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== संयुक्त परिवारों के दृढीकरण और पुन: प्रतिष्ठापना की गणितीय प्रक्रिया ==
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== संयुक्त परिवारों के दृढी करण और पुन: प्रतिष्ठापना की गणितीय प्रक्रिया ==
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सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरीपर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगों को कुछ पीढियोंतक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढीयों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा। - पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा। - दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा। कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।         - तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगों का बन जाएगा। अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।               संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पिढी की मानसिकता बिगाड डाली है। अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है'ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है ऐसी मानसिकता समाजव्यापि बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड पत्ते की तरह वह परस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगों को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगों को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगों को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होनेवाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा। १.  अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना। २.  अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना।
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सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरी पर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगों को कुछ पीढियों तक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढियों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा:
    यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु  
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* पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा।
    विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
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* दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा।
३.  युवकों ने नयी संतानें निर्माण करते समय उन संतानों में संयुक्त परिवार की मानसिकता निर्माण हो ऐसे गर्भपूर्व और  
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* कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।
    गर्भसंस्कार करना। जन्म से आगे भी इस विचार को पोषक वातावरण उन्हें देना। उनपर अनुकूल संस्कारों की दृष्टि से  
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* तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगों का बन जाएगा।  
    अपने परिवार के हित में अपने करिअर का त्याग कर अनुकरण के लिये उदाहरण प्रस्तुत करना।  
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* अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।
४.  अपने बच्चोंपर हर हालत में कुटुंब के साथ ही निवास के और आज्ञाधारकता के संस्कार करना। सामान्यत: नौकरी और  
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संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पीढी की मानसिकता बिगाड डाली है। 'अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है' - ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है, ऐसी मानसिकता समाजव्यापी बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड पत्ते की तरह वह परिस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगों को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगों को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगों को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होने वाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा:
