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| ==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ==== | | ==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ==== |
− | जो बातें लिखित स्वरूप की होती हैं उनकी जाँच शिक्षक को करनी तो चाहिए ही, परंतु यह कार्य अत्यन्त परेशान करने वाला होता है। बहुत समय उसमें जाता है । उतना समय उसके लिए दिया जाय तो अध्ययन जैसी अन्य आवश्यक बातों के लिए समय नहीं रहता। कई स्थानों पर शिक्षकों के लिए कापियाँ जाँचने का कार्य अनिवार्य किया जाता है, परंतु यह अविश्वास के कारण होता है । शिक्षक जहाँ अधिक विश्वासपात्र होते हैं, वहाँ ऐसा अविश्वास नहीं होता । विश्वास के वातावरण में लिखित गृहकार्य और उसे जाँचने की अनिवार्यता नहीं होगी । तब लिखित कार्य जाँचने की वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षक अधिक अध्ययन करने के लिए समय प्राप्त कर सकता है । लिखित गृहकार्य जाँचने के लिए अभिभावकों की तथा स्वयं छात्रों की सहायता ली जा सकती है । यहाँ भी परस्पर सौहार्द और विश्वास की आवश्यकता रहेगी । सौहार्द नहीं रहा तो अभिभावक कहते हैं की यह काम शिक्षक का है, उसे वेतन ऐसे कामों के लिए ही दिया जाता है । छात्रों को यह काम नहीं देना चाहिए क्योंकि एक तो वे इस काम के लिए नहीं आते हैं, पढ़ने के लिए आते हैं, और दूसरा, वे विश्वसनीय नहीं हैं । छात्रों की अविश्वसनीयता और अक्षमता के कारण और छात्रों पर अन्याय होता है, इसलिये यह कार्य उन्हें नहीं सॉपना चाहिये । ऐसा तर्क अभिभावकों और संचालकों का रहता है । इसका और इसके जैसे अन्य प्रश्नों का समाधान तो सज्जनता और विश्वास बढ़ाने का ही है , अन्य किसी भी उपायों से विश्वास का संकट दूर नहीं हो सकता । गृहकार्य यदि लिखित है तो स्वयं सुधार हो सके ऐसा होना चाहिए ताकि छात्र अपने आप ही अपना गृहकार्य जाँच सकें । | + | जो बातें लिखित स्वरूप की होती हैं उनकी जाँच शिक्षक को करनी तो चाहिए ही, परंतु यह कार्य अत्यन्त परेशान करने वाला होता है। बहुत समय उसमें जाता है । उतना समय उसके लिए दिया जाय तो अध्ययन जैसी अन्य आवश्यक बातों के लिए समय नहीं रहता। कई स्थानों पर शिक्षकों के लिए कापियाँ जाँचने का कार्य अनिवार्य किया जाता है, परंतु यह अविश्वास के कारण होता है । शिक्षक जहाँ अधिक विश्वासपात्र होते हैं, वहाँ ऐसा अविश्वास नहीं होता । विश्वास के वातावरण में लिखित गृहकार्य और उसे जाँचने की अनिवार्यता नहीं होगी । तब लिखित कार्य जाँचने की वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षक अधिक अध्ययन करने के लिए समय प्राप्त कर सकता है । लिखित गृहकार्य जाँचने के लिए अभिभावकों की तथा स्वयं छात्रों की सहायता ली जा सकती है । यहाँ भी परस्पर सौहार्द और विश्वास की आवश्यकता रहेगी । सौहार्द नहीं रहा तो अभिभावक कहते हैं की यह काम शिक्षक का है, उसे वेतन ऐसे कामों के लिए ही दिया जाता है । छात्रों को यह काम नहीं देना चाहिए क्योंकि एक तो वे इस काम के लिए नहीं आते हैं, पढ़ने के लिए आते हैं, और दूसरा, वे विश्वसनीय नहीं हैं । छात्रों की अविश्वसनीयता और अक्षमता के कारण और छात्रों पर अन्याय होता है, इसलिये यह कार्य उन्हें नहीं सौंपना चाहिये । ऐसा तर्क अभिभावकों और संचालकों का रहता है । इसका और इसके जैसे अन्य प्रश्नों का समाधान तो सज्जनता और विश्वास बढ़ाने का ही है , अन्य किसी भी उपायों से विश्वास का संकट दूर नहीं हो सकता । गृहकार्य यदि लिखित है तो स्वयं सुधार हो सके ऐसा होना चाहिए ताकि छात्र अपने आप ही अपना गृहकार्य जाँच सकें । |
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| जो भी प्रायोगिक कार्य दिया होता है, उसकी जाँच भी प्रायोगिक पद्धति से ही होती है । वह इतनी व्यक्ति और कार्यसापेक्ष होती है कि उसको नियमों में बांधना संभव नहीं होता है । अतः उसकी चर्चा नहीं करेंगे । गृहकार्य के संबंध में इतनी चर्चा पर्याप्त है । | | जो भी प्रायोगिक कार्य दिया होता है, उसकी जाँच भी प्रायोगिक पद्धति से ही होती है । वह इतनी व्यक्ति और कार्यसापेक्ष होती है कि उसको नियमों में बांधना संभव नहीं होता है । अतः उसकी चर्चा नहीं करेंगे । गृहकार्य के संबंध में इतनी चर्चा पर्याप्त है । |
