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सुधार जारी
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पुराण के सम्बन्ध में निरुक्तकार यास्क का कथन है - <blockquote>पुराणं कस्मात् ? पुरा नवं भवति।</blockquote>अर्थात् जो प्राचीनकाल में नवीन था। यास्क के इस कथन से यह अर्थ ध्वनित होता है कि जो साहित्य एक ओर पुरातनी सृष्टि विद्या-वेदविद्या से अपना सम्बन्ध बनाये रखता है और दूसरी ओर नये-नये रूप में उत्पन्न लोक-जीवन से अपना सम्बन्ध जोडे रहता है, वही पुराण है।
 
पुराण के सम्बन्ध में निरुक्तकार यास्क का कथन है - <blockquote>पुराणं कस्मात् ? पुरा नवं भवति।</blockquote>अर्थात् जो प्राचीनकाल में नवीन था। यास्क के इस कथन से यह अर्थ ध्वनित होता है कि जो साहित्य एक ओर पुरातनी सृष्टि विद्या-वेदविद्या से अपना सम्बन्ध बनाये रखता है और दूसरी ओर नये-नये रूप में उत्पन्न लोक-जीवन से अपना सम्बन्ध जोडे रहता है, वही पुराण है।
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== उपपुराण एवं औपपुराण ==
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'''उपपुराण'''
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उपपुराणों के स्रोत महापुराण ही हैं इसमें किसी की विमति नहीं है। परन्तु महापुराणों की कथावस्तुओं को कहीं पर संक्षिप्त कर दिया गया है तो कहीं पर विस्तृत कर दिया गया है। अतः उपपुराणों का रसास्वाद अन्य पुराणों की अपेक्षा भिन्न ही हैं। स्कन्दपुराण उपपुराणों की मान्यता को निम्न प्रकार से स्वीकार करता है -<ref name=":0">आचार्य बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/puran-vimarsh-baldev-upadhyay_202108/page/n185/mode/2up पुराण विमर्श], सन् १९७८, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० १४९)।</ref> <blockquote>तथैवोपपुराणानि यानि चोक्तानि वेधसा। (स्क० पु० १, ५४)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार - <blockquote>अष्टादशपुराणानामेवमेवं विदुर्बुधाः। एवञ्चोपपुराणानामष्टादश प्रकीर्तिताः॥ (ब्र०वै० श्रीकृष्ण जन्मख० १३१, २२)</blockquote>पद्मपुराण के अनुसार उपपुराणों का क्रम इस प्रकार है - <blockquote>तथा चोपपुराणानि कथयिष्याम्यतः परम्। आद्यं सनत्कुमाराख्यं नारसिंहमतः परम्॥
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तृतीयं माण्डमुद्दिष्टं दौर्वाससमथैव च। नारदीयमथान्यच्च कापिलं मानवं तथा॥
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तद्वदौशनसं प्रोक्तं ब्रह्माण्डं च ततः परम् । वारुणं कालिकास्वानं माहेशं साम्बमेव च॥
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सौरं पाराशरं चैव मारीचं भार्गवायम्। कौमारं च पुराणानि कीर्तितान्यष्ट वै दश॥ (पद्म महा० पु० पातालखण्डे ११३, ६३-६७)</blockquote>भाषार्थ - सनत्कुमार, नारसिंह, आण्ड, दौर्वासस, नारदीय, कपिल, मानव, औशनस, ब्रह्माण्ड, वारुण, कालिका, माहेन, साम्ब, सौर, पाराशर, मारीच, भार्गव और कौमार ये पद्मपुराण के अनुसार अट्ठारह उपपुराण हैं।
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'''औपपुराण'''
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महापुराण एवं उपपुराण के साथ-साथ या अनन्तर पुराण लिखने का क्रम निरन्तर चलता रहा, जिसके फलस्वरूप औपपुराण भी पुराणवाङ्मय की श्रीवृद्धि करते हैं। बृहद्विवेक में औपपुराण की सूची दी गई है - <ref name=":1" /><blockquote>आद्यं सनत्कुमारं च नारदीयं बृहच्च यत्। आदित्यं मानवं प्रोक्तं नन्दिकेश्वरमेव च॥
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कौर्मं भागवतं ज्ञेयं वाशिष्ठं भार्गवं तथा। मुद्गलं कल्किदेव्यौ च महाभागवतं ततः॥
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बृहद्धर्मं परानन्दं वह्निं पशुपतिं तथा। हरिवंशं ततो ज्ञेयमिदमौपपुराणकम्॥ (बृह० विवेक-३)</blockquote>इनमें बहुत से औपपुराण उपपुराण की कोटि में स्वीकृत हैं, जो पहले वर्णित हैं।
    
