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| ==परिचय== | | ==परिचय== |
− | महापुराणों के लेखक व्यास (कृष्णद्वैपायन, वेदव्यास) है। वे पराशर ऋषि के पुत्र थे। वेदव्यास को यमुनाद्वीप में जन्म के कारण द्वैपायन, शरीर से कृष्णवर्ण होने के कारण कृष्णमुनि तथा वैदिक मन्त्रों को याज्ञिक उपयोग के लिए चार वेदों में विभक्त करने के कारण वेदव्यास भी कहा गया है। महापुराणों के क्रम का आधार श्रीमद्भागवत को माना गया है - <blockquote>ब्राह्मं पाद्मं वैष्णवं च शैवं लैङ्गं सगारुडम्। नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम्॥
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− | भविष्यं ब्रह्मवैवर्तं मार्कण्डेयं सवामनम्। वाराहं मात्स्यं कौमं ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट्। (भागवत पु० १२- २३/२४)</blockquote>अर्थात ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, लिंग, गरुड, नारद, भागवत, अग्नि, स्कन्द, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, वामन, वराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड - ये अट्ठारह महापुराण कहे गये हैं। विष्णुपुराण के अनुसार - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुनेः। तथा चोपपुराणानि मुनिभिः कथितानि च॥ (विष्णु पु० ३,६,२४)</blockquote>उपर्युक्त १८ महापुराण एवं अट्ठारह उपपुराण भी मुनियों के द्वारा कहे गये हैं। | + | महापुराणों के लेखक व्यास (कृष्णद्वैपायन, वेदव्यास) है। वे पराशर ऋषि के पुत्र थे। वेदव्यास को यमुनाद्वीप में जन्म के कारण द्वैपायन, शरीर से कृष्णवर्ण होने के कारण कृष्णमुनि तथा वैदिक मन्त्रों को याज्ञिक उपयोग के लिए चार वेदों में विभक्त करने के कारण वेदव्यास भी कहा गया है। महापुराणों के क्रम का आधार श्रीमद्भागवत को माना गया है - <blockquote>ब्राह्मं पाद्मं वैष्णवं च शैवं लैङ्गं सगारुडम्। नारदीयं भागवतमाग्नेयं स्कान्दसंज्ञितम्॥ भविष्यं ब्रह्मवैवर्तं मार्कण्डेयं सवामनम्। वाराहं मात्स्यं कौमं ब्रह्माण्डाख्यमिति त्रिषट्। (भागवत पु० १२- २३/२४) </blockquote>अर्थात ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, लिंग, गरुड, नारद, भागवत, अग्नि, स्कन्द, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, वामन, वराह, मत्स्य, कूर्म और ब्रह्माण्ड - ये अट्ठारह महापुराण कहे गये हैं। विष्णुपुराण के अनुसार - <blockquote>महापुराणान्येतानि ह्यष्टादश महामुनेः। तथा चोपपुराणानि मुनिभिः कथितानि च॥ (विष्णु पु० ३,६,२४)</blockquote>उपर्युक्त १८ महापुराण एवं अट्ठारह उपपुराण भी मुनियों के द्वारा कहे गये हैं। |
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| ==परिभाषा== | | ==परिभाषा== |
| + | पुरा-पुरातनम् अनिति-जीवयति बोधयति इति पुराणं ग्रन्थ विशेषः। अथवा पुरा-अतीतान् अर्थात् अणति-कथयति इति पुराण, जिसका अर्थ है - प्राचीन बातों को कहने का ग्रन्थ। यद्यपि पुराण शब्द के पुरातन, चिरन्तन आदि अनेक पर्यायवाची शब्द हैं, तथापि यहाँ पुराण शब्द से महर्षि व्यासरचित प्राचीनकथायुक्त अष्टादश ग्रन्थ विशेष का ही बोध होता है। पुराण शब्द का प्रयोग विशेषण और संज्ञा दोनों रूपों में होता है - <ref>डॉ० बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/sanskrit-vangmaya-ka-brihat-itihas-purana-xiii-gangadhar-panda/page/n61/mode/1up?view=theater संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास-पुराणखण्ड], सन् २००६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० ५)।</ref> |
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| + | #विशेषण के रूप में इसका अर्थ है पुराना, पुरातन या प्राचीन। |
| + | #संज्ञा के रूप में इसका अर्थ है - पुरातन आख्यानों से युक्त ग्रन्थ। |
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| + | पुराण के सम्बन्ध में निरुक्तकार यास्क का कथन है - <blockquote>पुराणं कस्मात् ? पुरा नवं भवति।</blockquote>अर्थात् जो प्राचीनकाल में नवीन था। यास्क के इस कथन से यह अर्थ ध्वनित होता है कि जो साहित्य एक ओर पुरातनी सृष्टि विद्या-वेदविद्या से अपना सम्बन्ध बनाये रखता है और दूसरी ओर नये-नये रूप में उत्पन्न लोक-जीवन से अपना सम्बन्ध जोडे रहता है, वही पुराण है। |
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| + | == उपपुराण एवं औपपुराण == |
| + | '''उपपुराण''' |
