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| सामाजिक जीवन में अर्थ की उपयोगिता सर्वविदित है। इसके विना जीवन पंगु हो जाता है। प्रत्येक कार्य सिद्धि का आधार अर्थ है। इसी से व्यक्ति का विकास होता है तथा व्यक्ति की समृद्धि का अर्थ ही कारण है। अतः अर्थोपार्जन की दिशा में नैतिकता का होना परमावश्यक है। क्योंकि अनैतिकता के मार्ग पर चलकर प्राप्त अर्थ (धन) मूल विनाश का कारण बन जाता है। अतः यहाँ भी हमें नैतिकता का विशेष ध्यान रखना पडता है। | | सामाजिक जीवन में अर्थ की उपयोगिता सर्वविदित है। इसके विना जीवन पंगु हो जाता है। प्रत्येक कार्य सिद्धि का आधार अर्थ है। इसी से व्यक्ति का विकास होता है तथा व्यक्ति की समृद्धि का अर्थ ही कारण है। अतः अर्थोपार्जन की दिशा में नैतिकता का होना परमावश्यक है। क्योंकि अनैतिकता के मार्ग पर चलकर प्राप्त अर्थ (धन) मूल विनाश का कारण बन जाता है। अतः यहाँ भी हमें नैतिकता का विशेष ध्यान रखना पडता है। |
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− | ==नीतिशास्त्र में आचार्य विदुर का योगदान== | + | == वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विदुर नीति की प्रासंगिकता॥ Relevance of Vidura Neeti in Modern Context == |
| + | '''राजनीति में नैतिकता और नेतृत्व''' |
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| + | * विदुर नीति के अनुसार, एक नेता का नैतिक होना आवश्यक है। आज के संदर्भ में यह नीति राजनीतिक भ्रष्टाचार को रोकने में मदद कर सकती है। |
| + | * उदाहरण: महात्मा गांधी के नेतृत्व के सिद्धांतों की तुलना विदुर नीति से की जा सकती है, जहां सत्य और अहिंसा पर आधारित राजनीति ने स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक रूप दिया। |
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| + | '''व्यक्तिगत जीवन में संयम और अनुशासन''' |
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| + | * विदुर ने आत्म-नियंत्रण और संयम को सफल जीवन का महत्वपूर्ण अंग माना। आजकल की उपभोक्तावादी संस्कृति में, इन सिद्धांतों का पालन संतुलन बनाए रखने में सहायक हो सकता है। |
| + | * उदाहरण: फाइनेंशियल मैनेजमेंट और व्यक्तिगत जीवन में संयम और संतुलन से मानसिक और आर्थिक स्थिरता का महत्व। |
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| + | '''सामाजिक न्याय और समानता''' |
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| + | * विदुर नीति में सभी लोगों के साथ समान व्यवहार और न्यायपूर्ण व्यवस्था पर जोर दिया गया है। आधुनिक समय में सामाजिक असमानता और भेदभाव को दूर करने के लिए इन सिद्धांतों को अपनाया जा सकता है। |
| + | * उदाहरण: सामाजिक सुधार आंदोलनों, जैसे डॉ. बी. आर. आंबेडकर द्वारा शुरू किया गया दलित सुधार आंदोलन, में विदुर नीति की समानता पर आधारित दृष्टिकोण देखा जा सकता है। |
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| + | '''धन का उचित उपयोग''' |
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| + | * विदुर नीति में यह सिखाया गया है कि धन का सही और उचित उपयोग ही समाज और व्यक्ति के लिए लाभकारी होता है। आज के समय में यह विचार विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां पूंजीवाद और लालच बढ़ते जा रहे हैं। |
| + | * उदाहरण: कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) की अवधारणा में नैतिकता और धन के सदुपयोग का महत्व। |
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| + | == नीतिशास्त्र में आचार्य विदुर का योगदान == |