==महापुराणों की ऐक्यता==
 
==महापुराणों की ऐक्यता==
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अष्टादश पुराणों में विष्णुपुराण का तृतीय स्थान है। इस पुराण में आदि से अन्त तक वैष्णव धर्म की समवेत धारा प्रवाहित हुयी है। परिमाण में लघु होते हुये भी यह पुराण धर्म एवं दर्शन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। विष्णुपुराण में वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं -<ref>शोधगंगा-दिवाकर मणि त्रिपाठी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/311248/2/02-content.pdf विष्णु पुराण में धर्म एवं दर्शन का निरूपण], सन् २००२, शोधकेन्द्र-महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, भूमिका (पृ० ५)।</ref>
 
अष्टादश पुराणों में विष्णुपुराण का तृतीय स्थान है। इस पुराण में आदि से अन्त तक वैष्णव धर्म की समवेत धारा प्रवाहित हुयी है। परिमाण में लघु होते हुये भी यह पुराण धर्म एवं दर्शन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। विष्णुपुराण में वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं -<ref>शोधगंगा-दिवाकर मणि त्रिपाठी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/311248/2/02-content.pdf विष्णु पुराण में धर्म एवं दर्शन का निरूपण], सन् २००२, शोधकेन्द्र-महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, भूमिका (पृ० ५)।</ref>
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* चतुर्वर्णों  की उत्पत्ति और चारों आश्रमों का वर्णन
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*चतुर्वर्णों  की उत्पत्ति और चारों आश्रमों का वर्णन
* माता, पिता एवं गुरुजनों का सम्मान, सदाचार पालन का महत्व
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*माता, पिता एवं गुरुजनों का सम्मान, सदाचार पालन का महत्व
* सामाजिक धर्म की महत्ता और उसकीआवश्यकता तथा समाज में प्रचलित संस्कारों का विवरण
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*सामाजिक धर्म की महत्ता और उसकीआवश्यकता तथा समाज में प्रचलित संस्कारों का विवरण
* विष्णुपुराण में योग धर्म - योग का अर्थ और उसका स्वरूप तथा अष्टांग योग का विवेचन
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*विष्णुपुराण में योग धर्म - योग का अर्थ और उसका स्वरूप तथा अष्टांग योग का विवेचन
* कर्म, ज्ञान एवं भक्ति मार्ग का वर्णन एवं मोक्ष का स्वरूप
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*कर्म, ज्ञान एवं भक्ति मार्ग का वर्णन एवं मोक्ष का स्वरूप
    
===वायु पुराण===
 
===वायु पुराण===
वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी।
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वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी। अन्य पुराणों की भाँति  वायुपुराण के भी वर्ण्य विषय, सर्ग, प्रतिसर्ग, मन्वन्तर आदि से समन्वित हैं। वंशानुचरित अन्य पुराणों की भाँति इसमें कुछ कम है। वायुपुराण के वंशानुक्रम और अन्य वर्ण्य विषयों में स्पष्टतः परोक्षवाद, प्रतीकवाद और रहस्यवाद निहित है।<ref>रामप्रताप त्रिपाठी, [https://archive.org/details/VayuPuranam/page/n5/mode/1up वायुपुराण-हिन्दी अनुवाद सहित], सन् १९८७, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, भूमिका (पृ० ६)।</ref>
    
===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण===
 
===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण===
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अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है।
 
अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है।
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===भविष्य पुराण ===
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===भविष्य पुराण===
 
भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं।<ref>शोधगंगा-प्रतिभा शर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/302034 भविष्य पुराण का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन], सन् २००२, शोधकेन्द्र- महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (पृ० ३३)।</ref>
 
भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं।<ref>शोधगंगा-प्रतिभा शर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/302034 भविष्य पुराण का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन], सन् २००२, शोधकेन्द्र- महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (पृ० ३३)।</ref>
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यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं -<blockquote>लिंगस्य चरितोक्तत्वात् पुराणं लिंगमुच्यते॥</blockquote>यह पुराण अपेक्षाकृत छोटा है क्योंकि इसमें अध्यायों की संख्या १३३ और श्लोकों की संख्या ११,००० है। इसमें दो भाग हैं - पूर्व भाग और उत्तर भाग।
 
यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं -<blockquote>लिंगस्य चरितोक्तत्वात् पुराणं लिंगमुच्यते॥</blockquote>यह पुराण अपेक्षाकृत छोटा है क्योंकि इसमें अध्यायों की संख्या १३३ और श्लोकों की संख्या ११,००० है। इसमें दो भाग हैं - पूर्व भाग और उत्तर भाग।
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* इस पुराण में लिंगोपासना की उत्पत्ति दिखलायी गयी है।
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*इस पुराण में लिंगोपासना की उत्पत्ति दिखलायी गयी है।
 
*सृष्टि का वर्णन भगवान् शंकर के द्वारा बतलाया गया है।
 
*सृष्टि का वर्णन भगवान् शंकर के द्वारा बतलाया गया है।
 
*शंकर के २८ अवतारों का वर्णन भी उपलब्ध होता है।
 
*शंकर के २८ अवतारों का वर्णन भी उपलब्ध होता है।
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===कूर्म पुराण===
 
===कूर्म पुराण===
इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया। इस पुराण में चार संहितायें रही होंगी - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता - पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं।
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इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। भगवान् विष्णुने कूर्म-अवतार धारणकर परम विष्णुभक्त राजा इन्द्रद्युम्नको जो भक्ति, ज्ञान एवं मोक्षका उपदेश किया था, उसी उपदेशको पुनः भगवान् कूर्मने समुद्रमन्थनके समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणोंसे कहा। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया, वही कथा कूर्म-पुराण के नामसे विख्यात है। इस पुराण में चार संहितायें रही हैं - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता- पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं।
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=== मत्स्य पुराण===
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===मत्स्य पुराण===
 
इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है।
 
इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है।
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=== गरुड पुराण===
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===गरुड पुराण===
 
विष्णु के वाहन गरुड के नाम पर इस पुराण का नामकरण हुआ है। इसमें विष्णु द्वारा गरुड को विश्व की सृष्टि का कथन किया गया है। यह वैष्णव पुराण है। यह पुराण पूर्व एवं उत्तर दो खण्डों में विभक्त है और उत्तर खण्ड का नाम प्रेतखण्ड भी है। इस खण्ड में मृत्यु के अनन्तर प्राणी की गति का वर्णन होने के कारण सनातनी परंपरा में श्राद्ध के समय इसका श्रवण करते हैं।
 
विष्णु के वाहन गरुड के नाम पर इस पुराण का नामकरण हुआ है। इसमें विष्णु द्वारा गरुड को विश्व की सृष्टि का कथन किया गया है। यह वैष्णव पुराण है। यह पुराण पूर्व एवं उत्तर दो खण्डों में विभक्त है और उत्तर खण्ड का नाम प्रेतखण्ड भी है। इस खण्ड में मृत्यु के अनन्तर प्राणी की गति का वर्णन होने के कारण सनातनी परंपरा में श्राद्ध के समय इसका श्रवण करते हैं।
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शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं।
 
शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं।
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==महापुराणों का वर्गीकरण ==
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==महापुराणों का वर्गीकरण==
मत्स्यपुराण (५३।२७-२८) के अनुसार पुराणों का त्रिविध विभाजन माना गया है - सात्त्विकपुराण, राजसपुराण और तामसपुराण। जिन पुराणों में विष्णु भगवान का अधिक महत्त्व बताया गया है वह सात्त्विकपुराण, जिसमें भगवान शिव का महत्व अधिक बताया गया है, वह तामसपुराण  और राजस पुराणों में ब्रह्मा तथा अग्नि का अधिक महत्त्व वर्णित है - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुने। तथा चोपपुराणानि मुनिभः कथितानि च॥ (विष्णुपुराण ३//२४)  
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मत्स्यपुराण के अनुसार पुराणों का त्रिविध विभाजन माना गया है - सात्त्विकपुराण, राजसपुराण और तामसपुराण। जिन पुराणों में विष्णु भगवान का अधिक महत्त्व बताया गया है वह सात्त्विकपुराण, जिसमें भगवान शिव का महत्व अधिक बताया गया है, वह तामसपुराण  और राजस पुराणों में ब्रह्मा तथा अग्नि का अधिक महत्त्व वर्णित है -<ref>शोधगंगा-कु० पूनम वार्ष्णेय, [https://core.ac.uk/download/pdf/144513982.pdf वायुपुराण का समीक्षात्मक अनुशीलन], सन् २००१, शोधकेन्द्र-अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ (पृ० १२)।</ref> <blockquote>सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः। राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः॥  
सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः। राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः॥  
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तद्वदग्नेर्माहात्म्यं तामसेषु शिवस्य च। संकीर्णेषु सरस्वत्याः पितॄणां च निगद्यते॥ (मत्स्यपुराण ५३, ६८-६९) </blockquote>
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'''भावार्थ -''' पद्म, मस्त्य, भविष्य एवं गरुड पुराणों में पुराणों को विषय-वस्तु (त्रैगुण्य-सत्त्व, रजस् , तमस्) एवं देवता के आधार पर तीन वर्गों में विभक्त किया गया है -
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#'''सात्त्विक पुराण -''' विष्णु, भागवत, नारद, गरुड़, पद्म और वराह ये विष्णु से सम्बद्ध छः सात्त्विक पुराण हैं।
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#'''राजस पुराण -''' ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, भविष्य और वामन ये ब्रह्मा से सम्बद्ध छः राजस पुराण हैं।
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#'''तामस पुराण -''' शिव, लिंग, स्कन्द, अग्नि, मत्स्य और कूर्म ये शिव से सम्बद्ध छः तामस पुराण हैं।
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तद्वदग्नेर्माहात्म्यं तामसेषु शिवस्य च। संकीर्णेषु सरस्वत्याः पितॄणां च निगद्यते॥ (मत्स्यपुराण ५३, ६८-६९) </blockquote>इन अट्ठारह पुराणोंका वर्गीकरण अनेक प्रकार से देखा जाता है। जैसे - ज्ञानकोशीय पुराण - अग्नि, गरुड एवं नारद। तीर्थ से सम्बन्धित पुराण - पद्म, स्कन्द एवं भविष्य। साम्प्रदायिक पुराण - लिंग, वामन एवं मार्कण्डेय। ऐतिहासिक पुराण - वायु एवं ब्रह्माण्ड।
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*भविष्य पुराण के अनुसार राजस पुराणों में कर्मकाण्ड का प्रतिपादन होता है एवं तामस शाक्तधर्म परायण होते हैं।
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इन अट्ठारह पुराणोंका वर्गीकरण अनेक प्रकार से देखा जाता है। जैसे -
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#'''ज्ञानकोशीय पुराण -''' अग्नि, गरुड एवं नारद
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#'''तीर्थ से सम्बन्धित पुराण -''' पद्म, स्कन्द एवं भविष्य
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#'''साम्प्रदायिक पुराण -''' लिंग, वामन एवं मार्कण्डेय
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#'''ऐतिहासिक पुराण -''' वायु एवं ब्रह्माण्ड, इत्यादि
 
*इसी तरह पुराणों का वर्गीकरण प्राचीन और प्राचीनेतर को लेकर भी किया जाता है, जैसे - वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य और विष्णु यह प्राचीन प्रतीत होते हैं अन्य सभी प्राचीनेतर।
 
*इसी तरह पुराणों का वर्गीकरण प्राचीन और प्राचीनेतर को लेकर भी किया जाता है, जैसे - वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य और विष्णु यह प्राचीन प्रतीत होते हैं अन्य सभी प्राचीनेतर।
 
*स्कन्दपुराण  में पुराणों का वर्गीकरण देवताओं के आधार पर किया गया है।
 
*स्कन्दपुराण  में पुराणों का वर्गीकरण देवताओं के आधार पर किया गया है।
 
*पञ्चलक्षणात्मक वर्गीकरण भी पुराणों का देखा जाता है।
 
*पञ्चलक्षणात्मक वर्गीकरण भी पुराणों का देखा जाता है।
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{| class="wikitable"
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|+पुराण विभाजन
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|सात्त्विक पुराण
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|विष्णु, नारद, भागवत, गरुड, पद्म, वराह
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|तामस पुराण
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|मत्स्य कूर्म, लिंग, शिव, अग्नि तथा स्कान्द
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|राजस पुराण
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|ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, ब्रह्म, वामन तथा भविष्य
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|}
      
