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| + | == प्रस्तावना == |
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− | भाषा दृष्टि
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− | प्रस्तावना | |
| वर्तमान में भारत में दर्जनों भाषाएँ बोली जातीं हैं| ऐसा कहते हैं कि ५ कोसपर पानी और दस कोसपर बानी (वाणी) बदल जाती है| इस तरह बोलीभाषाएं तो शायद हजारों की संख्या में होंगी| भाषाओं की अनेकता और विविधता के कारण संपर्क भाषा की समस्या भी बहुत जटिल हो गयी है| भाषाओं के अनुसार प्रान्तों के निर्माण के कारण कुछ सुविधा तो हुई, लेकिन इस के साथ ही भाषिक अस्मिताओं के झगड़े भी शुरू हो गए हैं| राष्ट्रीयता की भावना की कमी के कारण ये भाषिक अस्मिताएँ दो पड़ोसी प्रान्तों को एक दूसरे को शत्रु के रूप में खडा कर रहीं हैं| इस सन्दर्भ में भारतीय भाषा दृष्टी की समझ और क्रियान्वयन महत्वपूर्ण है| | | वर्तमान में भारत में दर्जनों भाषाएँ बोली जातीं हैं| ऐसा कहते हैं कि ५ कोसपर पानी और दस कोसपर बानी (वाणी) बदल जाती है| इस तरह बोलीभाषाएं तो शायद हजारों की संख्या में होंगी| भाषाओं की अनेकता और विविधता के कारण संपर्क भाषा की समस्या भी बहुत जटिल हो गयी है| भाषाओं के अनुसार प्रान्तों के निर्माण के कारण कुछ सुविधा तो हुई, लेकिन इस के साथ ही भाषिक अस्मिताओं के झगड़े भी शुरू हो गए हैं| राष्ट्रीयता की भावना की कमी के कारण ये भाषिक अस्मिताएँ दो पड़ोसी प्रान्तों को एक दूसरे को शत्रु के रूप में खडा कर रहीं हैं| इस सन्दर्भ में भारतीय भाषा दृष्टी की समझ और क्रियान्वयन महत्वपूर्ण है| |
| आगे हम अब भाषा के विषय में दो तरह से भारतीय दृष्टि का विचार करेंगे| पहला है दीर्घकालीन और दूसरा है वर्तमानकालीन परिस्थितियों से सम्बंधित| | | आगे हम अब भाषा के विषय में दो तरह से भारतीय दृष्टि का विचार करेंगे| पहला है दीर्घकालीन और दूसरा है वर्तमानकालीन परिस्थितियों से सम्बंधित| |
− | भाषा विकास | + | |
− | किसी भी समाज की भाषा के विकास में निम्न बातें महत्वपूर्ण होती है ।
| + | == भाषा विकास == |
| + | किसी भी समाज की भाषा के विकास में निम्न बातें महत्वपूर्ण होती है । |
| १. भाषा का संबंध भावनाओं और विचारों की परस्पर अभिव्यक्ति और आकलन से है । समाज घटकोंद्वारा अपनी भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति के लिये भाषा का विकास होता है । | | १. भाषा का संबंध भावनाओं और विचारों की परस्पर अभिव्यक्ति और आकलन से है । समाज घटकोंद्वारा अपनी भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति के लिये भाषा का विकास होता है । |
| २. अधिक बुद्धिशील समाज अधिक विकसित होता है| इसलिए अधिक बुद्धिशील समाज की भाषा अधिक विकसित होती है। अधिक विविधताओं से सम्पन्न होती है| अधिक विकसित और अधिक विविधता से संपन्न से अर्थ समाज जीवनकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली, अधिक शब्द-भण्डारवाली, समझने और बोलने में सरल और सुवाच्य, समाज की मान्यताएं, भावनाएं ठीक ठीक अभिव्यक्त करनेवाली आदी से है । किसी समाज का विकास यदि एकांगी हो तो उस समाज की भाषा का विकास भी एकांगी ही होता है । | | २. अधिक बुद्धिशील समाज अधिक विकसित होता है| इसलिए अधिक बुद्धिशील समाज की भाषा अधिक विकसित होती है। अधिक विविधताओं से सम्पन्न होती है| अधिक विकसित और अधिक विविधता से संपन्न से अर्थ समाज जीवनकी सभी आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली, अधिक शब्द-भण्डारवाली, समझने और बोलने में सरल और सुवाच्य, समाज की मान्यताएं, भावनाएं ठीक ठीक अभिव्यक्त करनेवाली आदी से है । किसी समाज का विकास यदि एकांगी हो तो उस समाज की भाषा का विकास भी एकांगी ही होता है । |
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| ४.३ नये अनुभवों की भी सरलता से अभिव्यक्ति करने की क्षमता रखने हेतु शब्द-निर्माण की क्षमता विशाल और सटीक हो । | | ४.३ नये अनुभवों की भी सरलता से अभिव्यक्ति करने की क्षमता रखने हेतु शब्द-निर्माण की क्षमता विशाल और सटीक हो । |
| ४.४ उपयोग में सहजता । व्याकरण-शुध्दता, तर्कशुध्दता, सरल लिपी आदी । | | ४.४ उपयोग में सहजता । व्याकरण-शुध्दता, तर्कशुध्दता, सरल लिपी आदी । |
− | भारतीय भाषा विषय के अध्ययन और अध्यापन का उद्देष्य | + | |
− | भाषा के अध्ययन और अध्यापन का लक्ष्य शिक्षा के लक्ष्य से और मानव जीवन के लक्ष्य से भिन्न नहीं हो सकता। चराचर के साथ एकात्मता का ही अर्थ समग्र विकास है। पूर्णत्व है। मुक्ति है। मोक्ष है। परमात्मपद प्राप्ति है। यही भारतीय विचार में मानव जीवनका लक्ष्य है। यही शिक्षा का लक्ष्य है। तब तो भाषा अध्ययन, अध्यापन और उपयोग का भी यही लक्ष्य होना चाहिये। इसलिये भाषा विषय का विचार भी ' मोक्ष ' इस लक्ष्य के लिये, पूर्णत्व प्राप्ति के लिये, परमात्मपद प्राप्ति के लिये, समग्र विकास की दृष्टीसे, चराचर के साथ एकात्मता की भावना के विकास की दृष्टि से ही करना होगा।
| + | == भारतीय भाषा विषय के अध्ययन और अध्यापन का उद्देष्य == |
| + | भाषा के अध्ययन और अध्यापन का लक्ष्य शिक्षा के लक्ष्य से और मानव जीवन के लक्ष्य से भिन्न नहीं हो सकता। चराचर के साथ एकात्मता का ही अर्थ समग्र विकास है। पूर्णत्व है। मुक्ति है। मोक्ष है। परमात्मपद प्राप्ति है। यही भारतीय विचार में मानव जीवनका लक्ष्य है। यही शिक्षा का लक्ष्य है। तब तो भाषा अध्ययन, अध्यापन और उपयोग का भी यही लक्ष्य होना चाहिये। इसलिये भाषा विषय का विचार भी ' मोक्ष ' इस लक्ष्य के लिये, पूर्णत्व प्राप्ति के लिये, परमात्मपद प्राप्ति के लिये, समग्र विकास की दृष्टीसे, चराचर के साथ एकात्मता की भावना के विकास की दृष्टि से ही करना होगा। |
| समग्र विकास की भारतीय संकल्पना एकात्म मानव दर्शन में पं. दीनदयालजी उपाध्याय बताते हैं – व्यक्तिगत विकास, समष्टिगत विकास और सृष्टिगत विकास तीनों का मिलकर समग्र विकास होता है| सृष्टिगत विकास होने से आगे का परमेष्ठीगत विकास अपने आप ही हो जाता है| इसी को हमारे पूर्वज मोक्ष कहा करते थे| मुक्ति कहते थे| परमात्मपद प्राप्ति कहते थे| | | समग्र विकास की भारतीय संकल्पना एकात्म मानव दर्शन में पं. दीनदयालजी उपाध्याय बताते हैं – व्यक्तिगत विकास, समष्टिगत विकास और सृष्टिगत विकास तीनों का मिलकर समग्र विकास होता है| सृष्टिगत विकास होने से आगे का परमेष्ठीगत विकास अपने आप ही हो जाता है| इसी को हमारे पूर्वज मोक्ष कहा करते थे| मुक्ति कहते थे| परमात्मपद प्राप्ति कहते थे| |
