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→‎अध्यापन की आदर्श स्थिति: लेख सम्पादित किया
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# महाकवि कालीदास वाकू और अर्थ का तथा शिव और पार्वती का सम्बन्ध एक जैसा है ऐसा बताते हैं । जो शिव और पार्वती के सम्बन्ध को जानता है वह वाक् और अर्थ की एकात्मता को समझ सकता है और जो वाक्‌ और अर्थ के सम्बन्ध को जानता है वह शिव और पार्वती के सम्बन्ध को समझ सकता है।
 
# महाकवि कालीदास वाकू और अर्थ का तथा शिव और पार्वती का सम्बन्ध एक जैसा है ऐसा बताते हैं । जो शिव और पार्वती के सम्बन्ध को जानता है वह वाक् और अर्थ की एकात्मता को समझ सकता है और जो वाक्‌ और अर्थ के सम्बन्ध को जानता है वह शिव और पार्वती के सम्बन्ध को समझ सकता है।
 
# ज्ञान और विज्ञान का अन्तर और सम्बन्ध समझाने के लिए एक शिक्षक ने छात्रों को पानी में नमक डालकर चम्मच से पानी को हिलाने के लिए कहा | छात्रों ने वैसा ही किया । फिर शिक्षक ने पूछा कि नमक कहाँ है । छात्रों ने कहा कि नमक पानी के अन्दर है । शिक्षक ने पूछा कि कैसे पता चला । छात्रों ने चखने से पता चला ऐसा कहा । तब शिक्षक ने कहा कि अब नमक पानी में सर्वत्र है । वह पानी से अलग दिखाई नहीं देता परन्तु स्वादेंद्रिय के अनुभव से उसके अस्तित्व का पता चलता है। शिक्षक ने कहा कि इसे घुलना कहते हैं । प्रयोग कर के स्वादेंद्रिय से चखकर घुलने की प्रक्रिया तो समझ में आती है परन्तु घुलना क्या होता है इसका पता कैसे चलेगा ? घुलने का अनुभव तो नमक को हुआ है और अब वह बताने के लिए नमक तो है नहीं । घुलने की प्रक्रिया जानना विज्ञान है परन्तु घुलने का अनुभव करना ज्ञान है । विज्ञान ज्ञान तक पहुँचने में सहायता करता है परन्तु विज्ञान स्वयं ज्ञान नहीं है ।
 
# ज्ञान और विज्ञान का अन्तर और सम्बन्ध समझाने के लिए एक शिक्षक ने छात्रों को पानी में नमक डालकर चम्मच से पानी को हिलाने के लिए कहा | छात्रों ने वैसा ही किया । फिर शिक्षक ने पूछा कि नमक कहाँ है । छात्रों ने कहा कि नमक पानी के अन्दर है । शिक्षक ने पूछा कि कैसे पता चला । छात्रों ने चखने से पता चला ऐसा कहा । तब शिक्षक ने कहा कि अब नमक पानी में सर्वत्र है । वह पानी से अलग दिखाई नहीं देता परन्तु स्वादेंद्रिय के अनुभव से उसके अस्तित्व का पता चलता है। शिक्षक ने कहा कि इसे घुलना कहते हैं । प्रयोग कर के स्वादेंद्रिय से चखकर घुलने की प्रक्रिया तो समझ में आती है परन्तु घुलना क्या होता है इसका पता कैसे चलेगा ? घुलने का अनुभव तो नमक को हुआ है और अब वह बताने के लिए नमक तो है नहीं । घुलने की प्रक्रिया जानना विज्ञान है परन्तु घुलने का अनुभव करना ज्ञान है । विज्ञान ज्ञान तक पहुँचने में सहायता करता है परन्तु विज्ञान स्वयं ज्ञान नहीं है ।
# गणित की एक कक्षा में क्षेत्रफल के सवाल चल रहे थे । शिक्षक क्षेत्रफल का नियम बता रहे थे । आगंतुक व्यक्ति ने एक छात्र से पूछा कि चार फीट लम्बे और तीन फिट चौड़े टेबल का क्षेत्रफल कितना होगा । छात्रों ने नियम लागू कर के कहा कि बारह वर्ग फीट । आगंतुक ने पूछ कि चार गुणा तीन कितना होता है । छात्रों ने कहा बारह । आगंतुक ने पूछा चार फीट गुणा तीन फिट बारह फीट होगा कि नहीं । छात्रों ने हाँ कहा । आगंतुक ने पूछा कि फिर उसमें वर्ग फीट कहाँ से आ गया | छात्रों को उत्तर नहीं आता था । वे नियम जानते थे और गुणाकार भी जानते थे परन्तु एक परिमाण और द्विपरिमाण का अन्तर नहीं जानते थे । आगंतुक उन्हें बाहर मैदान में ले गया । वहाँ छात्रों को चार फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा आयत बनाने के लिए कहा । छात्रों ने बनाया । अब आगंतुक ने कहा कि यह रेखा नहीं है । चार फिट की दो और तीन फीट की दो रेखायें जुड़ी हुई हैं जो जगह घेरती हैं । इस जगह को क्षेत्र कहते हैं । अब चार और तीन फीट में एक एक फुट
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# गणित की एक कक्षा में क्षेत्रफल के सवाल चल रहे थे । शिक्षक क्षेत्रफल का नियम बता रहे थे । आगंतुक व्यक्ति ने एक छात्र से पूछा कि चार फीट लम्बे और तीन फिट चौड़े टेबल का क्षेत्रफल कितना होगा । छात्रों ने नियम लागू कर के कहा कि बारह वर्ग फीट । आगंतुक ने पूछ कि चार गुणा तीन कितना होता है । छात्रों ने कहा बारह । आगंतुक ने पूछा चार फीट गुणा तीन फिट बारह फीट होगा कि नहीं । छात्रों ने हाँ कहा । आगंतुक ने पूछा कि फिर उसमें वर्ग फीट कहाँ से आ गया | छात्रों को उत्तर नहीं आता था । वे नियम जानते थे और गुणाकार भी जानते थे परन्तु एक परिमाण और द्विपरिमाण का अन्तर नहीं जानते थे । आगंतुक उन्हें बाहर मैदान में ले गया । वहाँ छात्रों को चार फीट लंबा और तीन फीट चौड़ा आयत बनाने के लिए कहा । छात्रों ने बनाया । अब आगंतुक ने कहा कि यह रेखा नहीं है । चार फिट की दो और तीन फीट की दो रेखायें जुड़ी हुई हैं जो जगह घेरती हैं । इस जगह को क्षेत्र कहते हैं । अब चार और तीन फीट में एक एक फुट के अन्तर पर रेखायें बनाएँगे तो एक एक फीट के वर्ग बनेंगे । इनकी संख्या गिनो तो बारह होगी । चार फीट लंबी और तीन फीट चौड़ी आयताकार जगह बारह वर्ग फीट की बनती है इसलिए केवल बारह नहीं अपितु बारह वर्ग फीट बनाता है । रेखा और क्षेत्र में परिमाणों का अन्तर है। यह अन्तर नहीं समझा तो भूमिति की समझ ही विकसित नहीं होती । यह कुशलता है ।
 
