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कोई भी मरना नहीं चाहता। अमर होने की इच्छा सब को होती है। लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है। इसके साथ ही उसका बीमार नहीं होना, बूढा नहीं होना, गरीब नहीं होना, सदा सुखी होना आदि शर्तें भी यदि जुडी नहीं हैं तो ऐसे अमर मानव का जीवन नरक से भी भयावह बन जाएगा। और वह शीघ्रातिशीघ्र मरने की इच्छा करने लग जाएगा। इसी तथ्य का ज्ञान तथागत गौतम बुद्ध के जीवन को मोड़ देकर उन्हें संसार से विमुख करनेवाला कारक विचार था।  
 
कोई भी मरना नहीं चाहता। अमर होने की इच्छा सब को होती है। लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है। इसके साथ ही उसका बीमार नहीं होना, बूढा नहीं होना, गरीब नहीं होना, सदा सुखी होना आदि शर्तें भी यदि जुडी नहीं हैं तो ऐसे अमर मानव का जीवन नरक से भी भयावह बन जाएगा। और वह शीघ्रातिशीघ्र मरने की इच्छा करने लग जाएगा। इसी तथ्य का ज्ञान तथागत गौतम बुद्ध के जीवन को मोड़ देकर उन्हें संसार से विमुख करनेवाला कारक विचार था।  
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इसलिए अमर या चिरंजीवी बनने के साथ सदा सुखी होने की क्षमता की आवश्यकता उस मानव में होना आवश्यक है। लेकिन जीवन में सुख और दु:ख दोनों होते ही हैं। निर्जीव को सुख और दु:ख दोनों की संवेदनाएं नहीं होतीं। लेकिन मानव तो सजीव होने के साथ ही अत्यंत संवेदनशील जीव भी है। इसलिए किसी भी मानव के लिए वह जब सुख और दु:ख दोनों से परे हो जाएगा तब ही चिरंजीवी बनने में औचित्य होता है। भारतीय मान्यता है कि सात लोग चिरंजीवी बने हैं। कहा है:
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इसलिए अमर या चिरंजीवी बनने के साथ सदा सुखी होने की क्षमता की आवश्यकता उस मानव में होना आवश्यक है। लेकिन जीवन में सुख और दु:ख दोनों होते ही हैं। निर्जीव को सुख और दु:ख दोनों की संवेदनाएं नहीं होतीं। लेकिन मानव तो सजीव होने के साथ ही अत्यंत संवेदनशील जीव भी है। इसलिए किसी भी मानव के लिए वह जब सुख और दु:ख दोनों से परे हो जाएगा तब ही चिरंजीवी बनने में औचित्य होता है। भारतीय मान्यता है कि सात लोग चिरंजीवी बने हैं। कहा है {{Citation needed}} :
    
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च बिभीषण:  ।
 
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च बिभीषण:  ।
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लेकिन अश्वत्थामा जैसा अपने जख्म और उनसे होनेवाली वेदनाएं लेकर अमर बनना कोई नहीं चाहता। भारतीय मान्यता के अनुसार सात चिरंजीवी लोगों में से अन्य बलि, व्यास, हनुमान, बिभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये जो छ: चिरंजीवी लोग हैं वे इस सुख और दुःख से परे गए हुए लोग हैं। उनके जैसे हम बनें ऐसी प्रार्थना लोग नित्य करते हैं।  
 
लेकिन अश्वत्थामा जैसा अपने जख्म और उनसे होनेवाली वेदनाएं लेकर अमर बनना कोई नहीं चाहता। भारतीय मान्यता के अनुसार सात चिरंजीवी लोगों में से अन्य बलि, व्यास, हनुमान, बिभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये जो छ: चिरंजीवी लोग हैं वे इस सुख और दुःख से परे गए हुए लोग हैं। उनके जैसे हम बनें ऐसी प्रार्थना लोग नित्य करते हैं।  
हमारे पूर्वजों ने यह सुख दुःख के परे जाने की प्रक्रिया को ढूंढा था। उस प्रक्रिया के अनुसार प्रत्यक्ष जीने का तरीका उन्होंने आत्मसात किया था। केवल इसीलिये भारत एक चिरंजीवी राष्ट्र बन सका है। आज भी इस तत्वज्ञान को जानने वाले लोग अच्छी खासी संख्या में भारत राष्ट्र में विद्यमान हैं। इस तत्वज्ञान के अनुसार जीने की शायद उनकी क्षमता नहीं होगी लेकिन इस में उनका विश्वास अवश्य है। इस प्रक्रिया के अनुसार जीनेवालों की संख्या में जिस प्रमाण में कमी आ रही है, भारत राष्ट्र की चिरंजीविता उसी प्रमाण में घट रही है।  
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हमारे पूर्वजों ने यह सुख दुःख के परे जाने की प्रक्रिया को ढूंढा था। उस प्रक्रिया के अनुसार प्रत्यक्ष जीने का तरीका उन्होंने आत्मसात किया था। केवल इसीलिये भारत एक चिरंजीवी राष्ट्र बन सका है। आज भी इस तत्वज्ञान को जानने वाले लोग अच्छी खासी संख्या में भारत राष्ट्र में विद्यमान हैं। इस तत्वज्ञान के अनुसार जीने की शायद उनकी क्षमता नहीं होगी लेकिन इस में उनका विश्वास अवश्य है। इस प्रक्रिया के अनुसार जीनेवालों की संख्या में जिस प्रमाण में कमी आ रही है, भारत राष्ट्र की चिरंजीविता उसी प्रमाण में घट रही है।
    
== सुख विवेचन ==
 
== सुख विवेचन ==
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