Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 78: Line 78:     
विदुर जी ने संकट की वेला में भी महाराज धृतराष्ट्र को नीति का ज्ञान दिया। महाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत प्रजागर पर्व के रूप में आठ अध्यायों में यह उपदेश वर्णित है। यही उपदेश विदुर नीति के नाम से विख्यात है। महाभारत में विदुर ने यथासमय और भी नीतिवचन कहे हैं, किन्तु महाभारत का यह चालीसवां अध्याय ही विदुर नीति के रूप में प्रसिद्ध है।
 
विदुर जी ने संकट की वेला में भी महाराज धृतराष्ट्र को नीति का ज्ञान दिया। महाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत प्रजागर पर्व के रूप में आठ अध्यायों में यह उपदेश वर्णित है। यही उपदेश विदुर नीति के नाम से विख्यात है। महाभारत में विदुर ने यथासमय और भी नीतिवचन कहे हैं, किन्तु महाभारत का यह चालीसवां अध्याय ही विदुर नीति के रूप में प्रसिद्ध है।
 +
 +
==विदुर नीति का महत्व==
 +
'''नेतृत्व॥ LEADERSHIP'''<blockquote>एकः स्वादु न भुञ्जीत एकश्च अर्थान् न चिन्तयेत्। एको न गच्छेत् अध्वानं न एकः सुप्तेशु जागृयात् ॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' व्यक्ति ने अकेले स्वदिष्ट पदार्थ नहीं खाना चाहिये। (सब के साथ खाने में आनंद मिलता है)। अकेले धनवान होने के बारे में नहीं सोचना चाहिये। अकेले ने प्रवास नहीं करना चाहिये। जब सभी सो रहे हैं, तब अकेले ने जागृत नहीं रहना चाहिये।
 +
 +
 +
'''संचार॥ COMMUNICATION'''<blockquote>तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्। उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते॥३२॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' जो समस्त भूत (जात) ऐश्वर्य आदि के विनाशित्व रूप तत्त्व को जानता है और समस्त कार्यों के योग (रचना प्रकार) को जानता है तथा मनुष्यों के उपाय (अपेक्षित सामग्री) को जानता है वह मनुष्य पण्डित कहा जाता है ॥३२॥
 +
 +
 +
'''प्रेरणा॥ MOTIVATION'''<blockquote>निश्चित्य यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः। अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' यह एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि जो व्यक्ति दृढ़ प्रतिबद्धता से अपने काम की शुरुआत करता है, जो काम पूरा होने तक ज़्यादा आराम नहीं करता, जो समय बर्बाद नहीं करता, और जो अपने विचारों पर नियंत्रण रखता है, वह बुद्धिमान है।
 +
 +
 +
'''आत्म प्रबंधन॥ SELF-MANAGEMENT'''<blockquote>क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीस्तम्भो मान्यमानिता। यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥२२॥ </blockquote>'''भाषार्थ -''' क्रोध, हर्ष, दर्प (दूसरे का अपमान), लज्जा, स्तम्भ (नम्र न होना), मान्यमानिता (अपने में पूज्य भावना अर्थात् मैं पूज्य हूँ) ये सब जिनको पुरुषार्थ से नहीं गिराते हैं वह पण्डित कहा जाता है।
 +
 +
 +
'''सशक्तिकरण॥ EMPOWERMENT'''<blockquote>अभिप्रायं यो विदित्वा तु भर्तुः सर्वाणि कार्याणि करोत्यतन्द्री। वक्ता हितानामनुरक्त आर्यः शक्तिज्ञ आत्मेव हि सोऽनुकम्प्यः॥25॥</blockquote>'''भाषार्थ -''' जो मालिक के अभिप्राय को समझकर और आलस्य रहित होकर समस्त कार्यों को करता है, और हितवचनों को कहता है, तथा स्वामी में अनुरक्त रहता है, और श्रेष्ठ है, तथा अपनी शक्ति को जानने वाला है ऐसा सेवक मालिक से आत्मा के समान दया पाने योग्य है।
 +
 +
 +
'''नैतिकता और लोकाचार॥ ETHICS & ETHOS'''<blockquote>
 +
एकमेवाद्वितीयं तद्यद्राजन्नावबुध्यसे। सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावारस्य नौरित्र॥ ५२॥</blockquote>
 +
'''भाषार्थ -''' धृतराष्ट्र से विदुर जी कहते हैं कि हे राजन् ! समुद्र पार होने के लिये नाव के समान स्वर्ग जाने के लिये सीढ़ी केवळ सत्य ही है दूसरा कुछ नहीं, उसको तुम नहीं जानते हो।
 +
 +
'''निर्णय लेना॥ DECISION MAKING'''<blockquote>
 +
अनुबन्धानपेक्षेत सानुबन्धेषु कर्मसु। सम्प्रधार्य च कुर्वीत न वेगेन समाचरेत् ॥८॥ </blockquote>
 +
'''भाषार्थ -''' प्रयोजनवाले कामों में प्रयोजन की अपेक्षा करे और विचार कर काम करे, जल्दीबाजी न करे।
    
==निष्कर्ष॥ Discussion==
 
==निष्कर्ष॥ Discussion==
925

edits

Navigation menu