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समाज संगठन
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== प्रस्तावना ==
प्रस्तावना
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समाज का संगठन कहते ही हमारे मन में समाज के सैनिकीकरण का चित्र सामने आता है। क्योंकि वर्तमान समाज में यही एकमात्र प्रभावी ऐसा संगठन दिखाई देता है, जिसकी आलोचना नहीं की जा सकती वैसे तो छोटे छोटे संगठन तो गली गली में भी दिखाई देते हैं। ऐसे कई संगठन जन्म लेते रहते हैं और काल के प्रवाह में नष्ट भी होते रहते हैं। हर संगठन के निर्माण के पीछे निर्माता का कोई न कोई उद्देश्य होता है। उस उद्देश्य की पूर्ति के लिये संगठन खडा होता है। किंतु कई बार अपने उद्देश्य की पूर्ति करने से पहले ही संगठन नष्ट हो जाते हैं। इस का कारण संगठन शास्त्र की जानकारी निर्माता को नहीं होती। या फिर संगठन का उद्देश्य ही प्रतिक्रियात्मक होता है। मूल क्रिया के नष्ट होते ही ऐसे प्रतिक्रियावादी संगठन का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। इसलिये वह संगठन अपनी मौत मर जाता है।
समाज का संगठन कहते ही हमारे मन में समाज के सैनिकीकरण का चित्र सामने आता है। क्यों की वर्तमान समाज में यही एकमात्र प्रभावी और आलोचना नहीं की जा सकती ऐसा संगठन दिखाई देता है। वैसे तो छोटे छोटे संगठन तो गली गली में भी दिखाई देते हैं। ऐसे कई संगठन जन्म लेते रहते हैं और काल के प्रवाह में नष्ट भी होते रहते हैं। हर संगठन के निर्माण के पीछे निर्माता का कोई न कोई उद्देष्य होता है। उस उद्देष्य की पूर्ति के लिये संगठन खडा होता है। किंतु कई बार अपने उद्देष्य की पूर्ति करने से पहले ही संगठन नष्ट हो जाते हैं। इस का कारण संगठन शास्त्र की जानकारी निर्माता को नहीं होती। या फिर संगठन का उद्देष्य ही प्रतिक्रियात्मक होता है। मूल क्रिया के नष्ट होते ही ऐसे प्रतिक्रियावादी संगठन का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। इसलिये वह संगठन अपनी मौत मर जाता है।  
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संगठन के निर्माण का प्रयोजन जितना लंबी अवधि का, संगठन का उद्देष्य जितना व्यापक और व्यावहारिक, संगठन के निर्माता की संगठन कुशलता जितनी श्रेष्ठ उतनी उस संगठन की आयु होती है। कई संगठन तो केवल निर्माता की कुशलता के कारण उसके साथ ही नष्ट हो जाते हैं। अपने जैसे या अपने से भी श्रेष्ठ संभाव्य नेतृत्व का विकास यदि नहीं होता तो निर्माता के साथ ही संगठन का नष्ट होना स्वाभाविक ही होता है। निर्माता की मृत्यू के उपरांत भी दीर्घ काल तक चलनेवाले संगठन अल्प संख्या में ही होते हैं। बाकी तो हजारों लाखों की संख्या में ऐसे संगठन बनते और नष्ट होते रहते हैं।  
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संगठन के निर्माण का प्रयोजन जितना लंबी अवधि का, संगठन का उद्देश्य जितना व्यापक और व्यावहारिक, संगठन के निर्माता की संगठन कुशलता जितनी श्रेष्ठ, उतनी उस संगठन की आयु होती है। कई संगठन तो केवल निर्माता की कुशलता के कारण उसके साथ ही नष्ट हो जाते हैं। अपने जैसे या अपने से भी श्रेष्ठ संभाव्य नेतृत्व का विकास यदि नहीं होता तो निर्माता के साथ ही संगठन का नष्ट होना स्वाभाविक ही होता है। निर्माता की मृत्यू के उपरांत भी दीर्घ काल तक चलनेवाले संगठन अल्प संख्या में ही होते हैं। बाकी तो हजारों लाखों की संख्या में ऐसे संगठन बनते और नष्ट होते रहते हैं।
