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# आचार्य स्वयं के स्वाध्याय के लिये कौन कौन सी सामग्री का उपयोग कर सकता है ?
 
# आचार्य स्वयं के स्वाध्याय के लिये कौन कौन सी सामग्री का उपयोग कर सकता है ?
 
# आवश्यक साधनसामग्री के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ?
 
# आवश्यक साधनसामग्री के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ?
# साधनसामग्री निर्माण करने में किन किन लोगों का सहयोग प्राप्त हो सकता है ? कैसे ?
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# साधनसामग्री निर्माण करने में किन किन लोगोंं का सहयोग प्राप्त हो सकता है ? कैसे ?
 
विद्यालय में प्रयुक्त साधन-सामग्री छात्र एवं आचार्य दोनों के लिए ही उपयोगी होती है, अतः यह प्रश्नावली थोडी बड़ी बनी है ।
 
विद्यालय में प्रयुक्त साधन-सामग्री छात्र एवं आचार्य दोनों के लिए ही उपयोगी होती है, अतः यह प्रश्नावली थोडी बड़ी बनी है ।
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==== शिक्षक द्वारा प्रयुक्त साधन-सामग्री : प्राप्त उत्तर ====
 
==== शिक्षक द्वारा प्रयुक्त साधन-सामग्री : प्राप्त उत्तर ====
विषय वस्तु का अध्यापन सरल एवं सुस्पष्ट हो, अतः साधन-सामग्री का प्रयोग किया जाता है । इसमें प्रयोगशाला के उपकरण, भूगोल के मानचित्र, ग्लोब, कृष्णफलक, डस्टर व चॉक आदि सामग्री शिक्षक के लिए उपयोगी होती है यह सबका मानना है । आजकल सरकार विद्यालयों में विज्ञान पेटी, गणित पेटी आदि निःशुल्क देते है । परन्तु इनका यथायोग्य उपयोग नहीं होता । तालाबन्द पड़ी रहती है और खराब हो जाती है । ऐसे अनेक लोगों के अनुभव हैं । छात्रों की सहायता से चार्ट्स-मॉडल्स आदि बनवाये जाते हैं। परिसर में प्राप्त प्राकृतिक वस्तुएँ भी एक कल्पक शिक्षक उपयोग में ले लेता है ।
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विषय वस्तु का अध्यापन सरल एवं सुस्पष्ट हो, अतः साधन-सामग्री का प्रयोग किया जाता है । इसमें प्रयोगशाला के उपकरण, भूगोल के मानचित्र, ग्लोब, कृष्णफलक, डस्टर व चॉक आदि सामग्री शिक्षक के लिए उपयोगी होती है यह सबका मानना है । आजकल सरकार विद्यालयों में विज्ञान पेटी, गणित पेटी आदि निःशुल्क देते है । परन्तु इनका यथायोग्य उपयोग नहीं होता । तालाबन्द पड़ी रहती है और खराब हो जाती है । ऐसे अनेक लोगोंं के अनुभव हैं । छात्रों की सहायता से चार्ट्स-मॉडल्स आदि बनवाये जाते हैं। परिसर में प्राप्त प्राकृतिक वस्तुएँ भी एक कल्पक शिक्षक उपयोग में ले लेता है ।
    
आजकल ऐसा माना जाने लगा है कि जो शिक्षक जितनी अधिक साधन-सामग्री उपयोग में लाता है, वह उतना ही अच्छा अध्यापक होता है । अतः भी इन सामग्रियों का व्यापार बढ़ता जा रहा है । शिक्षा का बजट खर्च करने हेतु लाखों रुपयों का धन्धा हो रहा है । बहुत बार वह सामग्री अनावश्यक होती है या ऐसी बेकार होती है कि काम में ली नहीं जा सकती । इस प्रकार सरकारी धन का दुरुपयोग होता है ।
 
आजकल ऐसा माना जाने लगा है कि जो शिक्षक जितनी अधिक साधन-सामग्री उपयोग में लाता है, वह उतना ही अच्छा अध्यापक होता है । अतः भी इन सामग्रियों का व्यापार बढ़ता जा रहा है । शिक्षा का बजट खर्च करने हेतु लाखों रुपयों का धन्धा हो रहा है । बहुत बार वह सामग्री अनावश्यक होती है या ऐसी बेकार होती है कि काम में ली नहीं जा सकती । इस प्रकार सरकारी धन का दुरुपयोग होता है ।
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# कक्षाकक्षों में कम से कम सामग्री से अध्ययन करना सिखाना चाहिये । विद्यार्थियों को अपनी स्मरणशक्ति, ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति, कार्यकौशल बढ़ाने हेतु अवसर दिये जाने चाहिये, उनका अपनी शक्ति में विश्वास बढ़ाना चाहिये और शक्तियों का विकास करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये ।  
 
