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| आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना करते हैं। उससे मेद बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। | | आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना करते हैं। उससे मेद बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। |
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− | प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है, प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढाता है । सात धातुओं में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है। शरीर की सर्व प्रकार की शक्ति का सार ओज है। घी से प्राण का सर्वाधिक पोषण होता है। आयुर्वेद कहता है ‘घृतमायुः' अर्थात् घी ही आयुष्य है अर्थात् प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही वृद्धावस्था में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु से ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट होता है। यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है । गाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को जब से घी कहा जाने लगा तबसे ‘घी' स्वास्थ्य के लिये | + | प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है, प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढाता है । सात धातुओं में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है। शरीर की सर्व प्रकार की शक्ति का सार ओज है। घी से प्राण का सर्वाधिक पोषण होता है। आयुर्वेद कहता है ‘घृतमायुः' अर्थात् घी ही आयुष्य है अर्थात् प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही वृद्धावस्था में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु से ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट होता है। यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है । गाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को जब से घी कहा जाने लगा तबसे ‘घी' स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो गया । आज घी विषयक भ्रान्त धारणा से बचने की और नकली घी से पिण्ड छुडाने की बहुत आवश्यकता है। |
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| + | दूसरी बात यह है कि स्निग्धता और मेद अलग बात है । स्निग्धता शरीर में सूखापन नहीं आने देती । वातरोग नहीं होने देती, शूल पैदा नहीं करती । तेल स्नेहन करता है । शरीर का अन्दर और बाहर का स्नेहन शरीर की कान्ति और तेज बना रहने के लिये, शरीर के अंगों को सुख पहुँचाने के लिये अत्यन्त आवश्यक है। इसलिये आहार के साथ ही शरीर को मालीश करने के लिये भी तेल का उपयोग है । सिर |
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| + | और पैर के तलवों में तो घी से भी मालीश किया जाता है। जिन्हें आयुर्वेद में श्रद्धा नहीं है अथवा आयुर्वेद विषयक ज्ञान ही नहीं है वे घी और तेल की निन्दा करते हैं । परन्तु भारत में तो शास्त्र, परम्परा और लोगों का अनुभव सिद्ध करता है कि घी और तेल शरीर और प्राण के सख और शक्ति के लिये अत्यन्त लाभकारी हैं। |
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| + | यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी बातों के लिये समान रूप से लागू है। |
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| + | अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ नहीं करता। |
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| + | नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद लाभकारी नहीं है। |
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| + | व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक व्यायाम लाभकारी नहीं है। |
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| + | आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं । |
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| + | अर्थात् घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी होता है। |
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| + | अतः विद्यार्थियों को सात्त्विक आहार शरीर, मन, बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है । |
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| + | स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, |
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| मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध | | मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध |