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| | {{One source|date=August 2019}} | | {{One source|date=August 2019}} |
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| | + | शिक्षा की जब चर्चा चलती है तब व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिये शिक्षा का विचार होता है। व्यक्तित्व विकास की कल्पना की जाती है । सर्वांगीण विकास के साथ साथ समग्र विकास की भी चर्चा अब होने लगी है। जो लोग समग्र विकास के स्थान पर सर्वांगीण विकास की बात करते हैं वे भी सामाजिक विकास की, राष्ट्रीय विकास की भी बात करते हैं। परन्तु शिक्षा का विचार करते समय केवल व्यक्तिगत शिक्षा या समग्र के संदर्भ में व्यक्ति के विकास की बात करना पर्याप्त नहीं होता है। देश की और विश्व की आज की स्थिति देखते हुए तो यह बात विशेष ध्यान में आती है क्योंकि आज विश्व में एक से बढ़कर एक शिक्षासंस्थान हैं तो भी विश्व की दशा ठीक नहीं है। संकट इतने बढ़ रहे हैं कि स्थिति जैसे हाथ से बाहर निकल जा रही है, कोई उपाय नहीं सूझ रहा है । इससे भी ध्यान में आता है कि केवल व्यक्ति का विचार करना पर्याप्त नहीं है, देश का भी विचार करना चाहिए । |
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| − | शिक्षा की जब चर्चा चलती है तब व्यक्तित्व के | + | == देश का विचार कैसे करें == |
| | + | देश का विचार करना है तो तीन बातों का विचार करना चाहिए: |
| | + | * समस्त भूप्रदेश में जिन जिन क्षेत्रों में प्रजाजन निवास कर रहे हैं उन सभी के सन्दर्भ में शिक्षा का विचार |
| | + | * समस्त प्रजाजनों के अभ्युद्य और निःश्रेयस का विचार |
| | + | * वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देश की समृद्धि और संस्कृति की रक्षा का विचार |
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| − | सर्वांगीण विकास के लिये शिक्षा का विचार होता है।
| + | == समस्त भूप्रदेश में निवास करने वाले प्रजाजनों के सन्दर्भ में शिक्षा == |
| − | | + | भारत बहुत बड़ा देश है । विश्व के अनेक देश तो भारत के एक छोटे राज्य जितने अथवा कहीं तो एक जिले जितने विस्तार के हैं। इतने बड़े भूप्रदेश में अपरिमित भौगोलिक और सांस्कृतिक वैविध्य है। राज्य राज्य में अलग भाषा है, एक एक भाषा की अनेक बोलियाँ हैं, अलग खानपान है, अलग वेशभूशा है, अलग रीतिरिवाज है । प्रकृति ने भी बहुत वैविध्य दिया है । तापमान, वर्षा, धान्य, औषधि आदि की प्रदेश प्रदेश की विविधता है । अनेक सम्प्रदाय हैं । समय समय पर नये नये सम्प्रदाय बन रहे हैं । इतनी सारी विविधता भेद्भाव और कलह का कारण न बने इस दृष्टि से शिक्षा की सम्यक व्यवस्था होना अत्यन्त आवश्यक है । भारत का इतिहास प्रमाण है कि हमने इस विविधता को अत्यन्त आदर और गौरव के साथ सम्हाला है और उससे देश लाभान्वित हुआ है । आज विविधता सौन्दर्य का लक्षण न रहकर भेद का कारण बन रही है । इसीलिए शिक्षा के सम्बन्ध में पुनर्विचार की आवश्यकता है । प्रथम विचार देश के प्रजाजनों के जो प्रमुख विभाग हैं उनका करेंगे । ये विभाग हैं वनवासी, ग्रामवासी, नगरवासी, प्रजाजन । हम एक एक कर इनका विचार करेंगे । |
| − | व्यक्तित्व विकास की कल्पना की जाती है । सर्वागीण
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| − | | |
| − | विकास के साथ साथ समग्र विकास की भी चर्चा अब होने
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| − | | |
| − | लगी है। जो लोग समग्र विकास के स्थान पर सर्वागीण
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| − | | |
| − | विकास की बात करते हैं वे भी सामाजिक विकास की,
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| − | राष्ट्रीय विकास की भी बात करते हैं। परन्तु शिक्षा का
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| − | | |
| − | विचार करते समय केवल व्यक्तिगत शिक्षा या समग्र के संदर्भ
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| − | | |
| − | में व्यक्ति के विकास की बात करना पर्याप्त नहीं होता है ।
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| − | | |
| − | देश की और विश्व की आज की स्थिति देखते हुए तो यह
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| − | बात विशेष ध्यान में आती है क्योंकि आज विश्व में एक से
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| − | | |
| − | बढ़कर एक शिक्षासंस्थान हैं तो भी विश्व की दशा ठीक नहीं
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| − | | |
| − | है । संकट इतने बढ़ रहे हैं कि स्थिति जैसे हाथ से बाहर
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| − | | |
| − | निकल जा रही है, कोई उपाय नहीं सूझ रहा है । इससे भी
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| − | ध्यान में आता है कि केवल व्यक्ति का विचार करना पर्याप्त
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| − | | |
| − | नहीं है, देश का भी विचार करना चाहिए ।
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| − | देश का विचार कैसे करें
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| − | देश का विचार करना है तो तीन बातों का विचार
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| − | करना चाहिए ।
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| − | ०... समस्त भूप्रदेश में जिन जिन क्षेत्रों में प्रजाजन निवास
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| − | | |
| − | कर रहे हैं उन सभीके सन्दर्भ में शिक्षा का विचार
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| − | | |
| − | ०. समस्त प्रजाजनों के अभ्युद्य और निःश्रेयस का
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| − | | |
| − | विचार
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| − | | |
| − | ०... वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देश की समृद्धि और संस्कृति की
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| − | | |
| − | रक्षा का विचार
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| − | | |
| − | समस्त भूप्रदेश में निवास करने वाले प्रजाजनों के | |
| − | | |
| − | सन्दर्भ में शिक्षा | |
| − | | |
| − | भारत बहुत बड़ा देश है । विश्व के अनेक देश तो | |
| − | | |
| − | भारत के एक छोटे राज्य जितने अथवा कहीं तो एक जिले | |
| − | | |
| − | जितने विस्तार के हैं। इतने बड़े भूप्रदेश में अपरिमित | |
| − | | |
| − | भौगोलिक और सांस्कृतिक वैविध्य है। राज्य राज्य में | |
| − | | |
| − | अलग भाषा है, एक एक भाषा की अनेक बोलियाँ हैं, | |
| − | | |
| − | अलग खानपान है, अलग वेशभूशा है, अलग रीतिरिवाज | |
| − | | |
| − | है । प्रकृति ने भी बहुत वैविध्य दिया है । तापमान, वर्षा, | |
| − | | |
| − | धान्य, औषधि आदि की प्रदेश प्रदेश की विविधता है । | |
| − | | |
| − | अनेक सम्प्रदाय हैं । समय समय पर नये नये सम्प्रदाय बन | |
| − | | |
| − | रहे हैं । इतनी सारी विविधता भेद्भाव और कलह का कारण | |
| − | | |
| − | न बने इस दृष्टि से शिक्षा की सम्यक व्यवस्था होना अत्यन्त | |
| − | | |
| − | आवश्यक है । भारत का इतिहास प्रमाण है कि हमने इस | |
| − | | |
| − | विविधता को अत्यन्त आदर और गौरव के साथ सम्हाला है | |
| − | | |
| − | और उससे देश लाभान्वित हुआ है । आज विविधता सौन्दर्य | |
| − | | |
| − | का लक्षण न रहकर भेद का कारण बन रही है । इसीलिए | |
| − | | |
| − | शिक्षा के सम्बन्ध में पुनर्विचार की आवश्यकता है । | |
| − | | |
| − | प्रथम विचार देश के प्रजाजनों के जो प्रमुख विभाग हैं | |
| − | | |
| − | उनका करेंगे । ये विभाग हैं वनवासी, ग्रामबासी, नगरवासी | |
| − | | |
| − | प्रजाजन । हम एक एक कर इनका विचार करेंगे । | |
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| − | बनवासी क्षेत्र और शिक्षा
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| − | | |
| − | विशाल भारत के लगभग सभी राज्यों में वनवासी क्षेत्र
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| − | | |
| − | है । पूरे देश में लगभग १०.४३ करोड वनवासी लोग रहते
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| − | | |
| − | हैं। देश की कुल जनसंख्या का यह ८.६ प्रतिशत है ।
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| − | | |
| − | वैश्विक सन्दर्भ में भी वनवासी क्षेत्र की शिक्षा का विचार
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| − | | |
| − | करने की आवश्यकता तो है ही क्योंकि वन तो पृथ्वी पर
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| − | | |
| − | सर्वत्र है । परन्तु हम यहाँ विशेष रूप से भारत के सन्दर्भ में
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| − | | |
| − | विचार करेंगे । इस सन्दर्भ में कुछ इस प्रकार से विचार करना
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| − | | |
| − | चाहिए ...
