Tinganta (तिङन्तम्)
० What is तिङ्?
तिङन्तम् पदम् (सुप्तिङन्तम् पदम् १-४-१४)
धातु + तिङ्-प्रत्यय => पद
तिङन्त-पद
Since तिङ् is prescribed on a धातु, the तिङन्त-पद inherently has the क्रिया information embedded, hence it is also called तिङन्त-क्रियापद
तिङ् प्रत्ययाः
तिप्तस्झिसिप्थस्थमिब्वस्मस्तातांझथासाथांध्वमिङ्वहिमहिङ् ३-४-७८
प्रत्ययाः ॥
पुरुषः/वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | तिप् | तस् | झि |
मध्यमपुरुषः | सिप् | थस् | थ |
उत्तमपुरुषः | मिप् | वस् | मस् |
पुरुषः/वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | त | आताम् | झ |
मध्यमपुरुषः | थास् | आथाम् | ध्वम् |
उत्तमपुरुषः | इट् | वहि | महिङ् |
रूपाणि ॥
तिङ्-प्रत्यय applied to धातु => पठँ व्यक्तायां वाचि
पुरुषः/वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | पठति | पठतः | पठन्ति |
मध्यमपुरुषः | पठसि | पठथः | पठथ |
उत्तमपुरुषः | पठामि | पठावः | पठामः |
तिङ्-प्रत्यय applied to धातु => वदिँ अभिवादनस्तुत्योः
पुरुषः/वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुषः | वन्दते | वन्देते | वन्दन्ते |
मध्यमपुरुषः | वन्दसे | वन्देथे | वन्दध्वे |
उत्तमपुरुषः | वन्दे | वन्दावहे | वन्दामहे |
तिङ्-अर्थः - लकारार्थः
तिङ् gets transformed in various लकार to give meaning of tenses and moods. तिङन्त-पद gets different forms based on the लकार. There are 10 लकारऽ and each लकार has a specific meaning.
- लट् - वर्तमाने - Present tense
- लिट् - परोक्ष-भूते - Past tense that is not self witnessed
- लुट् - अनद्यतन-भविष्यत् - future beyond today
- लृट् - भविष्यत् - future tense
- लोट् - विधि-प्रार्थना-आमन्त्रण-आज्ञा-आशीर्वचने - in the sense of prescribing, requesting, inviting, ordering, wishing etc
- लङ् - अनद्यतन-भूते - past tense beyond today
- लिङ् -
- विधिलिङ् - विधि-प्रार्थना-आमन्त्रण-सम्भावनायाम् - in the sense of prescribing, requesting, inviting, possibility
- आशीर्लिङ् - आशीर्वचने - in the sense of wish, blessings etc..
- लुङ् - भूते - Past tense
- लृङ् - हेतुहेतुमद्भावे - to indicate cause-effect relation
- लेट् - वेदे - This is used only in the Vedas.
धातु - विभागः
- There are around 2000 धातुs.
- They are classified into 10 groups called गण, based only on morphological transformations that the धातु-रूप undergoes and NOT based on semantics (meaning).
- The name of the गण is referred by the first धातु of the गण. भ्वादि-गण - The गण which starts with भू.
लकार - विभागः
सार्वधातुक-लकार
लट्, लोट्, लङ्, विधि-लिङ् these four are called सार्वधातुक-लकार . These get different transformations in each गण.
आर्धधातुक-लकार
Other six लिट्, लुट्, लृट्, लृङ्, आशीर्लिङ्, लुङ् are called आर्धधातुक-लकार. The transformations are same across all गणऽ for these लकारऽ.
धातु - विकरण-प्रत्ययः
- In the process of generation of verbal form from धातु, a विकरण-प्रत्यय is added between the धातु and प्रत्यय based on the गण for having appropriate transformations.
- There are 10 विकरण-प्रत्ययऽ, one for each गण.
गणः | विकरण-प्रत्ययः | धातुः | लट्-लकार-रूपम् |
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१. भ्वादि | शप् | भू सत्तायाम् | भवति |
२. अदादि | लुक् | अदँ भक्षणे | अत्ति |
३. जुहोत्यादि | श्लु | हु दानादानयोः | जुहोति |
४. दिवादि | श्यन् | दिवुँ क्रीडाविजिगीषा...गतिषु | दीव्यति |
५. स्वादि | श्नु | षुञ् अभिषवे | सुनोति |
६. तुदादि | श | तुदँ व्यथने | तुदति |
७. रुधादि | श्नम् | रुधिँर् आवरणे | रुणद्धि |
८. तनादि | उ | तनुँ विस्तारे | तनोति |
९. क्र्यादि | श्ना | डु क्रीञ् क्रीणने | क्रीणाति |
१०. चुरादि | णिच् | चुरँ स्तेये | चोरयति |
तिङ्-प्रत्ययस्य अर्थः
What information is encoded in तिङ् ?
We have already seen the following meanings
० पुरुष - Person (प्रथम-Third, मध्यम-Second, उत्तम-First)
० वचन - number (एकवचन-Singular, द्विवचन-Dual, बहुवचन-Plural)
० लकार - tense or mood
Apart from all other meanings, the तिङ्-प्रत्यय also mandatorily indicates one of the following:
० कर्तृ-कारक
० कर्म-कारक
० भाव
Let us see each of these in detail
कर्तृ-कारक
By default तिङन्त-पद indicates the कर्तृ-कारक, hence it follows the पुरुष and वचन of the कर्तृ-कारक
Eg : पठति , पठन्ति , पठामि, वन्दसे
Then we say the तिङन्त-पद is in कर्तरि meaning.
कर्म-कारक
If यक्-प्रत्यय is added between तिङ्-प्रत्यय and धातु it indicates कर्म-कारक for सकर्मक-क्रिया in the four लकारऽ (सार्वधातुक-लकार लट्, लङ्, लोट्, विधि-लिङ्). Then it follows the पुरुष and वचन of the कर्म-कारक. It always takes आत्मनेपदि-forms, irrespective of whether धातु is परस्मैपदी or आत्मनेपदि.
Eg: पठ्यते । पठ्यन्ते । वन्द्यसे । वन्द्ये
Then we say the तिङन्त-पद is in कर्मणि meaning.
भाव (action)
The same कर्मणि form indicates भाव (action) for अकर्मक-क्रिया, it is always प्रथम-पुरुष वnd एकवचन. This also always takes आत्मनेपदि-form.
Eg: स्थीयते ।
Then we say the तिङन्त-पद is in भावे meaning