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| + | उपपुराणों के स्रोत महापुराण ही हैं इसमें किसी की विमति नहीं है। परन्तु महापुराणों की कथावस्तुओं को कहीं पर संक्षिप्त कर दिया गया है तो कहीं पर विस्तृत कर दिया गया है। अतः उपपुराणों का रसास्वाद अन्य पुराणों की अपेक्षा भिन्न ही हैं। स्कन्दपुराण उपपुराणों की मान्यता को निम्न प्रकार से स्वीकार करता है -<ref name=":0">आचार्य बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/puran-vimarsh-baldev-upadhyay_202108/page/n185/mode/2up पुराण विमर्श], सन् १९७८, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० १४९)।</ref> <blockquote>तथैवोपपुराणानि यानि चोक्तानि वेधसा। (स्क० पु० १, ५४)</blockquote>ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार - <blockquote>अष्टादशपुराणानामेवमेवं विदुर्बुधाः। एवञ्चोपपुराणानामष्टादश प्रकीर्तिताः॥ (ब्र०वै० श्रीकृष्ण जन्मख० १३१, २२)</blockquote>पद्मपुराण के अनुसार उपपुराणों का क्रम इस प्रकार है - <blockquote>तथा चोपपुराणानि कथयिष्याम्यतः परम्। आद्यं सनत्कुमाराख्यं नारसिंहमतः परम्॥ |
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| + | तृतीयं माण्डमुद्दिष्टं दौर्वाससमथैव च। नारदीयमथान्यच्च कापिलं मानवं तथा॥ |
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| + | तद्वदौशनसं प्रोक्तं ब्रह्माण्डं च ततः परम् । वारुणं कालिकास्वानं माहेशं साम्बमेव च॥ |
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| + | सौरं पाराशरं चैव मारीचं भार्गवायम्। कौमारं च पुराणानि कीर्तितान्यष्ट वै दश॥ (पद्म महा० पु० पातालखण्डे ११३, ६३-६७)</blockquote>भाषार्थ - सनत्कुमार, नारसिंह, आण्ड, दौर्वासस, नारदीय, कपिल, मानव, औशनस, ब्रह्माण्ड, वारुण, कालिका, माहेन, साम्ब, सौर, पाराशर, मारीच, भार्गव और कौमार ये पद्मपुराण के अनुसार अट्ठारह उपपुराण हैं। |
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| + | '''औपपुराण''' |
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| + | महापुराण एवं उपपुराण के साथ-साथ या अनन्तर पुराण लिखने का क्रम निरन्तर चलता रहा, जिसके फलस्वरूप औपपुराण भी पुराणवाङ्मय की श्रीवृद्धि करते हैं। बृहद्विवेक में औपपुराण की सूची दी गई है - <ref name=":1" /><blockquote>आद्यं सनत्कुमारं च नारदीयं बृहच्च यत्। आदित्यं मानवं प्रोक्तं नन्दिकेश्वरमेव च॥ |
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| + | कौर्मं भागवतं ज्ञेयं वाशिष्ठं भार्गवं तथा। मुद्गलं कल्किदेव्यौ च महाभागवतं ततः॥ |
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| + | बृहद्धर्मं परानन्दं वह्निं पशुपतिं तथा। हरिवंशं ततो ज्ञेयमिदमौपपुराणकम्॥ (बृह० विवेक-३)</blockquote>इनमें बहुत से औपपुराण उपपुराण की कोटि में स्वीकृत हैं, जो पहले वर्णित हैं। |
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| ==महापुराणों की ऐक्यता== | | ==महापुराणों की ऐक्यता== |
− | वेदों के महत्व के बाद पुराणों के वैशिष्ट्य को मानते हुए श्रीमद्भागवत महापुराण ने पुराणों को पञ्चम वेद का स्थान दिया है - <blockquote>इतिहासपुराणानि पञ्चमं वेदमीश्वरः। सर्वेभ्य एव वक्त्रेभ्यः विसृजे सर्वदर्शनः॥ (भाग०पु० ३/१२/३९)</blockquote>पौरस्त्य विद्वद् गण इसे परब्रह्म के निःश्वास-प्रश्वास के रूप में मानते हैं। जिससे भगवान् के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है, ठीक उसी तरह वेदों के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।<ref>डॉ० बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/sanskrit-vangmaya-ka-brihat-itihas-purana-xiii-gangadhar-panda/page/n26/mode/1up?view=theater संस्कृत वाड़्मय का बृहद् इतिहास-पुराण खण्ड], सन् २००६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ ( पृ० २७)।</ref> वेदों को भगवान् परब्रह्म का प्राण माना गया है तो पुराण उनके अवयव हैं, जो इस प्रकार हैं - <blockquote>ब्राह्मं मूर्धा हरेरेव हृदयं पद्मसंज्ञकम् । | + | वेदों के महत्व के बाद पुराणों के वैशिष्ट्य को मानते हुए श्रीमद्भागवत महापुराण ने पुराणों को पञ्चम वेद का स्थान दिया है - <blockquote>इतिहासपुराणानि पञ्चमं वेदमीश्वरः। सर्वेभ्य एव वक्त्रेभ्यः विसृजे सर्वदर्शनः॥ (भाग०पु० ३/१२/३९)</blockquote>पौरस्त्य विद्वद् गण इसे परब्रह्म के निःश्वास-प्रश्वास के रूप में मानते हैं। जिससे भगवान् के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है, ठीक उसी तरह वेदों के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।<ref name=":1">डॉ० बलदेव उपाध्याय, [https://archive.org/details/sanskrit-vangmaya-ka-brihat-itihas-purana-xiii-gangadhar-panda/page/n26/mode/1up?view=theater संस्कृत वाड़्मय का बृहद् इतिहास-पुराण खण्ड], सन् २००६, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ ( पृ० २७)।</ref> वेदों को भगवान् परब्रह्म का प्राण माना गया है तो पुराण उनके अवयव हैं, जो इस प्रकार हैं - <blockquote>ब्राह्मं मूर्धा हरेरेव हृदयं पद्मसंज्ञकम् । |