# कक्षाकक्षों में कम से कम सामग्री से अध्ययन करना सिखाना चाहिये । विद्यार्थियों को अपनी स्मरणशक्ति, ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति, कार्यकौशल बढ़ाने हेतु अवसर दिये जाने चाहिये, उनका अपनी शक्ति में विश्वास बढ़ाना चाहिये और शक्तियों का विकास करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये ।  
 
# साधनसामग्री को लेकर आर्थिक चिन्तन विकसित करना चाहिये । अभिभावकों के साथ इस विषयमें बात करनी चाहिये । विद्यार्थियों में इस दृष्टि का विकास करना चाहिये । कुल मिलाकर साधन-सामग्री के उपयोग का विवेक ही सबसे महत्वपूर्ण विषय है । शिक्षक के अनेक गुणों में यह भी एक महत्वपूर्ण गुण है ।  
 
# साधनसामग्री को लेकर आर्थिक चिन्तन विकसित करना चाहिये । अभिभावकों के साथ इस विषयमें बात करनी चाहिये । विद्यार्थियों में इस दृष्टि का विकास करना चाहिये । कुल मिलाकर साधन-सामग्री के उपयोग का विवेक ही सबसे महत्वपूर्ण विषय है । शिक्षक के अनेक गुणों में यह भी एक महत्वपूर्ण गुण है ।  
अनेकों लोगों को अपने महाविद्यालयीन दिनों का स्मरण होगा जब अनेक प्राध्यापक अपने विषय के नोट्स लिखवाते थे और विद्यार्थी लिखते थे । रट्टा मार कर परीक्षा में लिख देते थे और उत्तीर्ण हो जाते थे । अनेक प्राध्यापक ऐसे थे जो विद्यार्थियों को गाइड बुक्स में से प्रश्नों के उत्तर तैयार कर लेने का परामर्श देते थे ।
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अनेकों लोगोंं को अपने महाविद्यालयीन दिनों का स्मरण होगा जब अनेक प्राध्यापक अपने विषय के नोट्स लिखवाते थे और विद्यार्थी लिखते थे । रट्टा मार कर परीक्षा में लिख देते थे और उत्तीर्ण हो जाते थे । अनेक प्राध्यापक ऐसे थे जो विद्यार्थियों को गाइड बुक्स में से प्रश्नों के उत्तर तैयार कर लेने का परामर्श देते थे ।
    
माध्यमिक विद्यालयों में भी प्रश्नों के उत्तर लिखवाना सहज बात थी । अनेक चतुर अथवा आलसी विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकों में ही प्रश्नों के उत्तरों पर निशानी कर लेते हैं ।
 
माध्यमिक विद्यालयों में भी प्रश्नों के उत्तर लिखवाना सहज बात थी । अनेक चतुर अथवा आलसी विद्यार्थी पाठ्यपुस्तकों में ही प्रश्नों के उत्तरों पर निशानी कर लेते हैं ।
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===== केवल सामग्री पर निर्भर नहीं रहा जाता =====
 
===== केवल सामग्री पर निर्भर नहीं रहा जाता =====
सामग्री कितनी भी अच्छी हो तो भी वह निर्जीव होती है । शिक्षा जीवमान व्यक्तियों के मध्य होने वाली जीवमान प्रक्रिया है । इसलिये उसका उपयोग जिन्दा लोगों द्वारा होता है । किसी भी विषय का ज्ञान होने के बाद उस विषय की सामग्री का प्रयोग होना उचित है ।
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सामग्री कितनी भी अच्छी हो तो भी वह निर्जीव होती है । शिक्षा जीवमान व्यक्तियों के मध्य होने वाली जीवमान प्रक्रिया है । इसलिये उसका उपयोग जिन्दा लोगोंं द्वारा होता है । किसी भी विषय का ज्ञान होने के बाद उस विषय की सामग्री का प्रयोग होना उचित है ।
    
