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| | निबन्धों एवं टीकाओं ने प्रायश्चित्त की व्युत्पत्ति प्रायः (अर्थात तप) एवं चित्त (अर्थात संकल्प या दृढ विश्वास) से की है -<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/03.-dharma-shastra-ka-itihas-tatha-anya-smritiyan/03.Dharma%20Shastra%20Ka%20Itihas%20of%20Dr.%20Pandurang%20Vaman%20Kane%20Vol.%203%20-%20Uttar%20Pradesh%20Hindi%20Sansthan%20Lucknow-Reduced/page/n51/mode/1up धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-3], सन २००३, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० १०४४)।</ref> <blockquote>प्रायो नाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते। तपोनिश्चयसंयोगात्प्रायश्चित्तमिति स्मृतम्॥ (गौतमस्मृति ११.१)</blockquote>इसका सम्बन्ध तप करने के संकल्प से है या विश्वास से है कि इससे पापमोचन होगा।<ref>शोधार्थी- सुशीला कुमारी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/109471 स्मृति शास्त्र में प्रायश्चित्त-विधान एक अनुशीलनात्मक अध्ययन] (२०१०), शोधकेन्द्र- पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ (पृ० २६)।</ref> | | निबन्धों एवं टीकाओं ने प्रायश्चित्त की व्युत्पत्ति प्रायः (अर्थात तप) एवं चित्त (अर्थात संकल्प या दृढ विश्वास) से की है -<ref>डॉ० पाण्डुरंग वामन काणे, [https://archive.org/details/03.-dharma-shastra-ka-itihas-tatha-anya-smritiyan/03.Dharma%20Shastra%20Ka%20Itihas%20of%20Dr.%20Pandurang%20Vaman%20Kane%20Vol.%203%20-%20Uttar%20Pradesh%20Hindi%20Sansthan%20Lucknow-Reduced/page/n51/mode/1up धर्मशास्त्र का इतिहास भाग-3], सन २००३, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ (पृ० १०४४)।</ref> <blockquote>प्रायो नाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते। तपोनिश्चयसंयोगात्प्रायश्चित्तमिति स्मृतम्॥ (गौतमस्मृति ११.१)</blockquote>इसका सम्बन्ध तप करने के संकल्प से है या विश्वास से है कि इससे पापमोचन होगा।<ref>शोधार्थी- सुशीला कुमारी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/109471 स्मृति शास्त्र में प्रायश्चित्त-विधान एक अनुशीलनात्मक अध्ययन] (२०१०), शोधकेन्द्र- पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ (पृ० २६)।</ref> |
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| − | ==प्रायश्चित्त का स्वरूप॥ Prayashchitta ka Svaroop== | + | ==प्रायश्चित्त का स्वरूप॥ Prayashchitta ka Svaroop == |
| | धर्मशास्त्रों में प्रायश्चित्त वह कृत्य माना गया है जिसके करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और उसकी आत्मा शुद्ध होती है। प्रायश्चित्त केवल पापमोचन का उपाय नहीं, अपितु आत्मसंयम का साधन भी है।<ref>डॉ० शिखा शर्मा, [https://ia800804.us.archive.org/35/items/PramukhDharmaSutronEvamSmritiyonMeinPrayashchitVidhanShikhaSharma/Pramukh%20Dharma%20Sutron%20Evam%20Smritiyon%20Mein%20Prayashchit%20Vidhan%20-%20Shikha%20Sharma.pdf प्रमुख धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों में प्रायश्चित विधान] (२००७), न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन, दिल्ली (पृ० १७)।</ref> | | धर्मशास्त्रों में प्रायश्चित्त वह कृत्य माना गया है जिसके करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और उसकी आत्मा शुद्ध होती है। प्रायश्चित्त केवल पापमोचन का उपाय नहीं, अपितु आत्मसंयम का साधन भी है।<ref>डॉ० शिखा शर्मा, [https://ia800804.us.archive.org/35/items/PramukhDharmaSutronEvamSmritiyonMeinPrayashchitVidhanShikhaSharma/Pramukh%20Dharma%20Sutron%20Evam%20Smritiyon%20Mein%20Prayashchit%20Vidhan%20-%20Shikha%20Sharma.pdf प्रमुख धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों में प्रायश्चित विधान] (२००७), न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन, दिल्ली (पृ० १७)।</ref> |