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| वैष्णवं दक्षिणो बाहुः शैवं वामो महेशितुः। ऊरू भागवतं प्रोक्तं नाभिः स्यान्नारदीयकम् ॥ | | वैष्णवं दक्षिणो बाहुः शैवं वामो महेशितुः। ऊरू भागवतं प्रोक्तं नाभिः स्यान्नारदीयकम् ॥ |
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| ===श्रीमद्भागवत महापुराण=== | | ===श्रीमद्भागवत महापुराण=== |
− | श्रीमद्भागवत सर्वाधिक महत्त्व पुराण हैं। इसमें १८ हजार श्लोक उपलब्ध हैं। श्रीमद्भागवत में १२ स्कन्ध एवं ३३५ अध्याय हैं। स्कन्ध एवं अध्यायों की संगति अन्य पुराणों में कथित श्रीमद्भागवत-विषयक विवरणों से बैठ जाती है, पर-श्लोक संख्या मेल नहीं खातीं नारदीय-पुराण, कौशिक संहिता गौरी तंत्र, गरुड पुराण, स्कन्द पुराण, सात्वततंत्रा आदि ग्रंथों में बारह-स्कन्ध, ३६५ अध्याय एवं १८ हजार श्लोकों का विवरण है। | + | श्रीमद्भागवत सर्वाधिक महत्त्व पुराण हैं। इसमें १८ हजार श्लोक उपलब्ध हैं। श्रीमद्भागवत में १२ स्कन्ध एवं ३३५ अध्याय हैं। स्कन्ध एवं अध्यायों की संगति अन्य पुराणों में कथित श्रीमद्भागवत-विषयक विवरणों से बैठ जाती है, पर-श्लोक संख्या मेल नहीं खातीं नारदीय-पुराण, कौशिक संहिता गौरी तंत्र, गरुड पुराण, स्कन्द पुराण, सात्वततंत्रा आदि ग्रंथों में बारह-स्कन्ध, ३६५ अध्याय एवं १८ हजार श्लोकों का विवरण है। भगवान् व्यास-सरीखे भगवत्स्वरूप महापुरुषको जिसकी रचनासे ही शान्ति मिली - जिसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म , साधनज्ञान, सिद्धज्ञान, साधनभक्ति, साध्यभक्ति, वैधी भक्ति, प्रेमा भक्ति, मर्यादार्ग, अनुग्रहमार्ग, द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत आदि सभीका परम रहस्य बडी ही मधुरताके साथ भरा हुआ है।<ref>महर्षिवेद व्यास - [https://ia801706.us.archive.org/0/items/srimad-bhagavat-mahapuran-2-volume-set-sanskrit-hindi/Srimad%20Bhagavat%20Mahapuran%20Volume%201%20Sanskrit%20Hindi.pdf श्रीमद्भागवतमहापुराण], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ५)।</ref> |
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− | भगवान् व्यास-सरीखे भगवत्स्वरूप महापुरुषको जिसकी रचनासे ही शान्ति मिली - जिसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म , साधनज्ञान, सिद्धज्ञान, साधनभक्ति, साध्यभक्ति, वैधी भक्ति, प्रेमा भक्ति, मर्यादार्ग, अनुग्रहमार्ग, द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत आदि सभीका परम रहस्य बडी ही मधुरताके साथ भरा हुआ है।<ref>महर्षिवेद व्यास - [https://ia801706.us.archive.org/0/items/srimad-bhagavat-mahapuran-2-volume-set-sanskrit-hindi/Srimad%20Bhagavat%20Mahapuran%20Volume%201%20Sanskrit%20Hindi.pdf श्रीमद्भागवतमहापुराण], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ५)।</ref> | |
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| ===ब्रह्म पुराण=== | | ===ब्रह्म पुराण=== |
− | यह ब्रह्म या ब्राह्म पुराण के नाम से विख्यात है। इसे समस्त पुराणों में आदि या आद्य पुराण के रूप में परिगणित किया गया है। विष्णुपुराण इस तथ्य की पुष्टि करता है और स्वयं ब्रह्मपुराण में भी इसे अग्रिम पुराण का पद प्रदान किया गय है। | + | यह ब्रह्म या ब्राह्म पुराण के नाम से विख्यात है। इसे समस्त पुराणों में आदि या आद्य पुराण के रूप में परिगणित किया गया है। विष्णुपुराण इस तथ्य की पुष्टि करता है और स्वयं ब्रह्मपुराण में भी इसे अग्रिम पुराण का पद प्रदान किया गय है। ब्रह्मपुराण में भारतवर्षकी महिमा तथा भगवन्नामका अलौकिक माहात्म्य, सूर्य आदि ग्रहों एवं लोकोंकी स्थिति एवं भगवान् विष्णुके परब्रह्म स्वरूप और प्रभावका वर्णन है।<ref>[https://archive.org/details/brahma-puran-gita-press-gorakhpur/page/n5/mode/1up संक्षिप्त ब्रह्मपुराण], भूमिका, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १)।</ref> |