===== सामग्री से शिक्षक का महत्व अधिक होना =====
 
===== सामग्री से शिक्षक का महत्व अधिक होना =====
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दो उदाहरण देखने लायक हैं:
 
दो उदाहरण देखने लायक हैं:
# जॉर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक महान नीग्रो कृषितज्ञ एक ऐसे संस्थान में नियुक्त हुए जिसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विकट थी । विज्ञान की कोई प्रयोगशाला ही नहीं थी । बिना प्रयोग किये कोई अनुसन्धान कैसे हो सकता है ? डॉ. कार्वर ने पहले ही दिन अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर नगर भ्रमण किया और लोगों द्वारा कूडे में फेंके हुए डिब्बे, शीशियाँ आदि इकट्टे कर, उन्हें साफ कर प्रयोगशाला के सारे साधन बनाये और प्रयोगशाला सज्ज की। आज भी वह प्रयोगशाला “कार्वर्स म्यूजियम' के रूप में हम देख सकते हैं ।
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# जॉर्ज वॉर्शिंग्टन कार्वर नामक एक महान नीग्रो कृषितज्ञ एक ऐसे संस्थान में नियुक्त हुए जिसकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विकट थी । विज्ञान की कोई प्रयोगशाला ही नहीं थी । बिना प्रयोग किये कोई अनुसन्धान कैसे हो सकता है ? डॉ. कार्वर ने पहले ही दिन अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर नगर भ्रमण किया और लोगोंं द्वारा कूडे में फेंके हुए डिब्बे, शीशियाँ आदि इकट्टे कर, उन्हें साफ कर प्रयोगशाला के सारे साधन बनाये और प्रयोगशाला सज्ज की। आज भी वह प्रयोगशाला “कार्वर्स म्यूजियम' के रूप में हम देख सकते हैं ।
 
# मुनि उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को बता रहे थे कि ब्रह्म है और इस सृष्टि में सर्वत्र है। श्वेतकेतु ने कहा कि कैसे मानें, ब्रह्म तो दिखाई नहीं देता। पिता ने उसे पानी से भरा हुआ लोटा और नमक लाने को कहा। श्वेतकेतु दोनों वस्तुयें लेकर आया, पिता ने उसे नमक को पानी में डालने के लिये और पानी को हिलाने के लिये कहा । पुत्र ने वैसा ही किया । पिता ने पूछा कि नमक कहाँ है । पुत्र ने कहा - पानी में है। पिता ने कहा कि कैसे पता चलता है, जरा चख कर देखो । पुत्र ने कहा कि नमक पानी में है यद्यपि वह दिखाई नहीं देता । पिता ने पुत्र को पानी को ऊपर से, मध्य से और नीचे से चखने को कहा । श्वेतकेतु ने चखकर कहा कि नमक पानी में है और सर्वत्र है । पिता ने कहा कि उसी प्रकार से ब्रह्म भी सृष्टि में है और सर्वत्र है।
 
# मुनि उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को बता रहे थे कि ब्रह्म है और इस सृष्टि में सर्वत्र है। श्वेतकेतु ने कहा कि कैसे मानें, ब्रह्म तो दिखाई नहीं देता। पिता ने उसे पानी से भरा हुआ लोटा और नमक लाने को कहा। श्वेतकेतु दोनों वस्तुयें लेकर आया, पिता ने उसे नमक को पानी में डालने के लिये और पानी को हिलाने के लिये कहा । पुत्र ने वैसा ही किया । पिता ने पूछा कि नमक कहाँ है । पुत्र ने कहा - पानी में है। पिता ने कहा कि कैसे पता चलता है, जरा चख कर देखो । पुत्र ने कहा कि नमक पानी में है यद्यपि वह दिखाई नहीं देता । पिता ने पुत्र को पानी को ऊपर से, मध्य से और नीचे से चखने को कहा । श्वेतकेतु ने चखकर कहा कि नमक पानी में है और सर्वत्र है । पिता ने कहा कि उसी प्रकार से ब्रह्म भी सृष्टि में है और सर्वत्र है।
 
यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
 
यह संकल्पना सबके ट्वारा सबको सदा-सर्वदा एक ही तरीके से नहीं सिखाई जाती । स्थान, समय, शिक्षक, विद्यार्थी, परिस्थिति के सन्दर्भ में वह विशेष रूप से सिखाई जाती है । तात्पर्य यह है कि सामग्री नहीं शिक्षक ही अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
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===== यज्ञ =====
 