| पुरुषार्थ चतुष्ट्य के धर्म, अर्थ और काम इन पुरुषार्थों के अनुपालन से चौथे पुरुषार्थ की याने मोक्ष की प्राप्ति होती है| धर्म के अनुकूल जब अर्थ और काम होते हैं तब ही मोक्ष प्राप्ति भी होती है और भौतिक उन्नति भी होती है| इसीलिये यतोऽभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि स धर्म: ऐसी धर्म की व्याख्या वैशेषिक दर्शन में की गयी है| अभ्युदय की प्राप्ति के लिए समाज में परस्पर संवाद सहजता से होना आवश्यक होता है| यह संवाद समान जीवनदृष्टिवाले लोगों में सहज होता है| समाज की जीवन दृष्टि के अगली पीढी में संक्रमण के लिए सक्षम भाषा की आवश्यकता होती है| इसी दृष्टि से विकसित उनकी भाषा के माध्यम से उनकी मान्यताओं की सहज अभिव्यक्ति और अभिसरण दोनों हो सकते हैं| | | पुरुषार्थ चतुष्ट्य के धर्म, अर्थ और काम इन पुरुषार्थों के अनुपालन से चौथे पुरुषार्थ की याने मोक्ष की प्राप्ति होती है| धर्म के अनुकूल जब अर्थ और काम होते हैं तब ही मोक्ष प्राप्ति भी होती है और भौतिक उन्नति भी होती है| इसीलिये यतोऽभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि स धर्म: ऐसी धर्म की व्याख्या वैशेषिक दर्शन में की गयी है| अभ्युदय की प्राप्ति के लिए समाज में परस्पर संवाद सहजता से होना आवश्यक होता है| यह संवाद समान जीवनदृष्टिवाले लोगों में सहज होता है| समाज की जीवन दृष्टि के अगली पीढी में संक्रमण के लिए सक्षम भाषा की आवश्यकता होती है| इसी दृष्टि से विकसित उनकी भाषा के माध्यम से उनकी मान्यताओं की सहज अभिव्यक्ति और अभिसरण दोनों हो सकते हैं| |
− | वाणी के चार स्तर | + | |
− | हमारे पूर्वजों ने किसी भी जीवद्वारा होनेवाली अभिव्यक्ति की प्रक्रियाओं और उन के माध्यमों का अत्यंत गहराई से चिंतन किया था । उन का कहना था कि यह अभिव्यक्ति वाणी के द्वारा होती है । वाणी के चार स्तर होते है । पहले, परा के स्तरपर जीवात्मा वस्तू की अनुभूति करता है । सामान्य अनुभव यह इद्रियों के वस्तू के साथ संपर्क के कारण मिलते है । किंतु अनुभूति यह वस्तू के साथ एकात्मता के कारण प्राप्त होती है । अनुभूति यह आत्मा का विषय होता है । अनुभूति के माध्यम से संवाद के लिये अन्य किसी औपचारिक शब्दों, वाक्यों, व्याकरण और औपचारिक भाषा की आवश्यकता नहीं होती । दूसरे, पश्यंति के स्तरपर वह उसे इंद्रियोंद्वारा समझने का प्रयास करता है । इंद्रियो के स्तरपर इसकी अभिव्यक्ति होती है । तीसरे, मध्यमा के स्तरपर इंद्रियजन्य ज्ञान की मानव भाषा के स्वरूप में अपने मन के समक्ष प्रस्तुति होती है । चौथे, वैखरी के स्तरपर ही यह बोलने की भाषा के रूप में, औरों के लिये अभिव्यक्ति का रूप लेती है ।
| + | == वाणी के चार स्तर == |