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− | ब्रह्मपुराण में भारतवर्षकी महिमा तथा भगवन्नामका अलौकिक माहात्म्य, सूर्य आदि ग्रहों एवं लोकोंकी स्थिति एवं भगवान् विष्णुके परब्रह्म स्वरूप और प्रभावका वर्णन है।<ref>[https://archive.org/details/brahma-puran-gita-press-gorakhpur/page/n5/mode/1up संक्षिप्त ब्रह्मपुराण], भूमिका, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १)।</ref> | |
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− | * देवी पार्वती का अनुपम चरित्र और उनकी धर्मनिष्ठा | + | *देवी पार्वती का अनुपम चरित्र और उनकी धर्मनिष्ठा |
− | * गौतमी तथा गंगाका माहात्म्य | + | *गौतमी तथा गंगाका माहात्म्य |
− | * गोदावरी-स्नानका फल और अनेक तीर्थोंके माहात्म्य, व्रत, अनुष्ठान, दान तथा श्राद्ध आदिका महत्त्व इसमें विस्तारसे वर्णित है। | + | *गोदावरी-स्नानका फल और अनेक तीर्थोंके माहात्म्य, व्रत, अनुष्ठान, दान तथा श्राद्ध आदिका महत्त्व इसमें विस्तारसे वर्णित है। |
− | * अच्छे-बुरे कर्मोंका फल, स्वर्ग-नरक और वैकुण्ठादिका भी विशद वर्णन | + | *अच्छे-बुरे कर्मोंका फल, स्वर्ग-नरक और वैकुण्ठादिका भी विशद वर्णन |
− | * ब्रह्मपुराण में अनेक ऐसी शिक्षाप्रद, कल्याणकारी, रोचक कथाएँ हैं, जो मनुष्य-जीवनको उन्नत बनानेमें सहायक एवं उपयोगी सिद्ध होंगीं। | + | *ब्रह्मपुराण में अनेक ऐसी शिक्षाप्रद, कल्याणकारी, रोचक कथाएँ हैं, जो मनुष्य-जीवनको उन्नत बनानेमें सहायक एवं उपयोगी सिद्ध होंगीं। |
− | * योग और सांख्यकी सूक्ष्म चर्चाके साथ, गृहस्थोचित सदाचार तथा कर्तव्याकर्तव्य आदिका निरूपण भी इसमें किया गया है। | + | *योग और सांख्यकी सूक्ष्म चर्चाके साथ, गृहस्थोचित सदाचार तथा कर्तव्याकर्तव्य आदिका निरूपण भी इसमें किया गया है। |
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| ===पद्मपुराण=== | | ===पद्मपुराण=== |
− | पद्मपुराण एक बृहदाकार पुराण है, जिसमें पचास हजार श्लोक एवं ६४१ अध्याय हैं। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं - प्रकाशित देवनागरी संस्करण एवं हस्तलिखित बंगालीसंस्करण। आनन्दाश्रम (१८९४ ई०) से प्रकाशित देवनागरी संस्करण में छह खण्ड हैं, जिसका संपादन बी०एन० माण्डलिक ने किया था। वे हैं - आदिखण्ड, भूमिखण्ड, ब्रह्मखण्ड, पातालखण्ड, सृष्टिखण्ड और उत्तरखण्ड। इस संस्करण के उत्तरखण्द में इस बात के संकेत हैं कि मुख्यतः इसमें पांच ही खण्ड थे और छह खण्डों की कल्पना कालान्तर में की गयी। | + | पद्मपुराण एक बृहदाकार पुराण है, जिसमें पचास हजार श्लोक एवं ६४१ अध्याय हैं। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं - प्रकाशित देवनागरी संस्करण एवं हस्तलिखित बंगालीसंस्करण। आनन्दाश्रम (१८९४ ई०) से प्रकाशित देवनागरी संस्करण में छह खण्ड हैं, जिसका संपादन बी०एन० माण्डलिक ने किया था। वे हैं - आदिखण्ड, भूमिखण्ड, ब्रह्मखण्ड, पातालखण्ड, सृष्टिखण्ड और उत्तरखण्ड। इस संस्करण के उत्तरखण्द में इस बात के संकेत हैं कि मुख्यतः इसमें पांच ही खण्ड थे और छह खण्डों की कल्पना कालान्तर में की गयी।<ref>संपादक- जयदयाल गोयन्दका, [https://archive.org/details/padma-puran-gita-press-gorakhpur/page/n8/mode/1up संक्षिप्त पद्मपुराण], गीताप्रेस गोरखपुर, भूमिका (पृ० ६)।</ref> |
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− | * पद्मपुराण में सुभाषितों का संग्रह उपलब्ध है। | + | *सृष्टिक्रमका वर्णन, युग आदिका काल-मान, ब्रह्माजीके द्वारा रचे हुए विविध सर्गोंका वर्णन, ऋषि, देव, दानव, गन्धर्व आदि की उत्पत्ति का वर्णन एवं आश्रम धर्म आदि विषयों का वर्णन प्राप्त होता |
| + | *पद्मपुराण में सुभाषितों का संग्रह उपलब्ध है। |
| *पद्मपुराण में वर्णित विषयों का सार आदि खण्ड में है। | | *पद्मपुराण में वर्णित विषयों का सार आदि खण्ड में है। |
| + | *पुराणोंमें पद्मपुराणका स्थान बहुत ऊँचा है। इसे श्रीभगवान् के पुराणरूप विग्रहका हृदयस्थानीय माना गया है - हृदयं पद्मसंज्ञकम्। |
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| ===विष्णु पुराण=== | | ===विष्णु पुराण=== |
− | विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। | + | अष्टादश पुराणों में विष्णुपुराण का तृतीय स्थान है। इस पुराण में आदि से अन्त तक वैष्णव धर्म की समवेत धारा प्रवाहित हुयी है। परिमाण में लघु होते हुये भी यह पुराण धर्म एवं दर्शन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है। विष्णु पुराण वैष्णवों का प्रमुख ग्रन्थ माना जात है। इसकी महत्ता इस रूप में सिद्ध है कि वैष्णव आचार्य रामानुज ने अपने श्रीभाष्य में प्रमाण स्वरूप इसके उद्धरण दिये हैं। विष्णुपुराण में वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं -<ref>शोधगंगा-दिवाकर मणि त्रिपाठी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/311248/2/02-content.pdf विष्णु पुराण में धर्म एवं दर्शन का निरूपण], सन् २००२, शोधकेन्द्र-महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, भूमिका (पृ० ५)।</ref> |
