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| | *नगर दिक परीक्षा | | *नगर दिक परीक्षा |
| | *पद - विन्यास | | *पद - विन्यास |
| − | *नगराभ्युदयिक शान्तिक एवं बलिकर्म विधान | + | * नगराभ्युदयिक शान्तिक एवं बलिकर्म विधान |
| | *मार्ग - विन्यास | | *मार्ग - विन्यास |
| | *प्राकार-परिखा-वप्रादि विन्यास योजना | | *प्राकार-परिखा-वप्रादि विन्यास योजना |
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| | ===समरांगण सूत्र एवं नगर निवेश॥ Samarangan Sutradhar and Nagar Nivesha=== | | ===समरांगण सूत्र एवं नगर निवेश॥ Samarangan Sutradhar and Nagar Nivesha=== |
| − | जिस नगर में राजा रहता है उसको राजधानी कहते हैं और अन्य नगर शाख-नगर की संज्ञाओं से कहे जाते हैं। शाखा-नगर को ही नगरोपम कर्वट कहा जाता है। कुछ गुणों से कम कर्वट को ही निगम कहते हैं। निगम से कम ग्राम, ग्राम से कम गृह होता है। गोकुलों के निवास को गोष्ठ कहा जाता है और छोटे गोष्ठ को गोष्ठक कहते हैं। राजाओं का जहां पर उपस्थान होता है उसको पत्तन कहते हैं। जो पत्तन बहुत विस्तृत और वैश्यों से युक्त होता है उस पत्तन को पुटभेदन कहते हैं। जहां पर पत्तों, शाखाओं, तृणों एवं उपलों से कुटिया बनाकर पुलिन्द लोग रहते हैं, उसको पल्ली कहते हैं और छोटी पल्ली को पल्लिका कहते हैं। नगर को छोड कर और सब जनपद कहलाता है और नगर को मिलाकर सम्पूर्ण राष्ट्र को देश अथवा मंडल कहते हैं।<ref name=":1" /> | + | समरांगणसूत्रधार राजा भोज द्वारा रचित भारतीय वास्तुशास्त्र से संबंधित महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। जिस नगर में राजा रहता है उसको राजधानी कहते हैं और अन्य नगर शाख-नगर की संज्ञाओं से कहे जाते हैं। शाखा-नगर को ही नगरोपम कर्वट कहा जाता है। कुछ गुणों से कम कर्वट को ही निगम कहते हैं। निगम से कम ग्राम, ग्राम से कम गृह होता है। गोकुलों के निवास को गोष्ठ कहा जाता है और छोटे गोष्ठ को गोष्ठक कहते हैं। राजाओं का जहां पर उपस्थान होता है उसको पत्तन कहते हैं। जो पत्तन बहुत विस्तृत और वैश्यों से युक्त होता है उस पत्तन को पुटभेदन कहते हैं। जहां पर पत्तों, शाखाओं, तृणों एवं उपलों से कुटिया बनाकर पुलिन्द लोग रहते हैं, उसको पल्ली कहते हैं और छोटी पल्ली को पल्लिका कहते हैं। नगर को छोड कर और सब जनपद कहलाता है और नगर को मिलाकर सम्पूर्ण राष्ट्र को देश अथवा मंडल कहते हैं।<ref name=":1" /> |
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| | ===मानसार नगर व्यवस्था॥ Manasara Nagar Vyavastha === | | ===मानसार नगर व्यवस्था॥ Manasara Nagar Vyavastha === |
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| | ===अर्थशास्त्र में नगर-योजना॥ Town Planning in Arthashastra=== | | ===अर्थशास्त्र में नगर-योजना॥ Town Planning in Arthashastra=== |
| | [[File:अर्थशास्त्र में नगर प्रकार .jpg|thumb|320x320px|ग्राम आधारित - नगर संज्ञा]] | | [[File:अर्थशास्त्र में नगर प्रकार .jpg|thumb|320x320px|ग्राम आधारित - नगर संज्ञा]] |
| − | आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में नगरों की सुरक्षा के लिए जो उपाय सुझाए हैं उनके अनुरूप ही तद्युगीन नगर बसाए गए।<ref>डॉ० विद्याधर , [https://archive.org/details/bharatiya-vastu-shastra-ka-itihas-dr.-vidyadhar/page/78/mode/2up?view=theater&ui=embed&wrapper=false भारतीय वास्तुशास्त्र का इतिहास], सन २०१०, ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली (पृ० ७८)।</ref> नगर के विविध हिस्सों में कोषगृह, कोष्ठागार, पण्यगृह, कुप्यगृह (अन्नागार), शस्त्रागार एवं कारागार जैसे महत्वपूर्ण भवनों के निर्माण का सन्दर्भ भी अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने राजधानी नगर के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण का विधान किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार - | + | आचार्य कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में नगरों की सुरक्षा के लिए जो उपाय सुझाए हैं उनके अनुरूप ही तद्युगीन नगर बसाए गए।<ref>डॉ० विद्याधर , [https://archive.org/details/bharatiya-vastu-shastra-ka-itihas-dr.