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# रोटी में किसान की मेहनत है, माँ का प्रेम है, मिट्टी की महक है, बैल की मजदूरी है, गेहूं का स्वाद है, चूल्हे की आग है, कुएं का पानी है ऐसा बताने वाला शिक्षक रोटी का समग्रता में परिचय देता है । वह रोटी को केवल विज्ञान या पाकशास्त्र का विषय नहीं बनाता |
वाला शिक्षक रोटी का समग्रता में परिचय देता है । वह रोटी को केवल विज्ञान या पाकशास्त्र का विषय नहीं बनाता |
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# न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का नियम खोजा, आइन्स्टाइन ने सापेक्षता का सिद्धान्त सवा, जगदीशचन्द्र बसु ने वनस्पति में भी जीव है यह सिद्ध किया परन्तु गुरुत्वाकर्षण का सृजन किसने किया, सापेक्षता की रचना किसने की, वनस्पति में जीव कैसे आया आदि प्रश्न जगाकर इस विश्व की रचना की ओर ले जाने का अर्थात “विज्ञान' से “अध्यात्म' की ओर ले जाने का काम कुशल शिक्षक करता है ।
 
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# नारियल के वृक्ष को समुद्र का खारा पानी चाहिये । वह खारा पानी जड़ से अन्दर जाकर फल तक पहुँचते पहुँचते मीठा हो जाता है । बिना स्वाद का पानी विभिन्न पदार्थों में विभिन्न स्वाद वाला हो जाता है । यह केवल रासायनिक प्रक्रिया नहीं है अपितु रसायनों को बनाने वाले की कमाल है । यदि केवल रासायनिक प्रक्रिया मानें तो रसायनशास्त्र ही अध्यात्म है ऐसा ही कहना होगा ।
न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का नियम खोजा, आइन्स्टाइन ने सापेक्षता का सिद्धान्त सवा, जगदीशचन्द्र बसु ने वनस्पति में भी जीव है यह सिद्ध किया परन्तु गुरुत्वाकर्षण का सृजन किसने किया, सापेक्षता की रचना किसने की, वनस्पति में जीव कैसे आया आदि प्रश्न जगाकर इस विश्व की रचना की ओर ले जाने का अर्थात “विज्ञान' से “अध्यात्म' की ओर ले जाने का काम कुशल शिक्षक करता है ।
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नारियल के वृक्ष को समुद्र का खारा पानी चाहिये । वह खारा पानी जड़ से अन्दर जाकर फल तक पहुँचते पहुँचते मीठा हो जाता है । बिना स्वाद का पानी विभिन्न पदार्थों में विभिन्न स्वाद वाला हो जाता है । यह केवल रासायनिक प्रक्रिया नहीं है अपितु रसायनों को बनाने वाले की कमाल है । यदि केवल रासायनिक प्रक्रिया मानें तो रसायनशास्त्र ही अध्यात्म है ऐसा ही कहना होगा ।
      