| + | |
| + | *चतुर्वर्णों की उत्पत्ति और चारों आश्रमों का वर्णन |
| + | *माता, पिता एवं गुरुजनों का सम्मान, सदाचार पालन का महत्व |
| + | *सामाजिक धर्म की महत्ता और उसकीआवश्यकता तथा समाज में प्रचलित संस्कारों का विवरण |
| + | *विष्णुपुराण में योग धर्म - योग का अर्थ और उसका स्वरूप तथा अष्टांग योग का विवेचन |
| + | *कर्म, ज्ञान एवं भक्ति मार्ग का वर्णन एवं मोक्ष का स्वरूप |
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| ===वायु पुराण=== | | ===वायु पुराण=== |
− | वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी। | + | वायु पुराण में ऐतिहासिक तत्त्वों का आधिक्य है तथा अनेक पुराणों की अपेक्षा इसमें वैज्ञानिक तथ्यों की अधिकता है। इस पुराण की रचना असीमकृष्ण के शासनकाल में हुई थी। अन्य पुराणों की भाँति वायुपुराण के भी वर्ण्य विषय, सर्ग, प्रतिसर्ग, मन्वन्तर आदि से समन्वित हैं। वंशानुचरित अन्य पुराणों की भाँति इसमें कुछ कम है। वायुपुराण के वंशानुक्रम और अन्य वर्ण्य विषयों में स्पष्टतः परोक्षवाद, प्रतीकवाद और रहस्यवाद निहित है।<ref>रामप्रताप त्रिपाठी, [https://archive.org/details/VayuPuranam/page/n5/mode/1up वायुपुराण-हिन्दी अनुवाद सहित], सन् १९८७, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, भूमिका (पृ० ६)।</ref> |
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| ===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण=== | | ===नारदीयपुराण या बृहन्नारदीय पुराण=== |
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| मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर इस पुराण का नामकरण किया गया है, जो इसके प्रवक्ता है। शिवपुराण के उत्तर खण्ड में इस प्रकार का कथन है कि मार्कण्डेय मुनि इस पुराण के वक्ता हैं और यह सप्तम पुराण है। | | मार्कण्डेय ऋषि के नाम पर इस पुराण का नामकरण किया गया है, जो इसके प्रवक्ता है। शिवपुराण के उत्तर खण्ड में इस प्रकार का कथन है कि मार्कण्डेय मुनि इस पुराण के वक्ता हैं और यह सप्तम पुराण है। |
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− | === अग्निपुराण=== | + | ===अग्निपुराण=== |
| अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है। | | अग्नि द्वारा वसिष्ठ को उपदेश दिये जाने के कारन इस पुराण का नाम अग्नि पुराण है। पौराणिक क्रम से इसे अष्टम स्थान प्राप्त है। यह पुराण भारतीय कला, दर्शन, संस्कृति और साहित्य का विश्व कोश माना जाता है, जिसमें शताब्दियों के प्रबह-मान भारतीय विद्या का सार उपन्यस्त है। |
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| ===भविष्य पुराण=== | | ===भविष्य पुराण=== |
− | भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं। | + | भविष्य की घटनाओं वर्णन होने के कारण इसका नाम भविष्य पुराण है। बृहन्नारदीयपुराण में इसकी जो विषय-सूची दी गयी है, उसके अनुसार इसमें पाँच पर्व हैं - ब्रह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व तथा प्रतिसर्ग पर्व। भविष्यपुराण में कुल १४ हजार श्लोक हैं।<ref>शोधगंगा-प्रतिभा शर्मा, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/302034 भविष्य पुराण का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन], सन् २००२, शोधकेन्द्र- महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (पृ० ३३)।</ref> |
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| + | *भविष्य पुराण सौर-उपासना प्रधान है एवं इसमें कर्मकाण्डीय विषयों का भी विस्तार से वर्णन हुआ है। |
| + | *भविष्य पुराण में यज्ञों का वर्णन - यज्ञों से उचित समय में वृष्टि होती है, जिससे फल, फूल एवं समुचित मात्रा में व्रीहि, धान्य, यवादि अन्नों की उत्पत्ति होती है और पशु, पक्षी तथा मनुष्य सब प्रकार से सन्तुष्ट रहते हैं। |
| + | *व्रत, धर्म एवं सदाचार का विस्तृत वर्णन |
| + | *इसमें आचार की प्रधानता बतलायी गई है - शुद्ध अर्थोपार्जन, आश्रम के अनुसार कर्तव्य का पालन आदि |
| + | *भविष्य पुराण में अर्थशास्त्रीय सामग्री - तौल, माप आदि के प्रमाण, अन्नों एवं धातुओं का परस्पर विनिमय तथा मूल्यों के स्थिरीकरण आदि पर भी विचार मिलता है। |
