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| | ===शिखर और गोपुर॥ Shikhara Pramana=== | | ===शिखर और गोपुर॥ Shikhara Pramana=== |
| − | देवालय का शिखर ऊर्जा का प्रतीक होता है। नागर, द्रविड़ तथा वेसर – ये तीन प्रमुख शैलियाँ भारत में प्रचलित रही हैं। शिखर की ऊँचाई, संख्या, और रूपाकार देवता, स्थान तथा युगानुसार नियत होता है। गोपुर दक्षिण भारत में प्रमुख है तथा प्रवेशद्वार के रूप में ऊँचा स्थापत्य होता है। | + | संस्कृत में शिखर का शाब्दिक अर्थ 'पर्वत की चोटी' है किन्तु भारतीय वास्तुशास्त्र में उत्तर भारतीय मन्दिरों के गर्भगृह के ऊपर पिरामिड आकार की संरचना को शिखर कहते हैं। दक्षिण भारत में इसी को 'विमानम्' कहते हैं। देवालय का शिखर ऊर्जा का प्रतीक होता है। नागर, द्रविड़ तथा वेसर – ये तीन प्रमुख शैलियाँ भारत में प्रचलित रही हैं। शिखर की ऊँचाई, संख्या, और रूपाकार देवता, स्थान तथा युगानुसार नियत होता है। गोपुर दक्षिण भारत में प्रमुख है तथा प्रवेशद्वार के रूप में ऊँचा स्थापत्य होता है। |
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| | ===प्रासाद के प्रकार॥ Prasada ke Prakara=== | | ===प्रासाद के प्रकार॥ Prasada ke Prakara=== |
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| | सामान्यतया मंदिर शब्द सुनते ही हमारे समक्ष गर्भ-गृह की चोटी पर बनी ऊंची अधि-रचना आ जाती है। शिखर का शाब्दिक अर्थ पर्वत की चोटी है, जो विशेष रूप से भारतीय मंदिर की अधि-रचना का पर्याय है। विद्वानों का मत है कि शिखर का अर्थ सिर है और इसे शिखा शब्द से ग्रहण किया गया है। | | सामान्यतया मंदिर शब्द सुनते ही हमारे समक्ष गर्भ-गृह की चोटी पर बनी ऊंची अधि-रचना आ जाती है। शिखर का शाब्दिक अर्थ पर्वत की चोटी है, जो विशेष रूप से भारतीय मंदिर की अधि-रचना का पर्याय है। विद्वानों का मत है कि शिखर का अर्थ सिर है और इसे शिखा शब्द से ग्रहण किया गया है। |
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| | + | '''कलश॥ Kalash''' |
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| | + | कलश का शाब्दिक अर्थ है-घडा। मन्दिरों के शीर्ष भाग अर्थात गुम्बद पर स्थित होता है।इसके अतिरिक्त सनातन धर्म में सभी कर्मकांडों के समय उपयोग किए जाने वाले घडे को भी कलश कहा जाता है। जो कांस्य, ताम्र, रजत, स्वर्ण या मृत्तिका का होता है तथा इसके ऊपर श्रीफल (नारियल) रखा जाता है। इसमें सभी देवताओं का स्थान माना जाता है। |
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| | '''गर्भ-गृह॥ Garbha-Griha''' | | '''गर्भ-गृह॥ Garbha-Griha''' |
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| − | गर्भ-गृह, निश्चित रूप से एक गहरा अंधेरा कक्ष होता है। | + | गर्भ-गृह, निश्चित रूप से एक गहरा अंधेरा कक्ष होता है। जिसमें देवताओं की मूर्ति स्थापित की जाती है। गर्भगृह ही मन्दिर का मुख्य भाग होता है। यह जगती या मण्ड के ऊपर बना होने के कारण मंडोवर भी कहलाता है। गर्भगृह के एक ओर मन्दिर का द्वार तथा तीन ओर भित्तियों का निर्माण होता है। प्रायः द्वार को बहुत अलंकृत बनाया जाता था उसके स्तंभ कई भागों में बँटे होते थे। प्रत्येक बाँट को शाखा कहते थे। द्विशाख, त्रिशाख, पंचशाख, सप्तशाख, नवशाख तक द्वार के पार्श्वस्तंभों का वर्णन मिलता है। इनके ऊपर प्रतिहारी या द्वारपालों की मूर्तियाँ अंकित की जाती हैं। एवं प्रमथ, श्रीवक्ष, फुल्लावल्ली, मिथुन आदि अलंकरण की शोभा के लिए बनाए जाते हैं। गर्भगृह के द्वार के उत्तरांग या सिरदल पर एक छोटी मूर्ति बनाई जाती है, जिसे ललाट बिम्ब कहते हैं। प्रायः यह मन्दिर में स्थापित देवता के परिवार की होती है; जैसे विष्णु के मन्दिरों में या तो विष्णु के किसी अवतार विशेष की या गरुड़ की छोटी मूर्ति बनाई जाती है। गुप्तकाल में मन्दिर के पार्श्वस्तंभों पर मकरवाहिनी गंगा और कच्छपवाहिनी यमुना की मूर्तियाँ अंकित की जाने लगीं। गर्भगृह के तीन ओर की भित्तियों में बाहर की ओर जो तीन प्रतिमाएँ बनाई जाती हैं, उन्हें रथिकाबिम्ब कहते हैं। ये भी देवमूर्तियाँ होती हैं जिन्हें गर्भगृह की प्रदक्षिणा करते समय प्रणाम किया जाता है। |
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| | ==प्रमुख शैलियां॥ Pramukh Shailiyan== | | ==प्रमुख शैलियां॥ Pramukh Shailiyan== |