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== रामायण का महत्व ==
 
== रामायण का महत्व ==
महाभारत में वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड के श्लोक का अक्षरशः उल्लेख है - अपि चायं पुरा गीतः श्लोको वाल्मीकिना भुवि। न हन्तव्याः स्त्रियश्चेति यद् ब्रवीषि प्लवंगम॥ पीडाकरममित्राणां यत्स्यात्कर्तव्यमेव च ॥(महा०उद्यो० १४३, ६७-६८)
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महाभारत में वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड के श्लोक का अक्षरशः उल्लेख है - <blockquote>अपि चायं पुरा गीतः श्लोको वाल्मीकिना भुवि। न हन्तव्याः स्त्रियश्चेति यद् ब्रवीषि प्लवंगम॥ पीडाकरममित्राणां यत्स्यात्कर्तव्यमेव च॥ (महा०उद्यो० १४३, ६७-६८)</blockquote>
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== उद्धरण ==
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*वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप।
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*यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था।
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*यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है।
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*रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है।
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*आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक अथवा वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण का प्रयोग महाकाव्य में किया जाता है - रामायण में "तपः स्वाध्याय निरतं" इत्यादि पद्य को देखकर ही वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण की प्रवृत्ति हुई।
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*रामायण में प्रायः सभी रसों का वर्णन आया है परन्तु करुण रस प्रधान है।
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==आदिकवि-वाल्मीकि==
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आदिकवि वाल्मीकि के विषय में बहुत अधिक उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। भविष्यपुराण के प्रतिसर्गपर्व में वाल्मीकि के विषय में एक कथा का उल्लेख किया गया है। वाल्मीकि के कुल, वंश, विद्याग्रहण आदि के विषय में कहीं कुछ भी उल्लेख नहीं उपलब्ध होता है। अध्यात्मरामायण तथा कृत्तिवासकृत बंगरामायण में वाल्मीकि को च्यवन के पुत्र के रूप में कहा गया है।
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==रामायण के कुछ अन्य ग्रन्थ==
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रामकथा सम्बन्धी वर्णन करने वाला मुख्य ग्रन्थ तो महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ही है, रामकथा का प्रमुख स्रोत वही है। रामायण की रचना के पश्चात् रामकथा का अतिशय प्रचार प्रसार हुआ, रचनाकारों के द्वारा विभिन्न प्रान्तीय भाषाओम में रामायण की रचना हुई है। किसी ने वेदान्त तो किसी किसी ने अध्यात्मवाद के विभिन्न पक्षों से राम को जोडकर अनेक रामायण ग्रन्थ लिखे। भारत ही नहीं अपितु तिब्बत, खोतान, जावा, सुमात्रा आदि देशों में भी रामायण का विपुल प्रचार-प्रसार है। इस खण्ड में कुछ प्रमुख रामायण ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/sanskrit-sahitya-ka-samikshatmak-itihas-dr-kapildeva-dwivedi_compress/page/n129/mode/1up संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास], सन् २०१७, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० ११३)। </ref>
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#भुशुण्डी रामायण
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#तुलसी दास - रामचरित मानस
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#कंब रामायण
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#आनंद रामायण
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#वाल्मीकि रामायण
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#अद्भुत रामायण
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#योगवासिष्ठ
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#अध्यात्म रामायण
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#तत्वसंग्रह रामायण
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==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति==
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रामायण कालीन समाज के अन्तर्गत वर्णव्यवस्था, आश्रमव्यवस्था, समाज की जानकारी, विवाह और परिवार आदि के बारे में एवं रामायण कालीन संस्कृति में वेश भूषा, खानपान, शिक्षा व्यवस्था, कला-कौशल, धर्म-दर्शन आदि के बारे में जानकारी दी हुई है।
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'''रामायणकालीन समाज'''
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कोई भी मनुष्य अपने ज्ञान एवं स्वभाव के अनुरूप ही आचरण करता है तथा जिस प्रकार की सामाजिक पृष्ठभूमि में रहता है, वैसा ही बन जाता है। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा वर्णित रामराज्य में समस्त प्रजा वेदों का ज्ञान एवं उन पर विश्वास करने वाली थी। वे सब ज्ञान सम्पन्न, संसार के कल्याण में तत्पर तथा समस्त मानवीय गुणों जैसे - उदारता, दया, सत्यधर्मिता, पवित्रता आदि से युक्त थे -
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सर्वे वेदविदः शूराः सर्वे लोकहिते रताः। सर्वेज्ञानोपसम्पन्नाः सर्वे समुदिता गुणैः॥ (रा०बा० १८/ २५-२६)
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'''वर्ण व्यवस्था'''
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रामायण युग में समाज निश्चित रूप से जातियों में विभक्त हो गया था। चारों वर्णों का स्पष्टतः उल्लेख प्राप्त होता है -
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चातुर्वर्ण्यं स्वधर्मेण नित्यमेवाभिपालयन् ॥(रा०कि०४/६)
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रामायण में वर्णित है कि अश्वमेधयज्ञ के अवसर पर सभी वर्णों को आमन्त्रित किया गया था -
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निमन्त्रयस्व नृपतीन् पृथिव्यां मे च धार्मिका। ब्राह्मणान् क्षत्रियान् वैश्यान् शूद्रांश्चैव सहस्रशः॥ (रा०बा० १३/२०)
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अयोध्या वर्णन के प्रसंग मेम भी कह गया है कि उस नगरी में सारे वर्ण अपने-अपने कार्यों में संलग्न रहा करते थे। इस प्रकार रामायण काल में वर्ण व्यवस्था को राजकीय स्वीकृति प्राप्त थी, लोग उस व्यवस्था का पालन भी करते थे। सुग्रीव के समक्ष लक्ष्मण अपने पिता का परिचय देते हुए कहते हैं कि वह सभी वर्गों का धर्मपूर्वक एवं निष्पक्षता से पालन करते हैं। राम चारों वर्गों के प्रति दयाभाव रखते थे इसलिये सभी उनके वशीभूत थे।
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'''आश्रम व्यवस्था'''
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भारतीय ऋषि परंपरा के अनुसार सम्पूर्ण मानव जीवन आत्म विश्वास एवं आत्मानुशासन का है। इसी शिक्षण काल को उन्होंने आश्रमों के नाम से कई वर्गों में बाँट दिया था। रामायणकालीन समाज में आश्रमों की संख्या निश्चित रूप से चार मानी जाती थी -
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*विद्यार्थी के लिये ब्रह्मचर्य आश्रम
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*विवाहितों के लिये गृहस्थाश्रम
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*वनवासी तपस्वी के लिये वानप्रस्थाश्रम
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*वैरागी के लिये सन्यासाश्रम
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रामायण के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आश्रम व्यवस्था का अनुसरण उपर्युक्त क्रम से ही संचालित किया जाता था। वस्तुतः ऋषियों द्वारा निर्देशित यह आश्रम व्यवस्था पूर्व वर्णित वर्ण व्यवस्था की ही पूरक है। दोनों मानव और समाज से ही सम्बन्धित हैं, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है। वर्ण व्यवस्था व्यक्ति को एक सामाजिक प्राणी के रूप में देखती है।
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==उद्धरण==
 
[[Category:Ramayana]]
 
[[Category:Ramayana]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
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<references />
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