| भारत में उत्पन्न हुए लोगों से विश्व को अनेक प्रकार की शिक्षाएं मिली है। यहाँ उत्पन्न हुए विद्वानों ने विश्व को नैतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास की भी शिक्षा प्रदान की है। छोटे-छोटे आख्यानों के रूप में वेदों में नैतिक शिक्षा का वर्णन भरा हुआ है। अनेक नीति शास्त्रों का अवलोकन करने से यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि सभी नीति ग्रन्थों का एक ही लक्ष्य है - कृत्याकृत्य का विचार, सामाजिक सुव्यवस्था, धर्मपूर्वक जीवन यापन, सद्गुण ग्रहण, दुर्गुण परित्याग और परिवार, राज्य एवं जन-कल्याण की भावना का निवेश। इसी कोटि में आचार्य विदुर का नाम भी आता है।<ref>शोध गंगा-रविन्द्र नाथ सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/527847 विदुर का आचार दर्शन उद्योगपर्व के परिप्रेक्ष्य में], सन् 1992, शोधकेन्द्र- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० 22)।</ref> | | भारत में उत्पन्न हुए लोगों से विश्व को अनेक प्रकार की शिक्षाएं मिली है। यहाँ उत्पन्न हुए विद्वानों ने विश्व को नैतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास की भी शिक्षा प्रदान की है। छोटे-छोटे आख्यानों के रूप में वेदों में नैतिक शिक्षा का वर्णन भरा हुआ है। अनेक नीति शास्त्रों का अवलोकन करने से यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि सभी नीति ग्रन्थों का एक ही लक्ष्य है - कृत्याकृत्य का विचार, सामाजिक सुव्यवस्था, धर्मपूर्वक जीवन यापन, सद्गुण ग्रहण, दुर्गुण परित्याग और परिवार, राज्य एवं जन-कल्याण की भावना का निवेश। इसी कोटि में आचार्य विदुर का नाम भी आता है।<ref>शोध गंगा-रविन्द्र नाथ सिंह, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/527847 विदुर का आचार दर्शन उद्योगपर्व के परिप्रेक्ष्य में], सन् 1992, शोधकेन्द्र- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० 22)।</ref> |
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| ==विदुर नीति का महत्व== | | ==विदुर नीति का महत्व== |
| '''नेतृत्व॥ LEADERSHIP'''<blockquote>एकः स्वादु न भुञ्जीत एकश्च अर्थान् न चिन्तयेत्। एको न गच्छेत् अध्वानं न एकः सुप्तेशु जागृयात् ॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' व्यक्ति ने अकेले स्वदिष्ट पदार्थ नहीं खाना चाहिये। (सब के साथ खाने में आनंद मिलता है)। अकेले धनवान होने के बारे में नहीं सोचना चाहिये। अकेले ने प्रवास नहीं करना चाहिये। जब सभी सो रहे हैं, तब अकेले ने जागृत नहीं रहना चाहिये। | | '''नेतृत्व॥ LEADERSHIP'''<blockquote>एकः स्वादु न भुञ्जीत एकश्च अर्थान् न चिन्तयेत्। एको न गच्छेत् अध्वानं न एकः सुप्तेशु जागृयात् ॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' व्यक्ति ने अकेले स्वदिष्ट पदार्थ नहीं खाना चाहिये। (सब के साथ खाने में आनंद मिलता है)। अकेले धनवान होने के बारे में नहीं सोचना चाहिये। अकेले ने प्रवास नहीं करना चाहिये। जब सभी सो रहे हैं, तब अकेले ने जागृत नहीं रहना चाहिये। |
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| '''संचार॥ COMMUNICATION'''<blockquote>तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्। उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते॥३२॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' जो समस्त भूत (जात) ऐश्वर्य आदि के विनाशित्व रूप तत्त्व को जानता है और समस्त कार्यों के योग (रचना प्रकार) को जानता है तथा मनुष्यों के उपाय (अपेक्षित सामग्री) को जानता है वह मनुष्य पण्डित कहा जाता है ॥३२॥ | | '''संचार॥ COMMUNICATION'''<blockquote>तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्। उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते॥३२॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' जो समस्त भूत (जात) ऐश्वर्य आदि के विनाशित्व रूप तत्त्व को जानता है और समस्त कार्यों के योग (रचना प्रकार) को जानता है तथा मनुष्यों के उपाय (अपेक्षित सामग्री) को जानता है वह मनुष्य पण्डित कहा जाता है ॥३२॥ |
