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=== अभिशासन के व्यवहार सूत्र ===
 
=== अभिशासन के व्यवहार सूत्र ===
८.१  धर्म शासक का भी शासक है। शासन पद्धति राजतंत्र की हो तानाशाही की हो या लोकतंत्र की हो या अन्य कोई भी हो शासन तो धर्मानुसारी ही होना चाहिए।
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# धर्म शासक का भी शासक है। शासन पद्धति राजतंत्र की हो तानाशाही की हो या लोकतंत्र की हो या अन्य कोई भी हो शासन तो धर्मानुसारी ही होना चाहिए।  
८.२ यथा राजा तथा प्रजा। सामान्य जन राजा का अनुकरण करते हैं। राजा धर्म का आचरण करनेवाला और धर्म के जानकार पंडितों का आश्रयदाता और अनुचर भी हो।
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# यथा राजा तथा प्रजा। सामान्य जन राजा का अनुकरण करते हैं। राजा धर्म का आचरण करनेवाला और धर्म के जानकार पंडितों का आश्रयदाता और अनुचर भी हो।  
८.३ राज्यो रक्षति रक्षित: : राजा और प्रजा परस्पर एकदूसरे की रक्षा करें।
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# राज्यो रक्षति रक्षित: : राजा और प्रजा परस्पर एकदूसरे की रक्षा करें।  
८.४ राजा और प्रजा इस शब्दावलीसे ही उनके परस्पर सम्बन्ध समझ में आते हैं। प्रजा का अर्थ ही संतान होता है।
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# राजा और प्रजा इस शब्दावली से ही उनके परस्पर सम्बन्ध समझ में आते हैं। प्रजा का अर्थ ही संतान होता है।  
८.५ ‘अभोगी राजा’ याने सभी प्रकारके उपभोग उपलब्ध होते हुए भी उनसे अलिप्त रहकर प्रजाराधन करनेवाला राजा ही शासक का भारतीय स्वरूप है।
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# ‘अभोगी राजा’ याने सभी प्रकार के उपभोग उपलब्ध होते हुए भी उनसे अलिप्त रहकर प्रजाराधन करनेवाला राजा ही शासक का भारतीय स्वरूप है।  
८.६ राजा ने किये पाप प्रजा को भोगने पड़ते हैं। प्रजा के पाप में भी राजा भागीदार होता है।  
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# राजा ने किये पाप प्रजा को भोगने पड़ते हैं। प्रजा के पाप में भी राजा भागीदार होता है।  
८.७ राज्य में अधर्म, अन्याय हो ही नहीं इसकी आश्वस्ति होना सुराज्य का लक्षण है। जब न्याय माँगने की स्थिति आती है तब शासन दुर्बल है ऐसा माना जाएगा। जब न्याय के लिए लड़ना पड़ता है तब शासन घटिया है ऐसा माना जाएगा। और जब लड़कर भी न्याय नहीं मिलता तो शासन है ही नहीं ऐसा माना जाएगा।  
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# राज्य में अधर्म, अन्याय हो ही नहीं इसकी आश्वस्ति होना सुराज्य का लक्षण है। जब न्याय माँगने की स्थिति आती है तब शासन दुर्बल है ऐसा माना जाएगा। जब न्याय के लिए लड़ना पड़ता है तब शासन घटिया है ऐसा माना जाएगा। और जब लड़कर भी न्याय नहीं मिलता तो शासन है ही नहीं ऐसा माना जाएगा।
८.८ शासनिक स्वतन्त्रता हो। याने प्रजा की स्वाभाविक गतिविधियों में शासन का हस्तक्षेप नहीं हो।  
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# शासनिक स्वतन्त्रता हो। याने प्रजा की स्वाभाविक गतिविधियों में शासन का हस्तक्षेप नहीं हो।  
८.९ धर्म और शिक्षा के पंडितों को तथा उन के श्रेष्ठ केन्द्रों को सहायता, समर्थन, सुरक्षा प्राप्त हो यह शासन का कर्तव्य है।  
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# धर्म और शिक्षा के पंडितों को तथा उन के श्रेष्ठ केन्द्रों को सहायता, समर्थन, सुरक्षा प्राप्त हो यह शासन का कर्तव्य है।  
८.१० धर्म व्यवस्थाद्वारा मार्गदर्शित संगठन और व्यवस्थाओं के नियमों का दुष्ट और मूर्खों से अनुपालन करवाना शासन का काम है। इस दृष्टि से पर-राज्यों से सम्बन्ध, वहाँ के भी सज्जन तथा दुष्ट और मूर्खों की गतिविधियाँ जानने के लिए गुप्तचर व्यवस्था सक्षम हो।