===== यज्ञ =====
भारत की संस्कृति यज्ञसंस्कृति है । सृष्टि और समष्टि के लिये आवश्यक त्याग करना और उन्हें सन्तुष्ट करना ही यज्ञ है। ना समझ लोग इसे कुछ उपयोगी पदार्थों को जलाना कहते हैं। यज्ञ के सांस्कृतिक और भौतिक वैज्ञानिक खुलासे तो अनेक हैं परन्तु उन्हें ये खुलासे जानने का धैर्य नहीं होता और मानने का साहस नहीं होता । परन्तु जानकार और समझदार लोगों ने विचार कर लोगों को समझाना चाहिये । विशेषकर विद्यालयों में तो इसका प्रारम्भ हो ही सकता है ।
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भारत की संस्कृति यज्ञसंस्कृति है । सृष्टि और समष्टि के लिये आवश्यक त्याग करना और उन्हें सन्तुष्ट करना ही यज्ञ है। ना समझ लोग इसे कुछ उपयोगी पदार्थों को जलाना कहते हैं। यज्ञ के सांस्कृतिक और भौतिक वैज्ञानिक खुलासे तो अनेक हैं परन्तु उन्हें ये खुलासे जानने का धैर्य नहीं होता और मानने का साहस नहीं होता । परन्तु जानकार और समझदार लोगोंं ने विचार कर लोगोंं को समझाना चाहिये । विशेषकर विद्यालयों में तो इसका प्रारम्भ हो ही सकता है ।
    
===== मध्यावकाश का भोजन अथवा अल्पाहार =====
 
===== मध्यावकाश का भोजन अथवा अल्पाहार =====
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* भोजनमन्त्र बोलकर ही भोजन किया जाय ।
 
* भोजनमन्त्र बोलकर ही भोजन किया जाय ।
 
* गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय ।
 
* गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय ।
* आसपास के लोगों के साथ बाँटकर भोजन किया जाय ।
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* आसपास के लोगोंं के साथ बाँटकर भोजन किया जाय ।
 
* थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना और पोछकर  व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
 
* थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना और पोछकर  व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
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===== प्रत्यक्ष वार्तालाप से प्राप्त उत्तर =====
 
===== प्रत्यक्ष वार्तालाप से प्राप्त उत्तर =====
इस संबंध में जो प्रश्नावली दो तीन लोगों को भरवाने के लिए भेजी गयी वे नियोजित समय से प्राप्त नहीं हुई । अतः अनेक लोगों से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनके उत्तर और अनुभव यहा सम्मिलित किये है ।
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इस संबंध में जो प्रश्नावली दो तीन लोगोंं को भरवाने के लिए भेजी गयी वे नियोजित समय से प्राप्त नहीं हुई । अतः अनेक लोगोंं से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनके उत्तर और अनुभव यहा सम्मिलित किये है ।
    
अध्ययन अध्यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त एवं पूरक भूमिका पुस्तकालय की होती है । ग्रंथ एवं पुस्तके ज्ञाननिधी है। जहा ज्ञान की साधना होती है वहाँ पुस्तकालय अनिवार्य है । विद्यालय का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक अथवा उच्चशिक्षा भले ही हो स्तर के अनुसार पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या रहे । विद्यार्थी संख्या तथा पुस्तकों की संख्या इनका अनुपात कम से कम १:१० होना चाहिए ।
 
अध्ययन अध्यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त एवं पूरक भूमिका पुस्तकालय की होती है । ग्रंथ एवं पुस्तके ज्ञाननिधी है। जहा ज्ञान की साधना होती है वहाँ पुस्तकालय अनिवार्य है । विद्यालय का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक अथवा उच्चशिक्षा भले ही हो स्तर के अनुसार पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या रहे । विद्यार्थी संख्या तथा पुस्तकों की संख्या इनका अनुपात कम से कम १:१० होना चाहिए ।
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* पुस्तकालय में खाना, चाय पीना, शोर मचाना, अशिष्ट बातें करना, अशिष्ट भाषा प्रयोग करना वर्जित होना चाहिये ।
 
* पुस्तकालय में खाना, चाय पीना, शोर मचाना, अशिष्ट बातें करना, अशिष्ट भाषा प्रयोग करना वर्जित होना चाहिये ।
 
