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भवन-निर्माण के पूर्व भवनोचित देश, प्रदेश, जनपद, सीमा, क्षेत्र, वन, उपवन, भूमि आदि की परीक्षा आवश्यक है। भवन एकाकी न होकर पुर, पत्तन अथवा ग्राम का अंग होता है अतः भवन-निर्माण अथवा भवन-निवेश का प्रथम सोपान पुर-निवेश है।
 
भवन-निर्माण के पूर्व भवनोचित देश, प्रदेश, जनपद, सीमा, क्षेत्र, वन, उपवन, भूमि आदि की परीक्षा आवश्यक है। भवन एकाकी न होकर पुर, पत्तन अथवा ग्राम का अंग होता है अतः भवन-निर्माण अथवा भवन-निवेश का प्रथम सोपान पुर-निवेश है।
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==सारांश॥ Summary==
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रामायण, महाभारत, कौटिल्यार्थशास्त्र, शुक्रनीति आदि ग्रन्थों तथा विविध पुराणों में वास्तुशास्त्र से संबंधित उल्लेख प्राप्त होते है। इसके अतिरिक्त रामायणकाल में अयोध्यापुरी, किष्किन्धापुरी, लंकापुरी तथा महाभारत काल में पाण्डवसभा, यमसभा, वरुणसभा, कुबेरसभा, इन्द्रसभा और लाक्षागृह का वर्णन भी तत्कालीन वास्तुकला के उन्नयन का परिचायक है।
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== सारांश॥ Summary==
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प्राचीन भारत में भवन निर्माण को साधारण शिल्प से ऊपर माना गया। इमारतों में उपयोगिता के साथ-साथ कलात्मकता भी अपेक्षित समझी गयी।<ref>श्री कृष्णदत्त वाजपेयी, [https://ignca.gov.in/Asi_data/52258.pdf भारतीय वास्तुकला का इतिहास], सन १९७२, हिन्दी समिति, लखनऊ (पृ० ३)।</ref>
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आवासीय वास्तु हेतु सर्वप्रथम भूमि का चयन किया जाता है, जिसमें भूमि परीक्षण (Soil Test) कर ही उसे निवास योग्य है या नहीं निश्चित किया जाता है।
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भवन-प्रकार (चतुःशालादि दशशालान्त)
 
भवन-प्रकार (चतुःशालादि दशशालान्त)
  
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