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७. कुछ लोग भारत में असंख्य छोटे छोटे राज्य थे और अन्दर अन्दर वे लड़ते झगड़ते थे, उन्हें राष्ट्रीय दृष्टि नहीं थी इसलिये राष्ट्रीय संकट के समय भी एक नहीं हुए इसलिये अंग्रेज अपने उद्देश्य में यशस्वी हो गये ऐसा खुलासा देते हैं । परन्तु यह भी स्मरण में रखना चाहिये कि छोटे छोटे राज्य होना कोई इसी समय की घटना नहीं थी । युरगों से भारत इसी प्रकार से विकेन्द्रित रूप में शासन चलाता रहा है तो भी राष्ट्र के रूप में एक ही रहा है । अतः जिस प्रकार अंग्रेजों का दोष नहीं माना जाता उस प्रकार भारत का भी असंगठित होने में तो दोष नहीं ढूँढा जा सकता ।
 
७. कुछ लोग भारत में असंख्य छोटे छोटे राज्य थे और अन्दर अन्दर वे लड़ते झगड़ते थे, उन्हें राष्ट्रीय दृष्टि नहीं थी इसलिये राष्ट्रीय संकट के समय भी एक नहीं हुए इसलिये अंग्रेज अपने उद्देश्य में यशस्वी हो गये ऐसा खुलासा देते हैं । परन्तु यह भी स्मरण में रखना चाहिये कि छोटे छोटे राज्य होना कोई इसी समय की घटना नहीं थी । युरगों से भारत इसी प्रकार से विकेन्द्रित रूप में शासन चलाता रहा है तो भी राष्ट्र के रूप में एक ही रहा है । अतः जिस प्रकार अंग्रेजों का दोष नहीं माना जाता उस प्रकार भारत का भी असंगठित होने में तो दोष नहीं ढूँढा जा सकता ।
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८. अंग्रेजों ने अपने स्वभाव के अनुसार जो कर सकते थे वह किया और भारत अपने स्वभाव और स्थिति के अनुसार उनके साथ व्यवहार किया और उसका परिणाम जो हो सकता था वही हुआ, भारत को अंग्रेजीयत नामक रोग लग गया जो आज तक दुः्साध्य बन कर ही भारत में अपनी जड जमाये हुए है । उस समय के हमारे पूर्वजों को कोसते रहने से रोग दूर होने वाला नहीं है केवल आत्मग्लानि बढ़ने वाली है इसलिये उसमें न उलझकर रोगमुक्त होने में हमारी शक्ति का विनियोग करने की आवश्यकता है । कारण यह भी है कि अपने ही लोगोंं में दोष ढूंढ़ते रहना भी अंग्रेजीयत नामक रोग का ही लक्षण है ।
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८. अंग्रेजों ने अपने स्वभाव के अनुसार जो कर सकते थे वह किया और भारत अपने स्वभाव और स्थिति के अनुसार उनके साथ व्यवहार किया और उसका परिणाम जो हो सकता था वही हुआ, भारत को अंग्रेजीयत नामक रोग लग गया जो आज तक दुः्साध्य बन कर ही भारत में अपनी जड़ जमाये हुए है । उस समय के हमारे पूर्वजों को कोसते रहने से रोग दूर होने वाला नहीं है केवल आत्मग्लानि बढ़ने वाली है इसलिये उसमें न उलझकर रोगमुक्त होने में हमारी शक्ति का विनियोग करने की आवश्यकता है । कारण यह भी है कि अपने ही लोगोंं में दोष ढूंढ़ते रहना भी अंग्रेजीयत नामक रोग का ही लक्षण है ।
    
९. भारत में पदार्पण करने के लगभग देढ सौ वर्ष बाद सन १७५७ में प्लासी के युद्ध के विजय के बाद अंग्रेजों की सत्ता राज्यों पर भी कायम होने लगी | परन्तु हमें यह बात समझने की आवश्यकता है कि शासन करना उनकी प्रथम वरीयता नहीं थी । वे धन की खोज में आये थे । वे येन केन प्रकारेण धन चाहते थे । लूट करने में उन्हें परहेज नहीं था । उस समय सात सागरों में लूट करनेवालों का ही बोलबाला था । उनके लिये लूट करना कोई अस्वाभाविक बात नहीं थी । अतः भारत में भी धन की लूट करना उन का उद्देश्य था । यह प्रथम वरीयता थी। परन्तु सीधा सीधा लूटना एक ही बार सम्भव होता है इसलिये उसे व्यापार का रूप दिया गया । व्यापारी कम्पनी के रूप में वे भारत में आये । व्यापार भी एक बहाना था, कम्पनी भी एक छद्मवेश था।
 
९. भारत में पदार्पण करने के लगभग देढ सौ वर्ष बाद सन १७५७ में प्लासी के युद्ध के विजय के बाद अंग्रेजों की सत्ता राज्यों पर भी कायम होने लगी | परन्तु हमें यह बात समझने की आवश्यकता है कि शासन करना उनकी प्रथम वरीयता नहीं थी । वे धन की खोज में आये थे । वे येन केन प्रकारेण धन चाहते थे । लूट करने में उन्हें परहेज नहीं था । उस समय सात सागरों में लूट करनेवालों का ही बोलबाला था । उनके लिये लूट करना कोई अस्वाभाविक बात नहीं थी । अतः भारत में भी धन की लूट करना उन का उद्देश्य था । यह प्रथम वरीयता थी। परन्तु सीधा सीधा लूटना एक ही बार सम्भव होता है इसलिये उसे व्यापार का रूप दिया गया । व्यापारी कम्पनी के रूप में वे भारत में आये । व्यापार भी एक बहाना था, कम्पनी भी एक छद्मवेश था।

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