यदि जीवन के पूरे प्रतिमान का ठीक से विचार किया जाए तो तन्त्रज्ञान के विकास का और सार्वत्रिकीकरण का विषय प्रतिमान की सोच और व्यवहार में आ जाता है। अलग विषय नहीं बनता। लेकिन तन्त्रज्ञान और उसके कारण जीवन को जो गति प्राप्त हुई है उस के कारण सामान्य मनुष्य तो क्या अच्छे अच्छे विद्वान भी हतप्रभ हो गये दिखाई देते हैं। इसलिये तन्त्रज्ञान के विषय में अधिक गहराई से अलग से विचार करने की आवश्यकता है। इस का विचार हम [[Bharat's Economic Systems (भारतीय समृद्धि शास्त्रीय दृष्टि)|इस]] अध्याय में करेंगे। | यदि जीवन के पूरे प्रतिमान का ठीक से विचार किया जाए तो तन्त्रज्ञान के विकास का और सार्वत्रिकीकरण का विषय प्रतिमान की सोच और व्यवहार में आ जाता है। अलग विषय नहीं बनता। लेकिन तन्त्रज्ञान और उसके कारण जीवन को जो गति प्राप्त हुई है उस के कारण सामान्य मनुष्य तो क्या अच्छे अच्छे विद्वान भी हतप्रभ हो गये दिखाई देते हैं। इसलिये तन्त्रज्ञान के विषय में अधिक गहराई से अलग से विचार करने की आवश्यकता है। इस का विचार हम [[Bharat's Economic Systems (भारतीय समृद्धि शास्त्रीय दृष्टि)|इस]] अध्याय में करेंगे। |