दुनियाँ में ऐसे बहुत कम संगठन निर्माण हुए हैं जो दीर्घ काल जीवित रहे हैं। ऑक्स्फोर्ड युनिव्हर्सिटी की आयु लगभग ३०० वर्षों से ऊपर है। भारत में तो १२००-१४०० वर्षतक प्रभावी रहे ऐसे कई विद्यापीठ इतिहास ने देखें हैं। भारत में तो कई राजवंश भी सैंकड़ों वर्ष तक राज करते रहे हैं। इन राजवंशों की विशेषता उनके अपने से अधिक श्रेष्ठ उत्तराधिकारी के निर्माण में थी।  
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सामाजिक संगठन की दृष्ति से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन अपने आप में ऐसा ही एक विशेष संगठन है। जो निर्माता के पश्चात भी विस्तार पाता रहा है। संघ को समाज व्यापी बनाना यही संघ के विस्तार का लक्ष्य और सीमा भी है। इसके आगे संघ समाज में विलीन हो जाएगा। संघ को प्रारंभ हुए भी अब चार पीढियों से अधिक समय बीत गया है। संघ का विस्तार भी अनेकों दिशाओं में हुआ है। संघ के विस्तार के साथ ही विरोधी शक्तियाँ भी अधिक शक्तिशाली होती दिखाई दे रहीं हैं। संघ का विस्तार जो अबतक हुआ है वह तो सराहनीय है इसमें कोई शंका नहीं है। फिर भी वर्तमान स्थिति में संघ अपने लक्ष्य से कोसों दूर है ऐसा दिखाई देता है।
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विश्व में ऐसे बहुत कम संगठन निर्माण हुए हैं जो दीर्घ काल जीवित रहे हैं। ऑक्स्फोर्ड युनिव्हर्सिटी की आयु लगभग ३०० वर्षों से ऊपर है। भारत में तो १२००-१४०० वर्षतक प्रभावी रहे ऐसे कई विद्यापीठ इतिहास ने देखें हैं। भारत में तो कई राजवंश भी सैंकड़ों वर्ष तक राज करते रहे हैं। इन राजवंशों की विशेषता उनके अपने से अधिक श्रेष्ठ उत्तराधिकारी के निर्माण में थी।  
ऐसा नहीं है कि संघ अब हतबल हो गया है और अब इसका आगे विस्तार संभव नहीं है। संघ आज भी पर्याप्त बलशाली, लचीला और वर्धिष्णू भी है। संघ का संगठन यह आज विश्व के मानव समाज के लिये एक बडा आश्चर्य ही है। बगैर शासन की सहायता के इतना बडा संगठन आजतक दुनियाँ में किसी ने निर्माण नहीं किया है। संघ द्वारा निर्माण हो रहा संगठन स्वयंसेवी है। इसे नहीं तो शासकीय शक्ति का आधार है और ना ही धर्म शक्ति का। इसी कारण संघ का समूचे हिंदू समाज को संगठित करने का लक्ष्य वर्तमान संगठन प्रक्रिया से कितना संभव होगा ऐसा प्रश्न मन में खडा होता है।
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वर्तमान में संघ जीवन के अभारतीय प्रतिमान के साथ जूझ रहा दिखाई दे रहा है। कई बातों में तो जीवन के वर्तमान अभारतीय प्रतिमान से सुसंगत रचनाएँ करने को भी संघ बाध्य है। जैसे अधिकारों के लिये लडनेवाले संगठन तो भारतीय जीवनदृष्टि से परे हैं। लेकिन मजबूरी में अधिकारों के लिये लडनेवाले संगठन संघ को निर्माण करने पडे हैं।
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धर्म शक्ति का जागरण और उसके मार्गदर्शन में धर्मनिष्ठ शासन द्वारा समाज के संगठन को अमल में लाना यही समाज के संगठन की भारतीय प्रक्रिया रही है। इस हेतु सर्व प्रथम धर्म के आधार से समाज का संगठन कैसे होता है उसके स्वरूप को समझना होगा। फिर ऐसे संगठन के निर्माण के लिये चहुँ दिशाओं से समाज में पहल खडी करनी होगी।
धर्म शक्ति का जागरण और उसके मार्गदर्शन में धर्मनिष्ठ शासनद्वारा समाज के संगठन को अमल में लाना यही सामज के संगठन की भारतीय प्रक्रिया रही है। इस हेतु सर्व प्रथम धर्म के आधार से समाज का संगठन कैसे होता है उसके स्वरूप को समझना होगा। फिर ऐसे संगठन के निर्माण के लिये चहुँ दिशाओं से समाज में पहल खडी करनी होगी।