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| − | | |
| − | ०... वनों में रहने वाले वन की प्रकृति के अंग रूप बनकर
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| − | | |
| − | जीते हैं । वनों में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और
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| − | ............. page-115 .............
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| − | पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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| − | | |
| − | औषधि भरपूर मात्रा में होती हैं । वन इतने गहन होते
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| − | | |
| − | हैं कि वहाँ सड़कें बनना संभव नहीं होता । वनों के
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| − | | |
| − | साथ अधिकांश पहाड़ भी होते हैं । वनों और पहाड़ों
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| − | | |
| − | के कारण यातायात दुर्गम होता है । वहाँ का आहार
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| − | | |
| − | वहाँ उगने वाले धान्य और सागसब्जी और फलों का
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| | + | == वनवासी क्षेत्र और शिक्षा == |
| | + | विशाल भारत के लगभग सभी राज्यों में वनवासी क्षेत्र है। पूरे देश में लगभग १०.४३ करोड वनवासी लोग रहते हैं। देश की कुल जनसंख्या का यह ८.६ प्रतिशत है वैश्विक सन्दर्भ में भी वनवासी क्षेत्र की शिक्षा का विचार करने की आवश्यकता तो है ही क्योंकि वन तो पृथ्वी पर सर्वत्र है। परन्तु हम यहाँ विशेष रूप से भारत के सन्दर्भ में विचार करेंगे। इस सन्दर्भ में कुछ इस प्रकार से विचार करना चाहिए: |
| | + | * वनों में रहने वाले वन की प्रकृति के अंग रूप बनकर जीते हैं । वनों में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और औषधि भरपूर मात्रा में होती हैं । वन इतने गहन होते हैं कि वहाँ सड़कें बनना संभव नहीं होता । वनों के साथ अधिकांश पहाड़ भी होते हैं । वनों और पहाड़ों के कारण यातायात दुर्गम होता है । वहाँ का आहार वहाँ उगने वाले धान्य और सागसब्जी और फलों का |
| | होता है । वहाँ के आवास, वस्त्रालंकार आदि वहाँ | | होता है । वहाँ के आवास, वस्त्रालंकार आदि वहाँ |
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| | जीवन की उनकी अपनी समझ है । उनके मनुष्यों के | | जीवन की उनकी अपनी समझ है । उनके मनुष्यों के |
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| − | 88
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| | साथ और वन्य पशुओं तथा | | साथ और वन्य पशुओं तथा |
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| | जिस प्रकार नागरी संस्कृति का आक्रमण उनके लिये | | जिस प्रकार नागरी संस्कृति का आक्रमण उनके लिये |
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| − | संकट का एक निमित्त है उसी प्रकार धर्मांतरण का | + | संकट का एक निमित्त है उसी प्रकार धर्मांतरण का संकट बहुत बड़ा है। भारतीयता की |
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| − | संकट बहुत बड़ा है। भारतीयता की | |
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| | मुख्य धारा से तोड़ने का काम एक ओर ईसाई | | मुख्य धारा से तोड़ने का काम एक ओर ईसाई |