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# धर्म व्यवस्था द्वारा मार्गदर्शित संगठन और व्यवस्थाओं के नियमों का दुष्ट और मूर्खों से अनुपालन करवाना शासन का काम है। इस दृष्टि से पर-राज्यों से सम्बन्ध, वहाँ के भी सज्जन तथा दुष्ट और मूर्खों की गतिविधियाँ जानने के लिए गुप्तचर व्यवस्था सक्षम हो।  
८.११ प्रशासन की दृष्टि से देश/राज्य के विभाग बनाये जाए। ग्राम स्तरपर प्रशासन की भूमिका केवल कर वसूली करने की हो। आवश्यकतानुसार विशेष परिस्थितीमें शासन हस्तक्षेप करे।  
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# प्रशासन की दृष्टि से देश/राज्य के विभाग बनाये जाए। ग्राम स्तरपर प्रशासन की भूमिका केवल कर वसूली करने की हो। आवश्यकतानुसार विशेष परिस्थितीमें शासन हस्तक्षेप करे।  
८.१२ शासक धर्म के मर्म को समझनेवाला, इंद्रियजयी, विवेकवान, शूरवीर, निर्भय, प्रजाहितदक्ष, चतुर एवं कूटनीतिज्ञ, लोकसंग्रही, लोगों की अच्छी पहचान रखनेवाला, प्रभावी व्यक्तित्ववाला हो।
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# शासक धर्म के मर्म को समझनेवाला, इंद्रियजयी, विवेकवान, शूरवीर, निर्भय, प्रजाहितदक्ष, चतुर एवं कूटनीतिज्ञ, लोकसंग्रही, लोगों की अच्छी पहचान रखनेवाला, प्रभावी व्यक्तित्ववाला हो।  
८.१३ शासक के प्रमुख कर्तव्य : - अपने से भी श्रेष्ठ उत्तराधिकारी निर्माण करना।
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# शासक के प्रमुख कर्तव्य :  
- अन्याय नहीं हो इस की आश्वस्ति हो। न्यायदान शीघ्र, सहज-सुलभ हो। अपराध, दंड का समीकरण हो।
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#* अपने से भी श्रेष्ठ उत्तराधिकारी निर्माण करना
- श्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था की प्रतिष्ठापना हो। इस हेतु से धर्मं के जानकार पंडितों का सम्मान हो। ऐसे पंडितों से परामर्श लेते रहना। देश विदेश से ऐसे विद्वान राज्य में आश्रय लें ऐसा वातावरण रहे।  
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#* अन्याय नहीं हो इस की आश्वस्ति हो। न्यायदान शीघ्र, सहज-सुलभ हो। अपराध, दंड का समीकरण हो।  
- शासक और प्रजा में सहज संवाद बना रहे।
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#* श्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था की प्रतिष्ठापना हो। इस हेतु से धर्मं के जानकार पंडितों का सम्मान हो। ऐसे पंडितों से परामर्श लेते रहना। देश विदेश से ऐसे विद्वान राज्य में आश्रय लें ऐसा वातावरण रहे।  
- प्रभावी गुप्तचर विभाग हो। बलशाली सेना हो।
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#* शासक और प्रजा में सहज संवाद बना रहे।  
- राष्ट्र को वर्धिष्णु रखना।
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#* प्रभावी गुप्तचर विभाग हो। बलशाली सेना हो।  
- राष्ट्रनिष्ठ, ज्ञानी, विवेकवान, नि:स्वार्थी, प्रजाहितदक्ष, निर्भय, चतुर, कूटनीतिज्ञ, लोकसंग्रही मंत्री हो।  
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#* राष्ट्र को वर्धिष्णु रखना।  
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#* राष्ट्रनिष्ठ, ज्ञानी, विवेकवान, नि:स्वार्थी, प्रजाहितदक्ष, निर्भय, चतुर, कूटनीतिज्ञ, लोकसंग्रही मंत्री हो।  
 
   शासन का स्वरूप :
 
   शासन का स्वरूप :
 
-  पुत्रवत सम्बन्ध :प्रजा के साथ पिता-संतान जैसा संबंध।
 
-  पुत्रवत सम्बन्ध :प्रजा के साथ पिता-संतान जैसा संबंध।
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