| − | तीर्थोंमें उपवास, जप, दान, पूजा-पाठ तो मुख्य होता ही है, किसी तीर्थविशेषका कुछ विशेष कर्म भी होता है। प्रयागका मुख्य कर्म है मुण्डन। अन्य तीर्थोंमें क्षौर वर्जित है, किंतु प्रयागमें मुण्डन करानेकी विधि है। त्रिवेणी-संगमके पास निश्चित स्थानपर मुण्डन होता है। विधवा स्त्रियाँ भी मुण्डन कराती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियोंके लिये वेणी-दानकी विधि है। मुख्यकर्म इस प्रकार हैं - | + | तीर्थोंमें उपवास, जप, दान, पूजा-पाठ तो मुख्य होता ही है, किसी तीर्थविशेषका कुछ विशेष कर्म भी होता है। प्रयागका मुख्य कर्म है मुण्डन। अन्य तीर्थोंमें क्षौर वर्जित है, किंतु प्रयागमें मुण्डन करानेकी विधि है। त्रिवेणी-संगमके पास निश्चित स्थानपर मुण्डन होता है। विधवा स्त्रियाँ भी मुण्डन कराती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियोंके लिये वेणी-दानकी विधि है। मुख्यकर्म इस प्रकार हैं -<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/eDuf_dharma-shastra-ka-itihas-of-dr.-pandurang-vaman-kane-vol.-3-uttar-pradesh-hindi-sansthan-luckno/page/n339/mode/1up?view=theater धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-3], सन् 2003, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० 1326)।</ref> |