Difference between revisions of "बाल संस्कार - पुण्यभूमि भारत"
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− | + | इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके । इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है । | |
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+ | # पवित्र नदियाँ | ||
+ | # पंच सरोवर | ||
+ | # सप्त पर्वत | ||
+ | # चार धाम | ||
+ | # मोक्षदायिनी सप्तपुरी | ||
+ | # द्वादश ज्योतिलिंग | ||
+ | # शक्तिपीठ | ||
+ | # उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर भारत | ||
+ | # पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत | ||
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+ | # दक्षिण भारत | ||
+ | आइये अब हम सभी इन सभी बिन्दुओ को विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करेंगे । | ||
− | ३) | + | = पवित्र नदियाँ = |
+ | अनेक पवित्र नदियाँ अपने पवित्र जल से भारत माता का अभिसिंचन करती हैं। सम्पूर्ण देश में इन नदियों को आदर व श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है। इनके पवित्र तटों पर विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं, प्रत्येक हिन्दू इनके जल में डुबकी लगाकर अपने आपको को धन्य मानता है। ये नदियाँ भारत के उतार-चढ़ाव की साक्षी हैं। हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अंसख्य तीर्थ इन नदियों के तटों पर विकसित हुए। | ||
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+ | = पञ्च सरोवर = | ||
+ | जिस प्रकार भारत के चार कोनों पर चार धाम (उत्तरी सीमा पर बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरीतथा पश्चिम में द्वारिका स्थापित कर देश की एकता को सुदृढ़ किया गया।) उसी प्रकार मनीषियों ने पंच सरोवरों की मान्यता देकर समस्त भारतवासियों को प्रान्त व जातिभेद से ऊपर उठकर भारत को एक राष्ट्र के रूप में सुदूढ़ करने की प्रेरणा दी। सभी हिन्दू इनके प्रतिश्रद्धाभाव रखते हैं। ये पांच सरोवर निम्नलिखित हैं | ||
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+ | १. विन्दु सरोवर | ||
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+ | जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं। | ||
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− | + | = चार धाम = | |
+ | भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है। भारत की एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चार धामों के द्वारा और अधिक पुष्ट हुई है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है । देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है । | ||
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+ | <blockquote>'''अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।''' </blockquote><blockquote>'''पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिक:।''' </blockquote>अयोध्या, मथुरा हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम् अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारिका, ये सात मोक्षदायिनी पुरियाँ है। ये पुरियाँ सम्पूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्र व दिशा में स्थित होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता की सुदूढ़ कड़ियाँ हैं। प्रत्येक भारतीय, भले ही वह किसी भी जाति, पंथ या प्रान्त का हो, श्रद्धा के साथ इन (सप्तपुरियों) की यात्रा के लिए लालायित रहता है। | ||
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− | + | = द्वादश ज्योतिर्लिंग = | |
+ | अनादि काल से भारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं। शैव मत के अनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं। | ||
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+ | भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है । | ||
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+ | उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत ऐतिहासिक दृष्टि से एवं अनादीकाल के प्रवास से अध्यात्म एवं वैदिक कालखंड के बहुत से धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल इस क्षेत्र में उपस्थित है इसलिए लोग अध्यात्मिक एवं पुरातन इतिहास की खोज में यहाँ पधारते है | | ||
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− | = | + | = पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत = |
− | + | सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अति समृद्ध यह क्षेत्र बंगाल, असम,अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व त्रिपुरा तक विस्तृत है।आज का बर्मा (मायन्मार) सांस्कृतिक भारत का ब्रह्मा देश है। अति बलिष्ठ हाथियों (ऐरावत) के लिए प्रसिद्ध इरावती (ऐरावती) नदी इसी क्षेत्र में बहती है। | |
− | ''' | + | '''पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत पर यह [[पुर्वोत्तेर एवं पूर्वी भारत|विस्तृत लेख]] देखें ।''' |
− | + | = मध्य भारत = | |
+ | भारतभूमि के उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण स्थलों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के उपरांत अब हम मध्यभारत (उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) में स्थित प्रमुख स्थलों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य को हरदयंगम करने का प्रयत्न करेंगे। | ||
− | + | '''मध्य भारत पर [[पुण्यभूमि भारत - मध्य भारत|विस्तृत लेख]] यहाँ देखे |''' | |
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− | == | + | == दक्षिण भारत == |
− | + | दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के पुण्यस्मरण से यह बात और अधिक पुष्ट होगी। दक्षिण भारत में पवित्र तीर्थों की परम्परा अक्षुण्ण रही है। आध्यात्मिक ज्ञान की गांग यहाँ अविरल बहती रही है। मध्य भारत का वर्णन करने के बाद हम आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक प्रदेश के तथा पाण्ड्यचेरी, द्वीप समूह व श्रीलंका के स्थलों की झलक प्राप्त कर लें। | |
− | + | '''दक्षिण भारत पर [[पुण्यभूमि भारत - दक्षिण भारत|विस्तृत लेख]] यहाँ देंखे |''' | |
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− | == | + | ==References== |
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− | + | [[Category: पुण्यभूमि भारत ]] | |
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Latest revision as of 21:49, 23 June 2021
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।
वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।
हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"। इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनी द्वारा असंभव है, तथापि माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।
इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके । इतिहास के शौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है ।
पुण्यभूमि भारत का परिचय निम्नलिखित बिन्दुओ द्वारा :-
- पवित्र नदियाँ
- पंच सरोवर
- सप्त पर्वत
- चार धाम
- मोक्षदायिनी सप्तपुरी
- द्वादश ज्योतिलिंग
- शक्तिपीठ
- उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर भारत
- पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत
- मध्य भारत
- दक्षिण भारत
आइये अब हम सभी इन सभी बिन्दुओ को विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करेंगे ।
पवित्र नदियाँ
अनेक पवित्र नदियाँ अपने पवित्र जल से भारत माता का अभिसिंचन करती हैं। सम्पूर्ण देश में इन नदियों को आदर व श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है। इनके पवित्र तटों पर विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं, प्रत्येक हिन्दू इनके जल में डुबकी लगाकर अपने आपको को धन्य मानता है। ये नदियाँ भारत के उतार-चढ़ाव की साक्षी हैं। हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अंसख्य तीर्थ इन नदियों के तटों पर विकसित हुए।
१. गंगा
२. यमुना
३. सिन्धु
४. सरस्वती
५. ब्रह्मपुत्र
६. रेवा (नर्मदा)
७. गोदावरी
८. कृष्णा
९. कावेरी
१०. महानदी
इन पवित्र नदियों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
पञ्च सरोवर
जिस प्रकार भारत के चार कोनों पर चार धाम (उत्तरी सीमा पर बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरीतथा पश्चिम में द्वारिका स्थापित कर देश की एकता को सुदृढ़ किया गया।) उसी प्रकार मनीषियों ने पंच सरोवरों की मान्यता देकर समस्त भारतवासियों को प्रान्त व जातिभेद से ऊपर उठकर भारत को एक राष्ट्र के रूप में सुदूढ़ करने की प्रेरणा दी। सभी हिन्दू इनके प्रतिश्रद्धाभाव रखते हैं। ये पांच सरोवर निम्नलिखित हैं
१. विन्दु सरोवर
२. नारायण सरोवर
३. पम्पा सरोवर
४. पुष्कर झील
५. मान सरोवर
इन सरोवरों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
सप्त पर्वत
जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं।
इन पर्वतों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
चार धाम
भारत वर्ष अनादि काल से एक इकाई के रूप में विद्यमान रहा है। भारत की एकात्मता चारों दिशाओं में स्थित चार धामों के द्वारा और अधिक पुष्ट हुई है। जातिबन्धन से मुक्त होकर पूजा-अर्चना के लिए इनकी यात्रा का विधान है । देश के सभी प्रान्तों के निवासी इनकी यात्रा कर स्वयं को धन्य मानते है ।
इन धामों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
मोक्षदायिनी सप्त पुरी
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिक:।
अयोध्या, मथुरा हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम् अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारिका, ये सात मोक्षदायिनी पुरियाँ है। ये पुरियाँ सम्पूर्ण देश में अलग-अलग क्षेत्र व दिशा में स्थित होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता की सुदूढ़ कड़ियाँ हैं। प्रत्येक भारतीय, भले ही वह किसी भी जाति, पंथ या प्रान्त का हो, श्रद्धा के साथ इन (सप्तपुरियों) की यात्रा के लिए लालायित रहता है।
इन मोक्ष्दयानी सप्त पुरियों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
द्वादश ज्योतिर्लिंग
अनादि काल से भारत एक इकाई के रूप में विकसित हुआ है। यहाँ विकसित सभी मत-सम्प्रदायों के तीर्थ-स्थान सम्पूर्ण देश में फैले हैं। शैव मत के अनुयायियों के लिए पूज्य १२ शिव-मन्दिरों के शिवलिंगों को द्वादश ज्योतिर्लिंग नाम से अभिहित किया गया है। ये सम्पूर्ण देश में फैले होने के कारण राष्ट्र की एकात्मता के भी प्रतीक हैं।
इन द्वादश ज्योतिर्लिंग पर यह विस्तृत लेख देखें ।
शक्तिपीठ
भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है । समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है । विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है । सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है । शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ सभी दिशाओं में फैले है । शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है । इनकी संख्या ५१ है । तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है । प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है । शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है ।
इन शक्तिपीठों पर यह विस्तृत लेख देखें ।
उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत
उत्तर - पश्चिम एवं उत्तर भारत ऐतिहासिक दृष्टि से एवं अनादीकाल के प्रवास से अध्यात्म एवं वैदिक कालखंड के बहुत से धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल इस क्षेत्र में उपस्थित है इसलिए लोग अध्यात्मिक एवं पुरातन इतिहास की खोज में यहाँ पधारते है |
उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर भारत पर यह विस्तृत लेख देखें ।
पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अति समृद्ध यह क्षेत्र बंगाल, असम,अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व त्रिपुरा तक विस्तृत है।आज का बर्मा (मायन्मार) सांस्कृतिक भारत का ब्रह्मा देश है। अति बलिष्ठ हाथियों (ऐरावत) के लिए प्रसिद्ध इरावती (ऐरावती) नदी इसी क्षेत्र में बहती है।
पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत पर यह विस्तृत लेख देखें ।
मध्य भारत
भारतभूमि के उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के महत्त्वपूर्ण स्थलों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के उपरांत अब हम मध्यभारत (उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) में स्थित प्रमुख स्थलों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य को हरदयंगम करने का प्रयत्न करेंगे।
मध्य भारत पर विस्तृत लेख यहाँ देखे |
दक्षिण भारत
दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के पुण्यस्मरण से यह बात और अधिक पुष्ट होगी। दक्षिण भारत में पवित्र तीर्थों की परम्परा अक्षुण्ण रही है। आध्यात्मिक ज्ञान की गांग यहाँ अविरल बहती रही है। मध्य भारत का वर्णन करने के बाद हम आन्ध्र, तमिलनाडु, केरल व कर्नाटक प्रदेश के तथा पाण्ड्यचेरी, द्वीप समूह व श्रीलंका के स्थलों की झलक प्राप्त कर लें।
दक्षिण भारत पर विस्तृत लेख यहाँ देंखे |