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यन्त्र और मनुष्य में क्या अन्तर है ? यन्त्र ऊर्जा से तो चलता है परन्तु अपने विवेक से नहीं चलता । मनुष्य अपने विवेक से चलता है। यन्त्र में भावना नहीं होती। यन्त्र में अहंकार नहीं होता । यन्त्र पर संस्कार नहीं होते । भावना, अहंकार, संस्कार ये सब अन्तःकरण के विषय होते हैं । यन्त्र में अन्तःकरण नहीं होता, मनुष्य में होता है।
 
यन्त्र और मनुष्य में क्या अन्तर है ? यन्त्र ऊर्जा से तो चलता है परन्तु अपने विवेक से नहीं चलता । मनुष्य अपने विवेक से चलता है। यन्त्र में भावना नहीं होती। यन्त्र में अहंकार नहीं होता । यन्त्र पर संस्कार नहीं होते । भावना, अहंकार, संस्कार ये सब अन्तःकरण के विषय होते हैं । यन्त्र में अन्तःकरण नहीं होता, मनुष्य में होता है।
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यन्त्र की शक्ति पंचमहाभूतात्मक शक्ति है । वह बना भी होता है पंचमहाभूतों का ही । उसमें ऊर्जा के कारण कार्यशक्ति आती है। उसके बाद उसे चलाने के लिये मनुष्य की ही आवश्यकता होती है। मनष्य में यन्त्रशक्ति है। मनष्य का शरीर ही एक अद्भुत यन्त्र है । शरीररूपी यन्त्र को चलाने के लिये ऊर्जा भी है। वह ऊर्जा है प्राण । प्राण की ऊर्जा यन्त्र को
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यन्त्र की शक्ति पंचमहाभूतात्मक शक्ति है । वह बना भी होता है पंचमहाभूतों का ही । उसमें ऊर्जा के कारण कार्यशक्ति आती है। उसके बाद उसे चलाने के लिये मनुष्य की ही आवश्यकता होती है। मनष्य में यन्त्रशक्ति है। मनष्य का शरीर ही एक अद्भुत यन्त्र है । शरीररूपी यन्त्र को चलाने के लिये ऊर्जा भी है। वह ऊर्जा है प्राण । प्राण की ऊर्जा यन्त्र को चलाने वाली सर्व प्रकार की ऊर्जा से श्रेष्ठ और अलग प्रकार की है । यन्त्रों को चलाने वाली सर्व ऊर्जा भी पंचमहाभूतात्मक ही है यद्यपि उसका स्रोत सूर्य है । मनुष्य में जो प्राणरूपी ऊर्जा है वह विशिष्ट इसलिये है कि वह मनुष्य शरीर को सजीव बनाती है और जिससे उसकी वृद्धि होती है और उसके ही जैसे दूसरे सजीव को जन्म देती है । इतना ही यन्त्र और मनुष्य में समान _है। इसके बाद जितने भी प्रकार की शक्ति है वह केवल मनुष्य में है। पूर्व में कहा उसके अनुसार इच्छा, भावना, विचार, संवेदना, विवेक, निर्णय, संस्कार मनुष्य की विशेष शक्तियाँ हैं।
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इसलिये मनुष्य को ही यन्त्र को चलाना चाहिये, यन्त्र द्वारा संचालित नहीं होना चाहिये । इस मुद्दे को सामने रखकर अब विद्यालय की वर्तमान व्यवस्था की ओर देखना चाहिये ।
    
इसके साथ ही नया पाठ्यक्रम, नई पाठनसामग्री ... परिषद जैसी नामावलि होनी चाहिये ।
 
इसके साथ ही नया पाठ्यक्रम, नई पाठनसामग्री ... परिषद जैसी नामावलि होनी चाहिये ।
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