    विवाह ये दो ऐसी बातें हैं जो कुटुंब को विभक्त करतीं हैं। व्यक्तिवादिता के कारण आज्ञाधारकता नहीं रहती। घर में नई  
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# अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना।
    दुल्हन लाते समय संयुक्त कुटुंब विरोधी कोई खोटा सिक्का तत्व घर में नहीं आए इस का भी ध्यान रखना होगा।
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# अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना। यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
५.  यथासंभव बच्चों को प्राथमिक शिक्षा घर में या जहाँ सही अर्थों में गुरूगृहवास हो, श्रेष्ठ गुरू हो ऐसे गुरुकुल में हो।
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# युवकों ने नयी संतानें निर्माण करते समय उन संतानों में संयुक्त परिवार की मानसिकता निर्माण हो ऐसे गर्भपूर्व और गर्भसंस्कार करना। जन्म से आगे भी इस विचार को पोषक वातावरण उन्हें देना। उनपर अनुकूल संस्कारों की दृष्टि से अपने परिवार के हित में अपने करिअर का त्याग कर अनुकरण के लिये उदाहरण प्रस्तुत करना।  
६.  तीसरी पीढी में परिवार की बढी हुई सदस्य संख्या का सदुपयोग हो सके ऐसा व्यवसाय अभी से चुनना।  
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# अपने बच्चों पर हर हालत में कुटुंब के साथ ही निवास के और आज्ञाधारकता के संस्कार करना। सामान्यत: नौकरी और विवाह ये दो ऐसी बातें हैं जो कुटुंब को विभक्त करतीं हैं। व्यक्तिवादिता के कारण आज्ञाधारकता नहीं रहती। घर में नई दुल्हन लाते समय संयुक्त कुटुंब विरोधी कोई खोटा सिक्का तत्व घर में नहीं आए इस का भी ध्यान रखना होगा।
७.  मकान बनाते समय वर्तमान से कम से कम दुगुनी सदस्य संख्या के लिये बनवाना। आवश्यकता के अनुसार उस में तीसरी पीढी की संख्या भी सहजता से रह सके इतनी जमीन लेकर भवन बनाना। यदि संभव हो तो थोडी जमीन परिवार के लिये शाकभाजी पैदा करने के लिये भी रखना। गायों के गोठे के लिये भी जमीन रखना। इतनी बडी जमीन के लिये यदि शहरसे थोडा दूर या गाँव में जाना पडे तो जाना। इससे शुरू में तकलीफ होगी। किंतु स्वच्छ हवा, संयुक्त परिवार के अनेकों लाभ ध्यान में लेकर इन तकलीफों को सहना।      
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# यथासंभव बच्चों को प्राथमिक शिक्षा घर में या जहाँ सही अर्थों में गुरूगृहवास हो, श्रेष्ठ गुरू हो ऐसे गुरुकुल में हो।
८.  कोषों (बँकों) के खाते एकीकृत करना। पाकगृह एक ही रखना। कुटुंब की आमदनी और व्यय का ठीक से हिसाब रखना।
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# तीसरी पीढी में परिवार की बढी हुई सदस्य संख्या का सदुपयोग हो सके ऐसा व्यवसाय अभी से चुनना।
९.  जिनके संयुक्त कुटुंब हैं उन्होंने अपने घर में गाय को पालना। गोशाला यह तो गाय को बचाने का अंतिम और बहुत  
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# मकान बनाते समय वर्तमान से कम से कम दुगुनी सदस्य संख्या के लिये बनवाना। आवश्यकता के अनुसार उस में तीसरी पीढी की संख्या भी सहजता से रह सके इतनी जमीन लेकर भवन बनाना। यदि संभव हो तो थोडी जमीन परिवार के लिये शाकभाजी पैदा करने के लिये भी रखना। गायों के गोठे के लिये भी जमीन रखना। इतनी बडी जमीन के लिये यदि शहर से थोडा दूर या गाँव में जाना पडे तो जाना। इससे शुरू में तकलीफ होगी। किंतु स्वच्छ हवा, संयुक्त परिवार के अनेकों लाभ ध्यान में लेकर इन तकलीफों को सहना।
    कमजोर विकल्प है। सही विकल्प तो घरों में गाय का पालन करना ही है। साथ में ऐसी गौओं के लिये सार्वजनिक गोचर  
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# कोषों (बँकों) के खाते एकीकृत करना। पाकगृह एक ही रखना। कुटुंब की आमदनी और व्यय का ठीक से हिसाब रखना।
