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इसलिये मनुष्य को ही यन्त्र को चलाना चाहिये, यन्त्र द्वारा संचालित नहीं होना चाहिये । इस मुद्दे को सामने रखकर अब विद्यालय की वर्तमान व्यवस्था की ओर देखना चाहिये ।
 
इसलिये मनुष्य को ही यन्त्र को चलाना चाहिये, यन्त्र द्वारा संचालित नहीं होना चाहिये । इस मुद्दे को सामने रखकर अब विद्यालय की वर्तमान व्यवस्था की ओर देखना चाहिये ।
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इसके साथ ही नया पाठ्यक्रम, नई पाठनसामग्री ... परिषद जैसी नामावलि होनी चाहिये ।
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===== यन्त्र आधारित वर्त्तमान व्यवस्था =====
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विद्यालय में प्रवेश की आयु ५ वर्ष पूर्ण है । अब वह छः वर्ष हुई है। इसका कारण शैक्षिक नहीं है, व्यवस्थागत है । शैक्षिक दृष्टि से तो औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु सात वर्ष के बाद होनी चाहिये । परन्तु यह किसी के लिये छः वर्ष, किसी के लिये सात, किसी के लिये आठ वर्ष की भी हो सकती है। फिर किसे किस आयु में प्रवेश देना चाहिये यह व्यवस्था द्वारा निश्चित दिनाँक को कैसे हो सकता है ? वह अभिभावकों और शिक्षकों के विवेक के अनुसार होना चाहिये ।
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आदि भी तैयार करने होंगे यदि ऐसा पर्याय निर्माण हो... ऐसी रचना होगी तो शिक्षा की गाडी आधे रास्ते पर आ
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सबके लिए एक वर्ष में समान रूप से निश्चित पाठ्यक्रम क्यों होना चाहिये ? यह तो मानवीय स्वाभाविकता है कि सबकी आवश्यकता भिन्न होती है, रुचि भिन्न होती है, गति और क्षमता भिन्न होती है उसके अनुसार ही पाठ्यक्रम और पाठनपद्धति भिन्न भिन्न होनी चाहिये । परन्तु वह व्यवस्था में नहीं बैठता इसलिये सब समान किया जाता है।
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सकता है तो करना चाहिये । सकती है ।
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निश्चित समय के कालांश, निश्चित प्रकार का पाठ्यक्रम विभाजन, निश्चित प्रकार की परीक्षा पद्धति यान्त्रिकता का ही लक्षण है।
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दूसरा पर्याय कुछ समझौता करने का है । ऐसा प्रयोग भी हो सकता है - शिक्षकों ट्वारा शुरू
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सभी विषयों की समान परीक्षा पद्धति भी यान्त्रिकता का लक्षण है । सर्व प्रकार का मूल्यांकन अंकों में रूपान्तरित कर देना भी यान्त्रिक प्रक्रिया है
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देश में जो शैक्षिक संगठन हैं उन्होंने सरकार के साथ... किया गया प्रयोग निःशुल्क चलाना । इस विद्यालय को
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यहाँ मौलिकता, विवेक, सृजनशीलता, भिन्न आकलन आदि कुछ मान्य नहीं होता । जहाँ कल्पनाशक्ति, दृष्टिकोण, स्वतन्त्र आकलन, विवेक के अभाव में अमान्य और वादग्रस्त हो जाते हैं और धीरे धीरे इसका मूल्यांकन बन्द हो जाता है और जिन्हें ‘ओब्जेक्टिव' कहा जाता है ऐसे ही प्रश्न पूछकर परीक्षा ली जाती है । इसमें समझ की गहराई नहीं नापी जाती, जानकारी नापी जाती है । इस प्रकार यान्त्रिक होते होते बात पत्राचार पाठ्क्रम, इ-लर्निंग आदि पर चली जाती है । यह यन्त्र के अधीन होने की परिसीमा है।
