गर्भगृह देवालय का अत्यंत पवित्र एवं सूक्ष्म केंद्र होता है। यह प्रायः वर्गाकार होता है, जहाँ पर मूलविग्रह की प्रतिष्ठा होती है। यहाँ प्रकाश का प्रवेश न्यूनतम रखा जाता है ताकि ध्यान के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित हो। इसकी दीवारें मोटी होती हैं जिससे ध्वनि की अनुनाद क्षमता न्यूनतम रहे।
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गर्भगृह देवालय का अत्यंत पवित्र एवं सूक्ष्म केंद्र होता है। यह प्रायः वर्गाकार होता है, जहाँ पर मूलविग्रह की प्रतिष्ठा होती है। यहाँ प्रकाश का प्रवेश न्यूनतम रखा जाता है ताकि ध्यान के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित हो। इसकी दीवारें मोटी होती हैं जिससे ध्वनि की अनुनाद क्षमता न्यूनतम रहे। गर्भगृह प्रमाण के सन्दर्भ में - <blockquote>देवतानां गर्भगेहं वास्तुभूमिवशान्मतम्। दीर्घं वा चतुरश्रं वा धनुर्वद्गजपृष्ठकम्॥ (विश्वकर्मवास्तुशास्त्रम्)</blockquote>'''भाषार्थ -''' देवताओं के गर्भगृहों का निर्माण वास्तुभूमिवशात् होता है। इनमें से कोई गर्भगृह लम्बा हो सकता है, कोई चतुरस्र हो सकता है, कोई धनुषाकार तो कोई गर्भगृह गजपृष्ठ जैसा हो सकता है।<ref>डॉ० श्रीकृष्ण 'जुगनू', [https://archive.org/details/visvakarma-vastusastram-/mode/1up विश्वकर्म वास्तुशास्त्रम् - मोहनबोधिनी हिन्दी व्याख्यासमेत], सन २०१०, परिमल पब्लिकेशन्स, दिल्ली, अध्याय-११, श्लोक-२० (पृ० १३३)।</ref>