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Line 212: |
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| | ०... सर्व प्रथम हमारे विश्वविद्यालयों में वनवासी संस्कृति | | ०... सर्व प्रथम हमारे विश्वविद्यालयों में वनवासी संस्कृति |
| − |
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| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| | | | |
| | का अध्ययन होना चाहिए । ऐसे अध्ययन हेतु कुछ | | का अध्ययन होना चाहिए । ऐसे अध्ययन हेतु कुछ |
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Line 261: |
| | नहीं है, पारम्परिक है । परन्तु अनुभव यह आता है | | नहीं है, पारम्परिक है । परन्तु अनुभव यह आता है |
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| − | कि शाख्रीय ज्ञान प्राप्त किए हुए अनेक लोगों की | + | कि शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किए हुए अनेक लोगों की |
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| | तुलना में वह अधिक पक्का और परिणामकारी है । | | तुलना में वह अधिक पक्का और परिणामकारी है । |
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| | कर उसे प्रतिष्ठा दिलाने का प्रयास करना चाहिए । | | कर उसे प्रतिष्ठा दिलाने का प्रयास करना चाहिए । |
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| + | ''हमारी सरकारी नीतियाँ आज तो इसके विपरीत हैं अध्ययन के प्रतिकूल होता है ।'' |
| − | | |
| − | पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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| − | | |
| − | हमारी सरकारी नीतियाँ आज तो इसके विपरीत हैं अध्ययन के प्रतिकूल होता है । | |
| − | | |
| − | परन्तु हमें इसका भी ठीक से अध्ययन कर समस्या... *... नगरों और बनों को एकदूसरे की सहायता की
| |
| | | | |
| − | सुलझाने का प्रयास करना चाहिए । आवश्यकता है । नगर वनों के ज्ञान को प्रतिष्ठा दें ।
| + | ''परन्तु हमें इसका भी ठीक से अध्ययन कर समस्या... *... नगरों और बनों को एकदूसरे की सहायता की'' |
| | | | |
| − | ०... वनवासियों को नगर में लाने का प्रयास हम सोचते हैं वन नगरों को ज्ञान के भारतीय अधिष्ठान की प्रेरणा
| + | ''सुलझाने का प्रयास करना चाहिए । आवश्यकता है । नगर वनों के ज्ञान को प्रतिष्ठा दें ।'' |
| | | | |
| − | उतना उचित नहीं है । वे वन में रहकर खुश हैं तो उन्हें दे । परस्पर लाभान्वित होकर दोनों समरसता स्थापित
| + | ''०... वनवासियों को नगर में लाने का प्रयास हम सोचते हैं वन नगरों को ज्ञान के भारतीय अधिष्ठान की प्रेरणा'' |
| | | | |
| − | नगरों में लाने की या नगरों को वनो में ले जाने की कर सकते हैं । ..
| + | ''उतना उचित नहीं है । वे वन में रहकर खुश हैं तो उन्हें दे । परस्पर लाभान्वित होकर दोनों समरसता स्थापित'' |
| | | | |
| − | क्या आवश्यकता है ?
| + | ''नगरों में लाने की या नगरों को वनो में ले जाने की कर सकते हैं । ..'' |
| | | | |
| − | ०... उनके शिक्षा क्रम में हुनर की नई नई तकनीकी और ग्रामशिक्षा
| + | ''क्या आवश्यकता है ?'' |
| | | | |
| − | राष्ट्रदर्शन ये दो महत्त्वपूर्ण अंग होने चाहिए । राष्ट्रजीवन भारतमाता ग्रामवासिनी है । ग्राम देश की ग्रामलक्ष्मी
| + | ''०... उनके शिक्षा क्रम में हुनर की नई नई तकनीकी और ग्रामशिक्षा'' |
| | | | |
