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==प्रायश्चित्त के प्रकार॥ Types of Prayashchitta==
 
==प्रायश्चित्त के प्रकार॥ Types of Prayashchitta==
धर्मशास्त्र में विहित पापों के वर्गीकरण पापकर्मों की अधिकता अल्पता अथवा कितना अधिक व कम हानिप्रद है। इसके आधार पर किया गया है। मनु ने पापों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है -  
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धर्मशास्त्र में विहित पापों के वर्गीकरण पापकर्मों की अधिकता अल्पता अथवा कितना अधिक व कम हानिप्रद है, इसके आधार पर किया गया है। मनु ने पापों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है -  
 
*'''महापातक -''' ब्रह्महत्या, सुरापान, स्तेय (चोरी), गुरु पत्नी गमन और महापापियों का संसर्ग (इन चार प्रकार के पापकर्मों में लिप्त व्यक्ति के साथ संबंध रखने वाला)।
 
*'''महापातक -''' ब्रह्महत्या, सुरापान, स्तेय (चोरी), गुरु पत्नी गमन और महापापियों का संसर्ग (इन चार प्रकार के पापकर्मों में लिप्त व्यक्ति के साथ संबंध रखने वाला)।
*'''उपपातक -''' परस्त्रीगमन, आत्मविक्रय, गुरुसेवात्याग, गोवध आदि
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*'''उपपातक -''' गोवध, अयाज्य याजन, परस्त्रीगमन, आत्मविक्रय, गुरु,माता और पिता सेवा शुश्रूषा त्याग आदि इन सब पाप कर्मों को मनु ने उपपातक के रूप में माना है। <ref>मनु स्मृति, अध्याय ११, श्लोक ५९-६६।</ref>
*'''जातिभ्रंशकर -'''  
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*'''जातिभ्रंशकर -''' ज्ञानी को पीडित करना, नहीं सूँघने योग्य वस्तु को सूँघना, मद्य को सूंघना, कुटिलता और अप्राकृतिक मैथुन करना, ये प्रत्येक कर्म जातिभ्रष्ट करने वाले होते हैं।<ref>मनु स्मृति, अध्याय ११, श्लोक ६७।</ref>
*'''संकरीकरण -'''  
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*'''संकरीकरण -''' मनु के अनुसार जो कर्म वर्ण संकर उत्पन्न करते है, वे कर्म इस प्रकार हैं - गधा,कुत्ता, मृग, हाथी, बकरी, भेड, मछली, सांप और भैंसा इनमें से प्रत्येक को मारना भी मनुष्य को संकरीकरण कारक पाप कहलाता है।<ref>मनु स्मृति, अध्याय ११, श्लोक ६८।</ref>
*'''अपात्रीकरण -'''  
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*'''अपात्रीकरण -''' मनु के अनुसार जिस व्यक्ति से दान नहीं लेना चाहिए उससे दान लेना, उससे व्यापार करना, अयोग्य की सेवा करना और असत्य बोलना, ये सभी कर्म मनुष्य को अपात्र बनाते हैं।<ref>मनु स्मृति, अध्याय ११, श्लोक ६९।</ref>
*'''मलिनीकरण -'''  
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*'''मलिनीकरण -''' मनु के अनुसार मलिनीकरण कारक कर्म इस प्रकार हैं। जैसे कि कृमि, कीट तथा पक्षियों का वध करना,  मद्य (शराब) के साथ लाये पदार्थों का भोजन, फल, फूल और लकड़ी को चुराना, ये सभी कर्म मनुष्य को मलिन करने वाले माने गए हैं।<ref>मनु स्मृति, अध्याय ११, श्लोक ७०।</ref>
 
{| class="wikitable"
 
{| class="wikitable"
 
!श्रेणी<ref name=":2">डॉ० हिमा गुप्ता, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/atonement-law-in-ancient-india-uaf610/ प्राचीन भारत में प्रायश्चित्त विधान], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली (पृ० ४९)।</ref>
 
!श्रेणी<ref name=":2">डॉ० हिमा गुप्ता, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/atonement-law-in-ancient-india-uaf610/ प्राचीन भारत में प्रायश्चित्त विधान], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली (पृ० ४९)।</ref>
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|सामान्य प्रायश्चित्त
 
|सामान्य प्रायश्चित्त
|प्राणी वध - क्षत्र वध, शूद्र वध, अवकृष्ट वध, स्त्री वध, गर्भ वध, गोवध, वृक्षादि छेदन
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| प्राणी वध - क्षत्र वध, शूद्र वध, अवकृष्ट वध, स्त्री वध, गर्भ वध, गोवध, वृक्षादि छेदन
 
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|निषिद्ध भक्षण प्रायश्चित्त
 
|निषिद्ध भक्षण प्रायश्चित्त
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| याज्ञवल्क्य स्मृति
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|याज्ञवल्क्य स्मृति
 
|अध्याय ३ के १००९ श्लोकों में से १२२ श्लोक (३।२०५-३२७)
 
|अध्याय ३ के १००९ श्लोकों में से १२२ श्लोक (३।२०५-३२७)
 
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| बृह‌द् यम स्मृति
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|बृह‌द् यम स्मृति
 
|१८२ श्लोक प्रायश्चित्त सम्बंधी
 
|१८२ श्लोक प्रायश्चित्त सम्बंधी
 
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|ब्रह्माण्ड पुराण
 
|ब्रह्माण्ड पुराण
| उपसंहार पाद, अध्याय ९
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|उपसंहार पाद, अध्याय ९
 
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|टीका एवं निबन्ध
 
|टीका एवं निबन्ध
 
|मिताक्षरा, अपरार्क, पराशरमाधवीय
 
|मिताक्षरा, अपरार्क, पराशरमाधवीय
| विस्तार के साथ प्रायश्चित्त का उल्लेख
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|विस्तार के साथ प्रायश्चित्त का उल्लेख
 
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