| + | *राजनीतिक तत्व अर्थात धर्म, दर्शन, आचार-विचार, लोक-परलोक, इतिहास उपाख्यान आदि का सम्मिश्रण भविष्य पुराण में है। |
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| ===ब्रह्मवैवर्त पुराण=== | | ===ब्रह्मवैवर्त पुराण=== |
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| ===लिंग पुराण=== | | ===लिंग पुराण=== |
− | यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। | + | यह शिवपूजा एवं लिंगोपासना के रहस्य को बतलाने वाला तथा शिव-तत्त्व का प्रतिपादक पुराण है। इसके आरम्भ में लिंग शब्द का अर्थ ओंकार किया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि शब्द तथा अर्थ दोनों ही ब्रह्म के विवर्त रूप हैं। इसमें बताया गया है कि ब्रह्म सच्चिदानन्द स्वरूप है और उसके तीन रूप- सत्ता, चेतना और आनन्द आपस में संबद्ध हैं। शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं -<blockquote>लिंगस्य चरितोक्तत्वात् पुराणं लिंगमुच्यते॥</blockquote>यह पुराण अपेक्षाकृत छोटा है क्योंकि इसमें अध्यायों की संख्या १३३ और श्लोकों की संख्या ११,००० है। इसमें दो भाग हैं - पूर्व भाग और उत्तर भाग। |
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| + | *इस पुराण में लिंगोपासना की उत्पत्ति दिखलायी गयी है। |
| + | *सृष्टि का वर्णन भगवान् शंकर के द्वारा बतलाया गया है। |
| + | *शंकर के २८ अवतारों का वर्णन भी उपलब्ध होता है। |
| + | *शैव व्रतों और तीर्थों का वर्णन |
| + | *उत्तर भाग में पशु, पाश तथा पशुपति की व्याखा की गयी है। |
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− | शिव पुराण बतलाता है कि लिंग के चरित का कथन करने या शिवपूजा के विधान का प्रतिपादन करने के कारण इसे लिंग पुराण कहते हैं।
| + | यह पुराण शिवतत्व की मीमांसा के लिये बडा ही उपादेय तथा प्रामाणिक है। |
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− | === वाराह पुराण=== | + | ===वाराह पुराण=== |
− | विष्णु भगवान् के वराह अवतार का वर्णन होने के कारण इसे वराह पुराण कहा जाता है। इसमें इस प्रकार का उल्लेख है कि विष्णु ने वराह का रूप धारण कर पाताल लोक से पृथ्वी का उद्धार कर, इस पुराण का प्रवचन किया था। यह समग्रतः वैष्णव पुराण है। | + | विष्णु भगवान् के वराह अवतार का वर्णन होने के कारण इसे वराह पुराण कहा जाता है। इसमें इस प्रकार का उल्लेख है कि विष्णु ने वराह का रूप धारण कर पाताल लोक से पृथ्वी का उद्धार कर, इस पुराण का प्रवचन किया था। यह समग्रतः वैष्णव पुराण है। इस पुराण में २१८ अध्याय हैं। श्लोकों की संख्या २४,००० है। परन्तु कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी से इस ग्रन्थ का जो संस्करण प्रकाशित हुआ है उसमें केवल १०,७०० श्लोक हैं। इससे ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ का बहुत बडा भाग अब तक नहीं मिला है। इस पुराण में विष्णु से सम्बद्ध अनेक व्रतों का वर्णन है। विशेषकर द्वादशी व्रत- भिन्न-भिन्न मासों की द्वादशी व्रत-का विवेचन मिलता है तथा इन द्वादशी व्रतों का भिन्न-भिन्न अवतारों से सम्बन्ध दिखलाया गया है। इस पुराणके दो अंश विशेष महत्व के हैं -<ref name=":0" /> |
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| + | #'''मथुरा माहात्म्य -''' जिसमें मथुरा के समग्र तीर्थों का बडा ही विस्तृत वर्णन दिया गया है। ये अध्याय मथुरा का भूगोल जानने के लिए बडा ही उपयोगी है। |
| + | #'''नचिकेतोपाख्यान -''' जिसमें नचिकेता का उपाख्यान बडे विस्तार के साथ दिया गया है। इस उपाख्यान में स्वर्ग तथा नरकों के वर्णन पर ही विशेष जोर दिया गया है। कठोपनिषद् की आध्यात्मिक दृष्टि इस उपाख्यान में नहीं है। |
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| ===स्कन्द पुराण=== | | ===स्कन्द पुराण=== |
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| ये छः संहितायें हैं टोटल = ८१,००० श्लोक | | ये छः संहितायें हैं टोटल = ८१,००० श्लोक |
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− | इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र। | + | इस पुराण का विभाजन विभिन्न खण्डों में भी किया गया है, यथा - माहेश्वरखंड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, ध्वनिखण्ड, रेवाखंड, तापीखंड तथा प्रभासक्षेत्र। इस पुराण का नामकरण शिव जी के पुत्र स्कन्द या कार्त्तिकेय के नाम पर किया गया है। इसमें स्कन्द द्वारा शैव तत्त्व का प्रतिपादन कराया गया है। |
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− | इस पुराण का नामकरण शिव जी के पुत्र स्कन्द या कार्त्तिकेय के नाम पर किया गया है। इसमें स्कन्द द्वारा शैव तत्त्व का प्रतिपादन कराया गया है। | |