| − | को समृद्ध बनाने में वनवासियों का कितना अधिक... है| देश की समृद्धि का स्रोत ग्राम है । भारत में लगभग सात
| + | ''राष्ट्रदर्शन ये दो महत्त्वपूर्ण अंग होने चाहिए । राष्ट्रजीवन'' |
| | | | |
| − | योगदान है इसकी अनुभूति करवानी चाहिए । यह... लाख ग्राम हैं । इतनी बड़ी संख्या में यदि ग्राम हैं तो देश
| + | ''भारतमाता ग्रामवासिनी है । ग्राम देश की ग्रामलक्ष्मी'' |
| | | | |
| − | जानकारी हमारे नगरों में पढ़ने वाले छात्रों को भी... अत्यन्त समृद्ध होना चाहिये और देश में किसी भी वस्तु का
| + | ''को समृद्ध बनाने में वनवासियों का कितना अधिक... है| देश की समृद्धि का स्रोत ग्राम है । भारत में लगभग सात'' |
| | | | |
| − | उचित स्वरूप में मिलनी चाहिए । अभाव नहीं होना चाहिये । परन्तु भारत की स्थिति को देखते
| + | ''योगदान है इसकी अनुभूति करवानी चाहिए । यह... लाख ग्राम हैं । इतनी बड़ी संख्या में यदि ग्राम हैं तो देश'' |
| | | | |
| − | ०... नगरों के छात्रों को वनवासी संस्कृति का अध्ययन... हुए या तो यह कथन असत्य लगता है अथवा भारत वास्तव
| + | ''जानकारी हमारे नगरों में पढ़ने वाले छात्रों को भी... अत्यन्त समृद्ध होना चाहिये और देश में किसी भी वस्तु का'' |
| | | | |
| − | सामान्य शिक्षा में होना चाहिए । शिक्षा के सभी स्तरों... में समृद्ध है परन्तु हम उस समृद्धि को देख नहीं सकते हैं ।
| + | ''उचित स्वरूप में मिलनी चाहिए । अभाव नहीं होना चाहिये । परन्तु भारत की स्थिति को देखते'' |
| | | | |
| − | पर विशेष योजना बनाकर ऐसा शिक्षाक्रम बनाया जा ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे
| + | ''०... नगरों के छात्रों को वनवासी संस्कृति का अध्ययन... हुए या तो यह कथन असत्य लगता है अथवा भारत वास्तव'' |
| | | | |
| − | सकता है । ग्रामविषयक चिन्तन में और उसके आधार पर किये जा रहे
| + | ''सामान्य शिक्षा में होना चाहिए । शिक्षा के सभी स्तरों... में समृद्ध है परन्तु हम उस समृद्धि को देख नहीं सकते हैं ।'' |
| | | | |
| − | ०... नागरी क्षेत्र और वनवासी क्षेत्र की समरसता दोनों क्षेत्रों... व्यवहार में कहीं गड़बड़ है । इस सन्दर्भ को ध्यान में रखकर
| + | ''पर विशेष योजना बनाकर ऐसा शिक्षाक्रम बनाया जा ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे'' |
| | | | |
| − | की शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। वनों को नष्ट ... हम कुछ बातों का विचार करेंगे ।
| + | ''सकता है । ग्रामविषयक चिन्तन में और उसके आधार पर किये जा रहे'' |
| | | | |
| − | करना और सर्वत्र नगर ही नगर बना देना किसी भी ग्राम और ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा के सन्दर्भ में कुछ
| + | ''०... नागरी क्षेत्र और वनवासी क्षेत्र की समरसता दोनों क्षेत्रों... व्यवहार में कहीं गड़बड़ है । इस सन्दर्भ को ध्यान में रखकर'' |
| | | | |
| − | प्रकार से वांछनीय नहीं है । इस प्रकार की बातें विचारणीय हैं ।
| + | ''की शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। वनों को नष्ट ... हम कुछ बातों का विचार करेंगे ।'' |
| | | | |
| − | ०... एक बात विशेष रूप से सबके शिक्षाक्रम में समाविष्ट .. *... ग्राम किसे कहते हैं ? केवल जनसंख्या के आधार पर
| + | ''करना और सर्वत्र नगर ही नगर बना देना किसी भी ग्राम और ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा के सन्दर्भ में कुछ'' |
| | | | |