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| ===== पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा ===== | | ===== पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा ===== |
− | इसमें पक्षियों को दाना डालना एवं उन्होंने की हुई अस्वच्छता स्वच्छ करना ये दो प्रकार के काम होंगे विद्यालय के ५-६ बच्चों का गट प्रार्थना में न बैठे उस समय यह काम करेगा । एक सप्ताह के बाद गट बदलेगा काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा चावल) पक्षिओं द्वारा की हुई गंदगी साफ करना | + | इसमें पक्षियों को दाना डालना एवं उनकी की हुई अस्वच्छता स्वच्छ करना - ये दो प्रकार के काम होंगे। विद्यालय के ५-६ बच्चों का समूह प्रार्थना में न बैठे, उस समय यह काम करे। एक सप्ताह के बाद समूह बदलेगा काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा चावल) । पक्षियों द्वारा की हुई गंदगी साफ करना । |
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| ====== शैक्षिक मूल्य ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
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| ===== वृक्ष वनस्पति सेवा ===== | | ===== वृक्ष वनस्पति सेवा ===== |
− | पौंधो को पानी पिलाना, वृक्षों के तनों को रंग लगाना, पतझड में गिरे हुई पत्ते, कचरा इकट्ठा करना, गमले साफ रखना, पौधों को खाद देना इत्यादी प्रकार के काम सेवाकार्य ही हैं । १० बालकों का गट बनाना, गट प्रमुख बनाना। इससे कार्यविभाजन होगा। खेल के कालांश में यह सेवाकार्य करना । | + | पौंधो को पानी पिलाना, वृक्षों के तनों को रंग लगाना, पतझड में गिरे हुई पत्ते, कचरा इकट्ठा करना, गमले साफ रखना, पौधों को खाद देना इत्यादि काम सेवाकार्य ही हैं। १० बालकों का गट बनाना, गट प्रमुख बनाना। इससे कार्यविभाजन होगा। खेल के कालांश में यह सेवाकार्य करना । |
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| ====== शैक्षिक मूल्य ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
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| ====== उपाय ====== | | ====== उपाय ====== |
− | इस गतिविधी का स्वरूप और महत्व छात्रों को समझाना । शिक्षक ने थोडीबहुत देखरेख रखना । किताबी पढ़ाई से हटकर इस अभ्यास से छात्रों की मनःस्थिति में अच्छा बदलाव आता है । फिर अभिभावक भी शिकायत नहीं करेंगे । | + | इस गतिविधि का स्वरूप और महत्व छात्रों को समझाना। शिक्षक को थोड़ी बहुत देखरेख रखना। किताबी पढ़ाई से हटकर इस अभ्यास से छात्रों की मनःस्थिति में अच्छा बदलाव आता है। फिर अभिभावक भी शिकायत नहीं करेंगे। |
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| ===== स्वच्छता ===== | | ===== स्वच्छता ===== |
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| ====== अवरोध ====== | | ====== अवरोध ====== |
− | कुछ बालक काम करेंगे, कुछ मस्ती | + | कुछ बालक काम करेंगे, कुछ मस्ती। |
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| ====== उपाय ====== | | ====== उपाय ====== |
− | अच्छे काम करने वालों का गौरव करना । न करनेवालों को डाँट नहीं, अपितु उनकी समझ बढ़ाना । कक्षाचार्य ने स्वयं इसमें सहभागी होना । | + | अच्छे काम करने वालों का गौरव करना । न करनेवालों को डाँट नहीं, अपितु उनकी समझ बढ़ाना । कक्षाचार्य द्वारा स्वयं इसमें सहभागी होना । |
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| ===== वन्दना ===== | | ===== वन्दना ===== |
− | विद्यालय सरस्वती का मन्दिर है । अध्ययन रोज उसी की वन्दना से आरम्भ होना चाहिये । पूजन करना शुद्ध एवं सुस्वर में वन्दना करना। वन्दना मे शिक्षक, मुख्याध्यापक, उपस्थित अतिथि एवं अभिभावकों को भी सम्मिलित करें । | + | विद्यालय सरस्वती का मन्दिर है। अध्ययन रोज उसी की वन्दना से आरम्भ होना चाहिये। पूजन करना शुद्ध एवं सुस्वर में वन्दना करना। वन्दना मे शिक्षक, मुख्याध्यापक, उपस्थित अतिथि एवं अभिभावकों को भी सम्मिलित करें । |
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| ====== शैक्षिकमूल्य ====== | | ====== शैक्षिकमूल्य ====== |
