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| शिक्षक के अन्य गुण निम्न हैं: | | शिक्षक के अन्य गुण निम्न हैं: |
| * जिसे ज्ञानार्जन में आनंद आता है, जो स्वयं भी ज्ञानवान है, श्रध्दा (अपने आप में, ज्ञान में और विद्यार्थी में) रखता है, विद्यार्थी को अपने पुत्र की भाँति प्रेम करता है, विद्यार्थीप्रिय है, तत्वनिष्ठ है (सौदेबाज नहीं है), "समाज को श्रेष्ठ बनाने की जिम्मेदारी मेरी है" ऐसा मानने वाला, सभ्य, सुशील, गौरवशील, सुसंस्कृत, मन के विकारों को नियंत्रण में रखता है, सन्मार्गगामी, लालच, भय, खुशामद और निंदा से दूर रहनेवाला आदि। | | * जिसे ज्ञानार्जन में आनंद आता है, जो स्वयं भी ज्ञानवान है, श्रध्दा (अपने आप में, ज्ञान में और विद्यार्थी में) रखता है, विद्यार्थी को अपने पुत्र की भाँति प्रेम करता है, विद्यार्थीप्रिय है, तत्वनिष्ठ है (सौदेबाज नहीं है), "समाज को श्रेष्ठ बनाने की जिम्मेदारी मेरी है" ऐसा मानने वाला, सभ्य, सुशील, गौरवशील, सुसंस्कृत, मन के विकारों को नियंत्रण में रखता है, सन्मार्गगामी, लालच, भय, खुशामद और निंदा से दूर रहनेवाला आदि। |
− | * शिशू, बाल, किशोर बच्चों का शिक्षक अपंग, अंध, अस्पष्ट उच्चारण वाला, गंदे दाँतवाला न हो। सुदृढ, सशक्त, प्रभावी व्यक्तित्ववाला हो। | + | * शिशू, बाल, किशोर बच्चोंं का शिक्षक अपंग, अंध, अस्पष्ट उच्चारण वाला, गंदे दाँतवाला न हो। सुदृढ, सशक्त, प्रभावी व्यक्तित्ववाला हो। |
| * आचार्य की नियुक्ति का अधिकार केवल उससे श्रेष्ठ आचार्य को है, अन्य किसी को नहीं है। | | * आचार्य की नियुक्ति का अधिकार केवल उससे श्रेष्ठ आचार्य को है, अन्य किसी को नहीं है। |
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| # मानव के व्यक्तित्व के मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन घटकों की शिक्षा का श्रेष्ठ साधन अष्टांग योग की शिक्षा है। अष्टांग योग में से पहले पांच चरणों की याने बहिरंग योग की शिक्षा बालक के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है। | | # मानव के व्यक्तित्व के मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन घटकों की शिक्षा का श्रेष्ठ साधन अष्टांग योग की शिक्षा है। अष्टांग योग में से पहले पांच चरणों की याने बहिरंग योग की शिक्षा बालक के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है। |
| # अनध्ययन के दिनों में मन अस्थिर हो जाता है। इसलिये प्रतिपदा, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा इन अनध्ययन के दिनों में अध्ययन टालना चाहिए। | | # अनध्ययन के दिनों में मन अस्थिर हो जाता है। इसलिये प्रतिपदा, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा इन अनध्ययन के दिनों में अध्ययन टालना चाहिए। |
− | # मानव एक जीवंत ईकाई है, यंत्र नहीं। शिक्षा भी एक जैविक प्रक्रिया है, यांत्रिक नहीं। इसलिये शिक्षा को समयबद्ध घंटों में बांधना योग्य नहीं है। घंटी बजाकर एक विषय बंद कर दूसरा विषय आरम्भ करने के लिये मनुष्य कोई बिजली का खटका (स्विच) नहीं होता। इसे ध्यान में रखकर अध्ययन/ अध्यापन की रचना करनी चाहिए। बालक कोई मन, बुद्धि विहीन वस्तू नहीं होता। परीक्षा की, मूल्याङ्कन की एक ही पट्टी से सभी बच्चों को नापा नहीं जा सकता। शिक्षा में यांत्रिकता शिक्षा को अक्षम बना देती है। | + | # मानव एक जीवंत ईकाई है, यंत्र नहीं। शिक्षा भी एक जैविक प्रक्रिया है, यांत्रिक नहीं। इसलिये शिक्षा को समयबद्ध घंटों में बांधना योग्य नहीं है। घंटी बजाकर एक विषय बंद कर दूसरा विषय आरम्भ करने के लिये मनुष्य कोई बिजली का खटका (स्विच) नहीं होता। इसे ध्यान में रखकर अध्ययन/ अध्यापन की रचना करनी चाहिए। बालक कोई मन, बुद्धि विहीन वस्तू नहीं होता। परीक्षा की, मूल्याङ्कन की एक ही पट्टी से सभी बच्चोंं को नापा नहीं जा सकता। शिक्षा में यांत्रिकता शिक्षा को अक्षम बना देती है। |
| # अध्ययन का विकसित स्तर ही अध्यापन का स्तर होता है। जब किसी विषय में मेरा ज्ञान इतना श्रेष्ठ बन जाता है कि मुझे लगने लगता है कि अब मैं बताऊंगा तो लोग सुनेंगे, तब मैं अध्यापक बन जाता हूँ। शिक्षक की नियुक्ति एक श्रेष्ठ शिक्षक ही कर सकता है। अन्य कोई नहीं। जब शिक्षक अध्ययन करना छोड़ देता है, समझो अब वह शिक्षक नहीं रहा। शिक्षक के लिए सदैव अध्येता बने रहना आवश्यक है। | | # अध्ययन का विकसित स्तर ही अध्यापन का स्तर होता है। जब किसी विषय में मेरा ज्ञान इतना श्रेष्ठ बन जाता है कि मुझे लगने लगता है कि अब मैं बताऊंगा तो लोग सुनेंगे, तब मैं अध्यापक बन जाता हूँ। शिक्षक की नियुक्ति एक श्रेष्ठ शिक्षक ही कर सकता है। अन्य कोई नहीं। जब शिक्षक अध्ययन करना छोड़ देता है, समझो अब वह शिक्षक नहीं रहा। शिक्षक के लिए सदैव अध्येता बने रहना आवश्यक है। |
| # जानकारी ग्रहण करना, जानकारी के अर्थ को समझना, जानकारी का उपयोग कैसे करना चाहिए इसपर चिंतन करना याने ज्ञान प्राप्त करना, प्रयोग कर अपने चिंतन से उपजे ज्ञान की पुष्टि करना और सबसे अंत में ज्ञान का औरों को अन्तरण करना। यही अध्ययन की प्रक्रिया है। | | # जानकारी ग्रहण करना, जानकारी के अर्थ को समझना, जानकारी का उपयोग कैसे करना चाहिए इसपर चिंतन करना याने ज्ञान प्राप्त करना, प्रयोग कर अपने चिंतन से उपजे ज्ञान की पुष्टि करना और सबसे अंत में ज्ञान का औरों को अन्तरण करना। यही अध्ययन की प्रक्रिया है। |