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| | प्रायश्चित्तों के विषय में विस्तार के साथ वर्णन निम्न पुस्तकों में मिलता है - प्रायश्चित्त विवेक, पराशरमाधवीय (२, भाग १ एवं २) एवं प्रायश्चित्त प्रकाश। | | प्रायश्चित्तों के विषय में विस्तार के साथ वर्णन निम्न पुस्तकों में मिलता है - प्रायश्चित्त विवेक, पराशरमाधवीय (२, भाग १ एवं २) एवं प्रायश्चित्त प्रकाश। |
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| − | ==प्रायश्चित्त की आवश्यकता॥ importance of Prayaschitta== | + | == प्रायश्चित्त की विधियाँ == |
| | + | प्रायश्चित्त की विभिन्न विधियाँ अपराध की प्रकृति, दोष की गंभीरता, व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, आयु और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं। धर्मशास्त्रों में उल्लिखित मुख्य विधियाँ इस प्रकार हैं - |
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| | + | * '''जप -''' मंत्रों का निरंतर उच्चारण और आत्म-चिंतन द्वारा मन और चित्त की शुद्धि करना, जो दोषों के मानसिक प्रभाव को कम करता है। |
| | + | * '''तप -''' शारीरिक, मानसिक और संयमित तपस्या के द्वारा पाप का निवारण। इसमें नियमित उपवास, कष्ट सहन करना और असहज परिस्थितियों में रहना शामिल है। |
| | + | * '''स्नान -''' पवित्र जल या अन्य धार्मिक तीर्थों में स्नान करना जिससे दोष शारीरिक रूप से धुल जाता है। यह आत्मिक शुद्धि का प्रतीक माना गया है। |
| | + | * '''हवन/यज्ञ -''' अग्नि के पवित्र अनुष्ठान द्वारा दोषों का संहार और देवताओं से क्षमा याचना। ये विधियाँ सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से की जाती हैं। |
| | + | * '''दान -''' निर्धनों को वस्त्र, भोजन, धन आदि दान करना, जिससे पाप का प्रायश्चित्त होता है। |
| | + | * '''उपवास -''' दोष के आधार पर विशेष दिन उपवास रखना, जिससे शरीर का संयम व आत्मनियंत्रण बढ़ता है। |
| | + | * '''तीर्थयात्रा -''' पवित्र स्थानों की यात्रा कर वहां अनुष्ठान करना, जिससे आन्तरिक और बाह्य दोनों प्रकार की शुद्धि होती है। |
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| | + | इस प्रकार से धर्मशास्त्रों में प्रत्येक प्रकार के पाप के लिए उपर्युक्त प्रायश्चित्त विधि निर्धारित है और उसी को विधिवत करना आवश्यक है, जिससे पाप की छाया समाप्त हो सके। इसके साथ ही प्रायश्चित्त की सफलता के लिए सर्वप्रथम पश्चात्ताप का होना अनिवार्य माना गया है।<ref>शोधार्थी- सुशीला कुमारी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/109471 स्मृति शास्त्र में प्रायश्चित्त-विधान एक अनुशीलनात्मक अध्ययन] (२०१०), शोधकेन्द्र- पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ (पृ० ३५)।</ref> |
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| | + | == प्रायश्चित्त की आवश्यकता॥ importance of Prayaschitta== |
| | मनु और याज्ञवल्क्य दोनों के अनुसार प्रायश्चित्त की आवश्यकता तब होती है जब - | | मनु और याज्ञवल्क्य दोनों के अनुसार प्रायश्चित्त की आवश्यकता तब होती है जब - |
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