Difference between revisions of "Adiparva Adhyaya 20 (आदिपर्वणि अध्यायः २०)"
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एवमस्त्विति तं पुत्रं प्रत्युवाच यशस्विनी॥) | एवमस्त्विति तं पुत्रं प्रत्युवाच यशस्विनी॥) | ||
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे विंशोऽध्यायः॥ 20 ॥ | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे विंशोऽध्यायः॥ 20 ॥ | ||
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Latest revision as of 10:11, 14 October 2019
सौतिरुवाच एतत्ते कथितं सर्वममृतं मथितं यथा। यत्र सोऽस्वः समुत्पन्नः श्रीमानतुलविक्रमः॥ 1-20-1 यं निशम्य तदा कद्रूर्विनताम् इदमब्रवीत्। उच्चैःश्रवा हि किं वर्णो भद्रे प्रब्रूहि माचिरम्॥ 1-20-2 विनतोवाच श्वेत एवाश्वराजोऽयं किं वा त्वं मन्यसे शुभे। ब्रूहि वर्णं त्वमप्यस्य ततोऽत्र विपणावहे॥ 1-20-3 कद्रूरुवाच कृष्णवालमहं मन्ये हयमेन शुचिस्मिते। एहि सार्धं मया दीव्य दासीभावाय भामिनि॥ 1-20-4 सौतिरुवाच एवं ते समयं कृत्वा दासीभावाय वै मिथः। जग्मतुः स्वगृहानेव श्वो द्रक्ष्याव इति स्म ह॥ 1-20-5 ततः पुत्रसहस्रं तु कद्रूर्जिह्मं चिकीर्षती। आज्ञापयामास तदा वाला भूत्वाञ्जनप्रभाः॥ 1-20-6 आविशध्वं हयं क्षिप्रं दासी न स्यामहं यथा। नावपद्यन्त ये वाक्यं ताञ्छशाप भुजङ्गमान्॥ 1-20-7 सर्पसत्रे वर्तमाने पावको वः प्रधक्ष्यति। जनमेजयस्य राजर्षेः पाण्डवेयस्य धीमतः॥ 1-20-8 शापमेनं तु शुश्राव स्वयमेव पितामहः। अतिक्रूरं समुत्सृष्टं कद्र्वा दैवादतीव हि॥ 1-20-9 सार्धं देवगणैः सर्वैर्वाचं तामन्वमोदत। बहुत्वं प्रेक्ष्य सर्पाणां प्रजानां हितकाम्यया॥ 1-20-10 तिग्मवीर्यविषा ह्येते दन्दशूका महाबलाः। तेषां तीक्ष्णविषत्वाद्धि प्रजानां च हिताय च॥ 1-20-11 युक्तं मात्रा कृतं तेषां परपीडोपसर्पिणाम्। अन्येषामपि सत्त्वानां नित्यं दोषपरास्तु ये॥ 1-20-12 तेषां प्राणान्तको दण्डो दैवेन विनिपात्यते। एवं सम्भाष्य देवस्तु पूज्य कद्रूं च तां तदा॥ 1-20-13 आहूय कश्यपं देव इदं वचनमब्रवीत्। यदेते दन्दशूकाश्च सर्पा जातास्त्वयानघ॥ 1-20-14 विषोल्बणा महाभोगा मात्रा शप्ताः परंतप। तत्र मन्युस्त्वया तात न कर्तव्यः कथंचन॥ 1-20-15 दृष्टं पुरातनं ह्येतद्यज्ञे सर्पविनाशनम्। इत्युक्त्वा सृष्टिकृद्देवस्तं प्रसाद्य प्रजापतिम्। प्रादाद्विषहरीं विद्यां कश्यपाय महात्मने॥ 1-20-16 (एवं शप्तेषु नागेषु कद्रूवा च द्विजसत्तम्। उद्विग्नः शापतस्तस्याः कद्रूं कर्कोटकः अऽब्रवीत्॥ मातरं परमप्रीतस्तदा भुजगसत्तमः। आविश्य वाजिनं मुख्यं वालो भूत्वाञ्जनप्रभः॥ दर्शयिष्यामि तत्राहमात्मानं काममाश्वस। एवमस्त्विति तं पुत्रं प्रत्युवाच यशस्विनी॥) इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे विंशोऽध्यायः॥ 20 ॥ Kadru Vinata Kadru Vinata rivalry competition Ucchaishrava कद्रु विनता कद्रु विनताकी होड़ उच्चैश्रवा curse curse of Kadru शाप कद्रुका शाप Approval of Brahma Approval Brahma ब्रह्माजी का अनुमोदन ब्रह्मा अनुमोदन