| + | हमारे पूर्वजों ने किसी भी जीवद्वारा होनेवाली अभिव्यक्ति की प्रक्रियाओं और उन के माध्यमों का अत्यंत गहराई से चिंतन किया था । उन का कहना था कि यह अभिव्यक्ति वाणी के द्वारा होती है । वाणी के चार स्तर होते है । पहले, परा के स्तरपर जीवात्मा वस्तू की अनुभूति करता है । सामान्य अनुभव यह इद्रियों के वस्तू के साथ संपर्क के कारण मिलते है । किंतु अनुभूति यह वस्तू के साथ एकात्मता के कारण प्राप्त होती है । अनुभूति यह आत्मा का विषय होता है । अनुभूति के माध्यम से संवाद के लिये अन्य किसी औपचारिक शब्दों, वाक्यों, व्याकरण और औपचारिक भाषा की आवश्यकता नहीं होती । दूसरे, पश्यंति के स्तरपर वह उसे इंद्रियोंद्वारा समझने का प्रयास करता है । इंद्रियो के स्तरपर इसकी अभिव्यक्ति होती है । तीसरे, मध्यमा के स्तरपर इंद्रियजन्य ज्ञान की मानव भाषा के स्वरूप में अपने मन के समक्ष प्रस्तुति होती है । चौथे, वैखरी के स्तरपर ही यह बोलने की भाषा के रूप में, औरों के लिये अभिव्यक्ति का रूप लेती है । |
| वाणी का आधार ध्वनि होता है| सामान्य ध्वनि को ‘आहत ध्वनि’ कहते हैं| इस ध्वनी का निर्माण दो पदार्थों के टकराने से होता है| वाचा याने जिससे हम बोलते हैं आहत ध्वनि से ही उत्पन्न होती है| दूसरी ध्वनि विशेष ध्वनि होती है जिसे ‘अनाहत ध्वनि’ कहते हैं| अनाहत ध्वनि के कई प्रकार होते हैं| गुरु अपने शिष्यों के साथ प्रत्यक्ष बोले बगैर ही उनकी जिज्ञासा का समाधान करता है| यह अनाहत ध्वनि का ही एक प्रकार है| इसी का वर्णन संत ज्ञानेश्वर महाराज ‘ज्ञानेश्वरी’ में ‘शब्देवीण संवादु’ ऐसा करते हैं| ॐ कार ध्वनि यह सृष्टि की सहज होनेवाली अनाहत ध्वनि है| ऐसी हर अस्तित्व की अपनी अपनी अनाहत ध्वनि होती है| वाणी के प्रगत अध्ययन में इन सबका अध्ययन अपेक्षित है| तब ही भाषा शिक्षा हमें मुक्ति के मार्गपर अग्रसर कर सकेगी| | | वाणी का आधार ध्वनि होता है| सामान्य ध्वनि को ‘आहत ध्वनि’ कहते हैं| इस ध्वनी का निर्माण दो पदार्थों के टकराने से होता है| वाचा याने जिससे हम बोलते हैं आहत ध्वनि से ही उत्पन्न होती है| दूसरी ध्वनि विशेष ध्वनि होती है जिसे ‘अनाहत ध्वनि’ कहते हैं| अनाहत ध्वनि के कई प्रकार होते हैं| गुरु अपने शिष्यों के साथ प्रत्यक्ष बोले बगैर ही उनकी जिज्ञासा का समाधान करता है| यह अनाहत ध्वनि का ही एक प्रकार है| इसी का वर्णन संत ज्ञानेश्वर महाराज ‘ज्ञानेश्वरी’ में ‘शब्देवीण संवादु’ ऐसा करते हैं| ॐ कार ध्वनि यह सृष्टि की सहज होनेवाली अनाहत ध्वनि है| ऐसी हर अस्तित्व की अपनी अपनी अनाहत ध्वनि होती है| वाणी के प्रगत अध्ययन में इन सबका अध्ययन अपेक्षित है| तब ही भाषा शिक्षा हमें मुक्ति के मार्गपर अग्रसर कर सकेगी| |
| भारतीय शिक्षा की प्रक्रिया में अनाहत ध्वनि के माध्यम से शिक्षा का वर्णन है| जो निम्न है – | | भारतीय शिक्षा की प्रक्रिया में अनाहत ध्वनि के माध्यम से शिक्षा का वर्णन है| जो निम्न है – |
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| यह जो गुरु और शिष्यों के बीच संवाद हो रहा है यह वैखरी से परे की भाषा में चल रहा है| गुरु मन ही मन में शिष्यों के संशय जान रहा है| और अपने मन से सीधे शिष्यों के मन से संवाद कर रहा है| | | यह जो गुरु और शिष्यों के बीच संवाद हो रहा है यह वैखरी से परे की भाषा में चल रहा है| गुरु मन ही मन में शिष्यों के संशय जान रहा है| और अपने मन से सीधे शिष्यों के मन से संवाद कर रहा है| |
