Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 554: Line 554:     
1. आज के शैक्षिक वातावरण में प्रेरणा का तत्त्व गायब है। कोई कहे या न कहे, कोई देखे या न देखे, पुरस्कार या प्रशंसा मिले या न मिले, कोई दण्ड दे या न दे अपना कर्तव्य है इसलिये पढाना ही चाहिये ऐसी भावना बनने के लिये वातावरण चाहिये । सामने आदर्श चाहिये, शिक्षा मिली हुई होनी चाहिये, आज ऐसी शिक्षा नहीं है। कर्तव्यपालन करना चाहिये, स्वेच्छा से करना चाहिये, अपने कारण से किसी का अकल्याण नहीं होना चाहिये ऐसी शिक्षा किसी भी स्तर पर, किसी भी प्रकार से नहीं दी जाती । समाज में अपने से बडे, अपने अधिकारी कर्तव्यपालन कर रहे हैं ऐसा प्रेरणादायक चरित्र कहीं दिखाई नहीं देता, सर्वत्र वातवरण ही अपने लाभ का विचार करने का है। शिक्षाक्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक तो बहुत छोटे हैं । अन्य सरकारी विभागों में भी वातावरण तो ऐसा ही है । शिक्षा के उपर के स्तरों पर भी वातावरण तो ऐसा ही है । सर्वत्र सबका व्यवहार ऐसा है इसलिये  इन शिक्षकों का व्यवहार भी ऐसा ही है ।
 
1. आज के शैक्षिक वातावरण में प्रेरणा का तत्त्व गायब है। कोई कहे या न कहे, कोई देखे या न देखे, पुरस्कार या प्रशंसा मिले या न मिले, कोई दण्ड दे या न दे अपना कर्तव्य है इसलिये पढाना ही चाहिये ऐसी भावना बनने के लिये वातावरण चाहिये । सामने आदर्श चाहिये, शिक्षा मिली हुई होनी चाहिये, आज ऐसी शिक्षा नहीं है। कर्तव्यपालन करना चाहिये, स्वेच्छा से करना चाहिये, अपने कारण से किसी का अकल्याण नहीं होना चाहिये ऐसी शिक्षा किसी भी स्तर पर, किसी भी प्रकार से नहीं दी जाती । समाज में अपने से बडे, अपने अधिकारी कर्तव्यपालन कर रहे हैं ऐसा प्रेरणादायक चरित्र कहीं दिखाई नहीं देता, सर्वत्र वातवरण ही अपने लाभ का विचार करने का है। शिक्षाक्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक तो बहुत छोटे हैं । अन्य सरकारी विभागों में भी वातावरण तो ऐसा ही है । शिक्षा के उपर के स्तरों पर भी वातावरण तो ऐसा ही है । सर्वत्र सबका व्यवहार ऐसा है इसलिये  इन शिक्षकों का व्यवहार भी ऐसा ही है ।
 +
 +
2. पढाने न पढाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त कृत्रिम है। विद्यार्थी ज्ञानवान और चरित्रवान बनें इसका निकर्ष परीक्षा ही है । परीक्षा भी लिखित होती है। अंक दे सकें इस स्वरूप की होती है । अंक दे देना बहुत सरल है । समाज में या व्यक्तिगत जीवन में अज्ञान और असंस्कार दिखाई दे रहा है यह परीक्षा में उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण होने का निकष नहीं है । इसलिये अंक मिल जाते हैं परन्तु ज्ञान या संस्कार नहीं आता । इस परिणाम हेतु दण्डित या पुरस्कृत करना असम्भव है। इसलिये विद्यालय में पढाना सम्भव ही नहीं होता।
 +
 +
3. कहीं पर भी सीधी कारवाई होने की व्यवस्था सरकारी तन्त्र में नहीं होती। निरीक्षण करने वाला स्वयं कुछ नहीं कर सकता, केवल रिपोर्ट भेज सकता है । रिपोर्ट पढने वाला और उपर रिपोर्ट भेजता है। रिपोर्ट को सिद्द करना बहुत कठिन होता है। उसमें फिर राजकीय हस्तक्षेप भी होते हैं । कारवाई करने वाले 'शिक्षक' नहीं होते, प्रशासकीय विभाग के होते हैं ।
 +
 +
वास्तव में निर्णय लेने या कारवाई करने की दृष्टि से यह शिक्षा का क्षेत्र नहीं है। नीतियाँ निश्चित
    
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
 
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
1,815

edits

Navigation menu