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# अत्यंत गौरवशाली भारतीय इतिहास को नकारना।  
 
# अत्यंत गौरवशाली भारतीय इतिहास को नकारना।  
 
# केवल काँग्रेस के स्वाधीनता संग्राम में जुटे, 'वी आर ए नेशन इन द मेकिंग' ऐसा लगने वाले नेताओं का महिमा मंडन करना। लगभग १५ वर्ष पूर्व प्रस्तुत लेखक ने ७वीं में पढ रही एक लडकी से प्रश्न पूछा था 'स्वाधीनता किस के कारण प्राप्त हुई ?' तुरंत उत्तर आया 'गांधीजी और नेहरूजी'।  
 
# केवल काँग्रेस के स्वाधीनता संग्राम में जुटे, 'वी आर ए नेशन इन द मेकिंग' ऐसा लगने वाले नेताओं का महिमा मंडन करना। लगभग १५ वर्ष पूर्व प्रस्तुत लेखक ने ७वीं में पढ रही एक लडकी से प्रश्न पूछा था 'स्वाधीनता किस के कारण प्राप्त हुई ?' तुरंत उत्तर आया 'गांधीजी और नेहरूजी'।  
# इस्लाम और ईसाई शासकों और आक्रमकों के हत्याकांडों, अत्याचारों, स्त्रियोंपर बलात्कार, गुलाम बनाकर बेचना, तलवार के बलपर इस्लामीकरण और ईसाईकरण, कत्ले आम आदि को नकारना।  
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# इस्लाम और ईसाई शासकों और आक्रमकों के हत्याकांडों, अत्याचारों, स्त्रियोंपर बलात्कार, गुलाम बनाकर बेचना, तलवार के बल पर इस्लामीकरण और ईसाईकरण, कत्ले आम आदि को नकारना।  
 
# एक आभासी साझी संस्कृति को जन्म देना।  
 
# एक आभासी साझी संस्कृति को जन्म देना।  
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देश का जो भी संविधान है उसका उचित आदर तो सभी से अपेक्षित है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं की संविधान आलोचना से ऊपर माना जाने लगे। १०० से अधिक बार जिसमें संशोधन करने की आवश्यकता निर्माण हुई उसे पवित्र नहीं माना जा सकता। भारतीय संसद भी इसे पवित्र नहीं मानती। भारतीय संवैधानिक जिम्मेदारियाँ (कॉन्स्टिटयूशनल ऑब्लिगेशनस्) : जिस संविधान में औसतन प्रति वर्ष लगभग दो बार संशोधन की आवश्यकता महसूस की गई उस के द्वारा प्रतिपादित संवैधानिक जिम्मेदारियों के पालन की गुहार दी गई है। यह संविधान मूलत: भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित नहीं है। संविधान में पूरा बल अधिकारों पर ही दिया गया है। अंग्रेजी शासन के गव्हर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट आदि अंग्रेजों ने भारत पर शासन करने के लिए बनाए अन्यान्य कानूनों से बहुत बड़ा हिस्सा इस संविधान में लिया गया है। भारतीय दृष्टि से तो धर्म सर्वोपरि होता है। इस संविधान में धर्म को कोई स्थान नहीं है।
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देश का जो भी संविधान है उसका उचित आदर तो सभी से अपेक्षित है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि संविधान आलोचना से ऊपर माना जाने लगे। १०० से अधिक बार जिस संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता निर्माण हुई उसे पवित्र नहीं माना जा सकता। भारतीय संसद भी इसे पवित्र नहीं मानती। भारतीय संवैधानिक जिम्मेदारियाँ (कॉन्स्टिटयूशनल ऑब्लिगेशनस्) : जिस संविधान में औसतन प्रति वर्ष लगभग दो बार संशोधन की आवश्यकता महसूस की गई उस के द्वारा प्रतिपादित संवैधानिक जिम्मेदारियों के पालन की गुहार दी गई है। यह संविधान मूलत: भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित नहीं है। संविधान में पूरा बल अधिकारों पर ही दिया गया है। अंग्रेजी शासन के गव्हर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट आदि अंग्रेजों ने भारत पर शासन करने के लिए बनाए अन्यान्य कानूनों से बहुत बड़ा हिस्सा इस संविधान में लिया गया है। भारतीय दृष्टि से तो धर्म सर्वोपरि होता है। इस संविधान में धर्म को कोई स्थान नहीं है।
    
संविधान में कहीं भी राष्ट्र की व्याख्या नहीं दी गयी है। संविधान का प्रारम्भ ही ‘इंडिया दैट इज भारत’ की विकृति से शुरू होता है। इसकी अल्पसंख्य की संकल्पना और उनको दिए जानेवाले विशेषाधिकार तो राष्ट्रीय दिवालियेपन का ही लक्षण है। इसके कर्ता डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर भी इस संविधान से समाधानी नहीं थे। किन्तु जवाहरलाल नेहरू की हठधर्मी के कारण वे अपनी पसंद का संविधान नहीं बना पाए।
 
संविधान में कहीं भी राष्ट्र की व्याख्या नहीं दी गयी है। संविधान का प्रारम्भ ही ‘इंडिया दैट इज भारत’ की विकृति से शुरू होता है। इसकी अल्पसंख्य की संकल्पना और उनको दिए जानेवाले विशेषाधिकार तो राष्ट्रीय दिवालियेपन का ही लक्षण है। इसके कर्ता डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर भी इस संविधान से समाधानी नहीं थे। किन्तु जवाहरलाल नेहरू की हठधर्मी के कारण वे अपनी पसंद का संविधान नहीं बना पाए।
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