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लेकिन विद्यापीठ या शासन व्यवस्था जैसे समाज जीवन के एक छोटे पहलू या हिस्से को लेकर संगठन निर्माण करना और समूचे समाज के लिये संगठन की रचना करना इन दोनों में निर्माता की प्रतिभा का अंतर बहुत बडा होता है। यह सामान्य मानव का या सामान्य मानव समूह का काम नहीं है। दुनियाँ के अन्य किसी भी समाज से हमारे समाज के निर्माता पूर्वजों की श्रेष्ठता और विशेषता इस में है कि उन्होंने भारतीय समाज को इस तरह संगठन में बाँधा कि यह संगठन हजारों लाखों वर्षोंतक समाज को लाभान्वित करता रहा। भारतीय समाज को इस संगठन ने ही तो चिरंजीवी बना दिया था। ऐसे संगठन की शायद दुनियाँ के अन्य किसी भी समाज के पुरोधाओं ने कल्पना भी नहीं की होगी। हमारे पूर्वजों ने धर्मपर आधारित ऐसे संगठन की न केवल कल्पना की, साथ ही में ऐसे संगठन को समाज में व्यापकता से स्थापित भी कर दिखाया।
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लेकिन विद्यापीठ या शासन व्यवस्था जैसे समाज जीवन के एक छोटे पहलू या हिस्से को लेकर संगठन निर्माण करना और समूचे समाज के लिये संगठन की रचना करना इन दोनों में निर्माता की प्रतिभा का अंतर बहुत बडा होता है। यह सामान्य मानव का या सामान्य मानव समूह का काम नहीं है। विश्व के अन्य किसी भी समाज से हमारे समाज के निर्माता पूर्वजों की श्रेष्ठता और विशेषता इस में है कि उन्होंने भारतीय समाज को इस तरह संगठन में बाँधा कि यह संगठन हजारों लाखों वर्षों तक समाज को लाभान्वित करता रहा। भारतीय समाज को इस संगठन ने ही तो चिरंजीवी बना दिया था। ऐसे संगठन की शायद विश्व के अन्य किसी भी समाज के पुरोधाओं ने कल्पना भी नहीं की होगी। हमारे पूर्वजों ने धर्म पर आधारित ऐसे संगठन की न केवल कल्पना की, साथ ही में ऐसे संगठन को समाज में व्यापकता से स्थापित भी कर दिखाया।
लगभग ५०० वर्षों का इस्लामी शासन और लगभग 190 वर्ष का ईसाई शासन भारत में रहा। इस के उपरांत भी भारत में यदि आज भी हिंदू बडी संख्या में हैं तो इस का श्रेय हमारे पूर्वजों ने वर्ण/जाति/आश्रम के माध्यम से निर्माण किये समाज के संगठन को है। धर्मपाल जी बताते हैं कि जाति व्यवस्था के कारण अंग्रेजों को हिंदू समाज का ईसाईकरण अत्यंत कठिन हो रहा था। इसलिये उन्होंने भारतीय जाति व्यवस्था को बदनाम किया। इस संगठन को समझने का प्रयास हम आगे करेंगे।
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हमें यदि पुन: अपने समाज को संगठित करना है तो हमें संगठन का अर्थ, संगठन की जीवनी शक्ति, संगठन के कारक तत्त्व, संगठन को चिरंजीवी बनानेवाले पहलू आदि सभी का विचार करना होगा।
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लगभग ५०० वर्षों का इस्लामी शासन और लगभग 190 वर्ष का ईसाई शासन भारत में रहा। इस के उपरांत भी भारत में यदि आज भी हिंदू बडी संख्या में हैं तो इस का श्रेय हमारे पूर्वजों द्वारा वर्ण/जाति/आश्रम के माध्यम से निर्माण किये समाज के संगठन को है। धर्मपाल जी बताते हैं कि जाति व्यवस्था के कारण अंग्रेजों को हिंदू समाज का ईसाईकरण अत्यंत कठिन हो रहा था। इसलिये उन्होंने भारतीय जाति व्यवस्था को बदनाम किया। इस संगठन को समझने का प्रयास हम आगे करेंगे।
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== संगठन ==
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हमें यदि पुन: अपने समाज को संगठित करना है तो हमें संगठन का अर्थ, संगठन की जीवनी शक्ति, संगठन के कारक तत्त्व, संगठन को चिरंजीवी बनानेवाले पहलू आदि सभी का विचार करना होगा।
 