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आग्रहपूर्वक बात करनी चाहिये और कहना चाहिये कि... चलाने के लिये समाज का सहयोग प्राप्त करने हेतु शिक्षकों
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सर्व प्रकार का मूल्यांकन अंकों में और सर्व प्रकार की योग्यता अर्थार्जन में मानना यान्त्रिकता के अधीन ही जाना है । इससे जीवन भौतिक स्तर पर उतर आता है।
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Rast, सचिव आदि सारे पद शिक्षकों के ही होने और अभिभावकों और विद्यार्थी आदि बडे हैं तो विद्यार्थी
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यान्त्रिकता और भौतिकता साथ साथ चलते हैं। भौतिकता का यह दृष्टिकोण विषयों के आकलन तक पहुँचता है।
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चाहिये । जो शिक्षक नहीं वह शिक्षा क्षेत्र की जिम्मेदारी नहीं... शिक्षकों का सहयोग करें ऐसी व्यवस्था हो सकती है ।
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उदाहरण के लिये आज विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में योग शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत रखा गया है। योग की परिभाषा पातंजलयोगसूत्र में इस प्रकार दी गई है, 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः' अर्थात् चित्तवृत्यिों के निरोध को योग कहते हैं । यहाँ 'चित्त' अन्तःकरण के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । इसका अर्थ यह है कि योग का सम्बन्ध शरीर से नहीं, अन्तःकरण से है। अर्थात् योग को या तो मनोविज्ञान के अथवा इसे योगदर्शन कहें तो तत्त्वज्ञान के विभाग में समावेश होना चाहिये । परन्तु आज योग को व्यायाम अथवा चिकित्सा मानकर उसे शरीर से जोडते हैं । मनोविज्ञान को भारत में आत्मविज्ञान के प्रकाश में देखा जाता है, वर्तमान व्यवस्था में उसे भौतिक स्तर पर उतार दिया गया है । ये तो गम्भीर बातें हैं । ये सम्पूर्ण जीवन की दृष्टि ही बदल देती हैं
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ले सकता । यह काम यदि होता है तो गाडी सही दिशा में ऐसे और भी अनेक मौलिक प्रयोग हो सकते हैं । इस
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===== उपाय योजना =====
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वास्तव में भारतीय शिक्षा अध्यात्मनिष्ठ होनी चाहिये, वर्तमान व्यवस्था उसे देहनिष्ठ बना देती है।
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कुछ मात्रा में तो जा सकती है यह भी साहसी काम है - दिशा में विचार शुरू किया तो भारत के लोगों को अनेक
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ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं इनका विवरण अधिक अधिक करने के स्थान पर इसका उपाय क्या करना यही सोचना चाहिये।
 
