Difference between revisions of "विविध - प्रस्तावना"
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− | प्रथम पर्व के प्रकाश में दूसरे, दूसरे के प्रकाश में तीसरे इस प्रकार क्रमशः पर्वों की रचना हुई है । यह पाँचवा पर्व एक दृष्टि से समापन पर्व है । इस पर्व में कुछ आलेख दिये गये हैं समस्त शिक्षाविचार को सूत्ररूप में प्रस्तुत करते हैं । इनका प्रयोग स्वतन्त्ररूप में भी किया जा सकता है । इनके आधार पर स्थान स्थान पर चर्चा की जा सकती है । | + | प्रथम पर्व के प्रकाश में दूसरे, दूसरे के प्रकाश में तीसरे इस प्रकार क्रमशः पर्वों की रचना हुई है <ref>धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। यह पाँचवा पर्व एक दृष्टि से समापन पर्व है । इस पर्व में कुछ आलेख दिये गये हैं समस्त शिक्षाविचार को सूत्ररूप में प्रस्तुत करते हैं । इनका प्रयोग स्वतन्त्ररूप में भी किया जा सकता है । इनके आधार पर स्थान स्थान पर चर्चा की जा सकती है । |
साथ ही जिनके माध्यम से इस ग्रन्थ के अनेक विषयों में व्यापक सहभागिता प्राप्त करने का प्रयास हुआ उन प्रश्नावलियों को भी एक साथ रखा गया है । विभिन्न समूहों में इन विषयों पर चर्चा के प्रवर्तन हेतु इनका उपयोग सुलभ बने इस दृष्टि से यह प्रयास किया है । | साथ ही जिनके माध्यम से इस ग्रन्थ के अनेक विषयों में व्यापक सहभागिता प्राप्त करने का प्रयास हुआ उन प्रश्नावलियों को भी एक साथ रखा गया है । विभिन्न समूहों में इन विषयों पर चर्चा के प्रवर्तन हेतु इनका उपयोग सुलभ बने इस दृष्टि से यह प्रयास किया है । |
Revision as of 17:12, 12 December 2020
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प्रथम पर्व के प्रकाश में दूसरे, दूसरे के प्रकाश में तीसरे इस प्रकार क्रमशः पर्वों की रचना हुई है [1]। यह पाँचवा पर्व एक दृष्टि से समापन पर्व है । इस पर्व में कुछ आलेख दिये गये हैं समस्त शिक्षाविचार को सूत्ररूप में प्रस्तुत करते हैं । इनका प्रयोग स्वतन्त्ररूप में भी किया जा सकता है । इनके आधार पर स्थान स्थान पर चर्चा की जा सकती है ।
साथ ही जिनके माध्यम से इस ग्रन्थ के अनेक विषयों में व्यापक सहभागिता प्राप्त करने का प्रयास हुआ उन प्रश्नावलियों को भी एक साथ रखा गया है । विभिन्न समूहों में इन विषयों पर चर्चा के प्रवर्तन हेतु इनका उपयोग सुलभ बने इस दृष्टि से यह प्रयास किया है ।
इस पर्व का, और इस ग्रन्थ का समापन एक सर्वसामान्य प्रश्नोत्तरी से होता है । ये प्रश्न ऐसे हैं जिनकी सर्वत्र चर्चा होती है और सब अपनी अपनी दृष्टि से उनके उत्तर खोजते हैं । यहाँ भारतीय शैक्षिक दृष्टि से इन प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया गया है । अपेक्षा यह है कि शिक्षा के विषय में केवल चिन्ता करने के स्थान पर हम यथासम्भव, यथाशीघ्र प्रत्यक्ष परिवर्तन करने का प्रारम्भ करें ।
References
- ↑ धार्मिक शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे