Difference between revisions of "मनुष्य की निहित सम्पदाओं का नाश"

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Revision as of 06:14, 12 January 2020

दुर्बलतायें

१. कर्मसंस्कृति का नाश और यन्त्र विकृति का प्रभाव इन दोनों के परिणाम स्वरूप मनुष्य अधिक से अधिक अपाहिज बन रहा है, अपनी ईश्वर प्रदत्त जन्मजात शक्तियों का क्षरण हो रहा है उसे देख ही नहीं सकता, और यदि देख सकता है तो उन्हें बचाने के लिये कुछ कर नहीं सकता । क्‍या यह स्थिति शोचनीय नहीं है ?

२. बच्चों का गर्भाधान ही दवाइयों की सहायता से होता है । ये दवाइयाँ जैविक नहीं होती हैं, वे विघटन नहीं हो सकता ऐसी सामग्री और प्रक्रिया से निर्मित होती हैं। वे जीवित शरीर के साथ समरस नहीं होतीं । यहीं से आपत्तियों का क्रम शुरू हो जाता है ।

३. गर्भावस्‍था में ही मधुमेह, रक्तचाप और हृदय की ओर जाने वाली रक्तवाहिनियों में अवरोध आदि जैसी घातक बिमारियाँ लग जाने का अनुपात बढ रहा है । इन बिमारियों का जन्म के बाद ठीक होना असम्भव है |

४. बच्चों की जन्मजात शारीरिक और मानसिक क्षमतायें कम ही होती हैं । जो बालक कम क्षमताओं के साथ ही जन्मे हैं उनकी क्षमता बढ़ाना असम्भव हो जाता है |

५. जन्म के बाद के वातावरण, माता के आहारविहार, बालक के आहारविहार उसके संगोपन की पद्धतियाँ और सामग्री, उसके खिलौने, मोबाइल, संगणक और टीवी के प्रयोग के कारण से उसकी शक्तियों का क्षरण होता है ।

६. जैसे जैसे आयु बढती जाती है रोग प्रतिरोधक शक्ति, श्रम और काम करने की शक्ति, स्मरणशक्ति और ग्रहणशक्ति आदि के विकास की सम्भावनायें तो दूर की बात है, उल्टे जो हैं वे भी क्षीण होती जाती हैं ।

७. बोली हुई सीधीसादी बात भी समझ में नहीं आना, बात का मर्म नहीं समझना, सूचितार्थ नहीं समझना, कार्यकारण सम्बन्ध नहीं समझना, मुद्दा समझा नहीं पाना, विचारों में कोई मौलिकता नहीं होना, बुद्धि की चमत्कृति देखकर आनन्द का अनुभव नहीं करना बौद्धिक दारिद्य है । हमारा सर्वसामान्य युवावर्ग इस दारिद्य का शिकार हुआ है ।

८. नित्यनिरन्तर मनोरंजन छढूँढते रहना, हर प्रकार की विलास की वस्तुओं से आकर्षित होना, किसी प्रकार के आकर्षण को नहीं रोक पाना, निकृष्ट वस्तुओं के प्रति भी लालयित होना, असंस्कारी पद्धति से खुशी व्यक्त करना आदि सब संयमहीन मन के लक्षण हैं जो सर्वत्र दिखाई दे रहे हैं ।

९. छोटी छोटी बातों में तनाव होना, जरा कहीं पर अवरोध देखा कि उत्तेजित हो जाना, जरा कहीं असफलता की सम्भावना देखी तो हताश हो जाना, कहीं भी परिस्थिति विपरीत हुई तो आत्महत्या करना, आदि आत्मघाती वृत्ति भारी मात्रा में पनप रही है । यह मन की दुर्बलता का ही मुखर लक्षण हैं |

१०. स्वार्थ के लिये अपमान सह लेना, स्वार्थ के लिये खुशामद करना, बलवान से ट्रेष होना और दुर्बल को दबाना, छीन सकते हैं तो कुछ भी छीनने में लूटने में सँकोच नहीं करना, झूठ, बेइमानी, चौरी आदि से परहेज नहीं होना, दया माया अनुकम्पा नहीं होना आसुरी और विकृत मन के लक्षण है ।

११. किसी में श्रद्दा नहीं होना, किसी के विश्वास के पात्र नहीं बनना, छलना, प्रपंच, धोखाधडी करके पैसा कमाने में संकोच नहीं करना, दवाई, आहार सामग्री

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