| जिसकी भाषा अधिक विकसित होती है उसकी अभिव्यक्ति भी उतनी ही सक्षम होती है । शायद इसीलिये तैत्तिरिय उपनिषद की शिक्षा वल्ली में भाषा को ही शिक्षा कहा गया होगा । इस से यह समझ में आता है की संवाद की गुणवत्ता के लिये भाषा का महत्व कितना अनन्यसाधारण है । वास्तव में वैखरी से लेकर परातक का विकास भाषा विकास में अपेक्षित है| यही वह विकास है जिससे मनुष्य अपने लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है| लेकिन स्खलन की अत्यंत निम्न अवस्था के कारण वैखरी से आगे की अभिव्यक्ति का विचार अर्थात् परा, पश्यन्ति और मध्यमा का विचार वर्तमान में बहुत आगे का विचार होगा । अतएव उन का विचार हमें आगे जाकर करना ही है| वर्तमान में सामान्य मनुष्य के स्तरपर हम मात्र वैखरी का विचार करेंगे। | | जिसकी भाषा अधिक विकसित होती है उसकी अभिव्यक्ति भी उतनी ही सक्षम होती है । शायद इसीलिये तैत्तिरिय उपनिषद की शिक्षा वल्ली में भाषा को ही शिक्षा कहा गया होगा । इस से यह समझ में आता है की संवाद की गुणवत्ता के लिये भाषा का महत्व कितना अनन्यसाधारण है । वास्तव में वैखरी से लेकर परातक का विकास भाषा विकास में अपेक्षित है| यही वह विकास है जिससे मनुष्य अपने लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है| लेकिन स्खलन की अत्यंत निम्न अवस्था के कारण वैखरी से आगे की अभिव्यक्ति का विचार अर्थात् परा, पश्यन्ति और मध्यमा का विचार वर्तमान में बहुत आगे का विचार होगा । अतएव उन का विचार हमें आगे जाकर करना ही है| वर्तमान में सामान्य मनुष्य के स्तरपर हम मात्र वैखरी का विचार करेंगे। |
− | भारतीय भाषा - दृष्टि | + | |
− | वर्तमान में अंग्रेजी भाषा का भीषण दबाव विश्व की सभी भाषाओंपर है । केवल भारतीय समाज ही नहीं विश्व के सभी समाज अपनी भाषाओं के समक्ष अंग्रेजी के कारण निर्माण हुवे अस्तित्व के संकट से जूझ रहे है । इस दृष्टि से भारतीय भाषा विषयक दृष्टि के साथ ही यथास्थान हम अंग्रेजी की तुलना भी करते चलेंगे ।
| + | == भारतीय भाषा दृष्टि == |
| + | वर्तमान में अंग्रेजी भाषा का भीषण दबाव विश्व की सभी भाषाओंपर है । केवल भारतीय समाज ही नहीं विश्व के सभी समाज अपनी भाषाओं के समक्ष अंग्रेजी के कारण निर्माण हुवे अस्तित्व के संकट से जूझ रहे है । इस दृष्टि से भारतीय भाषा विषयक दृष्टि के साथ ही यथास्थान हम अंग्रेजी की तुलना भी करते चलेंगे । |
| १. भारतीय समाज और विश्वभर के हर मानव के लक्ष्य की सिध्दी में वह साधनरूप बने : भारतीय समाज की मान्यता के अनुसार और वास्तव में भी विश्व के हर मानव जीवनका लक्ष्य मोक्ष है, यह हमने पहले ' भारतीय और अभारतीय में अन्तर ' इस बिंदू के अंतर्गत देखा है। मोक्ष का ही अर्थ मुक्ति है, पूर्णत्व की प्राप्ति है । मानव का व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टिगत ऐसा समग्र विकास है। इस लक्ष्य की साधना की दृष्टि से भारतीय भाषाएं विश्व की अन्य किसी भी भाषा से भिन्न है। लक्ष्य की श्रेष्ठता के कारण भाषाएं भी श्रेष्ठ है। प्रमुख रूप से संस्कृत से निकटता के कारण इन भाषाओं में निम्न विशेष गुण है। लेकिन विदेशी भाषाओं में तो कई संकल्पनाएँ न होनेसे उनके लिए शब्द भी नहीं हैं| | | १. भारतीय समाज और विश्वभर के हर मानव के लक्ष्य की सिध्दी में वह साधनरूप बने : भारतीय समाज की मान्यता के अनुसार और वास्तव