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| | शंखनाद की ध्वनि गले की बीमारियों जैसे कफ अधिक होना, गले में जलन, जीभ के स्वाद में अभिवृत्ति, आवाज में स्पष्टता एवं थाइराइड जैसे रोगों को समूह नष्ट करता है । शंखनाद करने से आवाज स्पष्ट एवं मधुर बनती है । गीत-संगीत से जुड़े लोग अपनी आवाज अच्छी और मधुर बनाने के लिए रोज शंख नाद करते हैं । | | शंखनाद की ध्वनि गले की बीमारियों जैसे कफ अधिक होना, गले में जलन, जीभ के स्वाद में अभिवृत्ति, आवाज में स्पष्टता एवं थाइराइड जैसे रोगों को समूह नष्ट करता है । शंखनाद करने से आवाज स्पष्ट एवं मधुर बनती है । गीत-संगीत से जुड़े लोग अपनी आवाज अच्छी और मधुर बनाने के लिए रोज शंख नाद करते हैं । |
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| − | गले के रोगों - सोरश्रोट, श्रोटस्वेब, कल्चर फेरन, गोटीस, विरल, स्ट्रेपटटोकोकल, अपर एरवेब्रायोप्सी, जैसे गले के सभी रोगों के लिए यह एक सरल व सहज उपचार है । शंखनाद से स्वाद में अभिवृद्धि होती है, आवाज स्पष्ट व मधुर बनती है । गले के रोगों के लिए तो यह रामबाण दवा है तथा थाईराइड़ जैसे रोगों को तो जड़ से ही मिटाती है । | + | गले के रोगों - सोरश्रोट, श्रोटस्वेब, कल्चर फेरन, गोटीस, विरल, स्ट्रेपटटोकोकल, अपर एरवेब्रायोप्सी, जैसे गले के सभी रोगों के लिए यह एक सरल व सहज उपचार है । शंखनाद से स्वाद में अभिवृद्धि होती है, आवाज स्पष्ट व मधुर बनती है । गले के रोगों के लिए तो यह रामबाण दवा है तथा थाईराइड़ जैसे रोगों को तो जड़़ से ही मिटाती है । |
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| | ==== ५. शंखनाद से फेफड़ों व छाती पर मजबूत असर ==== | | ==== ५. शंखनाद से फेफड़ों व छाती पर मजबूत असर ==== |
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| | . पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित-शिक्षित वर्ग आज भी धार्मिक ज्ञान को अवैज्ञानिक और अन्धविश्वास से भरा मानकर उसे नकारता है । | | . पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित-शिक्षित वर्ग आज भी धार्मिक ज्ञान को अवैज्ञानिक और अन्धविश्वास से भरा मानकर उसे नकारता है । |
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| − | . हमारे देश में जीवन से जुड़ी प्रत्येक बात को धर्म व अध्यात्म से जोड़कर कहा गया है । धर्म एवं विज्ञान में विरोधाभास नहीं है । फिर भी आज धार्मिक बातों को विज्ञान सम्मत नहीं माना जाता है । | + | . हमारे देश में जीवन से जुड़ी प्रत्येक बात को धर्म व अध्यात्म से जोड़कर कहा गया है । धर्म एवं विज्ञान में विरोधाभास नहीं है । तथापि आज धार्मिक बातों को विज्ञान सम्मत नहीं माना जाता है । |
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| | . चिकित्सा के क्षेत्र में भी एलोपैथी ही सर्वमान्य बनी हुई है। आयुर्वेद की उपेक्षा की गई, आज भी चिकित्साविभाग के सम्पूर्ण बजट का मात्र ४ प्रतिशत बजट आुयर्वेद् एवं अन्य पैशियों को मिलता है । | | . चिकित्सा के क्षेत्र में भी एलोपैथी ही सर्वमान्य बनी हुई है। आयुर्वेद की उपेक्षा की गई, आज भी चिकित्साविभाग के सम्पूर्ण बजट का मात्र ४ प्रतिशत बजट आुयर्वेद् एवं अन्य पैशियों को मिलता है । |