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== दक्षिण एवं उत्तर परंपरा आचार्य ==
 
== दक्षिण एवं उत्तर परंपरा आचार्य ==
इस परंपरा के प्रवर्तक आचार्यों में निम्नलिखित नाम विशेष उल्लेखनीय है <ref>महादेवप्रसाद शुक्ल, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.347304/page/n36/mode/1up भारतीय वास्तु शास्त्र], वास्तु-वाङ्मय-प्रकाशन-शाला, लखनऊ (पृ० १९)।</ref>
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इस परंपरा के प्रवर्तक आचार्यों में निम्नलिखित नाम विशेष उल्लेखनीय है - <ref>महादेवप्रसाद शुक्ल, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.347304/page/n36/mode/1up भारतीय वास्तु शास्त्र], वास्तु-वाङ्मय-प्रकाशन-शाला, लखनऊ (पृ० १९)।</ref>
    
ब्रह्मा त्वष्ट्रा मय मातंग भृगु काश्यप अगस्त्य शुक्र पराशर नग्नजित नारद प्रह्लाद शक्र बृहस्पति मानसार।
 
ब्रह्मा त्वष्ट्रा मय मातंग भृगु काश्यप अगस्त्य शुक्र पराशर नग्नजित नारद प्रह्लाद शक्र बृहस्पति मानसार।
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उत्तरी परंपरा के प्रवर्तक आचार्यों में निम्न लिखित नाम विशेष उल्लेखनीय हैं
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उत्तरी परंपरा के प्रवर्तक आचार्यों में निम्न लिखित नाम विशेष उल्लेखनीय हैं
    
शंभु,गर्ग, अत्रि, वसिष्ठ, पराशर, बृहद्रथ, विश्वकर्मा, वासुदेव।  
 
शंभु,गर्ग, अत्रि, वसिष्ठ, पराशर, बृहद्रथ, विश्वकर्मा, वासुदेव।  
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वेदों के बाद वास्तुशास्त्र का क्रमिक विकास पुराणों में भी प्राप्त होता है -  
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वेदों के बाद वास्तुशास्त्र का क्रमिक विकास पुराणों में भी प्राप्त होता है -<ref>शोधकर्ता- शैल त्रिपाठी, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/268604 संस्कृत वाङ्मय में निरूपित वास्तु के मूल तत्व], अध्याय- २, सन् २०१४, शोधकेन्द्र- छत्रपति साहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर (पृ० ६१)।</ref>
 
{| class="wikitable"
 
{| class="wikitable"
|+वास्तुशास्त्र संबंधित पौराणिक प्राचीन एवं अर्वाचीन वास्तु ग्रन्थ सूची  
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|+वास्तुविद्या वर्ण्य विषयक पुराण, प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थ सूची
!क्र० सं०  
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!क्र० सं०
!पौराणिक  
+
!पौराणिक
 
!प्राचीन वास्तु ग्रन्थ
 
!प्राचीन वास्तु ग्रन्थ
 
!अर्वाचीन वास्तु ग्रन्थ
 
!अर्वाचीन वास्तु ग्रन्थ
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|०१
 
|०१
 
|मत्स्य पुराण
 
|मत्स्य पुराण
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+
|बृहत्संहिता
|
+
|वास्तुराज वल्लभ
 
|-
 
|-
 
|०२
 
|०२
 
|वराह पुराण
 
|वराह पुराण
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+
|विश्वकर्म वास्तुशास्त्र
|
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|प्रासाद मण्डन
 
|-
 
|-
 
|०३
 
|०३
 
|ब्रह्मवैवर्त पुराण
 
|ब्रह्मवैवर्त पुराण
|
+
|समरांगण सूत्रधार
|
+
|वास्तु मण्डन
 
|-
 
|-
 
|०४
 
|०४
 
|स्कन्द पुराण
 
|स्कन्द पुराण
|
+
|अपराजित पृच्छा
|
+
|कोदण्ड मण्डन
 
|-
 
|-
 
|०५
 
|०५
 
|अग्नि पुराण
 
|अग्नि पुराण
|
+
|जय पृच्छा
|
+
|शिल्परत्न
 
|-
 
|-
 
|०६
 
|०६
 
|देवीभागवत पुराण
 
|देवीभागवत पुराण
|
+
|प्रमाण मंजरी
|
+
|वास्तुरत्नाकर
 
|-
 
|-
 
|०७
 
|०७
 
|गरुड पुराण
 
|गरुड पुराण
|
+
|वास्तुशास्त्र
|
+
|ज्योतिर्निबंध
 
|-
 
|-
 
|०८
 
|०८
 
|श्रीमद्भागवत पुराण
 
|श्रीमद्भागवत पुराण
|
+
|मयमतम्
|
+
|मुहूर्त चिंतामणि
 
|-
 
|-
 
|०९
 
|०९
 
|भविष्योत्तर पुराण
 
|भविष्योत्तर पुराण
|
+
|मानसार
|
+
|मुहूर्त गणपति
 
|-
 
|-
 
|१०
 
|१०
 +
|विष्णुधर्मोत्तर पुराण
 
|
 
|
|
+
|वास्तु सूत्रोपनिषद्
|
   
|-
 
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 +
|११
 
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|
 
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|
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|बृहद्वास्तु माला
|
   
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वास्तु आचार्य परंपरा के क्रम में वास्तुशास्त्र के अट्ठारह प्रवर्तक मत्स्य पुराण में प्राप्त होते हैं जो निम्नलिखित हैं - <blockquote>भुगुरत्रिर्वसिष्ठश्च विश्वकर्मा मयस्तथा। नारदो नग्नजिच्चैव विशालाक्षः पुरन्दरः॥
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ब्रह्मा कुमारो नन्दीशः शौनको गर्ग एव च। वासुदेवोऽनिरूद्धश्च तथा शुक्रबृहस्पतिः॥
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अष्टादशैते विख्याता वास्तुशास्त्रोपदेशकाः। संक्षेपेण उपदिष्टं यन्मनवे मत्स्यरूपिणा॥ (मत्स्य पुराण)<ref>मत्स्यपुराण, अध्याय २५२, श्लोक-२-४।</ref></blockquote>भाषार्थ- भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति।
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वहीं अग्निपुराण में वास्तुशास्त्र के प्राचीन आचार्यों की संख्या २५ तथा मानसार में ३२ प्राप्त होती है। बृहत्संहिता में उपरोक्त आचार्यों के आलावा भास्कर एवं मनु का भी उल्लेख प्राप्त होता है। कश्यप शिल्प में महर्षि कश्यप को इस शास्त्र का स्थापक आचार्य माना गया है।
    
==उद्धरण==
 
==उद्धरण==
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