में भी विश्व के हर मानव जीवनका लक्ष्य मोक्ष है, यह हमने पहले ' भारतीय और अभारतीय में अन्तर ' इस बिंदू के अंतर्गत देखा है। मोक्ष का ही अर्थ मुक्ति है, पूर्णत्व की प्राप्ति है । मानव का व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टिगत ऐसा समग्र विकास है। इस लक्ष्य की साधना की दृष्टि से भारतीय भाषाएं विश्व की अन्य किसी भी भाषा से भिन्न है। लक्ष्य की श्रेष्ठता के कारण भाषाएं भी श्रेष्ठ है। प्रमुख रूप से संस्कृत से निकटता के कारण इन भाषाओं में निम्न विशेष गुण है। लेकिन विदेशी भाषाओं में तो कई संकल्पनाएँ न होनेसे उनके लिए शब्द भी नहीं हैं| |
| १.१ शब्दावली : सर्वप्रथम तो मोक्ष यह संकल्पनाही अन्य किसी समाज में नहीं है| इसलिए उन की भाषा में भी नहीं है । मोक्ष की कल्पना से जुडे मुमुक्षु, जन्म-मृत्यु से परे, पुनर्जन्म, स्थितप्रज्ञ, साधक, पूर्णत्व, अधिजनन, आत्मा, परमात्मा, कर्मयोनी, भोगयोनी, प्राण, ब्रह्मचर्य, अंत:करण-चतुष्टयके मन, बुध्दि, चित्त और अहंकार यह चार अंग, योग, सदेह स्वर्ग, इडा/पिंगला/सुषुम्ना नाडियाँ, कुंडलिनी, अष्टसिध्दी, षट्चक्रभेदन, अद्वैत, तूरियावस्था, निर्विकल्प समाधी, त्रिगुणातीत, ऋतंभरा प्रज्ञा आदी विभिन्न शब्द भी अन्य किसी विदेशी भाषा में नहीं हैं| भगवद्गीतामें ही ऐसे सैंकड़ों शब्द मिलेंगे जिनके लिये सटीक प्रतिशब्द विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं मिलेंगे । | | १.१ शब्दावली : सर्वप्रथम तो मोक्ष यह संकल्पनाही अन्य किसी समाज में नहीं है| इसलिए उन की भाषा में भी नहीं है । मोक्ष की कल्पना से जुडे मुमुक्षु, जन्म-मृत्यु से परे, पुनर्जन्म, स्थितप्रज्ञ, साधक, पूर्णत्व, अधिजनन, आत्मा, परमात्मा, कर्मयोनी, भोगयोनी, प्राण, ब्रह्मचर्य, अंत:करण-चतुष्टयके मन, बुध्दि, चित्त और अहंकार यह चार अंग, योग, सदेह स्वर्ग, इडा/पिंगला/सुषुम्ना नाडियाँ, कुंडलिनी, अष्टसिध्दी, षट्चक्रभेदन, अद्वैत, तूरियावस्था, निर्विकल्प समाधी, त्रिगुणातीत, ऋतंभरा प्रज्ञा आदी विभिन्न शब्द भी अन्य किसी विदेशी भाषा में नहीं हैं| भगवद्गीतामें ही ऐसे सैंकड़ों शब्द मिलेंगे जिनके लिये सटीक प्रतिशब्द विश्व की अन्य किसी भाषा में नहीं मिलेंगे । |
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| ११.१ अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय है । इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है। | | ११.१ अंग्रेजी भाषा नहीं आती इसलिये विद्यालयों की शिक्षा से वंचित रहनेवाले बच्चों की संख्या लक्षणीय है । इन बच्चों को शिक्षा से वंचित रखने का अधिकार किसी को भी नहीं है। यह समाजद्रोह है। |
| ११.२ अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यतावाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगों का ही शायद इन अंग्रेजीभाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगों को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है। | | ११.२ अंग्रेजी मे संवाद की अनिवार्यतावाले देशों की संख्या विश्व में मुश्किल से दर्जनभर है। अन्य सभी देशों के साथ उन देशों की भाषा में ही संवाद होता है। हमारी जनता के मुश्किल से ०.१ प्रतिशत लोगों का ही शायद इन अंग्रेजीभाषी दर्जनभर देशों से व्यवहार चलता है। इस ०.१ प्रतिशत लोगों को अच्छी अंग्रेजी आना आवश्यक है। किंतु इस ०.१ प्रतिशत समाज के लिये बाकी के ९९.९ प्रतिशत लोगोंपर अंग्रेजी थोपना अनावश्यक ही नहीं, सामाजिक प्रतिभा की ह्त्या करने का सामाजिक अपराध भी है। |