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| '''प्रेरणा॥ MOTIVATION'''<blockquote>निश्चित्य यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः। अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' यह एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि जो व्यक्ति दृढ़ प्रतिबद्धता से अपने काम की शुरुआत करता है, जो काम पूरा होने तक ज़्यादा आराम नहीं करता, जो समय बर्बाद नहीं करता, और जो अपने विचारों पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धिमान है। | | '''प्रेरणा॥ MOTIVATION'''<blockquote>निश्चित्य यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः। अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' यह एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि जो व्यक्ति दृढ़ प्रतिबद्धता से अपने काम की शुरुआत करता है, जो काम पूरा होने तक ज़्यादा आराम नहीं करता, जो समय बर्बाद नहीं करता, और जो अपने विचारों पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धिमान है। |
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| '''आत्म प्रबंधन॥ SELF-MANAGEMENT'''<blockquote>क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीस्तम्भो मान्यमानिता। यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥२२॥ </blockquote>'''भाषार्थ -''' क्रोध, हर्ष, दर्प (दूसरे का अपमान), लज्जा, स्तम्भ (नम्र न होना), मान्यमानिता (अपने में पूज्य भावना अर्थात् मैं पूज्य हूँ) ये सब जिनको पुरुषार्थ से नहीं गिराते हैं वह पण्डित कहा जाता है। | | '''आत्म प्रबंधन॥ SELF-MANAGEMENT'''<blockquote>क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीस्तम्भो मान्यमानिता। यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥२२॥ </blockquote>'''भाषार्थ -''' क्रोध, हर्ष, दर्प (दूसरे का अपमान), लज्जा, स्तम्भ (नम्र न होना), मान्यमानिता (अपने में पूज्य भावना अर्थात् मैं पूज्य हूँ) ये सब जिनको पुरुषार्थ से नहीं गिराते हैं वह पण्डित कहा जाता है। |
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| '''सशक्तिकरण॥ EMPOWERMENT'''<blockquote>अभिप्रायं यो विदित्वा तु भर्तुः सर्वाणि कार्याणि करोत्यतन्द्री। वक्ता हितानामनुरक्त आर्यः शक्तिज्ञ आत्मेव हि सोऽनुकम्प्यः॥25॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' जो मालिक के अभिप्राय को समझकर और आलस्य रहित होकर समस्त कार्यों को करता है, और हितवचनों को कहता है, तथा स्वामी में अनुरक्त रहता है, और श्रेष्ठ है, तथा अपनी शक्ति को जानने वाला है ऐसा सेवक मालिक से आत्मा के समान दया पाने योग्य है। | | '''सशक्तिकरण॥ EMPOWERMENT'''<blockquote>अभिप्रायं यो विदित्वा तु भर्तुः सर्वाणि कार्याणि करोत्यतन्द्री। वक्ता हितानामनुरक्त आर्यः शक्तिज्ञ आत्मेव हि सोऽनुकम्प्यः॥25॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' जो मालिक के अभिप्राय को समझकर और आलस्य रहित होकर समस्त कार्यों को करता है, और हितवचनों को कहता है, तथा स्वामी में अनुरक्त रहता है, और श्रेष्ठ है, तथा अपनी शक्ति को जानने वाला है ऐसा सेवक मालिक से आत्मा के समान दया पाने योग्य है। |
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| '''नैतिकता और लोकाचार॥ ETHICS & ETHOS'''<blockquote> | | '''नैतिकता और लोकाचार॥ ETHICS & ETHOS'''<blockquote> |
| एकमेवाद्वितीयं तद्यद्राजन्नावबुध्यसे। सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावारस्य नौरित्र॥ ५२॥</blockquote> | | एकमेवाद्वितीयं तद्यद्राजन्नावबुध्यसे। सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावारस्य नौरित्र॥ ५२॥</blockquote> |