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| ===वामन पुराण=== | | ===वामन पुराण=== |
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| ===कूर्म पुराण=== | | ===कूर्म पुराण=== |
− | इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया। इस पुराण में चार संहितायें रही होंगी - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता - पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं। | + | इस पुराण का प्रारम्भ भगवान् कूर्म की प्रशंसा से होता है। भगवान् विष्णुने कूर्म-अवतार धारणकर परम विष्णुभक्त राजा इन्द्रद्युम्नको जो भक्ति, ज्ञान एवं मोक्षका उपदेश किया था, उसी उपदेशको पुनः भगवान् कूर्मने समुद्रमन्थनके समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारदादि ऋषिगणोंसे कहा। प्राचीन काल में जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तो भगवान् विष्णु ने कूर्म का रूप ग्रहण कर मंदराचल को अपने पृष्ठ पर धारण किया, वही कथा कूर्म-पुराण के नामसे विख्यात है। इस पुराण में चार संहितायें रही हैं - ब्राह्मी संहिता, भागवती संहिता, गौरी संहिता एवं वैष्णवी संहिता- पर सम्प्रति एक भाग ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है और उपलब्ध प्रति में केवल छह हजार श्लोक हैं। |
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| ===मत्स्य पुराण=== | | ===मत्स्य पुराण=== |
− | इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। | + | इस पुराण का प्रारम्भ मनु तथा विष्णु के संवाद से होता है। श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त्तपुराण तथा रेवामाहात्म्य में इसकी श्लोक संख्या १५,००० दी गयी है। इसमें २९१ अध्याय हैं। आनन्दाश्रम पूना से प्रकाशित इस पुराण के संस्करण में कुल १४,००० हजार श्लोक प्राप्त होते हैं। इस पुराण का आरम्भ प्रलयकाल की, उस घटना के साथ होता है, जब विष्णु जी ने एक मत्स्य का रूप धारण कर मनु की रक्षा की थी तथा नौकारूढ मनु को बचा कर उनके साथ संवाद किया था। जिस पुराण में सृष्टि के प्रारंभ में भगवान् जनार्दन विष्णु ने मात्स्य रूप धारण कर मनु के लिए, वेदों में लोक प्रवृत्ति के लिए, नरसिंहावतार के विषय के प्रसंग से सात कल्प वृत्तान्तों का वर्णन किया है, उसे मत्स्यपुराण के नाम से जाना जाता है। |
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| ===गरुड पुराण=== | | ===गरुड पुराण=== |
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| शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। | | शिवपुराण तथा वायुपुराण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों के अनुसार दोनों ही पुराण अभिन्न हैं और कतिपय वुद्वान् इन्हें स्वतन्त्र पुराण के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। कुछ विद्वान् विभिन्न पुराणों में निर्दिष्ट सूची के अनुसार शिवपुराण को चतुर्थ स्थान प्रदान करते हैं। |
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| + | ==महापुराणों का वर्गीकरण== |
| + | मत्स्यपुराण के अनुसार पुराणों का त्रिविध विभाजन माना गया है - सात्त्विकपुराण, राजसपुराण और तामसपुराण। जिन पुराणों में विष्णु भगवान का अधिक महत्त्व बताया गया है वह सात्त्विकपुराण, जिसमें भगवान शिव का महत्व अधिक बताया गया है, वह तामसपुराण और राजस पुराणों में ब्रह्मा तथा अग्नि का अधिक महत्त्व वर्णित है -<ref>शोधगंगा-कु० पूनम वार्ष्णेय, [https://core.ac.uk/download/pdf/144513982.pdf वायुपुराण का समीक्षात्मक अनुशीलन], सन् २००१, शोधकेन्द्र-अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ (पृ० १२)।</ref> <blockquote>सात्त्विकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः। राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः॥ |
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| + | तद्वदग्नेर्माहात्म्यं तामसेषु शिवस्य च। संकीर्णेषु सरस्वत्याः पितॄणां च निगद्यते॥ (मत्स्यपुराण ५३, ६८-६९) </blockquote> |
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| + | '''भावार्थ -''' पद्म, मस्त्य, भविष्य एवं गरुड पुराणों में पुराणों को विषय-वस्तु (त्रैगुण्य-सत्त्व, रजस् , तमस्) एवं देवता के आधार पर तीन वर्गों में विभक्त किया गया है - |
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| + | #'''सात्त्विक पुराण -''' विष्णु, भागवत, नारद, गरुड़, पद्म और वराह ये विष्णु से सम्बद्ध छः सात्त्विक पुराण हैं। |