== अध्यापन की आदर्श स्थिति ==
 
== अध्यापन की आदर्श स्थिति ==
तात्पर्य यह है कि निष्ठावान और विद्वान शिक्षक को
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तात्पर्य यह है कि निष्ठावान और विद्वान शिक्षक को भी छात्र को सिखाने के लिए कुशलता की आवश्यकता रहती है । यह कुशलता साधनसामग्री ढूँढने में, उसका प्रयोग करने में और छात्र समझा है कि नहीं यह जानने की है । एक विद्वान और एक शिक्षक में यही अन्तर है । विद्वान विषय को जानता है । शिक्षक विषय और छात्र दोनों को जानता है । तभी शिक्षक का ज्ञान छात्र तक पहुंचता है । शिक्षक और और विद्यार्थी के सम्बन्ध का तथा अध्ययन प्रक्रिया का परम अद्भुत उदाहरण दक्षिणामूर्ति स्तोत्र
 
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भी छात्र को सिखाने के लिए कुशलता की आवश्यकता
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रहती है । यह कुशलता साधनसामग्री ढूँढने में, उसका
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प्रयोग करने में और छात्र समझा है कि नहीं यह जानने की
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है । एक विद्वान और एक शिक्षक में यही अन्तर है । विद्वान
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विषय को जानता है । शिक्षक विषय और छात्र दोनों को
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जानता है । तभी शिक्षक का ज्ञान छात्र तक पहुंचता है ।
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शिक्षक और और विद्यार्थी के सम्बन्ध का तथा
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अध्ययन प्रक्रिया का परम अद्भुत उदाहरण दक्षिणामूर्ति स्तोत्र
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में बताया है ...
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चित्रं बटतरोमूंले वृद्धा शिष्या: गुरू्युवा ।
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गुरोस्तु मौनम्‌ व्याख्यानम्‌ शिष्यास्तु छिन्न संशया: ॥।
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के अन्तर पर रेखायें बनाएँगे तो एक एक फीट के
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वर्ग बनेंगे । इनकी संख्या गिनो तो बारह होगी । चार
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फीट लंबी और तीन फीट चौड़ी आयताकार जगह
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बारह वर्ग फीट की बनती है इसलिए केवल बारह
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नहीं अपितु बारह वर्ग फीट बनाता है । रेखा और
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क्षेत्र में परिमाणों का अन्तर है। यह अन्तर नहीं
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समझा तो भूमिति की समझ ही विकसित नहीं होती ।
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यह कुशलता है ।
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é. रोटी में किसान की मेहनत है, माँ का प्रेम है, मिट्टी
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की महक है, बैल की मजदूरी है, गेहूं का स्वाद है,
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चूल्हे की आग है, कुएं का पानी है ऐसा बताने
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श्द्द
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पर्व ४ : शिक्षक, विद्यार्थी एवं अध्ययन
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अर्थात्‌ अरे ! आश्चर्य है ! वटवृक्ष के नीचे वृद्ध संक्षेप में कुशल शिक्षक और
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शिष्य और युवा गुरु बैठे हैं । गुरु का मौन व्याख्यान है... समझदार विद्यार्थी अध्ययन अध्यापन को तांत्रिकता से मुक्त
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और शिष्यों के सारे संशय दूर हो गये हैं । कर उसे मौलिक और जीवमान बनाते हैं । तभी ज्ञानार्जन
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सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों की परम गति तो यही... संभव है । ऐसा ज्ञानार्जन शिक्षा को आनंदमय बनाता है
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में बताया है<ref>॥श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रं श्लोक १२ ॥</ref>:<blockquote>चित्रं वटतरोर्मूले वृद्धाः शिष्या गुरुर्युवा </blockquote><blockquote>गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्यास्तु छिन्नसंशयाः ॥ १२ ॥ </blockquote>आश्चर्य यह है कि वटवृक्ष के नीचे शिष्य वृद्ध हैं और गुरु युवा हैं। गुरु का व्याख्यान मौन भाषामें है, किंतु शिष्यों के संशय नष्ट हो गये हैं ॥
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है । जो कोई चाहता है इसे प्राप्त कर सकता है ।
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सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों की परम गति तो यही है । जो कोई चाहता है इसे प्राप्त कर सकता है । संक्षेप में कुशल शिक्षक और समझदार विद्यार्थी अध्ययन अध्यापन को तंत्रिकता से मुक्त कर उसे मौलिक और जीवमान बनाते हैं । तभी ज्ञानार्जन संभव है । ऐसा ज्ञानार्जन शिक्षा को आनंदमय बनाता है ।
    
==References==
 
==References==

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