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| ===== कारसेवा एवं यज्ञ ===== | | ===== कारसेवा एवं यज्ञ ===== |
− | विद्यालय में अग्निहोत्र नित्य करें । विद्यालय की ५ वीं से ऊपर की कक्षाओं में से प्रतिदिन एक कक्षा के छात्र अग्निहोत्र करे । उस समय वे वन्दना में नहीं जायेंगे । बैठक व्यवस्था करना, यज्ञ की सामग्री रखना, बाद में उठाकर यथास्थान रखना, ४ छात्रों द्वारा प्रत्यक्ष हवन करना, इस प्रकार की योजना बने । उपरोक्त सर्व गतिविधियों में कुछ न कुछ कारसेवा हर विद्यार्थी को करनी ही है। अतः अलग से कारसेवा न लगाए तो भी चलेगा। | + | विद्यालय में अग्निहोत्र नित्य करें । विद्यालय की ५वीं से ऊपर की कक्षाओं में से प्रतिदिन एक कक्षा के छात्र अग्निहोत्र करे। उस समय वे वन्दना में नहीं जायेंगे। बैठक व्यवस्था करना, यज्ञ की सामग्री रखना, बाद में उठाकर यथास्थान रखना, ४ छात्रों द्वारा प्रत्यक्ष हवन करना, इस प्रकार की योजना बने। उपरोक्त सर्व गतिविधियों में कुछ न कुछ कारसेवा हर विद्यार्थी को करनी ही है। अतः अलग से कारसेवा न लगाए तो भी चलेगा। |
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| ====== शैक्षिक मूल्य ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
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| ====== उपाय ====== | | ====== उपाय ====== |
− | समिधा इकट्ठी कर सकते हैं। घी खर्च होगा परंतु अन्य उपलब्धिओं की तुलना मे खर्च नगण्य है । घी जलकर नष्ट होता है और वह फिजूल खर्च है, यह विचार दूर करे। | + | समिधा इकट्ठी कर सकते हैं। घी खर्च होगा परंतु अन्य उपलब्धिओं की तुलना मे खर्च नगण्य है। घी जलकर नष्ट होता है और वह फिजूल खर्च है, यह विचार दूर करे। |
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| ===== व्यायाम ===== | | ===== व्यायाम ===== |
− | दिन भर के समयपत्रक मे रोज १५ मिनिट व्यायाम के लिए निकालना चाहिये । व्यायाम का स्वरूप छात्रों की आयु के अनुसार निश्चित करें । वर्गशिक्षक रोज उपस्थिति लेता है उसी प्रकार व्यायाम भी अनिवार्य रूप से हो ।
| + | दिनभर के समयपत्रक मे रोज १५ मिनिट व्यायाम के लिए निकालना चाहिये। व्यायाम का स्वरूप छात्रों की आयु के अनुसार निश्चित करें। वर्गशिक्षक रोज उपस्थिति लेता है, उसी प्रकार व्यायाम भी अनिवार्य रूप से हो। |
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| ====== शैक्षिक मूल्य ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
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| ====== अवरोध ====== | | ====== अवरोध ====== |
− | शिक्षक ही प्रमुख रूप से इसमें अवरोध है । येन केन प्रकारेण इसे मुख्याध्यापक ही दूर करे । | + | शिक्षक ही प्रमुख रूप से इसमें अवरोध है। येन केन प्रकारेण इसे मुख्याध्यापक ही दूर करे। |
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| ===== योगाभ्यास ===== | | ===== योगाभ्यास ===== |
− | नित्य वंदना के बाद १० मिनिट प्रार्थना कक्ष में ही योगाभ्यास हो । योगाभ्यास अर्थात् केवल आसन प्राणायाम ही नहीं । अनेक प्रकार से इसका अभ्यास हो सकता है । | + | नित्य वंदना के बाद १० मिनिट प्रार्थना कक्ष में ही योगाभ्यास हो। योगाभ्यास अर्थात् केवल आसन प्राणायाम ही नहीं। अनेक प्रकार से इसका अभ्यास हो सकता है। |
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| ====== शैक्षिक मूल्य ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
− | छात्रों की ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति बढ़ती है उसका प्रयोग और मापन करके देखे । | + | छात्रों की ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति बढ़ती है उसका प्रयोग और मापन करके देखे। |
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| ====== अवरोध ====== | | ====== अवरोध ====== |
− | शिक्षक को इस विषय मे रुचि और महत्व कम रहता है, समझ कम और श्रम ज्यादा होते है । | + | शिक्षक को इस विषय मे रुचि और महत्व कम रहता है, समझ कम और श्रम ज्यादा होते है। |
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| ====== उपाय ====== | | ====== उपाय ====== |