| + | #'''राजस पुराण -''' ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, भविष्य और वामन ये ब्रह्मा से सम्बद्ध छः राजस पुराण हैं। |
| + | #'''तामस पुराण -''' शिव, लिंग, स्कन्द, अग्नि, मत्स्य और कूर्म ये शिव से सम्बद्ध छः तामस पुराण हैं। |
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| + | *भविष्य पुराण के अनुसार राजस पुराणों में कर्मकाण्ड का प्रतिपादन होता है एवं तामस शाक्तधर्म परायण होते हैं। |
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| + | इन अट्ठारह पुराणोंका वर्गीकरण अनेक प्रकार से देखा जाता है। जैसे - |
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| + | #'''ज्ञानकोशीय पुराण -''' अग्नि, गरुड एवं नारद |
| + | #'''तीर्थ से सम्बन्धित पुराण -''' पद्म, स्कन्द एवं भविष्य |
| + | #'''साम्प्रदायिक पुराण -''' लिंग, वामन एवं मार्कण्डेय |
| + | #'''ऐतिहासिक पुराण -''' वायु एवं ब्रह्माण्ड, इत्यादि |
| + | *इसी तरह पुराणों का वर्गीकरण प्राचीन और प्राचीनेतर को लेकर भी किया जाता है, जैसे - वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य और विष्णु यह प्राचीन प्रतीत होते हैं अन्य सभी प्राचीनेतर। |
| + | *स्कन्दपुराण में पुराणों का वर्गीकरण देवताओं के आधार पर किया गया है। |
| + | *पञ्चलक्षणात्मक वर्गीकरण भी पुराणों का देखा जाता है। |
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| ==महापुराण का महत्त्व== | | ==महापुराण का महत्त्व== |
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| #'''आचार-विचार -''' पुराणों में दान, दया, अतिथि सेवा, सर्वधर्मसमभाव, उदार दृष्टि, व्रत के प्रति निष्ठा इत्यादि मानवीय गुणों का प्रकाशन कथाओं के द्वारा किया गया है। सद्गुणों के प्रति आकर्षण और दोषों से निवृत्ति के उपाय का वर्णन सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। | | #'''आचार-विचार -''' पुराणों में दान, दया, अतिथि सेवा, सर्वधर्मसमभाव, उदार दृष्टि, व्रत के प्रति निष्ठा इत्यादि मानवीय गुणों का प्रकाशन कथाओं के द्वारा किया गया है। सद्गुणों के प्रति आकर्षण और दोषों से निवृत्ति के उपाय का वर्णन सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। |
| #'''ज्ञान-विज्ञान -''' कुछ पुराणों में व्याकरण, काव्यशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, शरीर विज्ञान आदि शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक विषयों का संकलन है। | | #'''ज्ञान-विज्ञान -''' कुछ पुराणों में व्याकरण, काव्यशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, शरीर विज्ञान आदि शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक विषयों का संकलन है। |
− | | + | #'''भौगोलिक महत्व -''' अनेक पुराणों में भुवनकोश प्रकरण के द्वारा भूमण्डल का यथासाध्य जानकारी प्राप्त होती है। भारत के विभिन्न भूभागों के साथ-साथ नदियों, पर्वतों, झीलों, वनों, मरुस्थलों, नगरों, प्रदेशों एवं जातियों का भी विवरण प्राप्त होता है। |
− | ===उपपुराण===
| + | #'''सामाजिक महत्व -''' पुराणों में भारतीय समाज की व्यवस्था का न केवल चित्रण है, अपितु आदर्श समाज बनाने की व्यापक विधियाँ वर्णित हैं। वर्णाश्रम के गुण कर्म, विविध संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध, राजधर्म, स्त्रीधर्म, गुरु-शिष्य के बीच सम्बन्ध इत्यादि के विवरण है। |
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− | ===औपपुराण===
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| ==सारांश== | | ==सारांश== |
− | वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। | + | वेदों में निर्गुण निराकार की उपासना पर बल दिया गया था। निराकार ब्रह्म की वैदिक अवधारणा में पुराणों ने साकार ब्रह्मा की सगुण उपासना को जोडा। पुराणों में मन्वन्तर एवं कल्पों का सिद्धान्त प्रतिपादित है। यह एक अत्यन्त गम्भीर विषय है। वास्तव में काल-प्रवाह अनन्त है। पुराणों में चतुर्दश विद्याओं का तो संग्रह है ही, वेदार्थ भी सम्यक् प्रतिपादित हैं। साथ ही आत्मज्ञान, ब्रह्मविद्या, सांख्य, योग, धर्मनीति, अर्थशास्त्र, ज्योतिष एवं अन्यान्य कला-विज्ञानों का भी समावेश हुआ है। पुराणों में अनेक प्रसंगों में ऐतिहासिक वीर-गाथाओं, मिथकीय पुराकथाओं, आचारात्मक नीति-कथाओं आदि का, मूल वक्तव्य को स्पष्ट करने के लिए समावेश किया गया है। |
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| ==उद्धरण== | | ==उद्धरण== |