता है, जिस पर शोध एवं अध्ययन वर्तमान समय की मांग है। शेयर-मार्केट में वस्तुओं के मूल्य का आंकलन जैसे वाणिज्य-शास्त्र के जानकार करते हैं वैसे ही यदि ज्योतिषी भी इसका अध्ययन करके पूर्व अनुमान करे तो ये आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं।<ref name=":0" />
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====वृष्टि॥ Vrashti====
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==== वृष्टि॥ Vrashti====
 
वर्षा के विचार से संहिता-ग्रन्थ भरे पडे हैं। वर्षा के पूर्वानुमान का अत्यधिक विचार इस स्कन्ध में है। बृहत्संहिता में इससे संबंधित ८अध्याय हैं, जिनमे मेघों के गर्भ और प्रसव-काल से लेकर विविध योगों का विचार किया गया है। कृषिपाराशर एवं शार्गधरसंहिता में वर्षा के अनेकों योग वर्णित हैं। संहिता स्कन्ध में वर्णित वृष्टि-विचार की एक मुख्य विशेषता यह है कि वो वृष्टि का अनुमान वर्षा-काल के ३ से ६ महीने पूर्व मेघों को देखकर लगाते हैं, जिसे मेघ का गर्भधारण कहते हैं। यह गर्भधारण जिस नक्षत्र और संक्रान्ति में हुआ है उस समय ग्रहों की स्थिति का विचार करके भविष्यमाण वर्षा के काल और मात्रा का अनुमान संहिता-स्कंध में किया जाता है। यदि मौसम-वैज्ञानिक और संहिता-स्कंध के विद्वान् मिलकर इस दिशा में शोध करें तो समाज का अत्यन्त कल्याण हो सकता है।
 
वर्षा के विचार से संहिता-ग्रन्थ भरे पडे हैं। वर्षा के पूर्वानुमान का अत्यधिक विचार इस स्कन्ध में है। बृहत्संहिता में इससे संबंधित ८अध्याय हैं, जिनमे मेघों के गर्भ और प्रसव-काल से लेकर विविध योगों का विचार किया गया है। कृषिपाराशर एवं शार्गधरसंहिता में वर्षा के अनेकों योग वर्णित हैं। संहिता स्कन्ध में वर्णित वृष्टि-विचार की एक मुख्य विशेषता यह है कि वो वृष्टि का अनुमान वर्षा-काल के ३ से ६ महीने पूर्व मेघों को देखकर लगाते हैं, जिसे मेघ का गर्भधारण कहते हैं। यह गर्भधारण जिस नक्षत्र और संक्रान्ति में हुआ है उस समय ग्रहों की स्थिति का विचार करके भविष्यमाण वर्षा के काल और मात्रा का अनुमान संहिता-स्कंध में किया जाता है। यदि मौसम-वैज्ञानिक और संहिता-स्कंध के विद्वान् मिलकर इस दिशा में शोध करें तो समाज का अत्यन्त कल्याण हो सकता है।
    
इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है  कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" />
 
इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है  कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" />
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==संहिता स्कन्ध के मुख्य विषय विभाग॥ Samhita Skandha  ke mukhya vishaya vibhaga ==
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==संहिता स्कन्ध के मुख्य विषय विभाग॥ Samhita Skandha  ke mukhya vishaya vibhaga==
 
प्रभाव की दृष्टि से संहिता के मुख्य तीन भाग हैं-
 
प्रभाव की दृष्टि से संहिता के मुख्य तीन भाग हैं-
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==ज्योतिष की प्रमुख संहिताऐं॥ Jyotisha ke Pramukh Samhitain==
 
==ज्योतिष की प्रमुख संहिताऐं॥ Jyotisha ke Pramukh Samhitain==
वैदिक काल से हि ज्योतिषशास्त्र के संहिता संबंधित विभिन्न विषयों का लेखन प्रारंख हो चुका था, विशेष रूप से अथर्ववेद में संहिता संबंधित विभिन्न विषयों का वर्णन प्राप्त होता है। कालान्तर में अनेक आचार्यों ने संहिता संबंधित स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की। जैसे -  
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वैदिक काल से हि ज्योतिषशास्त्र के संहिता संबंधित विभिन्न विषयों का लेखन प्रारंख हो चुका था, विशेष रूप से अथर्ववेद में संहिता संबंधित विभिन्न विषयों का वर्णन प्राप्त होता है। कालान्तर में अनेक आचार्यों ने संहिता संबंधित स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की। जैसे -<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/history-of-skandha-samhita-nzm870/#mz-expanded-view-1558356145648 भारतीयज्यौतिष - संहिता स्कन्ध का इतिहास], भारतीय विद्या संस्थान, वाराणसी (पृ० 169)।</ref>
    