− | योग्य एवं जानकार व्यक्ति से इसे ठीक से समझ ले, अभिभावकों से भी अनुकूलता प्राप्त करे । | + | योग्य एवं जानकार व्यक्ति से इसे ठीक से समझ ले, अभिभावकों से भी अनुकूलता प्राप्त करे। |
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| ===== साजसज्जा ===== | | ===== साजसज्जा ===== |
− | नियमित रूप से भले अल्पमात्रा मे साजसज्जा अवश्य करे । सभी चीजे यथास्थान रखना वर्ग मे गुलदस्ता सजाना और अन्य कई प्रकार हो सकते है । | + | नियमित रूप से भले अल्पमात्रा मे साजसज्जा अवश्य करे। सभी चीजे यथास्थान रखना वर्ग मे गुलदस्ता सजाना और अन्य कई प्रकार हो सकते है। |
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| ====== शैक्षिक मूल्य ====== | | ====== शैक्षिक मूल्य ====== |
− | कलागुणों में वृद्धि, सौन्दर्य दृष्टि बढती है, कल्पकता का आनंद एवं उत्साह वर्धन होता है । इस काम का नियोजन व पालन व्यवस्थित करना अन्यथा साजसज्जा कम और गडबड ज्यादा जैसा होगा । | + | कलागुणों में वृद्धि, सौन्दर्य दृष्टि बढती है, कल्पकता का आनंद एवं उत्साह वर्धन होता है । इस काम का नियोजन व पालन व्यवस्थित करना अन्यथा साजसज्जा कम और गडबड ज्यादा जैसा होगा। |
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| ===== गुरुसेवा गुरु वन्दना ===== | | ===== गुरुसेवा गुरु वन्दना ===== |
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| ===== भोजन ===== | | ===== भोजन ===== |
− | मध्यावकाश को भोजन के रूप में यह विद्यालयों में होने वाली नित्य गतिविधि है । भोजन बडा संस्कार है । अन्न से शरीर और मन की पुष्टि होती है । इस विषय में विस्तृत विवेचन मध्यावकाश का भोजन इस प्रश्नावली में किया है । | + | मध्यावकाश को भोजन के रूप में यह विद्यालयों में होने वाली नित्य गतिविधि है। भोजन बडा संस्कार है। अन्न से शरीर और मन की पुष्टि होती है। इस विषय में विस्तृत विवेचन मध्यावकाश का भोजन इस प्रश्नावली में किया है। |
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− | पाँच छ घण्टे के विद्यालय में ऐसी गतिविधियाँ संभव है । उसके लिए खर्च अधिक नहीं आता । कल्पकता एवं उत्कृष्ट योजकता मात्र आवश्यक है। मानसिकता भी आवश्यक है । आज विद्यालयों में ये गतिविधियाँ करवाना झंझट, बोझ भी लग सकता है । परन्तु धार्मिक शिक्षा का प्रयोग करना है तो सब समझकर करना । छात्रों को इनका अच्छा परिणाम मिलेगा । शिक्षक एवं अभिभावकों को छात्रो के व्यवहार में अनुकूल परिवर्तन अवश्य दिखेगा । | + | पाँच छ: घण्टे के विद्यालय में ऐसी गतिविधियाँ संभव है। उसके लिए खर्च अधिक नहीं आता। कल्पकता एवं उत्कृष्ट योजकता मात्र आवश्यक है। मानसिकता भी आवश्यक है। आज विद्यालयों में ये गतिविधियाँ करवाना झंझट, बोझ भी लग सकता है। परन्तु धार्मिक शिक्षा का प्रयोग करना है तो सब समझकर करना। छात्रों को इनका अच्छा परिणाम मिलेगा। शिक्षक एवं अभिभावकों को छात्रो के व्यवहार में अनुकूल परिवर्तन अवश्य दिखेगा। |
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| ==== विमर्श ==== | | ==== विमर्श ==== |
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| ===== प्रार्थना ===== | | ===== प्रार्थना ===== |
− | प्रार्थना से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है । पृथ्वी को तो हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं.... | + | प्रार्थना से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है । पृथ्वी को तो हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं: |
| * जो भी करें शास्त्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। | | * जो भी करें शास्त्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। |
| * फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है । | | * फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है । |
