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| − | रुरुरुवाच
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| − | मम प्राणसमा भार्या दष्टासीद्भुजगेन ह।
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| − | तत्र मे समयो घोर आत्मनोरगा वै कृतः॥ 1-10-1
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| − | भुजङ्गं वै सदा हन्यां यं यं पश्येयमित्युत।
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| − | ततोऽहं त्वां जिघांसामि जीवितेनाद्य मोक्ष्यसे॥ 1-10-2 | + | रुरुरुवाच |
| − | | + | मम प्राणसमा भार्या दष्टासीद्भुजगेन ह। |
| − | डुण्डुभ उवाच | + | तत्र मे समयो घोर आत्मनोरगा वै कृतः॥ 1-10-1 |
| − | | + | भुजङ्गं वै सदा हन्यां यं यं पश्येयमित्युत। |
| − | अन्ये ते भुजगा ब्रह्मन्ये दशन्तीह मानवान्। | + | ततोऽहं त्वां जिघांसामि जीवितेनाद्य मोक्ष्यसे॥ 1-10-2 |
| − | | + | डुण्डुभ उवाच |
| − | डुण्डुभानहिगन्धेन न त्वं हिंसितुमर्हसि॥ 1-10-3 | + | अन्ये ते भुजगा ब्रह्मन्ये दशन्तीह मानवान्। |
| − | | + | डुण्डुभानहिगन्धेन न त्वं हिंसितुमर्हसि॥ 1-10-3 |
| − | एकानर्थान्पृथगर्थानेकदुःखान्पृथक्सुखान्। | + | एकानर्थान्पृथगर्थानेकदुःखान्पृथक्सुखान्। |
| − | | + | डुण्डुभान्धर्मविद्भूत्वा न त्वं हिंसितुमर्हसि॥ 1-10-4 |
| − | डुण्डुभान्धर्मविद्भूत्वा न त्वं हिंसितुमर्हसि॥ 1-10-4 | + | सौतिरुवाच |
| − | | + | इति श्रुत्वा वचस्तस्य भुजगस्य रुरुस्तदा। |
| − | सौतिरुवाच | + | नावधीद्भयसंविग्नमृषिं मत्वाथ डुण्डुभम्॥ 1-10-5 |
| − | | + | उवाच चैनं भगवान्रुरुः संशमयन्निव। |
| − | इति श्रुत्वा वचस्तस्य भुजगस्य रुरुस्तदा। | + | कामं मां भुजग ब्रूहि कोऽसीमां विक्रियां गतः॥ 1-10-6 |
| − | | + | डुण्डुभ उवाच |
| − | नावधीद्भयसंविग्नमृषिं मत्वाथ डुण्डुभम्॥ 1-10-5 | + | अहं पुरा रुरो नाम्ना ऋषिरासं सहस्रपात्। |
| − | | + | सोऽहं शापेन विप्रस्य भुजगत्वमुपागतः॥ 1-10-7 |
| − | उवाच चैनं भगवान्रुरुः संशमयन्निव। | + | रुरुरुवाच |
| − | | + | किमर्थं सप्तवान्क्रुद्धो द्विजस्त्वां भुजगोत्तम। |
| − | कामं मां भुजग ब्रूहि कोऽसीमां विक्रियां गतः॥ 1-10-6 | + | कियन्तं चैव कालं ते वपुरेतद्भविष्यति॥ 1-10-8 |
| − | | + | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि रुरुडुण्डुभसंवादे दशमोऽध्यायः॥ 10 ॥ |
| − | डुण्डुभ उवाच | + | [[:Category:Ruru Dundum conversation|''Ruru Dundum conversation'']] [[:Category:Ruru|''Ruru'']] |
| − | | + | [[:Category:Dundum|''Dundum'']] [[:Category:conversation|''conversation'']] |
| − | अहं पुरा रुरो नाम्ना ऋषिरासं सहस्रपात्। | + | [[:Category:रुरु डुण्डुमका संवाद|''रुरु डुण्डुमका संवाद'']] [[:Category:रुरु|''रुरु'']] [[:Category:डुण्डुम|''डुण्डुम'']] |
| − | | + | [[:Category:संवाद|''संवाद'']] |
| − | सोऽहं शापेन विप्रस्य भुजगत्वमुपागतः॥ 1-10-7 | |
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| − | रुरुरुवाच | |
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| − | किमर्थं सप्तवान्क्रुद्धो द्विजस्त्वां भुजगोत्तम। | |
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| − | कियन्तं चैव कालं ते वपुरेतद्भविष्यति॥ 1-10-8 | |
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| − | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि रुरुडुण्डुभसंवादे दशमोऽध्यायः॥ 10 ॥ | |