-vidyadhar/page/78/mode/2up?view=theater&ui=embed&wrapper=false भारतीय वास्तुशास्त्र का इतिहास], सन २०१०, ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली (पृ० ७८)।</ref> नगर के विविध हिस्सों में कोषगृह, कोष्ठागार, पण्यगृह, कुप्यगृह (अन्नागार), शस्त्रागार एवं कारागार जैसे महत्वपूर्ण भवनों के निर्माण का सन्दर्भ भी अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने राजधानी नगर के निर्माण के सम्बन्ध में तथा शत्रु से उसकी रक्षा करने के लिए नगर सीमा के चारों ओर नाना प्रकार के दुर्गों के निर्माण का विधान किया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार - |
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| | अष्टशतग्राम्या मध्ये स्थानीयं, चतुश्शतग्राम्या द्रोणमुखं, द्विशतग्राम्याः खार्वटिकं, दशग्रामीसङ्ग्रहेण सङ्ग्रहणं स्थापयेत्॥ (अर्थशास्त्र)<ref>आचार्य कौटिल्य, अनुवादक-वाचस्पति गैरोला, [https://archive.org/details/arthasastraofkautilyachanakyasutravachaspatigairolachowkambha_202002/page/n2/mode/1up अर्थशास्त्र-अनुवाद सहित], सन १९८४, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ७७)। </ref> | | अष्टशतग्राम्या मध्ये स्थानीयं, चतुश्शतग्राम्या द्रोणमुखं, द्विशतग्राम्याः खार्वटिकं, दशग्रामीसङ्ग्रहेण सङ्ग्रहणं स्थापयेत्॥ (अर्थशास्त्र)<ref>आचार्य कौटिल्य, अनुवादक-वाचस्पति गैरोला, [https://archive.org/details/arthasastraofkautilyachanakyasutravachaspatigairolachowkambha_202002/page/n2/mode/1up अर्थशास्त्र-अनुवाद सहित], सन १९८४, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ७७)। </ref> |
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| | खेट के सम्बन्ध में यह निर्देश प्राप्त होते है कि नगर, खेट एवं ग्राम इन तीनों के निवेश में खेट बीच का है नगर से छोटा परन्तु ग्राम से बडा। अत एव नगर के विष्कम्भ के आधे के प्रमाण से खेट का विष्कम्भ प्रतिपादित किया गया है। नगर से एक योजन की दूरी पर खेट का निवेश अभीष्ट है। खेट एक प्रकार छोटा नगर होता है जो कि समतल भूमि पर किसी सरिता तट पर स्थित होता है अथवा वन प्रदेश में भी इसकी स्थिति अनुकूल है यदि छोटी-छोटी पहाडियाँ समीपस्थ है। इसके चारों ओर ग्राम होते हैं। दो ग्रामों के मध्य में अथवा ग्राम समूहों के मध्य में एक समृद्ध नगर को खेट के नाम से पुकारा जाता है। | | खेट के सम्बन्ध में यह निर्देश प्राप्त होते है कि नगर, खेट एवं ग्राम इन तीनों के निवेश में खेट बीच का है नगर से छोटा परन्तु ग्राम से बडा। अत एव नगर के विष्कम्भ के आधे के प्रमाण से खेट का विष्कम्भ प्रतिपादित किया गया है। नगर से एक योजन की दूरी पर खेट का निवेश अभीष्ट है। खेट एक प्रकार छोटा नगर होता है जो कि समतल भूमि पर किसी सरिता तट पर स्थित होता है अथवा वन प्रदेश में भी इसकी स्थिति अनुकूल है यदि छोटी-छोटी पहाडियाँ समीपस्थ है। इसके चारों ओर ग्राम होते हैं। दो ग्रामों के मध्य में अथवा ग्राम समूहों के मध्य में एक समृद्ध नगर को खेट के नाम से पुकारा जाता है। |
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| − | === महाभारत के प्रमुख नगर॥ Mahabharata ke Pramukha Nagara === | + | ===महाभारत के प्रमुख नगर॥ Mahabharata ke Pramukha Nagara=== |
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| − | * '''हस्तिनापुर (Hastinapur)''' | + | *'''हस्तिनापुर (Hastinapur)''' |
| − | * '''इंद्रप्रस्थ (Indraprastha)''' | + | *'''इंद्रप्रस्थ (Indraprastha)''' |
| − | * '''कुरुक्षेत्र (Kurukshetra)''' | + | *'''कुरुक्षेत्र (Kurukshetra)''' |
| − | * '''स्वर्णप्रस्थ (Svarnaprastha)''' | + | *'''स्वर्णप्रस्थ (Svarnaprastha)''' |
| − | * '''पानप्रस्थ (Panaprastha)''' | + | *'''पानप्रस्थ (Panaprastha)''' |
| − | * '''व्याघ्रप्रस्थ (Vyaghraprastha)''' | + | *'''व्याघ्रप्रस्थ (Vyaghraprastha)''' |
| − | * '''तिलप्रस्थ (Tilaprastha)''' | + | *'''तिलप्रस्थ (Tilaprastha)''' |
| − | * '''पांचाल (Panchal)''' | + | *'''पांचाल (Panchal)''' |
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| | ==सारांश॥ Summary== | | ==सारांश॥ Summary== |