− | * प्रार्थथा शुद्ध स्वर और शुद्ध उच्चारण से गाई जानी चाहिये । सरस्वती वाणी और संगीत दोनों की देवता है । बेसूरा गायन, बेसूरे और बेढब वाद्य और बेताल वादन, चिल्ला चिल्ला कर गाना, गलत उच्चारण करना उसे मान्य नहीं है। वह इसे क्षमा नहीं करेगी । कृपा करने की तो बात ही दूर की है । | + | * प्रार्थना शुद्ध स्वर और शुद्ध उच्चारण से गाई जानी चाहिये । सरस्वती वाणी और संगीत दोनों की देवता है । बेसुरा गायन, बेसुरे और बेढब वाद्य और बेताल वादन, चिल्ला चिल्ला कर गाना, गलत उच्चारण करना उसे मान्य नहीं है। वह इसे क्षमा नहीं करेगी । कृपा करने की तो बात ही दूर की है । |
− | * प्रार्थना सभा का वातावरण पवित्र होना भी उतना ही आवश्यक है । यदि हम कर सकें तो प्रार्थनाकक्ष में प्रार्थना के अलावा मौन रहना, अन्य किसी प्रकार की बातें नहीं करना भी होना चाहिये । अधिकांश विद्यालयों में विद्यालय का प्रारम्भ सभा से होता है । जिसमें सूचनायें, समाचार वाचन, पंचांग कथन, किसी विद्यार्थी या कक्षा की प्रस्तुति, शिक्षक द्वारा प्रेरक उदूबोधन होता है और इस सभा का एक अंग प्रार्थथा है। यह विद्यालय के कामकाज का उपयोगितावादी दृष्टिकोण है जिससे प्रार्थना का महत्व कम हो जाता है । | + | * प्रार्थना सभा का वातावरण पवित्र होना भी उतना ही आवश्यक है । यदि हम कर सकें तो प्रार्थनाकक्ष में प्रार्थना के अलावा मौन रहना, अन्य किसी प्रकार की बातें नहीं करना भी होना चाहिये । अधिकांश विद्यालयों में विद्यालय का प्रारम्भ सभा से होता है । जिसमें सूचनायें, समाचार वाचन, पंचांग कथन, किसी विद्यार्थी या कक्षा की प्रस्तुति, शिक्षक द्वारा प्रेरक उदूबोधन होता है और इस सभा का एक अंग प्रार्थना है। यह विद्यालय के कामकाज का उपयोगितावादी दृष्टिकोण है जिससे प्रार्थना का महत्व कम हो जाता है । |
| * एक बात विशेष उल्लेखनीय है । कई विद्यालयों में प्रार्थना केवल विद्यार्थियों के लिये होती है । कुछ विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षकगण प्रार्थना में सहभागी होता है परन्तु लगभग एक भी विद्यालय ऐसा नहीं है जहाँ सेवक, कार्यालयीन कर्मचारी, या उसी समय उपस्थित अभिभावक प्रार्थना में सम्मिलित होते हों । यह अवश्य आश्चर्यकारक है । | | * एक बात विशेष उल्लेखनीय है । कई विद्यालयों में प्रार्थना केवल विद्यार्थियों के लिये होती है । कुछ विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षकगण प्रार्थना में सहभागी होता है परन्तु लगभग एक भी विद्यालय ऐसा नहीं है जहाँ सेवक, कार्यालयीन कर्मचारी, या उसी समय उपस्थित अभिभावक प्रार्थना में सम्मिलित होते हों । यह अवश्य आश्चर्यकारक है । |
| * और एक आश्चर्यकारक बात यह है कि महाविद्यालय और विश्वविद्यालय ऐसे विद्याकेन्द्र हैं जहाँ प्रार्थना अनिवार्य या आवश्यक नहीं मानी जाती । अपवाद स्वरूप ही कहीं प्रार्थना होती दिखाई देती है । | | * और एक आश्चर्यकारक बात यह है कि महाविद्यालय और विश्वविद्यालय ऐसे विद्याकेन्द्र हैं जहाँ प्रार्थना अनिवार्य या आवश्यक नहीं मानी जाती । अपवाद स्वरूप ही कहीं प्रार्थना होती दिखाई देती है । |
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| ===== संकल्प ===== | | ===== संकल्प ===== |
− | विद्यालयों को यह परिचित नहीं है परन्तु भारत में हर शुभ कार्य के प्रारम्भ में संकल्प किया जाता है जिसमें स्थान, काल, उद्देश्य आदि का उच्चारण किया जाता है । यह परिचित नहीं होने का एक कारण यह भी है कि इस संकल्प में वर्णित सन्दर्भ भूगोल, कालगणना आदि की धार्मिक संकल्पना के अनुसार हैं और विद्यालयों में पढाई जानेवाली इतिहास और भूगोल की बातें कुछ और हैं । परन्तु विट्रज्जनों को इस बात का विचार करना चाहिये और धार्मिक शास्त्रीय तथा सांस्कृतिक परम्पराओं को हम पुनः किस प्रकार स्थापित कर सकते हैं इसका विचार करना चाहिये। यह संकल्प संस्कृत में होता है। व्यावहारिक उद्देश्यों से उसे हिन्दी या अपनी अपनी भाषामें अनुदित किया जा सकता है । | + | विद्यालयों को यह परिचित नहीं है परन्तु भारत में हर शुभ कार्य के प्रारम्भ में संकल्प किया जाता है जिसमें स्थान, काल, उद्देश्य आदि का उच्चारण किया जाता है । यह परिचित नहीं होने का एक कारण यह भी है कि इस संकल्प में वर्णित सन्दर्भ भूगोल, कालगणना आदि की धार्मिक संकल्पना के अनुसार हैं और विद्यालयों में पढाई जानेवाली इतिहास और भूगोल की बातें कुछ और हैं । परन्तु विद्वजनों को इस बात का विचार करना चाहिये और धार्मिक शास्त्रीय तथा सांस्कृतिक परम्पराओं को हम पुनः किस प्रकार स्थापित कर सकते हैं इसका विचार करना चाहिये। यह संकल्प संस्कृत में होता है। व्यावहारिक उद्देश्यों से उसे हिन्दी या अपनी अपनी भाषा में अनुदित किया जा सकता है । |