संगठन
 
संगठन
 
सब से पहले तो हमें संगठन शब्द को ठीक से समझना होगा| समाज की धारणा के लिए जो सामाजिक ढाँचा निर्माण किया जाता है उसे समाज संगठन कहते है| यानि धर्म के अनुसार समाज जी सके इस दृष्टि से जो समाज का ढांचा निर्माण किया जाता है उसे समाज संगठन कहते है| समाज के घटकों की जो स्वाभाविक या प्राकृतिक आवश्यकताएं हैं उन्हें पूर्ण करने के साथ ही उनका सर्वे भवन्तु सुखिन: के साथ समायोजन करने से यह ढांचा समूचे समाज को लाभकारी बन जाता है| इसीलिए समाज इस ढांचे को चिरंजीवी बना देता है|  
 
सब से पहले तो हमें संगठन शब्द को ठीक से समझना होगा| समाज की धारणा के लिए जो सामाजिक ढाँचा निर्माण किया जाता है उसे समाज संगठन कहते है| यानि धर्म के अनुसार समाज जी सके इस दृष्टि से जो समाज का ढांचा निर्माण किया जाता है उसे समाज संगठन कहते है| समाज के घटकों की जो स्वाभाविक या प्राकृतिक आवश्यकताएं हैं उन्हें पूर्ण करने के साथ ही उनका सर्वे भवन्तु सुखिन: के साथ समायोजन करने से यह ढांचा समूचे समाज को लाभकारी बन जाता है| इसीलिए समाज इस ढांचे को चिरंजीवी बना देता है|  
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३  ईकाईयों के अवयवों के परस्परावलंबन में ही ईकाई का जीवन है।    
 
३  ईकाईयों के अवयवों के परस्परावलंबन में ही ईकाई का जीवन है।    
 
४  ईकाई के प्रत्येक अवयव की भूमिका अपने कर्तव्यों और अन्य अवयवोंके अधिकारों की पूर्ति का आग्रह करनेवाली हो।
 
४  ईकाई के प्रत्येक अवयव की भूमिका अपने कर्तव्यों और अन्य अवयवोंके अधिकारों की पूर्ति का आग्रह करनेवाली हो।
५  संगठन के उद्देष्य के और अवयवों के प्रयोजन के आधारपर अवयवों में कार्य विभाजन हो।  
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५  संगठन के उद्देश्य के और अवयवों के प्रयोजन के आधारपर अवयवों में कार्य विभाजन हो।  
६  प्रत्येक अवयव की संगठन के उद्देष्य में निष्ठा हो।  
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६  प्रत्येक अवयव की संगठन के उद्देश्य में निष्ठा हो।  
 
७  मुखिया में पूर्ण विश्वास हो। मुखिया की आज्ञाओं का अनुपालन करने की अवयवों की मानसिकता रहे।
 
७  मुखिया में पूर्ण विश्वास हो। मुखिया की आज्ञाओं का अनुपालन करने की अवयवों की मानसिकता रहे।
 