| − | होनी चाहिए । भारत का ज्ञान, भारत के गुरुकुल, ग्राम नहीं होता । हमने जनसंख्या का आधार लेकर
| + | ''प्रकार से वांछनीय नहीं है । इस प्रकार की बातें विचारणीय हैं ।'' |
| | | | |
| − | भारत की श्रेष्ठ शिक्षा तपोवनों में खिली है । ऋषि भूप्रदेश को ग्राम कहा है और उसके लिए प्रशासन के
| + | ''०... एक बात विशेष रूप से सबके शिक्षाक्रम में समाविष्ट .. *... ग्राम किसे कहते हैं ? केवल जनसंख्या के आधार पर'' |
| | | | |
| − | अरण्यवासी थे । वानप्रस्थी वनों में निवास करते थे । लिये ग्रामपंचायतों की व्यवस्था की है । सामान्य
| + | ''होनी चाहिए । भारत का ज्ञान, भारत के गुरुकुल, ग्राम नहीं होता । हमने जनसंख्या का आधार लेकर'' |
| | | | |
| − | तपस्वियों का तप वनों में होता था । आज भी पहाड़ों बातचीत में तो हम कह देते हैं की जहां ग्रामपंचायत
| + | ''भारत की श्रेष्ठ शिक्षा तपोवनों में खिली है । ऋषि भूप्रदेश को ग्राम कहा है और उसके लिए प्रशासन के'' |
| | | | |
| − | और वनों में अनेक सिद्ध योगी तपश्चर्या कर रहे हैं । होती है वह ग्राम होता है । ऐसा नहीं है, जहां ग्राम
| + | ''अरण्यवासी थे । वानप्रस्थी वनों में निवास करते थे । लिये ग्रामपंचायतों की व्यवस्था की है । सामान्य'' |
| | | | |
| − | हजारों वर्षों की तपश्चर्या और ज्ञान वनों में आज भी होता है वहाँ ग्रामपंचायत होती है । वास्तव में ग्राम
| + | ''तपस्वियों का तप वनों में होता था । आज भी पहाड़ों बातचीत में तो हम कह देते हैं की जहां ग्रामपंचायत'' |
| | | | |
| − | सुरक्षित है। इस तपश्चर्या के कारण वन पतित्र की यह परिभाषा ठीक नहीं है ।
| + | ''और वनों में अनेक सिद्ध योगी तपश्चर्या कर रहे हैं । होती है वह ग्राम होता है । ऐसा नहीं है, जहां ग्राम'' |
| | | | |
| − | वातावरण से युक्त हैं । इस पवित्रता की कथाओं को... *... ग्राम की भारतीय पारम्परिक परिभाषा आर्थिक है ।
| + | ''हजारों वर्षों की तपश्चर्या और ज्ञान वनों में आज भी होता है वहाँ ग्रामपंचायत होती है । वास्तव में ग्राम'' |
| | | | |
| − | पाठयक्र्मों में स्थान देना चाहिए । जिस प्रकार कुट्म्ब सामाजिक लघुतम इकाई है उस
| + | ''सुरक्षित है। इस तपश्चर्या के कारण वन पतित्र की यह परिभाषा ठीक नहीं है ।'' |
| | | | |
| − | ०. इन वनों में आज भी विश्वविद्यालय स्थापित किए जा प्रकार गाँव लघुतम आर्थिक इकाई है । मनुष्य का
| + | ''वातावरण से युक्त हैं । इस पवित्रता की कथाओं को... *... ग्राम की भारतीय पारम्परिक परिभाषा आर्थिक है ।'' |
| | | | |
| − | सकते हैं जो वनों के वातावरण से अनुप्राणित होकर दैनंदिन जीवन की सारी आवश्यकताओं का उत्पादन
| + | ''पाठयक्र्मों में स्थान देना चाहिए । जिस प्रकार कुट्म्ब सामाजिक लघुतम इकाई है उस'' |
| | | | |
| − | नागरी जीवन के लिए अध्ययन और अनुसन्धान करें । हो जाता है और बाहर से कुछ भी लाना नहीं पड़ता
| + | ''०. इन वनों में आज भी विश्वविद्यालय स्थापित किए जा प्रकार गाँव लघुतम आर्थिक इकाई है । मनुष्य का'' |
| | | | |
| − | नगरों का वातावरण तो वैसे भी कलुषित और वह गाँव है ।
| + | ''सकते हैं जो वनों के वातावरण से अनुप्राणित होकर दैनंदिन जीवन की सारी आवश्यकताओं का उत्पादन'' |
| | | | |
| − | Fok
| + | ''नागरी जीवन के लिए अध्ययन और अनुसन्धान करें । हो जाता है और बाहर से कुछ भी लाना नहीं पड़ता'' |
| | | | |
| − | ............. page-118 .............