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| ===== यज्ञ ===== | | ===== यज्ञ ===== |
− | भारत की संस्कृति यज्ञसंस्कृति है । सृष्टि और समष्टि के लिये आवश्यक त्याग करना और उन्हें सन्तुष्ट करना ही यज्ञ है। ना समझ लोग इसे कुछ उपयोगी पदार्थों को जलाना कहते हैं। यज्ञ के सांस्कृतिक और भौतिक वैज्ञानिक खुलासे तो अनेक हैं परन्तु उन्हें ये खुलासे जानने का धैर्य नहीं होता और मानने का साहस नहीं होता । परन्तु जानकार और समझदार लोगोंं ने विचार कर लोगोंं को समझाना चाहिये । विशेषकर विद्यालयों में तो इसका प्रारम्भ हो ही सकता है । | + | भारत की संस्कृति यज्ञसंस्कृति है। सृष्टि और समष्टि के लिये आवश्यक त्याग करना और उन्हें सन्तुष्ट करना ही यज्ञ है। ना समझ लोग इसे कुछ उपयोगी पदार्थों को जलाना कहते हैं। यज्ञ के सांस्कृतिक और भौतिक वैज्ञानिक खुलासे तो अनेक हैं परन्तु उन्हें ये खुलासे जानने का धैर्य नहीं होता और मानने का साहस नहीं होता । परन्तु जानकार और समझदार लोगोंं ने विचार कर लोगोंं को समझाना चाहिये । विशेषकर विद्यालयों में तो इसका प्रारम्भ हो ही सकता है । |
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| ===== मध्यावकाश का भोजन अथवा अल्पाहार ===== | | ===== मध्यावकाश का भोजन अथवा अल्पाहार ===== |
− | लगभग सभी विद्यालयों में यह होता ही है। इसे संस्कृति और सभ्यता की गतिविधि बनाना चाहिये । भोजन कहीं भी बैठकर कैसे भी करने की बात नहीं है । उसे व्यवस्थित ढंग से करना चाहिये । | + | लगभग सभी विद्यालयों में यह होता ही है। इसे संस्कृति और सभ्यता की गतिविधि बनाना चाहिये । भोजन कहीं भी बैठकर कैसे भी करने की बात नहीं है । उसे व्यवस्थित ढंग से करना चाहिये। |
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| इन बातों पर विचार किया जा सकता है | | इन बातों पर विचार किया जा सकता है |
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| * गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय । | | * गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय । |
| * आसपास के लोगोंं के साथ बाँटकर भोजन किया जाय । | | * आसपास के लोगोंं के साथ बाँटकर भोजन किया जाय । |
− | * थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना और पोछकर व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है । | + | * थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना और पोंछकर व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है । |
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| ===== राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का गायन ===== | | ===== राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का गायन ===== |
− | “जन गण मन हमारा राष्ट्रगीत है और “वन्दे मातरम्' राष्ट्रगान । प्रतिदिन दोनों का गायन होना चाहिये । “वन्दे मातरमू पूर्ण गाना चाहिये । प्रार्थथा की तरह ही शुद्ध स्वर, शुद्ध उच्चारण, ताल और गाने की, खड़े रहने की सही पद्धति का आग्रह अपेक्षित है । पूर्ण कण्ठस्थ होना भी अपेक्षित ही है ।
| + | "जन गण मन" हमारा राष्ट्रगीत है और "वन्दे मातरम्" राष्ट्रगान । प्रतिदिन दोनों का गायन होना चाहिये । "वन्दे मातरम्" पूर्ण गाना चाहिये । प्रार्थना की तरह ही शुद्ध स्वर, शुद्ध उच्चारण, ताल और गाने की, खड़े रहने की सही पद्धति का आग्रह अपेक्षित है । पूर्ण कण्ठस्थ होना भी अपेक्षित ही है । |
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| ===== सर्वेभवन्तु सुखिन: ===== | | ===== सर्वेभवन्तु सुखिन: ===== |