*वृद्धगर्गीय संहिता
 
*वृद्धगर्गीय संहिता
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*काश्यप संहिता
 
*काश्यप संहिता
 
*भृगु संहिता
 
*भृगु संहिता
* गर्ग संहिता
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*गर्ग संहिता
 
*वशिष्ठ संहिता
 
*वशिष्ठ संहिता
 
*नारद संहिता
 
*नारद संहिता
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छ्ठी शताब्दी में आचार्य वराहमिहिर ने उस समय में उपलब्ध सभी संहिता ग्रन्थों का अध्ययन कर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बृहत्संहिता की रचना की। इस ग्रन्थ में पूर्ववर्ती अनेक आचार्यों का नामोल्लेख किया गया है। जिससे संहिता ग्रन्थों के निर्माण की सुदीर्घ परम्परा का ज्ञान होता है। यह उपलब्ध संहिता ग्रन्थों में सबसे प्राचीन एवं सम्पूर्ण विषयों का समावेश किया हुआ ग्रन्थ है।
 
छ्ठी शताब्दी में आचार्य वराहमिहिर ने उस समय में उपलब्ध सभी संहिता ग्रन्थों का अध्ययन कर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बृहत्संहिता की रचना की। इस ग्रन्थ में पूर्ववर्ती अनेक आचार्यों का नामोल्लेख किया गया है। जिससे संहिता ग्रन्थों के निर्माण की सुदीर्घ परम्परा का ज्ञान होता है। यह उपलब्ध संहिता ग्रन्थों में सबसे प्राचीन एवं सम्पूर्ण विषयों का समावेश किया हुआ ग्रन्थ है।
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==रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश==
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==संहिता स्कन्ध की समाज में उपयोगिता॥ Samhita Skandha ke samaja mein upayogita==
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== संहिता स्कन्ध की समाज में उपयोगिता॥ Samhita Skandha ke samaja mein upayogita==
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संहिता स्कन्धमें ग्रह-नक्षत्रोंके द्वारा भूपृष्ठपर पडनेवाले सामूहिक प्रभावका विवेचन किया जाता है। इस स्कन्धको भौतिक एवं वैश्विक ज्योतिष भी कहा जाता है। संहिता स्कन्ध के विषय में वराहमिहिर ने लिखा है-<blockquote>ज्योतिःशास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम्। तत्कार्त्स्न्योपनयनस्य नाम मुनिभिः संहीर्त्यते संहिता॥(बृहत्संहिता 1-9)<ref name=":1">पं० अच्युतानन्द झा, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20Brihat%20Samhita%20-1/page/n4/mode/1up बृहत्संहिता-विमला हिन्दीव्याख्या समेत], अध्याय-1, श्लोक-09, भूमिका, सन् 2014, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० 8)।</ref></blockquote>वस्तुतः सिद्धान्त और होरा स्कन्धों का संक्षेप में समवेत विवेचन ही संहिता है। संहिता स्कन्ध में ग्रहों की गति, ग्रहयुति, मेघलक्षण, वृष्टिविचार, उल्का-विचार, भूकम्प-विचार, जलशोधन, विभिन्न शकुनों का विचार, वास्तुविद्या तथा ग्रहणादि का समस्त चराचर जगत् पर पडने वाले सामूहिक प्रभाव इत्यादि का विचार किया जाता है।
संहिता स्कन्धमें ग्रह-नक्षत्रोंके द्वारा भूपृष्ठपर पडनेवाले सामूहिक प्रभावका विवेचन किया जाता है। इस स्कन्धको भौतिक एवं वैश्विक ज्योतिष भी कहा जाता है। संहिता स्कन्ध के विषय में वराहमिहिर ने लिखा है-<blockquote>ज्योतिःशास्त्रमनेकभेदविषयं स्कन्धत्रयाधिष्ठितम्। तत्कार्त्स्न्योपनयनस्य नाम मुनिभिः संहीर्त्यते संहिता॥(बृ०सं० उपनय० श्लो० ९)</blockquote>वस्तुतः सिद्धान्त और होरा स्कन्धों का संक्षेप में समवेत विवेचन ही संहिता है। संहिता स्कन्ध में ग्रहों की गति, ग्रहयुति, मेघलक्षण, वृष्टिविचार, उल्का-विचार, भूकम्प-विचार, जलशोधन, विभिन्न शकुनों का विचार, वास्तुविद्या तथा ग्रहणादि का समस्त चराचर जगत् पर पडने वाले सामूहिक प्रभाव इत्यादि का विचार किया जाता है।
      
