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==नगर के प्रमुख प्रकार॥ Nagar ke Pramukh Prakara==
 
==नगर के प्रमुख प्रकार॥ Nagar ke Pramukh Prakara==
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प्राचीन भारत में नगर नियोजन की परंपरा विभिन्न ग्रंथों जैसे कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शुक्रनीतिसार, तथा पुराणों में प्राप्त होती है। वास्तुशास्त्र की विभिन्न शाखाएँ नगरों की स्थापत्यकला, सामाजिक व्यवस्था तथा प्रशासनिक योजनाओं को प्रकाशित करती हैं। इन ग्रंथों के अनुसार प्राचीन नगरों को उनके आकार, रूप और उद्देश्य के आधार पर विभाजित किया गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नगरों के निम्नलिखित भेद प्राप्त होते हैं - 1. ज्येष्ठ नगर 2. मध्यम नगर 3. कनिष्ठ नगर। इनको इस प्रकार परिभाषित किया गया है - 
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#'''राजधानी (Rajdhani) -'''  राजा का मुख्य निवास स्थान राजधानी।
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#'''शाखानगर (Sakhanagra) -''' पुर को छोड़कर अन्य सभी नगरों की श्रेणी को सखानगर कहा जाता है। इसके अंतर्गत -
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#*'''कर्वट (Karvata) -''' छोटा नगर
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#*'''निग्म (Nigma) -''' कर्वट से भी छोटा
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#*'''ग्राम (Grama): -'''निग्म से भी छोटा, यानी गाँव
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#'''विशेष नगर (Special Towns) -'''
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#*'''पट्टन (Pattana):''' राजा का द्वितीय निवास स्थान
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#*'''पुतभेदना (Putabhedana):''' यह पट्टन के समान है, परंतु यह एक वाणिज्यिक केंद्र (व्यापारिक नगर) के रूप में भी कार्य करता है।
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अग्निपुराण के ३६३ अध्याय में नगर के अन्य सात नाम इस प्रकार दिये गये हैं। पूः (पुर), पुरी, नगरी, पत्तन, पुटभेदन, स्थानीय, निगम ये सात नगर के नाम हैं। मूल नगर (राजधानी) से भिन्न पुर होता है उसे शाखा नगर कहते हैं -  <blockquote>पूःस्त्री पुरीनगर्य्यो वा पत्तनं पुटभेदनम्। स्थानीयं निगमोऽन्यत्तु यन्मूलनगरात्पुरम्॥ (अग्निपुराण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A9%E0%A5%AC%E0%A5%A9 अग्निपुराण], अध्याय - ३६३, श्लोक - ०४।</ref> </blockquote>भाषार्थ - 1 राजधानी, 2 पत्तन, 3 पुटभेदन, 4 निगम, 5 खेट, 6 कर्वट और 7 ग्राम ये नगर के प्रकार हैं।
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'''राजधानी'''
 
'''राजधानी'''
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*प्रत्येक यानमार्ग के दोनों ओर जंघापथ (फुटपाथ) अवश्य होने चाहिए। इनकी चौडाई ५ फीट हो।
 
*प्रत्येक यानमार्ग के दोनों ओर जंघापथ (फुटपाथ) अवश्य होने चाहिए। इनकी चौडाई ५ फीट हो।
 
*जल-निकासी के लिए नगर में नालियों की व्यवस्था होनी चाहिए। ये नालियाँ ३ फीट या डेढ फुट चौडी हों। इनको सदा ढककर रखा जाए।
 
*जल-निकासी के लिए नगर में नालियों की व्यवस्था होनी चाहिए। ये नालियाँ ३ फीट या डेढ फुट चौडी हों। इनको सदा ढककर रखा जाए।
वास्तुशास्त्र के अनुसार नगरों के निम्नलिखित भेद प्राप्त होते हैं -  
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नगर-निवेश प्रक्रिया का अगला महत्वपूर्ण अंग है - मार्ग विन्यास। वास्तव में, किसी नगर की मार्ग योजना के माध्यम से ही उसे विभिन्न आवासीय खण्डों में बाँटा जा सकता है। किस मार्ग के किन-किन स्थानों पर कौन-कौन से भवन स्थित होंगे, यह मार्ग विन्यास के बाद ही निर्धारित हो सकता है। नगरों की मार्ग-योजना इस बात पर भी निर्भर थी कि, अमुक नगर किस प्रकार का है, अर्थात वह राजधानी है या व्यापारिक नगर, अथवा एक सामान्य नगर।
 
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1. ज्येष्ठ नगर 2. मध्यम नगर 3. कनिष्ठ नगर। शाखा नगर के निम्नलिखित भेद हैं जैसे - 1 राजधानी, 2 पत्तन, 3 पुटभेदन, 4 निगम, 5 खेट, 6 कर्वट, 7 ग्राम।
      
==उद्धरण॥ References==
 
==उद्धरण॥ References==
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