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'''न स्यात कृपा यदि तव प्रकटप्रभावै ।'''
 
'''न स्यात कृपा यदि तव प्रकटप्रभावै ।'''
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'''न स्युः कथन्चिदपि ते निज कार्य दक्षाः ।।'''
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'''न स्युः कथन्चिदपि ते निज कार्य दक्षाः ।।'''</blockquote>
 
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[[File:20. Vidyarambha corrected version (Repurposed for article).png|thumb|760x760px|'''<big>Vidyarambha Sanskar</big>''']]
बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है। अक्षरों और संख्याओं की पहचान यह माता-पिता द्वारा तीसरे या चौथे वर्ष की उम्र में की जाती है । गहरे ज्ञान सागर में बालक को प्रवेश कराने का संस्कार अर्थात विद्यारंभ संस्कार । जिसके कारण उनके जीवनयात्रा का शुभारम्भ अच्छे सोच , अच्छे विचारों, शुभ आशीर्वादों से सुरक्षित होता है।</blockquote>
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बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है। अक्षरों और संख्याओं की पहचान यह माता-पिता द्वारा तीसरे या चौथे वर्ष की उम्र में की जाती है । गहरे ज्ञान सागर में बालक को प्रवेश कराने का संस्कार अर्थात विद्यारंभ संस्कार । जिसके कारण उनके जीवनयात्रा का शुभारम्भ अच्छे सोच , अच्छे विचारों, शुभ आशीर्वादों से सुरक्षित होता है।
 
   
=== '''प्राचीन रूप''' : ===
 
=== '''प्राचीन रूप''' : ===
 
इस संस्कार को आगे आने वाले के काल में भारतीय परंपरा में सम्मिलित किया जाना चाहिए । कौटिल्य के अर्थशास्त्र इस पर कुछ प्रकाश डालते है। याज्ञवल्क्य स्मृति मे इसकी जानकारी संस्कार प्रकाश में जानकारी मिलती है। लेकिन आश्चर्यकी बात है गुहासूक्त और धर्मसूत्र में कोई जानकारी नहीं है। शायद यह संस्कार शुरू होने वाला है क्योंकि उपनयन/मुंजिक से पहले घर पर दी जाने वाली औपचारिक शिक्षा के लिए ऐसा होना चाहिए , क्योंकि समाज के सभी बच्चे शिक्षा के लिए गुरुगृह नहीं जाते हैं।
 
इस संस्कार को आगे आने वाले के काल में भारतीय परंपरा में सम्मिलित किया जाना चाहिए । कौटिल्य के अर्थशास्त्र इस पर कुछ प्रकाश डालते है। याज्ञवल्क्य स्मृति मे इसकी जानकारी संस्कार प्रकाश में जानकारी मिलती है। लेकिन आश्चर्यकी बात है गुहासूक्त और धर्मसूत्र में कोई जानकारी नहीं है। शायद यह संस्कार शुरू होने वाला है क्योंकि उपनयन/मुंजिक से पहले घर पर दी जाने वाली औपचारिक शिक्षा के लिए ऐसा होना चाहिए , क्योंकि समाज के सभी बच्चे शिक्षा के लिए गुरुगृह नहीं जाते हैं।

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