==सारांश॥ Summary==
 
==सारांश॥ Summary==
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गणित गोल तथा सतर्क यन्त्र निर्माण एवं शोध तथा प्रयोग के उच्चतम आधार से सम्बद्ध विस्तृत स्कन्ध है। इसके अन्तर्गत भूगोल, खगोल एवं भगोल से सम्बन्धित अनेक विश्वजनीन विषयों का अद्भुत संकलन एवं विश्लेषण किया गया है। इस स्कन्ध में अनेक विद्या शाखाएँ आज भी प्रयोग गम्य हैं। कुछ व्यवहार बाह्य हो गयी हैं, तो कुछ प्रयोग बाह्य हो रही हैं। भारतीय तथा पाश्चात्य अन्वेषणों के फलस्वरूप वर्त्तमान शताब्दी में संहिता के अनेक विषयों की प्रासंगिकता फिर से सिद्ध हो रही है। अतः ध्यानाकर्षण आवश्यक है।
 
गणित गोल तथा सतर्क यन्त्र निर्माण एवं शोध तथा प्रयोग के उच्चतम आधार से सम्बद्ध विस्तृत स्कन्ध है। इसके अन्तर्गत भूगोल, खगोल एवं भगोल से सम्बन्धित अनेक विश्वजनीन विषयों का अद्भुत संकलन एवं विश्लेषण किया गया है। इस स्कन्ध में अनेक विद्या शाखाएँ आज भी प्रयोग गम्य हैं। कुछ व्यवहार बाह्य हो गयी हैं, तो कुछ प्रयोग बाह्य हो रही हैं। भारतीय तथा पाश्चात्य अन्वेषणों के फलस्वरूप वर्त्तमान शताब्दी में संहिता के अनेक विषयों की प्रासंगिकता फिर से सिद्ध हो रही है। अतः ध्यानाकर्षण आवश्यक है।
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ज्योतिष शास्त्र के दूसरे स्कन्ध संहिता का भी विशेष महत्त्व है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः फलादेश संबंधी विषयों का बाहुल्य होता है। आचार्य वराहमिहिरने बृहत्संहिता में कहा है कि जो व्यक्ति संहिता के समस्त विषयों को जानता है, वही दैवज्ञ होता है। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, वृक्षायुर्वेद, दर्कागल, सूर्यादि ग्रहों के संचार, ग्रहों के स्वभाव, विकार, प्रमाण, गृहों का नक्षत्रों की युति से फल, परिवेष, परिघ, वायु लक्षण, भूकम्प, उल्कापात, वृष्टि वर्षण, अंगविद्या, पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के लक्षण पर विचार, रत्नपरीक्षा, दीपलक्षण नक्षत्राचार, ग्रहों का देश एवं प्राणियों पर आधिपत्य, दन्तकाष्ठ के द्वारा शुभ अशुभ फल का कथन आदि विषय वर्णित किये जाते हैं। संहिता ग्रन्थों में उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता होती है कि इन ग्रन्थों में व्यक्ति विषयक फलादेश के स्थान पर राष्ट्र विषयक फलादेश किया जाता है।
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ज्योतिष शास्त्र के दूसरे स्कन्ध संहिता का भी विशेष महत्त्व है। इन ग्रन्थों में मुख्यतः फलादेश संबंधी विषयों का बाहुल्य होता है। आचार्य वराहमिहिरने बृहत्संहिता में कहा है कि जो व्यक्ति संहिता के समस्त विषयों को जानता है, वही दैवज्ञ होता है। संहिता ग्रन्थों में भूशोधन, दिक् शोधन, मेलापक, जलाशय निर्माण, मांगलिक कार्यों के मुहूर्त, वृक्षायुर्वेद, दर्कागल, सूर्यादि ग्रहों के संचार, ग्रहों के स्वभाव, विकार, प्रमाण, गृहों का नक्षत्रों की युति से फल, परिवेष, परिघ, वायु लक्षण, भूकम्प, उल्कापात, वृष्टि वर्षण, अंगविद्या, पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों के लक्षण पर विचार, रत्नपरीक्षा, दीपलक्षण नक्षत्राचार, ग्रहों का देश एवं प्राणियों पर आधिपत्य, दन्तकाष्ठ के द्वारा शुभ अशुभ फल का कथन आदि विषय वर्णित किये जाते हैं।
    
==उद्धरण॥ References==
 
==उद्धरण॥ References==
 
<references />
 
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[[Category:Jyotisha]]
 
[[Category:Jyotisha]]
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[[Category:Hindi Articles]]
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