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| हमने जाना है कि समाज के सुख, शांति, स्वतंत्रता, सुसंस्कृतता के लिए समाज का धर्मनिष्ठ होना आवश्यक होता है। यहाँ मोटे तौरपर धर्म से मतलब कर्तव्य से है। समाज धारणा के लिए कर्तव्योंपर आधारित जीवन अनिवार्य होता है। समाज धारणा के लिए धर्म-युक्त व्यवहार में आनेवाली जटिलताओं को और उसके अनुपालन की प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे। | | हमने जाना है कि समाज के सुख, शांति, स्वतंत्रता, सुसंस्कृतता के लिए समाज का धर्मनिष्ठ होना आवश्यक होता है। यहाँ मोटे तौरपर धर्म से मतलब कर्तव्य से है। समाज धारणा के लिए कर्तव्योंपर आधारित जीवन अनिवार्य होता है। समाज धारणा के लिए धर्म-युक्त व्यवहार में आनेवाली जटिलताओं को और उसके अनुपालन की प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे। |
| ११.१ विविध स्तर : मानव समाज में जीवन्त इकाईयों के कई स्तर हैं। ये स्तर निम्न हैं। | | ११.१ विविध स्तर : मानव समाज में जीवन्त इकाईयों के कई स्तर हैं। ये स्तर निम्न हैं। |
− | ११.१.१ व्यक्ति ११.१.१.२ कुटुम्ब ११.१.१.३ ग्राम ११.१.१.४ व्यवसाय समूह
| + | ११.१.१ व्यक्ति ११.१.१.२ कुटुम्ब ११.१.१.३ ग्राम ११.१.१.४ व्यवसाय समूह |
− | ११.१.५ भाषिक समूह ११.१.१.६ प्रादेशिक समूह ११.१.१.७ राष्ट्र ११.१.१.८ विश्व
| + | ११.१.५ भाषिक समूह ११.१.१.६ प्रादेशिक समूह ११.१.१.७ राष्ट्र ११.१.१.८ विश्व |
| ये सब मानव से या व्यक्तियों से बनीं जीवन्त इकाईयाँ हैं। इन सब के अपने ‘स्वधर्म’ हैं। इन सभी स्तरों के करणीय और अकरणीय बातों को ही उस ईकाई का धर्म कहा जाता है। निम्न स्तरकी ईकाई उससे बड़े स्तरकी ईकाई का हिस्सा होने के कारण हर ईकाईका धर्म आगे की या उससे बड़ी जीवंत ईकाई के धर्म का अविरोधी होना आवश्यक होता है। जैसे व्यक्ति के धर्म का कोई भी पहलू कुटुम्ब से लेकर वैश्विक धर्म का विरोधी नहीं होना चाहिए। | | ये सब मानव से या व्यक्तियों से बनीं जीवन्त इकाईयाँ हैं। इन सब के अपने ‘स्वधर्म’ हैं। इन सभी स्तरों के करणीय और अकरणीय बातों को ही उस ईकाई का धर्म कहा जाता है। निम्न स्तरकी ईकाई उससे बड़े स्तरकी ईकाई का हिस्सा होने के कारण हर ईकाईका धर्म आगे की या उससे बड़ी जीवंत ईकाई के धर्म का अविरोधी होना आवश्यक होता है। जैसे व्यक्ति के धर्म का कोई भी पहलू कुटुम्ब से लेकर वैश्विक धर्म का विरोधी नहीं होना चाहिए। |
| ११.१.१.१ व्यक्ति : व्यक्ति के स्तरपर जिन धर्मों का समावेश होता है वे निम्न हैं। | | ११.१.१.१ व्यक्ति : व्यक्ति के स्तरपर जिन धर्मों का समावेश होता है वे निम्न हैं। |
− | अ) स्वभावज : याने जन्म से जो सत्व-रज-तम युक्त स्वभाव मिला है उसमें शुद्धि और विकास करना।
| + | अ) स्वभावज : याने जन्म से जो सत्व-रज-तम युक्त स्वभाव मिला है उसमें शुद्धि और विकास करना। |
| आ) स्त्री-पुरुष : स्त्री या पुरुष होने के कारण स्त्री होने का या पुरुष होने का जो प्रयोजन है उसे पूर्ण करना। स्त्री ने एक अच्छी बेटी, अच्छी बहन, अच्छी पत्नि, अच्छी गृहिणी, अच्छी माता बनना। इसी तरह से पुरुष ने अच्छा बेटा, अच्छा भाई, अच्छा पति, अच्छा गृहस्थ, अच्छा पिता बनना। i | | आ) स्त्री-पुरुष : स्त्री या पुरुष होने के कारण स्त्री होने का या पुरुष होने का जो प्रयोजन है उसे पूर्ण करना। स्त्री ने एक अच्छी बेटी, अच्छी बहन, अच्छी पत्नि, अच्छी गृहिणी, अच्छी माता बनना। इसी तरह से पुरुष ने अच्छा बेटा, अच्छा भाई, अच्छा पति, अच्छा गृहस्थ, अच्छा पिता बनना। i |
| इ) विविध व्यक्तिगत धर्म : इसमें उपर्युक्त दोनों कर्तव्यों को छोड़कर अन्य व्यक्तिगत कर्तव्यों का समावेश होता है। जैसे शरीरधर्म, पड़ोसीधर्म, व्यवसायधर्म, समाजधर्म, राष्ट्रधर्म, विश्वधर्म अदि। | | इ) विविध व्यक्तिगत धर्म : इसमें उपर्युक्त दोनों कर्तव्यों को छोड़कर अन्य व्यक्तिगत कर्तव्यों का समावेश होता है। जैसे शरीरधर्म, पड़ोसीधर्म, व्यवसायधर्म, समाजधर्म, राष्ट्रधर्म, विश्वधर्म अदि। |