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शिक्षक पूरे गाँव के लिये सम्माननीय था । घर के विवाहादि अवसरों पर शिक्षक का सम्मान किया जाता था और वस्त्र, अलंकार जैसी भौतिक वस्तु के रूप में यह सम्मान होता था । उसे भोजन के लिये भी बुलाया जाता था । विद्यार्थी जब अध्ययन पूर्ण करता था तब गुरुदक्षिणा देता था । यह भी उसके घर की हैसियत से ही होती थी । संक्षेप में गाँव के बच्चों को ज्ञान देने वाले को गाँव कभी भी दृरिद्र और बेचारा नहीं रहने देता था ।
 
शिक्षक पूरे गाँव के लिये सम्माननीय था । घर के विवाहादि अवसरों पर शिक्षक का सम्मान किया जाता था और वस्त्र, अलंकार जैसी भौतिक वस्तु के रूप में यह सम्मान होता था । उसे भोजन के लिये भी बुलाया जाता था । विद्यार्थी जब अध्ययन पूर्ण करता था तब गुरुदक्षिणा देता था । यह भी उसके घर की हैसियत से ही होती थी । संक्षेप में गाँव के बच्चों को ज्ञान देने वाले को गाँव कभी भी दृरिद्र और बेचारा नहीं रहने देता था ।
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यह भारत का स्वभाव ही रहा है । परिवार-भावना से
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यह भारत का स्वभाव ही रहा है । परिवार-भावना से जब सारी व्यवस्थायें चलती हैं तब सम्मान, सुरक्षा, आवश्यकताओं की पूर्ति होती ही है। भारत का जो सांस्कृतिक नुकसान हुआ है वह इन सारी व्यवस्थाओं के टूट जाने और उनके स्थान पर अनात्मीय, अपना अपना स्वार्थ देखनेवाली व्यवस्थाओं की प्रतिष्ठापना का हुआ है ।
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जब सारी व्यवस्थायें चलती हैं तब सम्मान, सुरक्षा,
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सम्माननीय पदों को नौकर बना देने वाली व्यवस्था किसका भला कर सकती है ? अनात्मीय व्यवहार करने वालों के बीच स्नेह और आदर कैसे हो सकता है ? यांत्रिक व्यवस्थाओं में जिन्दा व्यक्तियों का सम्मान कैसे हो सकता है ? निष्प्राण भौतिक पदार्थ संस्कृति का सम्मान कैसे कर सकता है ?
 
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आवश्यकताओं की पूर्ति होती ही है। भारत का जो
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सांस्कृतिक नुकसान हुआ है वह इन सारी व्यवस्थाओं के
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टूट जाने और उनके स्थान पर अनात्मीय, अपना अपना
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स्वार्थ देखनेवाली व्यवस्थाओं की प्रतिष्ठापना का हुआ है ।
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सम्माननीय पदों को नौकर बना देने वाली व्यवस्था
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किसका भला कर सकती है ? अनात्मीय व्यवहार करने
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वालों के बीच स्नेह और आदर कैसे हो सकता है ?
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यांत्रिक व्यवस्थाओं में जिन्दा व्यक्तियों का सम्मान कैसे हो
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सकता है ? निष्प्राण भौतिक पदार्थ संस्कृति का सम्मान
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कैसे कर सकता है ?
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आज की विडम्बना
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===== आज की विडम्बना =====
 
आज स्थिति ऐसी है । विडम्बना यह है कि आज भी
 
आज स्थिति ऐसी है । विडम्बना यह है कि आज भी
  
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