| + | ''नगरों का वातावरण तो वैसे भी कलुषित और वह गाँव है ।'' |
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| | ° wa उद्योगकेन्द्र होते हैं। | | ° wa उद्योगकेन्द्र होते हैं। |
| Line 553: |
Line 424: |
| | | | |
| | गाँव की इस संकल्पना को लेकर शिक्षा की व्यवस्था | | गाँव की इस संकल्पना को लेकर शिक्षा की व्यवस्था |
| − |
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| − | FoR
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| − |
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| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
| | | | |
| | करनी चाहिये । | | करनी चाहिये । |
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| | है तब संस्कृति और समृद्धि दोनों की हानि होती है । | | है तब संस्कृति और समृद्धि दोनों की हानि होती है । |
| − |
| |
| − | ............. page-119 .............
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| |
| − | पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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| | आज की भाषा में जितने भी इंजीनियरिंग और | | आज की भाषा में जितने भी इंजीनियरिंग और |
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| | | | |
| | ग्रामशिक्षा का उद्देश्य है । भारतीय वेश और परिवेश में | | ग्रामशिक्षा का उद्देश्य है । भारतीय वेश और परिवेश में |
| − |
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| − | श्०्३
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| | | | |
| | सादगी के साथ सौंदर्य कैसे है यह | | सादगी के साथ सौंदर्य कैसे है यह |
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| | | | |
| | चाहिये । इन उद्योगों में कारीगरी की शिक्षा के साथ | | चाहिये । इन उद्योगों में कारीगरी की शिक्षा के साथ |
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| − | ............. page-120 .............
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| | | | |
| | ही भाषा, संस्कृति, राष्ट्रीता आदि | | ही भाषा, संस्कृति, राष्ट्रीता आदि |
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| | हैं। अर्थकरी शिक्षा केवल अधथर्जिन की शिक्षा नहीं | | हैं। अर्थकरी शिक्षा केवल अधथर्जिन की शिक्षा नहीं |
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| |
| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| |
| | | | |
| | है, वह धर्म के अविरोधी satis की शिक्षा है, | | है, वह धर्म के अविरोधी satis की शिक्षा है, |
| Line 854: |
Line 711: |
| | की शिक्षा है । | | की शिक्षा है । |
| | | | |
| − | समाज के लिये शिक्षा | + | == समाज के लिये शिक्षा == |
| − | | |
| | समाज के लिये शिक्षा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं । | | समाज के लिये शिक्षा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं । |
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| Line 868: |
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| | सामाजिक अस्मिता | | सामाजिक अस्मिता |
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| − | सामाजिक समरसता | + | === सामाजिक समरसता === |
| − | | |
| | समाज की स्चना, समाज की व्यवस्था बहुत जटिल | | समाज की स्चना, समाज की व्यवस्था बहुत जटिल |
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| Line 915: |
Line 770: |
| | | | |
| | होते हैं। सही या गलत हेतुओं से प्रेरित होकर विभिन्न | | होते हैं। सही या गलत हेतुओं से प्रेरित होकर विभिन्न |
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| − | ............. page-121 .............