− | जिस प्रकार अध्ययन प्रार्भ करने से पूर्व संकल्प करते हैं उसी प्रकार आज का अध्ययन पूर्ण होने के बाद सब के मंगल की कामना करनी चाहिये । अतः सर्वे भवन्तु सुखिनः से विद्यालय पूर्ण होना अच्छा है । | + | जिस प्रकार अध्ययन प्रार्भ करने से पूर्व संकल्प करते हैं उसी प्रकार आज का अध्ययन पूर्ण होने के बाद सब के मंगल की कामना करनी चाहिये । अतः सर्वे भवन्तु सुखिनः से विद्यालय पूर्ण होना अच्छा है । |
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| इतनी बातें तो लगभग सर्वत्र होती हैं, जो नहीं होतीं वे भी हो सकती हैं । परन्तु और एक दो व्यवस्थाओं की बातें इनमें जोड़ी जा सकती हैं । | | इतनी बातें तो लगभग सर्वत्र होती हैं, जो नहीं होतीं वे भी हो सकती हैं । परन्तु और एक दो व्यवस्थाओं की बातें इनमें जोड़ी जा सकती हैं । |
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| # विद्यालय में पुस्तकालय क्यों होना चाहिये ? | | # विद्यालय में पुस्तकालय क्यों होना चाहिये ? |
| # विद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या कितनी होनी चाहिये ? | | # विद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या कितनी होनी चाहिये ? |
− | # ये पुस्तके कैसी हों ? कितने प्रकार की हों ? | + | # ये पुस्तकें कैसी हों ? कितने प्रकार की हों ? |
| # पुस्तकालय के साथ वाचनालय भी क्यों होना चाहिये ? | | # पुस्तकालय के साथ वाचनालय भी क्यों होना चाहिये ? |
| # पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग छात्र एवं आचार्य कर सर्के इसलिये क्या क्या व्यवस्थायें करनी चाहिये ? | | # पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग छात्र एवं आचार्य कर सर्के इसलिये क्या क्या व्यवस्थायें करनी चाहिये ? |
| # पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग करने के लिये छात्रों को कैसे प्रेरित कर सकते हैं ? | | # पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग करने के लिये छात्रों को कैसे प्रेरित कर सकते हैं ? |
− | # एक एक कक्षा का कशक्षापुस्तकालय कैसे बनायें ? | + | # एक एक कक्षा का कक्षापुस्तकालय कैसे बनायें ? |
| # पुस्तकालय में पुस्तकों के साथ साथ और क्या क्या हो सकता है ? | | # पुस्तकालय में पुस्तकों के साथ साथ और क्या क्या हो सकता है ? |
| # पुस्तकालय एवं वाचनालय को केन्द्र में रखक किस प्रकार के कार्यक्रम अथवा गतिविधियों की रचना हो सकती है ? | | # पुस्तकालय एवं वाचनालय को केन्द्र में रखक किस प्रकार के कार्यक्रम अथवा गतिविधियों की रचना हो सकती है ? |
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| ===== प्रत्यक्ष वार्तालाप से प्राप्त उत्तर ===== | | ===== प्रत्यक्ष वार्तालाप से प्राप्त उत्तर ===== |
− | इस संबंध में जो प्रश्नावली दो तीन लोगोंं को भरवाने के लिए भेजी गयी वे नियोजित समय से प्राप्त नहीं हुई । अतः अनेक लोगोंं से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनके उत्तर और अनुभव यहा सम्मिलित किये है । | + | इस संबंध में जो प्रश्नावली दो तीन लोगोंं को भरवाने के लिए भेजी गयी वे नियोजित समय से प्राप्त नहीं हुई । अतः अनेक लोगोंं से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनके उत्तर और अनुभव यहाँ सम्मिलित किये है । |
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− | अध्ययन अध्यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त एवं पूरक भूमिका पुस्तकालय की होती है । ग्रंथ एवं पुस्तके ज्ञाननिधी है। जहा ज्ञान की साधना होती है वहाँ पुस्तकालय अनिवार्य है । विद्यालय का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक अथवा उच्चशिक्षा भले ही हो स्तर के अनुसार पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या रहे । विद्यार्थी संख्या तथा पुस्तकों की संख्या इनका अनुपात कम से कम १:१० होना चाहिए । | + | अध्ययन अध्यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त एवं पूरक भूमिका पुस्तकालय की होती है। ग्रंथ एवं पुस्तके ज्ञाननिधी है। जहा ज्ञान की साधना होती है वहाँ पुस्तकालय अनिवार्य है । विद्यालय का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक अथवा उच्चशिक्षा भले ही हो स्तर के अनुसार पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या रहे । विद्यार्थी संख्या तथा पुस्तकों की संख्या इनका अनुपात कम से कम १:१० होना चाहिए । |
