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देवालय वास्तु (संस्कृतः ) देवालय निर्माण के आरम्भ से लेकर बाद तक, देवप्रतिष्ठा तक सात कर्म होते हैं। जिन्हें विधि के अनुसार पूर्ण करना चाहिये। ये कर्म हैं -
कूर्मस्थापना, द्वार स्थापना, पद्मशिला स्थापना, प्रासाद पुरुष की स्थापना, कलश, ध्वजा रोहण तथा देव प्रतिष्ठा।
कूर्म्मसंस्थापने द्वारे पद्माख्यायां तु पौरुषे। घटे ध्वजे प्रतिष्ठायां एवं पुण्याहसप्तकम्॥ (प्रासादमण्डनम्)<ref>भगवानदास जैन, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.345640/page/n57/mode/1up प्रासाद मंडनम्], प्रथम अध्याय, श्लोक-३६ (पृ० २२)।</ref>
== परिचय॥ Introduction ==
=== भूमि निरूपण ===
=== गर्भगृह एवं मंडप ===
=== प्रासाद के प्रकार ===
=== प्रमुख शैलियां ===
=== शिखर प्रमाण ===
== सारांश ==
== उद्धरण ==
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