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| ===== सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ===== | | ===== सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ===== |
| + | * आयुष्य बढाने वाला |
| + | * सत्व में वृद्धि करने वाला |
| + | * बल बढाने वाला |
| + | * आरोग्य बनाये रखने वाला |
| + | * सुख देने वाला |
| + | * प्रसन्नता बढाने वाला होता है । |
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| + | ===== सात्त्विक आहार के गुण क्या-क्या हैं ===== |
| + | * रस्य अर्थात् रसपूर्ण |
| + | * स्निग्ध अर्थात् चिकनाई वाला |
| + | * स्थिर अर्थात् स्थिरता प्रदान करने वाला |
| + | * हृद्य अर्थात् हृदय को बहुत बल देने वाला होता है । |
| + | सात्त्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है। |
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| + | ===== रस्य आहार का क्या अर्थ है ? ===== |
| + | सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई है । इस अर्थ में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । |
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| + | हम जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों में बँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस बनता है और जो निरुपयोगी होता है वह कचरा अर्थात्म ल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है। उदाहरण के लिये आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती। रस शरीर के सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस बनता है, बाद में रक्त । रस जिससे अधिक बनता है वह रस्य आहार है । सात्त्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका रस्य होना है। |
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| + | ===== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? ===== |
| + | मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध आहार कहते हैं। घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में नरमाई बनी रहती है। त्वचा मुलायम बनती है। |
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| + | ===== बल भी बढ़ता है। ===== |
| + | परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है सात्त्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार स्नेहयुक्त अर्थात् स्निग्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार सात्त्विक होता है। |
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| + | आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना करते हैं। उससे मेद बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। |
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| + | प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है, प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढाता है । सात धातुओं में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है। शरीर की सर्व प्रकार की शक्ति का सार ओज है। घी से प्राण का सर्वाधिक पोषण होता है। आयुर्वेद कहता है ‘घृतमायुः' अर्थात् घी ही आयुष्य है अर्थात् प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही वृद्धावस्था में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु से ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट होता है। यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है । गाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को जब से घी कहा जाने लगा तबसे ‘घी' स्वास्थ्य के लिये |
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| मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध | | मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध |
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