==महापुराण का महत्त्व==
 
==महापुराण का महत्त्व==
 
पुराण का शाब्दिक अर्थ है - प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुरा शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। अण शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। इस प्रकार पुराण मानव संस्कृति को समृद्ध करने तथा सरल बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुये हैं तथा इनका प्रचार भी वेदव्यास जी के कारण जन-जन तक सरल भाषा में हो पाया है।
 
पुराण का शाब्दिक अर्थ है - प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुरा शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत। अण शब्द का अर्थ होता है - कहना या बतलाना। पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं। पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं। इस प्रकार पुराण मानव संस्कृति को समृद्ध करने तथा सरल बनाने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुये हैं तथा इनका प्रचार भी वेदव्यास जी के कारण जन-जन तक सरल भाषा में हो पाया है।
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*पुराणों की संख्या अनेक हो सकती है लेकिन महापुराण १८(अट्ठारह) ही हैं।
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* पुराणों की संख्या अनेक हो सकती है लेकिन महापुराण १८(अट्ठारह) ही हैं।
 
*पुराण संक्षिप्त हैं तथा महापुराण बृहत हैं।
 
*पुराण संक्षिप्त हैं तथा महापुराण बृहत हैं।
 
*पुराण विषय वस्तु की दृष्टि से संक्षिप्त तथा महापुराण में विषयों की भरमार है।
 
*पुराण विषय वस्तु की दृष्टि से संक्षिप्त तथा महापुराण में विषयों की भरमार है।
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#'''भौगोलिक महत्व -''' अनेक पुराणों में भुवनकोश प्रकरण के द्वारा भूमण्डल का यथासाध्य जानकारी प्राप्त होती है। भारत के विभिन्न भूभागों के साथ-साथ नदियों, पर्वतों, झीलों, वनों, मरुस्थलों, नगरों, प्रदेशों एवं जातियों का भी विवरण प्राप्त होता है।
 
#'''भौगोलिक महत्व -''' अनेक पुराणों में भुवनकोश प्रकरण के द्वारा भूमण्डल का यथासाध्य जानकारी प्राप्त होती है। भारत के विभिन्न भूभागों के साथ-साथ नदियों, पर्वतों, झीलों, वनों, मरुस्थलों, नगरों, प्रदेशों एवं जातियों का भी विवरण प्राप्त होता है।
 
#'''सामाजिक महत्व -'''  पुराणों में भारतीय समाज की व्यवस्था का न केवल चित्रण है, अपितु आदर्श समाज बनाने की व्यापक विधियाँ वर्णित हैं। वर्णाश्रम के गुण कर्म, विविध संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध, राजधर्म, स्त्रीधर्म, गुरु-शिष्य के बीच सम्बन्ध इत्यादि के विवरण है।
 