* पुस्तकालय में ज्ञान की देवी सरस्वती की प्रतिमा और ज्ञान के आदि ग्रन्थ वेद पूजा स्थान में रखने से पुस्तकालय का सम्मान होता है । वातावरण और मानसिकता पवित्र बनते हैं।   
 
* पुस्तकालय में ज्ञान की देवी सरस्वती की प्रतिमा और ज्ञान के आदि ग्रन्थ वेद पूजा स्थान में रखने से पुस्तकालय का सम्मान होता है । वातावरण और मानसिकता पवित्र बनते हैं।   
पुस्तकालय का सम्मान करने का दूसरा आयाम है उसका उपयोग करना । विद्यालय के मुख्याध्यायक से लेकर छोटी से छोटी कक्षा के छोटे से छोटे विद्यार्थी तक सभी लोगों में वाचन संस्कृति का विकास होना चाहिये । पुस्तक पढने का रस निर्मिण करना शिक्षाक्रम का अत्यन्त महत्वपूर्ण आयाम है ।
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पुस्तकालय का सम्मान करने का दूसरा आयाम है उसका उपयोग करना । विद्यालय के मुख्याध्यायक से लेकर छोटी से छोटी कक्षा के छोटे से छोटे विद्यार्थी तक सभी लोगोंं में वाचन संस्कृति का विकास होना चाहिये । पुस्तक पढने का रस निर्मिण करना शिक्षाक्रम का अत्यन्त महत्वपूर्ण आयाम है ।
    
इस दृष्टि से सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लायक पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिये । शिशुओं के लिये चित्रपुस्तिकाओं से लेकर देशविदेश के लेखकों की विभिन्न विषयों की. गम्भीर अध्यनय करने लायक पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिये ।
 
इस दृष्टि से सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लायक पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिये । शिशुओं के लिये चित्रपुस्तिकाओं से लेकर देशविदेश के लेखकों की विभिन्न विषयों की. गम्भीर अध्यनय करने लायक पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिये ।
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* कक्षा पुस्तकालय की सभी पुस्तकें सभी विद्यार्थियों ने पढ़ी हुई हों ऐसी अपेक्षा करनी चाहिये ।  
 
* कक्षा पुस्तकालय की सभी पुस्तकें सभी विद्यार्थियों ने पढ़ी हुई हों ऐसी अपेक्षा करनी चाहिये ।  
 
* कक्षा में पढ़ाई हेतु जो विषय और पाठ्यक्रम होता है उससे सम्बन्धित पुस्तकें कक्षा पुस्तकालय में होनी चाहिये ताकि उन्हें पढ़ने से विद्यार्थियों की समझ स्पष्ट हो और जानकारी बढे ।  
 
* कक्षा में पढ़ाई हेतु जो विषय और पाठ्यक्रम होता है उससे सम्बन्धित पुस्तकें कक्षा पुस्तकालय में होनी चाहिये ताकि उन्हें पढ़ने से विद्यार्थियों की समझ स्पष्ट हो और जानकारी बढे ।  
* कक्षाकक्ष के पुस्तकालय के समान ही प्रत्येक घरमें पुस्तकालय हो ऐसा आग्रह होना चाहिये । शिक्षित व्यक्ति के घर की शोभा पुस्तकें ही होती हैं । शिक्षित लोगों का व्यसन पुस्तक पढ़ना होता है । घर में बड़ों और छोटों सबके लिये पुस्तकें होनी चाहिये । सब साथ मिलकर पढते हों ऐसी कल्पना भी रम्य है।  
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* कक्षाकक्ष के पुस्तकालय के समान ही प्रत्येक घरमें पुस्तकालय हो ऐसा आग्रह होना चाहिये । शिक्षित व्यक्ति के घर की शोभा पुस्तकें ही होती हैं । शिक्षित लोगोंं का व्यसन पुस्तक पढ़ना होता है । घर में बड़ों और छोटों सबके लिये पुस्तकें होनी चाहिये । सब साथ मिलकर पढते हों ऐसी कल्पना भी रम्य है।  
 
