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अयन (संस्कृतः अयन) का अर्थ होता है गमन तथा परिवर्तन। सूर्य की उत्तर से दक्षिण की एवं दक्षिण से उत्तर की गति या प्रवृत्ति जिसको उत्तरायण एवं दक्षिणायन कहते हैं। भारतीय काल गणना में एक वर्ष को दो भागों में विभक्त किया गया है, जिन्हैं हम दक्षिणायन एवं उत्तरायण के रूप में जानते हैं। इनकी अवधि छः-छः मास होती है। अयन वर्ष से छोटी एवं मास से बड़ी एक इकाई है। इससे हमें ऋतुओं को ज्ञात करने में सहायता मिलती है। साथ में ही सूर्य की सापेक्ष गति के बारे में भी हम इससे जान सकते हैं एवं अयन का दिन मान से भी सीधा संबंध होता है। वर्तमान में अयन संबंधी सायन एवं निरयन ये दो गणनायें प्रचलित हैं। जो कि प्रसिद्ध खगोलज्ञ वराहमिहिर जी के समय में अयानांश संस्कार की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि उस समय सायन एवं निरयन गणना समान थी। हम प्रस्तुत लेख में अधोलिखित विषयों को देखेंगे -   
 
अयन (संस्कृतः अयन) का अर्थ होता है गमन तथा परिवर्तन। सूर्य की उत्तर से दक्षिण की एवं दक्षिण से उत्तर की गति या प्रवृत्ति जिसको उत्तरायण एवं दक्षिणायन कहते हैं। भारतीय काल गणना में एक वर्ष को दो भागों में विभक्त किया गया है, जिन्हैं हम दक्षिणायन एवं उत्तरायण के रूप में जानते हैं। इनकी अवधि छः-छः मास होती है। अयन वर्ष से छोटी एवं मास से बड़ी एक इकाई है। इससे हमें ऋतुओं को ज्ञात करने में सहायता मिलती है। साथ में ही सूर्य की सापेक्ष गति के बारे में भी हम इससे जान सकते हैं एवं अयन का दिन मान से भी सीधा संबंध होता है। वर्तमान में अयन संबंधी सायन एवं निरयन ये दो गणनायें प्रचलित हैं। जो कि प्रसिद्ध खगोलज्ञ वराहमिहिर जी के समय में अयानांश संस्कार की आवश्यकता नहीं थी। क्योंकि उस समय सायन एवं निरयन गणना समान थी। हम प्रस्तुत लेख में अधोलिखित विषयों को देखेंगे -   
  
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