८  नेतृत्व क्षमतावान हो।
 
८  नेतृत्व क्षमतावान हो।
 
समाज के घटकों के स्वाभाविक पहलुओंपर आधारित संगठन   
 
समाज के घटकों के स्वाभाविक पहलुओंपर आधारित संगठन   
 
व्यक्ति और समाज का स्वभाव और उन की स्वाभाविक आवश्यकताएं और उन के आधारपर एक एक कर किस प्रकार की रचना का निर्माण करना होता है, इसका विवरण हम आगे देखेंगे|  
 
व्यक्ति और समाज का स्वभाव और उन की स्वाभाविक आवश्यकताएं और उन के आधारपर एक एक कर किस प्रकार की रचना का निर्माण करना होता है, इसका विवरण हम आगे देखेंगे|  
समाज का संगठन कहते ही हमारे मन में समाज के सैनिकीकरण का चित्र सामने आता है। क्यों की वर्तमान समाज में यही एकमात्र प्रभावी और आलोचना नहीं की जा सकती ऐसा संगठन दिखाई देता है। वैसे तो छोटे छोटे संगठन तो गली गली में भी दिखाई देते हैं। ऐसे कई संगठन जन्म लेते रहते हैं और काल के प्रवाह में नष्ट भी होते रहते हैं। हर संगठन के निर्माण के पीछे निर्माता का कोई न कोई उद्देष्य होता है। उस उद्देष्य की पूर्ति के लिये संगठन खडा होता है। किंतु कई बार अपने उद्देष्य की पूर्ति करने से पहले ही संगठन नष्ट हो जाते हैं। इस का कारण संगठन शास्त्र की जानकारी निर्माता को नहीं होती। या फिर संगठन का उद्देष्य ही प्रतिक्रियात्मक होता है। मूल क्रिया के नष्ट होते ही ऐसे प्रतिक्रियावादी संगठन का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। इसलिये वह संगठन अपनी मौत मर जाता है।  
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समाज का संगठन कहते ही हमारे मन में समाज के सैनिकीकरण का चित्र सामने आता है। क्यों की वर्तमान समाज में यही एकमात्र प्रभावी और आलोचना नहीं की जा सकती ऐसा संगठन दिखाई देता है। वैसे तो छोटे छोटे संगठन तो गली गली में भी दिखाई देते हैं। ऐसे कई संगठन जन्म लेते रहते हैं और काल के प्रवाह में नष्ट भी होते रहते हैं। हर संगठन के निर्माण के पीछे निर्माता का कोई न कोई उद्देश्य होता है। उस उद्देश्य की पूर्ति के लिये संगठन खडा होता है। किंतु कई बार अपने उद्देश्य की पूर्ति करने से पहले ही संगठन नष्ट हो जाते हैं। इस का कारण संगठन शास्त्र की जानकारी निर्माता को नहीं होती। या फिर संगठन का उद्देश्य ही प्रतिक्रियात्मक होता है। मूल क्रिया के नष्ट होते ही ऐसे प्रतिक्रियावादी संगठन का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। इसलिये वह संगठन अपनी मौत मर जाता है।  
संगठन के निर्माण का प्रयोजन जितना लंबी अवधि का, संगठन का उद्देष्य जितना व्यापक और व्यावहारिक, संगठन के निर्माता की संगठन कुशलता जितनी श्रेष्ठ उतनी उस संगठन की आयु होती है। कई संगठन तो केवल निर्माता की कुशलता के कारण उसके साथ ही नष्ट हो जाते हैं। अपने जैसे या अपने से भी श्रेष्ठ संभाव्य नेतृत्व का विकास यदि नहीं होता तो निर्माता के साथ ही संगठन का नष्ट होना स्वाभाविक ही होता है। निर्माता की मृत्यू के उपरांत भी दीर्घ काल तक चलनेवाले संगठन अल्प संख्या में ही होते हैं। बाकी तो हजारों लाखों की संख्या में ऐसे संगठन बनते और नष्ट होते रहते हैं।  
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संगठन के निर्माण का प्रयोजन जितना लंबी अवधि का, संगठन का उद्देश्य जितना व्यापक और व्यावहारिक, संगठन के निर्माता की संगठन कुशलता जितनी श्रेष्ठ उतनी उस संगठन की आयु होती है। कई संगठन तो केवल निर्माता की कुशलता के कारण उसके साथ ही नष्ट हो जाते हैं। अपने जैसे या अपने से भी श्रेष्ठ संभाव्य नेतृत्व का विकास यदि नहीं होता तो निर्माता के साथ ही संगठन का नष्ट होना स्वाभाविक ही होता है। निर्माता की मृत्यू के उपरांत भी दीर्घ काल तक चलनेवाले संगठन अल्प संख्या में ही होते हैं। बाकी तो हजारों लाखों की संख्या में ऐसे संगठन बनते और नष्ट होते रहते हैं।  