− | संपर्क भाषा की समस्या | + | |
| + | == संपर्क भाषा की समस्या == |
| वर्तमान जीवन के प्रतिमान के कारण भारत में संपर्क भाषा की समस्या निर्माण हुई है| हजारों की संख्या में बोलीभाषाएं और प्रादेशिक भाषाओं का अस्तित्व तो २०० वर्षों से पहले भी था ही| लेकिन संपर्क भाषा की कोई समस्या नहीं थी| लोग उस समय भी कन्याकुमारी से लेकर बद्रीनाथ तक घूमते थे| उस समय संपर्क भाषा की समस्या नहीं थी| आज इस समस्या के निर्माण होने का कारण ही वर्तमान का जीवन का प्रतिमान है| | | वर्तमान जीवन के प्रतिमान के कारण भारत में संपर्क भाषा की समस्या निर्माण हुई है| हजारों की संख्या में बोलीभाषाएं और प्रादेशिक भाषाओं का अस्तित्व तो २०० वर्षों से पहले भी था ही| लेकिन संपर्क भाषा की कोई समस्या नहीं थी| लोग उस समय भी कन्याकुमारी से लेकर बद्रीनाथ तक घूमते थे| उस समय संपर्क भाषा की समस्या नहीं थी| आज इस समस्या के निर्माण होने का कारण ही वर्तमान का जीवन का प्रतिमान है| |
| वर्तमान में मानव पगढीला हो गया है| आवागमन के साधन, स्वभाव से भिन्न प्रकार का काम करना, अतिरिक्त धन की उपलब्धता, पर्यटन के लिए विज्ञापनबाजी और आजीविका के लिए नौकरी ये बातें मनुष्य को एक स्थानपर टिकने नहीं देते| यह पगढ़ीलापन वर्तमान के अभारतीय जीवन के प्रतिमान की ही देन है| प्रतिमान को भारतीय बनाना ही उसका उत्तर है| | | वर्तमान में मानव पगढीला हो गया है| आवागमन के साधन, स्वभाव से भिन्न प्रकार का काम करना, अतिरिक्त धन की उपलब्धता, पर्यटन के लिए विज्ञापनबाजी और आजीविका के लिए नौकरी ये बातें मनुष्य को एक स्थानपर टिकने नहीं देते| यह पगढ़ीलापन वर्तमान के अभारतीय जीवन के प्रतिमान की ही देन है| प्रतिमान को भारतीय बनाना ही उसका उत्तर है| |
− | उपसंहार : भारतीय भाषाएं अपनी होने से उन के प्रति लगाव होना अत्यंत स्वाभाविक है। यदि वह श्रेष्ठ नहीं हैं तो, केवल वे अपनी हैं इस के कारण उन्हें बचाने का कोई कारण नहीं है। भारतीय भाषाएं विश्व में सर्वश्रेष्ठ होने से उन का वैश्विक स्तरपर स्वीकार और उपयोग होने में विश्व का हित होने से उन्हें केवल बचाना ही नहीं तो उन्हें उन की योग्यता के अनुरूप योग्य वैश्विक स्थान दिलाना, एक भारतीय होने के नाते हम सब का पवित्र कर्तव्य है । | + | |
| + | == उपसंहार == |
| + | : भारतीय भाषाएं अपनी होने से उन के प्रति लगाव होना अत्यंत स्वाभाविक है। यदि वह श्रेष्ठ नहीं हैं तो, केवल वे अपनी हैं इस के कारण उन्हें बचाने का कोई कारण नहीं है। भारतीय भाषाएं विश्व में सर्वश्रेष्ठ होने से उन का वैश्विक स्तरपर स्वीकार और उपयोग होने में विश्व का हित होने से उन्हें केवल बचाना ही नहीं तो उन्हें उन की योग्यता के अनुरूप योग्य वैश्विक स्थान दिलाना, एक भारतीय होने के नाते हम सब का पवित्र कर्तव्य है । |
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