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| − | पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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| | | | |
| | आन्दोलन होते हैं जो हिंसक और अहिंसक दोनों प्रकार के... सीमा से बाहर सब एक हो जाते थे, | | आन्दोलन होते हैं जो हिंसक और अहिंसक दोनों प्रकार के... सीमा से बाहर सब एक हो जाते थे, |
| Line 940: |
Line 791: |
| | समरसता निर्माण करना ही होता है । दिखाता है परंतु मन में से भेद्भाव गया नहीं है, वह भिन्न | | समरसता निर्माण करना ही होता है । दिखाता है परंतु मन में से भेद्भाव गया नहीं है, वह भिन्न |
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| − | समरसता का स्वरूप स्वरूपों में प्रकट होता है । इसको मिटाने के लिये शिक्षा को | + | === समरसता का स्वरूप === |
| | + | स्वरूपों में प्रकट होता है । इसको मिटाने के लिये शिक्षा को |
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| | समाज में भेद तो रहेंगे ही । एक पदार्थ दूसरे से भिन्न... उहुँत गम्भीर प्रयास करने चाहिए । शिक्षित समाज समरस | | समाज में भेद तो रहेंगे ही । एक पदार्थ दूसरे से भिन्न... उहुँत गम्भीर प्रयास करने चाहिए । शिक्षित समाज समरस |
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| | पीते थे, कदाचित अस्पृश्यता भी मानते थे परंतु गाँव की... कानून के कारण, नीतियों के कारण और ऊपर वर्णित की | | पीते थे, कदाचित अस्पृश्यता भी मानते थे परंतु गाँव की... कानून के कारण, नीतियों के कारण और ऊपर वर्णित की |
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| − | १०५
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| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| | गई है ऐसी व्यावहारिक विवशताओं के... व्यावसायिकों को निमंत्रित किया जाता था । उनकी वस्तु | | गई है ऐसी व्यावहारिक विवशताओं के... व्यावसायिकों को निमंत्रित किया जाता था । उनकी वस्तु |
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| | करने की आवश्यकता है । हमारे देश का कारीगरी का इतिहास बताता है कि कारीगरी | | करने की आवश्यकता है । हमारे देश का कारीगरी का इतिहास बताता है कि कारीगरी |
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| − | सामाजिक सम्मान के अनेक क्षेत्रों में भारत ने उत्कृष्टता के जो नमूने दीये हैं वे | + | === सामाजिक सम्मान === |
| | + | के अनेक क्षेत्रों में भारत ने उत्कृष्टता के जो नमूने दीये हैं वे |
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| | भारतीय समाज में सामाजिक सम्मान की बहुत अच्छी... आज भी विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलते हैं । ढाका की | | भारतीय समाज में सामाजिक सम्मान की बहुत अच्छी... आज भी विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलते हैं । ढाका की |
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| | समय मंडप बांधने के लिये सुथार को, मटकी के लिये | | समय मंडप बांधने के लिये सुथार को, मटकी के लिये |
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| − | कुम्हार को तथा ऐसे ही अन्यान्य कामों के लिये अन्यान्य सामाजिक सुरक्षा | + | कुम्हार को तथा ऐसे ही अन्यान्य कामों के लिये अन्यान्य |
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| − | fog
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| − | पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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| | + | === सामाजिक सुरक्षा === |
| | जिस समाज में लोगों को अपने अपने हित की रक्षा | | जिस समाज में लोगों को अपने अपने हित की रक्षा |
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| | ग्रन्थों को मानवधर्मशास्त्र ही बताया गया है । | | ग्रन्थों को मानवधर्मशास्त्र ही बताया गया है । |
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| − | सामाजिक समृद्धि | + | === सामाजिक समृद्धि === |
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| | श्रेष्ठ समाज के दो लक्षण हैं । एक है संस्कृति और | | श्रेष्ठ समाज के दो लक्षण हैं । एक है संस्कृति और |
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| | है, अवहेलना सहनी पड़ती है वह संस्कारी नहीं बन सकता, | | है, अवहेलना सहनी पड़ती है वह संस्कारी नहीं बन सकता, |
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| | न संस्कारों का आदर कर सकता है । | | न संस्कारों का आदर कर सकता है । |
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| | सिद्धान्त को आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना नहीं | | सिद्धान्त को आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना नहीं |
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| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| | और आवश्यकता अनावश्यक रूप से बढ़ाना नहीं इस रूप में | | और आवश्यकता अनावश्यक रूप से बढ़ाना नहीं इस रूप में |
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| | समाज के हर घटक ने करना चाहिये । | | समाज के हर घटक ने करना चाहिये । |
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| − | सामाजिक अस्मिता | + | === सामाजिक अस्मिता === |
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| | श्रेष्ठ समाज के मन में गौरव का भाव भी होता है । | | श्रेष्ठ समाज के मन में गौरव का भाव भी होता है । |
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| | प्रकार का समाज निर्माण कर सके । | | प्रकार का समाज निर्माण कर सके । |
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| − | पर्व ३ : शिक्षा का मनोविज्ञान 22
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| − | LAVAL ७
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| | ==References== | | ==References== |