दुनियाँ में ऐसे बहुत कम संगठन निर्माण हुए हैं जो दीर्घ काल जीवित रहे हैं। ऑक्स्फोर्ड युनिव्हर्सिटी की आयु लगभग ३०० वर्षों से ऊपर है। भारत में तो १२००-१४०० वर्षतक प्रभावी रहे ऐसे कई विद्यापीठ इतिहास ने देखें हैं। भारत में तो कई राजवंश भी हजार हजार वर्ष तक राज करते रहे हैं। इन राजवंशों की विशेषता उनके अपने से अधिक श्रेष्ठ उत्तराधिकारी के निर्माण में थी।  
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विश्व में ऐसे बहुत कम संगठन निर्माण हुए हैं जो दीर्घ काल जीवित रहे हैं। ऑक्स्फोर्ड युनिव्हर्सिटी की आयु लगभग ३०० वर्षों से ऊपर है। भारत में तो १२००-१४०० वर्षतक प्रभावी रहे ऐसे कई विद्यापीठ इतिहास ने देखें हैं। भारत में तो कई राजवंश भी हजार हजार वर्ष तक राज करते रहे हैं। इन राजवंशों की विशेषता उनके अपने से अधिक श्रेष्ठ उत्तराधिकारी के निर्माण में थी।  
सामाजिक संगठन की दृष्ति से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन अपने आप में ऐसा ही एक विशेष संगठन है। जो निर्माता के पश्चात भी विस्तार पाता रहा है। संघ को समाज व्यापी बनाना यही संघ के विस्तार का लक्ष्य और सीमा भी है। इसके आगे संघ समाज में विलीन हो जाएगा। संघ को प्रारंभ हुए भी अब चार पीढियों से अधिक समय बीत गया है। संघ का विस्तार भी अनेकों दिशाओं में हुआ है। संघ के विस्तार के साथ ही विरोध भी अधिक शक्तिशाली होता दिखाई दे रहां है| संघ का विस्तार जो अबतक हुआ है वह तो सराहनीय है इसमें कोई शंका नहीं है। फिर भी वर्तमान स्थिति में संघ अपने लक्ष्य से कोसों दूर है ऐसा दिखाई देता है।
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सामाजिक संगठन की दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संगठन अपने आप में ऐसा ही एक विशेष संगठन है। जो निर्माता के पश्चात भी विस्तार पाता रहा है। संघ को समाज व्यापी बनाना यही संघ के विस्तार का लक्ष्य और सीमा भी है। इसके आगे संघ समाज में विलीन हो जाएगा। संघ को प्रारंभ हुए भी अब चार पीढियों से अधिक समय बीत गया है। संघ का विस्तार भी अनेकों दिशाओं में हुआ है। संघ के विस्तार के साथ ही विरोध भी अधिक शक्तिशाली होता दिखाई दे रहां है| संघ का विस्तार जो अबतक हुआ है वह तो सराहनीय है इसमें कोई शंका नहीं है। फिर भी वर्तमान स्थिति में संघ अपने लक्ष्य से कोसों दूर है ऐसा दिखाई देता है।
ऐसा नहीं है कि संघ अब हतबल हो गया है और अब इसका आगे विस्तार संभव नहीं है। संघ आज भी पर्याप्त बलशाली, लचीला और वर्धिष्णू भी है। संघ का संगठन यह आज विश्व के मानव समाज के लिये एक बडा आश्चर्य ही है। बगैर शासन की सहायता के इतना बडा संगठन आजतक दुनियाँ में किसी ने निर्माण नहीं किया है। संघ द्वारा निर्माण हो रहा संगठन स्वयंसेवी है। इसे न तो शासकीय शक्ति का आधार है और ना ही वर्त्तमान की धर्म शक्ति का। इसी कारण संघ का समूचे हिंदू समाज को संगठित करने का लक्ष्य वर्तमान संगठन प्रक्रिया से कितना संभव होगा ऐसा प्रश्न मन में खडा होता है।  
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ऐसा नहीं है कि संघ अब हतबल हो गया है और अब इसका आगे विस्तार संभव नहीं है। संघ आज भी पर्याप्त बलशाली, लचीला और वर्धिष्णू भी है। संघ का संगठन यह आज विश्व के मानव समाज के लिये एक बडा आश्चर्य ही है। बगैर शासन की सहायता के इतना बडा संगठन आजतक विश्व में किसी ने निर्माण नहीं किया है। संघ द्वारा निर्माण हो रहा संगठन स्वयंसेवी है। इसे न तो शासकीय शक्ति का आधार है और ना ही वर्त्तमान की धर्म शक्ति का। इसी कारण संघ का समूचे हिंदू समाज को संगठित करने का लक्ष्य वर्तमान संगठन प्रक्रिया से कितना संभव होगा ऐसा प्रश्न मन में खडा होता है।  
 