#'''सामाजिक महत्व -'''  पुराणों में भारतीय समाज की व्यवस्था का न केवल चित्रण है, अपितु आदर्श समाज बनाने की व्यापक विधियाँ वर्णित हैं। वर्णाश्रम के गुण कर्म, विविध संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध, राजधर्म, स्त्रीधर्म, गुरु-शिष्य के बीच सम्बन्ध इत्यादि के विवरण है।
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===उपपुराण===
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उपपुराणों के स्रोत महापुराण ही हैं इसमें किसी की विमति नहीं है। परन्तु महापुराणों की कथावस्तुओं को कहीं पर संक्षिप्त कर दिया गया है तो कहीं पर विस्तृत कर दिया गया है। अतः उपपुराणों का रसास्वाद अन्य पुराणों की अपेक्षा भिन्न ही हैं। स्कन्दपुराण उपपुराणों की मान्यता को निम्न प्रकार से स्वीकार करता है -<ref name=":0">आचार्य बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/puran-vimarsh-baldev-upadhyay_202108/page/n185/mode/2up पुराण विमर्श], सन् १९७८, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० १४९)।</ref> <blockquote>तथैवोपपुराणानि यानि चोक्तानि वेधसा। (स्क० पु० १, ५४)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार - <blockquote>अष्टादशपुराणानामेवमेवं विदुर्बुधाः। एवञ्चोपपुराणानामष्टादश प्रकीर्तिताः॥ (ब्र०वै० श्रीकृष्ण जन्मख० १३१, २२)</blockquote>पद्मपुराण के अनुसार उपपुराणों का क्रम इस प्रकार है - <blockquote>तथा चोपपुराणानि कथयिष्याम्यतः परम्। आद्यं सनत्कुमाराख्यं नारसिंहमतः परम्॥
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तृतीयं माण्डमुद्दिष्टं दौर्वाससमथैव च। नारदीयमथान्यच्च कापिलं मानवं तथा॥
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तद्वदौशनसं प्रोक्तं ब्रह्माण्डं च ततः परम् । वारुणं कालिकास्वानं माहेशं साम्बमेव च॥
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सौरं पाराशरं चैव मारीचं भार्गवायम्। कौमारं च पुराणानि कीर्तितान्यष्ट वै दश॥ (पद्म महा० पु० पातालखण्डे ११३, ६३-६७)</blockquote>भाषार्थ - सनत्कुमार, नारसिंह, आण्ड, दौर्वासस, नारदीय, कपिल, मानव, औशनस, ब्रह्माण्ड, वारुण, कालिका, माहेन, साम्ब, सौर, पाराशर, मारीच, भार्गव और कौमार ये पद्मपुराण के अनुसार अट्ठारह उपपुराण हैं।
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===औपपुराण===
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महापुराण एवं उपपुराण के साथ-साथ या अनन्तर पुराण लिखने का क्रम निरन्तर चलता रहा, जिसके फलस्वरूप औपपुराण भी पुराणवाङ्मय की श्रीवृद्धि करते हैं। बृहद्विवेक में औपपुराण की सूची दी गई है - <ref name=":1" /><blockquote>आद्यं सनत्कुमारं च नारदीयं बृहच्च यत्। आदित्यं मानवं प्रोक्तं नन्दिकेश्वरमेव च॥
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कौर्मं भागवतं ज्ञेयं वाशिष्ठं भार्गवं तथा। मुद्गलं कल्किदेव्यौ च महाभागवतं ततः॥
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बृहद्धर्मं परानन्दं वह्निं पशुपतिं तथा। हरिवंशं ततो ज्ञेयमिदमौपपुराणकम्॥ (बृह० विवेक-३)</blockquote>इनमें बहुत से औपपुराण उपपुराण की कोटि में स्वीकृत हैं, जो पहले वर्णित हैं।
      
==सारांश==
 
==सारांश==
वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। पुराणों में मन्वन्तर एवं कल्पों का सिद्धान्त प्रतिपादित है। यह एक अत्यन्त गम्भीर विषय है। वास्तव में काल-प्रवाह अनन्त है। पुराणों में चतुर्दश विद्याओं का तो संग्रह है ही, वेदार्थ भी सम्यक् प्रतिपादित हैं। साथ ही आत्मज्ञान, ब्रह्मविद्या, सांख्य, योग, धर्मनीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष एवं अन्यान्य कला-विज्ञानों का भी समावेश हुआ है।  
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वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। पुराणों में मन्वन्तर एवं कल्पों का सिद्धान्त प्रतिपादित है। यह एक अत्यन्त गम्भीर विषय है। वास्तव में काल-प्रवाह अनन्त है। पुराणों में चतुर्दश विद्याओं का तो संग्रह है ही, वेदार्थ भी सम्यक् प्रतिपादित हैं। साथ ही आत्मज्ञान, ब्रह्मविद्या, सांख्य, योग, धर्मनीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष एवं अन्यान्य कला-विज्ञानों का भी समावेश हुआ है। पुराणों में अनेक प्रसंगों में ऐतिहासिक वीर-गाथाओं, मिथकीय पुराकथाओं, आचारात्मक नीति-कथाओं आदि का, मूल वक्तव्य को स्पष्ट करने के लिए समावेश किया गया है।  
 
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पुराणों में अनेक प्रसंगों में ऐतिहासिक वीर-गाथाओं, मिथकीय पुराकथाओं, आचारात्मक नीति-कथाओं आदि का, मूल वक्तव्य को स्पष्ट करने के लिए समावेश किया गया है।  
      
==उद्धरण==
 
==उद्धरण==
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