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तीसरा प्रयोग है - निजी विद्यालय चलाने के लिये नई नई बातें सुझ सकती हैं क्योंकि भारत के अन्तर्मन में
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जो संस्थायें स्थापित होती हैं उनके सारे पदाधिकारी शिक्षक शिक्षा और शिक्षक को उन्नत स्थान पर बिठाकर उनका
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ही होने चाहिये । वे कभी शिक्षक रहे हैं ऐसे नहीं, प्रत्यक्ष _. सम्मान करने की चाह होती ही है ।
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पढ़ाने वाले शिक्षक होने चाहिये । जो शिक्षक नहीं वह अभी तो अविचार की स्थिति है । हमें वास्तविकता
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संस्था का सदस्य या पदाधिकारी नहीं हो सकता, संस्था के... का खास ज्ञान और भान ही नहीं है । यदि भान आये तो
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पदों की शब्दावली भी शिक्षाक्षेत्र के अनुकूल होनी... मार्ग भी निकल सकता है ।
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चाहिये ।. अध्यक्ष, मंत्री, . कोषाध्यक्ष, . कार्यकारिणी, धर्म की तरह शिक्षा भी उसका सम्मान करने से ही
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साधारणसभा आदि नहीं अपितु कुलपति, आचार्य, आचार्य. हमें सम्मान दिला सकती है ।
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विद्यालय की यान्त्रिकता को कैसे दूर करें
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मनुष्य यंत्र द्वारा संचालित न हो चलाने वाली सर्व प्रकार की ऊर्जा से श्रेष्ठ और अलग प्रकार
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यन्त्र और मनुष्य में क्या अन्तर है ? यन्त्र ऊर्जा से तो की है । यन्त्रों को चलाने वाली सर्व ऊर्जा भी पंचमहाभूतात्मक
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चलता है परन्तु अपने विवेक से नहीं चलता । मनुष्य अपने... ही है यद्यपि उसका स्रोत सूर्य है । मनुष्य में जो प्राणरूपी ऊर्जा
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विवेक से चलता है। यन्त्र में भावना नहीं होती । यन्त्र में है वह विशिष्ट इसलिये है कि वह मनुष्य शरीर को सजीव बनाती
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है और जिससे उसकी वृद्धि होती है और उसके ही जैसे दूसरे
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सजीव को जन्म देती है । इतना ही यन्त्र और मनुष्य में समान
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है । इसके बाद जितने भी प्रकार की शक्ति है वह केवल
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यन्त्र की शक्ति पंचमहाभूतात्मक शक्ति है । वह बना भी... मनुष्य में en । पूर्व में कहा उसके अनुसार इच्छा; भावना,
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होता है पंचमहाभूतों का ही । उसमें ऊर्जा के कारण कार्यशक्ति विचार, वंदना, विवेक, निर्णय, संस्कार मनुष्य की विशेष
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आती है । उसके बाद उसे चलाने के लिये मनुष्य की ही... रफियाँ हैं ।
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आवश्यकता होती है । मनुष्य में यन्त्रशक्ति है । मनुष्य का शरीर इसलिये मनुष्य को ही यन्त्र को चलाना चाहिये, यन्त्र
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ही एक अद्भुत यन्त्र है । शरीररूपी यन्त्र को चलाने के लिये... द्वारा संचालित नहीं होना चाहिये । इस मुद्दे को सामने रखकर
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ऊर्जा भी है । वह ऊर्जा है प्राण । प्राण की ऊर्जा यन्त्र को... अब विद्यालय की वर्तमान व्यवस्था की ओर देखना चाहिये ।
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अहंकार नहीं होता । यन्त्र पर संस्कार नहीं होते । भावना,
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अहंकार, संस्कार ये सब अन्तःकरण के विषय होते हैं । यन्त्र
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में अन्तःकरण नहीं होता, मनुष्य में होता है ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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जाना है । इससे जीवन भौतिक स्तर पर उतर आता है ।
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प्रश्न यह है कि इसका क्या किया जाय ।
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* सर्वप्रथम शिक्षकों को अधिक विश्वसनीय बनना चाहिये । सारी समस्याओं की जड शिक्षक विश्वसनीय और दायित्व को समझने वाले नहीं रहे यह है ।
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* विश्वसनीय और दायित्वबोध से युक्त होने के बाद शिक्षकों को यान्त्रिकता यह प्रश्न क्या है, उसका स्वरूप कैसा है, उसके परिणाम कैसे हैं और भारतीय जीवनदृष्टि और भारतीय जनमानस के साथ यह कितना विसंगत है यह समझना होगा । यह शिशु से उच्चशिक्षा तक सर्वत्र व्याप्त प्रश्न है यह भी समझना होगा । अपने अपने स्तर पर इसके उपाय का विचार करना होगा ।
 
०... विद्यालय में प्रवेश की आयु ५ वर्ष पूर्ण है । अब वह... * यान्त्रिकता और भौतिकता हा साथ चलते हैं ।
 
०... विद्यालय में प्रवेश की आयु ५ वर्ष पूर्ण है । अब वह... * यान्त्रिकता और भौतिकता हा साथ चलते हैं ।
  
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