    भूमि की आश्वस्ति करना यही है।
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# जिनके संयुक्त कुटुंब हैं उन्होंने अपने घर में गाय को पालना। गोशाला यह तो गाय को बचाने का अंतिम और बहुत कमजोर विकल्प है। सही विकल्प तो घरों में गाय का पालन करना ही है। साथ में ऐसी गौओं के लिये सार्वजनिक गोचर भूमि की आश्वस्ति करना यही है।
१०. पूर्व में बताई गई संयुक्त परिवारों की विशेषताओें में से बिंदू १.३०.१४ को ध्यान में रखकर सुरक्षा उत्पादनों को छोड
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# पूर्व में बताई गई संयुक्त परिवारों की विशेषताओें में से बिंदू १.३०.१४ को ध्यान में रखकर सुरक्षा उत्पादनों को छोड सभी उत्पादन कौटुम्बिक उद्योगों में ही बनें यह सुनिश्चित करना। इस के लिये निम्न बातें करनी हो सकतीं हैं:
    सभी उत्पादन कौटुम्बिक उद्योगों में ही बनें यह सुनिश्चित करना। इस के लिये निम्न बातें करनी हो सकतीं हैं।
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## कौटुम्बिक उद्योगों के अतिरिक्त उद्योगों के उत्पादनों का बहिष्कार करना। यही स्वदेशी भावना की भी अनिवार्यता है।
    १०.१ कौटुम्बिक उद्योगों के अतिरिक्त उद्योगों के उत्पादनों का बहिष्कार करना। यही स्वदेशी भावनाकी भी अनिवार्यता है।  
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## नौकरी नहीं करना। कर रहें हों तो पारिवारिक उद्योग प्रारंभ करने के समांतर प्रयास कर यथासंभव शीघ्रता से नौकरी से छुटकारा पाना।
    १०.२ नौकरी नहीं करना। कर रहें हों तो पारिवारिक उद्योग प्रारंभ करने के समांतर प्रयास कर यथासंभव शीघ्रता से  
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## कौटुम्बिक उद्योगों को प्रोत्साहन देने के साथ ही अन्य उद्योगों को हतोत्साहित करना।
  नौकरी से छुटकारा पाना।
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### केवल पारिवारिक उद्योगों को ही कच्चा माल और पुर्जे बेचना।  
    १०.३ कौटुम्बिक उद्योगों को प्रोत्साहन देने के साथ ही अन्य उद्योगों को हतोत्साहित करना।  
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### केवल पारिवारिक उद्योगों को ही भाडे के वाहन, आर्थिक सलाह जैसी सेवाएँ देना आदि ।
      १०.३.१ केवल पारिवारिक उद्योगों को ही कच्चा माल और पुर्जे बेचना।  
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## राजनीतिक दलों और सरकारपर दबाव डालकर पारिवारिक उद्योगों के पक्ष में कानून बनाना।
      १०.३.२ केवल पारिवारिक उद्योगों को ही भाडे के वाहन, आर्थिक सलाह जैसी सेवाएँ देना। ……आदि
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## कौटुम्बिक उद्योगों से अतिरिक्त उद्योगों को सेवाएँ देनेवालों का आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार करना।
    १०.४ राजनीतिक दलों और सरकारपर दबाव डालकर पारिवारिक उद्योगों के पक्ष में कानून बनाना।
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## भिन्न भिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाकर पारिवारिक उद्योगों को तोडनेवाले उद्योगों को उन्हें जिस भाषा में समझता है, समझाना।
    १०.५ कौटुम्बिक उद्योगों से अतिरिक्त उद्योगों को सेवाएँ देनेवालों का आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार करना।
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## केवल पारिवारिक उद्योगों के लिये उपयुक्त तंत्रज्ञानों और उपकरणों का विकास करने की ‘तंत्रज्ञान नीति’ अपनाना।
१०.६ भिन्न भिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाकर पारिवारिक उद्योगों को तोडनेवाले उद्योगों को उन्हें जिस भाषा में समझता है             समझाना।
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# वास्तुशास्त्र के अनुसार घर बनाने से भी घर में सुख शांति का वातावरण बना रहता है।
      १०.७ केवल पारिवारिक उद्योगों के लिये उपयुक्त तंत्रज्ञानों और उपकरणों का विकास करने की ‘तंत्रज्ञान नीति’ अपनाना।