वर्तमान में संघ, जीवन के अभारतीय प्रतिमान के साथ जूझ रहा दिखाई दे रहा है। कई बातों में तो जीवन के वर्तमान अभारतीय प्रतिमान से सुसंगत रचनाएँ करने को भी संघ बाध्य है। जैसे अधिकारों के लिये लडनेवाले संगठन तो भारतीय जीवनदृष्टि से परे हैं। लेकिन मजबूरी में अधिकारों के लिये लडनेवाले संगठन संघ को निर्माण करने पडे हैं।  
 
वर्तमान में संघ, जीवन के अभारतीय प्रतिमान के साथ जूझ रहा दिखाई दे रहा है। कई बातों में तो जीवन के वर्तमान अभारतीय प्रतिमान से सुसंगत रचनाएँ करने को भी संघ बाध्य है। जैसे अधिकारों के लिये लडनेवाले संगठन तो भारतीय जीवनदृष्टि से परे हैं। लेकिन मजबूरी में अधिकारों के लिये लडनेवाले संगठन संघ को निर्माण करने पडे हैं।  
धर्मशक्ति का जागरण और उसके मार्गदर्शन में धर्मनिष्ठ शासनद्वारा समाज के संगठन को अमल में लाना यही सामज के संगठन की भारतीय प्रक्रिया रही है। इस हेतु सर्व प्रथम धर्म के आधार से समाज का संगठन कैसे होता है उसके स्वरूप को समझना होगा। फिर ऐसे संगठन के निर्माण के लिये चहुँ दिशाओं से समाज में पहल खडी करनी होगी। लेकिन विद्यापीठ या शासन व्यवस्था जैसे समाज जीवन के एक छोटे पहलू या हिस्से को लेकर संगठन निर्माण करना और समूचे समाज के लिये संगठन की रचना करना इन दोनों में निर्माता की प्रतिभा का अंतर बहुत बडा होता है। यह सामान्य मानव का या सामान्य मानव समूह का काम नहीं है। दुनियाँ के अन्य किसी भी समाज से हमारे समाज के निर्माता पूर्वजों की श्रेष्ठता और विशेषता इस में है कि उन्होंने भारतीय समाज को इस तरह संगठन में बाँधा कि यह संगठन हजारों लाखों वर्षोंतक समाज को लाभान्वित करता रहा। भारतीय समाज को इस संगठन ने ही तो चिरंजीवी बना दिया था। ऐसे संगठन की शायद दुनियाँ के अन्य किसी भी समाज के पुरोधाओं ने कल्पना भी नहीं की होगी। हमारे पूर्वजों ने धर्मपर आधारित ऐसे संगठन की न केवल कल्पना की, साथ ही में ऐसे संगठन को समाज में व्यापकता से स्थापित भी कर दिखाया।
