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| == तत्वज्ञान के कुछ सूत्र == | | == तत्वज्ञान के कुछ सूत्र == |
− | # सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सारी सृष्टि में एक परमात्मा का वास है। सृष्टि के हर अस्तित्व में आत्मतत्व के होने से सभी में परस्पर आत्मीयता का सीधा संबंध है। इसलिये सृष्टि के चराचर के सुख में ही सब का सुख है। | + | # सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।{{Citation needed}} सारी सृष्टि में एक परमात्मा का वास है। सृष्टि के हर अस्तित्व में आत्मतत्व के होने से सभी में परस्पर आत्मीयता का सीधा संबंध है। इसलिये सृष्टि के चराचर के सुख में ही सब का सुख है। |
− | # वसुधैव कुटुंबकम्। सारी सृष्टि/वसुधा एक कुटुंब है। और कुटुंब या परिवार का आधार यह आत्मीयता ही है। | + | # वसुधैव कुटुंबकम्{{Citation needed}} । सारी सृष्टि/वसुधा एक कुटुंब है। और कुटुंब या परिवार का आधार यह आत्मीयता ही है। |
| # जिसने पेट दिया है वह दाने की भी व्यवस्था करेगा। ऐसा विश्वास था। इसी कारण परिवारों में जो जन्मा है वह खाएगा और जो कमाएगा वह खिलाएगा ऐसा व्यवहार होता था। | | # जिसने पेट दिया है वह दाने की भी व्यवस्था करेगा। ऐसा विश्वास था। इसी कारण परिवारों में जो जन्मा है वह खाएगा और जो कमाएगा वह खिलाएगा ऐसा व्यवहार होता था। |
| # जन्म लेनेवाला बच्चा केवल अपने हित की ही सोच रखता है। पंचमहाभूतों से बने शरीर के मोह से अपने अंदर उपस्थित आत्मतत्व को 'मै’ समझता है। परमात्वतत्व से भिन्न समझता है। ऐसे बच्चे को उस का 'स्वार्थ' भुलाकर अपनों के लिये जीने वाला मानव बनाना ही मानव का विकास है। ऐसे विकास का केन्द्र परिवार है। | | # जन्म लेनेवाला बच्चा केवल अपने हित की ही सोच रखता है। पंचमहाभूतों से बने शरीर के मोह से अपने अंदर उपस्थित आत्मतत्व को 'मै’ समझता है। परमात्वतत्व से भिन्न समझता है। ऐसे बच्चे को उस का 'स्वार्थ' भुलाकर अपनों के लिये जीने वाला मानव बनाना ही मानव का विकास है। ऐसे विकास का केन्द्र परिवार है। |
| # धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार पुरूषार्थ मानव जीवन के लिये आवश्यक माने गये हैं। धर्म के अनुकूल अर्थ और काम रखने से मोक्ष प्राप्ति होती है। | | # धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार पुरूषार्थ मानव जीवन के लिये आवश्यक माने गये हैं। धर्म के अनुकूल अर्थ और काम रखने से मोक्ष प्राप्ति होती है। |
− | # अर्थ पुरूषार्थ के अर्थ : हर मनुष्य में इच्छाएं होतीं हैं। और उन इच्छाओं को पूरी करने के प्रयास वह करता है। इन इच्छाओं और उन की पूर्ति के लिये किये गये प्रयासों के कारण ही संसार के व्यवहार चलते हैं। जीवन आगे बढता है। इसलिये भारतीय तत्वज्ञान में इन्हें पुरूषार्थ कहा गया है। इन दोनों के धर्म के अविरोधी होने से समाज ठीक चलता है। और मनुष्य अपने व्यक्तिगत् लक्ष्य मोक्ष की ओर बढता है। यहाँ अर्थ से तात्पर्य केवल पैसे कमाने से नही है। या केवल पैसे के विनिमय से नही है। इच्छाओं की पूर्ति के लिये किये जानेवाले सभी प्रयासों और साधनों के उपयोग से है। | + | # अर्थ पुरूषार्थ के अर्थ : हर मनुष्य में इच्छाएं होतीं हैं। और उन इच्छाओं को पूरी करने के प्रयास वह करता है। इन इच्छाओं और उन की पूर्ति के लिये किये गये प्रयासों के कारण ही संसार के व्यवहार चलते हैं। जीवन आगे बढता है। इसलिये भारतीय तत्वज्ञान में इन्हें पुरूषार्थ कहा गया है। इन दोनों के धर्म के अविरोधी होने से समाज ठीक चलता है। और मनुष्य अपने व्यक्तिगत् लक्ष्य मोक्ष की ओर बढता है। यहाँ अर्थ से तात्पर्य केवल पैसे कमाने से नही है। या केवल पैसे के विनिमय से नही है। इच्छाओं की पूर्ति के लिये किये जानेवाले सभी प्रयासों और साधनों के उपयोग से है। |
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| == व्यवस्था == | | == व्यवस्था == |