* विद्यालय के सभी पुरस्कार पुस्तक के रूप में देने का प्रचलन बढ़ाना चाहिये ।  
 
* विद्यालय के सभी पुरस्कार पुस्तक के रूप में देने का प्रचलन बढ़ाना चाहिये ।  
 
* विद्यालय में जब भी नई पुस्तकें आयें उनकी सम्मानपूर्वक शोभायात्रा निकाली जाय, पूजा की जाय और बाद में पुस्तकालय में स्थापित की जाय । सम्मान करने के और तरीके भी सोचे जाय ।  
 
* विद्यालय में जब भी नई पुस्तकें आयें उनकी सम्मानपूर्वक शोभायात्रा निकाली जाय, पूजा की जाय और बाद में पुस्तकालय में स्थापित की जाय । सम्मान करने के और तरीके भी सोचे जाय ।  
* एक खाने का पदार्थ, पहनने का वस्त्र, खेलने की वस्तु न खरीदकर पुस्तक खरीदी जाय इस के लिये विद्यार्थियों को प्रेरित करना चाहिये । आजकल पुस्तकों के पर्याय के रूप में अनेक प्रकार की दृश्यश्राव्य सामग्री का प्रचलन बढा है। ये अधिक प्रभावी हैं ऐसा भी बोला जाता है। परन्तु अनुभवी और जानकार लोगों का कहना है कि स्थायी प्रभाव की दृष्टि से यह सामग्री पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकती । पुस्तकों से अधिक प्रभावी प्रत्यक्ष वार्तालाप, प्रत्यक्ष शिक्षा या प्रत्यक्ष भाषण ही हो सकता है। अन्य सभी बातों का क्रम बाद में ही आता है। इस दृष्टि से पुस्तकों का महत्व स्थापित करना चाहिये।
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* एक खाने का पदार्थ, पहनने का वस्त्र, खेलने की वस्तु न खरीदकर पुस्तक खरीदी जाय इस के लिये विद्यार्थियों को प्रेरित करना चाहिये । आजकल पुस्तकों के पर्याय के रूप में अनेक प्रकार की दृश्यश्राव्य सामग्री का प्रचलन बढा है। ये अधिक प्रभावी हैं ऐसा भी बोला जाता है। परन्तु अनुभवी और जानकार लोगोंं का कहना है कि स्थायी प्रभाव की दृष्टि से यह सामग्री पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकती । पुस्तकों से अधिक प्रभावी प्रत्यक्ष वार्तालाप, प्रत्यक्ष शिक्षा या प्रत्यक्ष भाषण ही हो सकता है। अन्य सभी बातों का क्रम बाद में ही आता है। इस दृष्टि से पुस्तकों का महत्व स्थापित करना चाहिये।
    
===== पुस्तकों का जतन करना =====
 
===== पुस्तकों का जतन करना =====
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* पुस्तकों को व्यवस्थित रखना सिखाना चाहिये । वे फटे नहीं, उनका बन्धन शिथिल न हो ऐसी सावधानी रखना सिखाना चाहिये ।
 
* पुस्तकों को व्यवस्थित रखना सिखाना चाहिये । वे फटे नहीं, उनका बन्धन शिथिल न हो ऐसी सावधानी रखना सिखाना चाहिये ।
 
* पुस्तकों को आवरण चढाना सिखाना चाहिये ।  
 
* पुस्तकों को आवरण चढाना सिखाना चाहिये ।  
* घर के पुस्तकालय को व्यवस्थित रखने का काम घर में रहनेवाले विद्यार्थियों का होना चाहिये । उन्हें यह सिखाने का काम घर के बड़े लोगों का है।  
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* घर के पुस्तकालय को व्यवस्थित रखने का काम घर में रहनेवाले विद्यार्थियों का होना चाहिये । उन्हें यह सिखाने का काम घर के बड़े लोगोंं का है।  
 
* विद्यालय के पुस्तकों की स्वच्छता, सम्हाल, उन्हें आवरण चढाने का काम विद्यार्थियों की शिक्षा का एक अंग होना चाहिये।  
 
* विद्यालय के पुस्तकों की स्वच्छता, सम्हाल, उन्हें आवरण चढाने का काम विद्यार्थियों की शिक्षा का एक अंग होना चाहिये।  
 
* पंजिका के साथ पुस्तकों का मिलान करने का काम भी विद्यार्थियों को सिखाना चाहिये ।  
 
* पंजिका के साथ पुस्तकों का मिलान करने का काम भी विद्यार्थियों को सिखाना चाहिये ।  

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