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| महाविद्यालयों में पुस्तकालय समृद्ध होना चाहिए कारण वहाँ अध्यापन की अपेक्षा धार्मिक भाषाओं में अध्यात्म, दर्शन, धर्म-संस्कृति, राष्ट्र, विभिन्न विचारधारायें, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि की पुस्तकें, कोष, एटलस, बालसाहित्य, दृश्य-श्राव्य सामग्री आदि सभी प्रकार की पुस्तकें आवश्यक होंगी । पुस्तकालय में बैठकर पढ़ सके इस प्रकार की पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिये । छात्र शिक्षक सभी आराम से पढ़ सके ऐसी स्वना व स्थान हो तो अच्छा । दैनिक वृत्तपत्र पाक्षिक मासिक शैक्षिक पत्रिका्ें पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हो । पुस्तकालयों में वेद उपनिषद आदि साहित्य अवश्य हो । पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है अपितु हमारी संस्कृति का दर्शन है । इनका दर्शन छात्र इस आयु में करेंगे तो आगे जाकर इनका अध्ययन भी होगा । विषय के शिक्षक छात्रों को अपने विषय की संदर्भ पुस्तकों के नाम बताए और उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे । एक विद्यालय के ग्रंथपाल स्वयं सभी विषयों का अध्ययन करते थे और वर्गशः उपयुक्त संदर्भ साहित्य से छात्रों को परिचित करवाते थे । वाचनालय में खरिदी हुई नवीन पुस्तकों के परिचय सूचना फलक पर लिखते और छात्रों को वाचन हेतु प्रेरित व आकर्षित करते थे । | | महाविद्यालयों में पुस्तकालय समृद्ध होना चाहिए कारण वहाँ अध्यापन की अपेक्षा धार्मिक भाषाओं में अध्यात्म, दर्शन, धर्म-संस्कृति, राष्ट्र, विभिन्न विचारधारायें, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि की पुस्तकें, कोष, एटलस, बालसाहित्य, दृश्य-श्राव्य सामग्री आदि सभी प्रकार की पुस्तकें आवश्यक होंगी । पुस्तकालय में बैठकर पढ़ सके इस प्रकार की पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिये । छात्र शिक्षक सभी आराम से पढ़ सके ऐसी स्वना व स्थान हो तो अच्छा । दैनिक वृत्तपत्र पाक्षिक मासिक शैक्षिक पत्रिका्ें पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हो । पुस्तकालयों में वेद उपनिषद आदि साहित्य अवश्य हो । पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है अपितु हमारी संस्कृति का दर्शन है । इनका दर्शन छात्र इस आयु में करेंगे तो आगे जाकर इनका अध्ययन भी होगा । विषय के शिक्षक छात्रों को अपने विषय की संदर्भ पुस्तकों के नाम बताए और उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे । एक विद्यालय के ग्रंथपाल स्वयं सभी विषयों का अध्ययन करते थे और वर्गशः उपयुक्त संदर्भ साहित्य से छात्रों को परिचित करवाते थे । वाचनालय में खरिदी हुई नवीन पुस्तकों के परिचय सूचना फलक पर लिखते और छात्रों को वाचन हेतु प्रेरित व आकर्षित करते थे । |
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| ===== विमर्श ===== | | ===== विमर्श ===== |
− | पुस्तकालय का नाम पढ़ते ही गौरवमयी ज्ञानसृष्टि कल्पना चक्षु के समक्ष अवतरित हो जाती है । जब से भगवान गणेशने लिपि का आविष्कार किया, ज्ञान लिखित रूप में सुरक्षित होने लगा । अब तक श्रुति और श्रुतज्ञान की महिमा थी अब पुस्तकों की महिमा होने लगी । पुस्तक धीरे धीरे ज्ञान का प्रतीक बन गया । पुस्तक ज्ञान के समान पवित्र माना जाने लगा और उसका सम्मान होने लगा । आज भी पुस्तक को ज्ञानसम्पदा के रूप में ही सम्माननित किया जाता है । | + | पुस्तकालय का नाम पढ़ते ही गौरवमयी ज्ञानसृष्टि कल्पना चक्षु के समक्ष अवतरित हो जाती है । जब से भगवान गणेश ने लिपि का आविष्कार किया, ज्ञान लिखित रूप में सुरक्षित होने लगा । अब तक श्रुति और श्रुतज्ञान की महिमा थी अब पुस्तकों की महिमा होने लगी । पुस्तक धीरे धीरे ज्ञान का प्रतीक बन गया । पुस्तक ज्ञान के समान पवित्र माना जाने लगा और उसका सम्मान होने लगा । आज भी पुस्तक को ज्ञानसम्पदा के रूप में ही सम्माननित किया जाता है । |
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| ===== पुस्तकालय की पवित्रता बनाये रखना ===== | | ===== पुस्तकालय की पवित्रता बनाये रखना ===== |