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# ऐसे कई अन्य उपायों की भी खोज कर उन का उपयोग हमें करना होगा।  
११. वास्तुशास्त्र के अनुसार घर बनाने से भी घर में सुख शांति का वातावरण बना रहता है।      
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ऐसे कई अन्य उपायों की भी खोज कर उन का उपयोग हमें करना होगा।  
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उपसंहार
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== उपसंहार ==
कई कुटुंब वर्तमान शिक्षा के प्रभाव में टूटने की कगारपर हैं। कई संयुक्त परिवारों में उनके सदस्यों में चल रहे झगडों के (जो वास्तविकता भी है) उदाहरण भी लोग देंगे। सामान्य जन तो ऐसे उदाहरणों से संभ्रम में पड जाएँगे। लेकिन जो समाज जीवन को समग्रता में और एकात्मता से देखने का प्रयास करेंगे उन्हें यह ध्यान में आएगा कि संयुक्त परिवार यह जीवन के पूरे प्रतिमान को भारतीय बनाने की प्रक्रिया का एक अनिवार्य और महत्त्वपूर्ण अंग है। इसलिये सामान्य जन के संभ्रम से विचलित न होकर, हतोत्साहित न होते हुए हमें निष्ठा से संयुक्त कुटुंबों की फिर से प्रतिष्ठापना करनी होगी।  
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कई कुटुंब वर्तमान शिक्षा के प्रभाव में टूटने की कगार पर हैं। कई संयुक्त परिवारों में उनके सदस्यों में चल रहे झगडों के (जो वास्तविकता भी है) उदाहरण भी लोग देंगे। सामान्य जन तो ऐसे उदाहरणों से संभ्रम में पड जाएँगे। लेकिन जो समाज जीवन को समग्रता में और एकात्मता से देखने का प्रयास करेंगे उन्हें यह ध्यान में आएगा कि संयुक्त परिवार यह जीवन के पूरे प्रतिमान को भारतीय बनाने की प्रक्रिया का एक अनिवार्य और महत्त्वपूर्ण अंग है। इसलिये सामान्य जन के संभ्रम से विचलित न होकर, हतोत्साहित न होते हुए हमें निष्ठा से संयुक्त कुटुंबों की फिर से प्रतिष्ठापना करनी होगी।  
संयुक्त कुटुंब व्यवस्था का पुनरूत्थान वर्तमान में अत्यंत कठिन बात हो गई है। लोगों की ‘यह अब असंभव है’ ऐसी प्रतिक्रिया आना अत्यंत स्वाभाविक है। संयुक्त परिवारोंद्वारा चलाए जा रहे कौटुम्बिक उद्योगोंपर आधारित अर्थव्यवस्था, ऐसे परिवारों के परस्परावलंबनपर आधारित ग्राम को स्वावलंबी बनानेवाली, एक कुटुंब जैसा बनानेवाली ग्रामकुल की मालिकों की मानसिकता वाले समाज की अर्थव्यवस्था आदि जीवन के भारतीय प्रतिमान के अनिवार्य अंग हैं।  
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संयुक्त कुटुंब व्यवस्था का पुनरूत्थान वर्तमान में अत्यंत कठिन बात हो गई है। लोगों की ‘यह अब असंभव है’ ऐसी प्रतिक्रिया आना अत्यंत स्वाभाविक है। संयुक्त परिवारों द्वारा चलाए जा रहे कौटुम्बिक उद्योगों पर आधारित अर्थव्यवस्था, ऐसे परिवारों के परस्परावलंबन पर आधारित ग्राम को स्वावलंबी बनानेवाली, एक कुटुंब जैसा बनाने वाली ग्रामकुल की मालिकों की मानसिकता वाले समाज की अर्थव्यवस्था आदि जीवन के भारतीय प्रतिमान के अनिवार्य अंग हैं।  
    
वर्तमान में संयुक्त कुटुंब निर्माण और विस्तार यह विषय केवल कुछ लोगों के दिमाग में आए प्रबल विचार तक ही सीमित है। कुछ लोगों और कुटुंबों तक यह सीमित नहीं रहे। यह विषय सभी हिंदू समाज का बनना चाहिये। इस दृष्टि से हिंदू समाज के हित में काम करनेवाले सभी संगठन, संस्थाएँ और कुटुंब इस विषय को गंभीरता से लें तो तीन पीढियों में हमारे देश का चित्र फिर से जैसा हमें अपेक्षित है वैसा सुखी, सुसंस्कृत और समृद्ध दिखाई देने लगेगा।
 
वर्तमान में संयुक्त कुटुंब निर्माण और विस्तार यह विषय केवल कुछ लोगों के दिमाग में आए प्रबल विचार तक ही सीमित है। कुछ लोगों और कुटुंबों तक यह सीमित नहीं रहे। यह विषय सभी हिंदू समाज का बनना चाहिये। इस दृष्टि से हिंदू समाज के हित में काम करनेवाले सभी संगठन, संस्थाएँ और कुटुंब इस विषय को गंभीरता से लें तो तीन पीढियों में हमारे देश का चित्र फिर से जैसा हमें अपेक्षित है वैसा सुखी, सुसंस्कृत और समृद्ध दिखाई देने लगेगा।
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