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धर्मशक्ति का जागरण और उसके मार्गदर्शन में धर्मनिष्ठ शासनद्वारा समाज के संगठन को अमल में लाना यही सामज के संगठन की भारतीय प्रक्रिया रही है। इस हेतु सर्व प्रथम धर्म के आधार से समाज का संगठन कैसे होता है उसके स्वरूप को समझना होगा। फिर ऐसे संगठन के निर्माण के लिये चहुँ दिशाओं से समाज में पहल खडी करनी होगी। लेकिन विद्यापीठ या शासन व्यवस्था जैसे समाज जीवन के एक छोटे पहलू या हिस्से को लेकर संगठन निर्माण करना और समूचे समाज के लिये संगठन की रचना करना इन दोनों में निर्माता की प्रतिभा का अंतर बहुत बडा होता है। यह सामान्य मानव का या सामान्य मानव समूह का काम नहीं है। विश्व के अन्य किसी भी समाज से हमारे समाज के निर्माता पूर्वजों की श्रेष्ठता और विशेषता इस में है कि उन्होंने भारतीय समाज को इस तरह संगठन में बाँधा कि यह संगठन हजारों लाखों वर्षोंतक समाज को लाभान्वित करता रहा। भारतीय समाज को इस संगठन ने ही तो चिरंजीवी बना दिया था। ऐसे संगठन की शायद विश्व के अन्य किसी भी समाज के पुरोधाओं ने कल्पना भी नहीं की होगी। हमारे पूर्वजों ने धर्मपर आधारित ऐसे संगठन की न केवल कल्पना की, साथ ही में ऐसे संगठन को समाज में व्यापकता से स्थापित भी कर दिखाया।
 
लगभग ५०० वर्षों का इस्लामी शासन और लगभग १९० वर्ष का ईसाई शासन भारत में रहा। इस के उपरांत भी भारत में यदि आज भी हिंदू बडी संख्या में हैं तो इस का श्रेय हमारे पूर्वजों ने वर्ण/जाति/आश्रम के माध्यम से निर्माण किये समाज के संगठन को याने वर्णाश्रम धर्म को है। धर्मपाल जी बताते हैं कि जाति व्यवस्था के कारण अंग्रेजों को हिंदू समाज का ईसाईकरण अत्यंत कठिन हो रहा था। इसलिये उन्होंने भारतीय जाति व्यवस्था को बदनाम किया। इस संगठन को समझने का प्रयास हम आगे करेंगे।
 
लगभग ५०० वर्षों का इस्लामी शासन और लगभग १९० वर्ष का ईसाई शासन भारत में रहा। इस के उपरांत भी भारत में यदि आज भी हिंदू बडी संख्या में हैं तो इस का श्रेय हमारे पूर्वजों ने वर्ण/जाति/आश्रम के माध्यम से निर्माण किये समाज के संगठन को याने वर्णाश्रम धर्म को है। धर्मपाल जी बताते हैं कि जाति व्यवस्था के कारण अंग्रेजों को हिंदू समाज का ईसाईकरण अत्यंत कठिन हो रहा था। इसलिये उन्होंने भारतीय जाति व्यवस्था को बदनाम किया। इस संगठन को समझने का प्रयास हम आगे करेंगे।
 
हमें यदि पुन: अपने राष्ट्र को याने भारतीय जीवन दृष्टीवाले समाज को संगठित करना है तो हमें संगठन का अर्थ, संगठन की जीवनी शक्ति, संगठन के कारक तत्त्व, संगठन को चिरंजीवी बनानेवाले पहलू आदि सभी का विचार करना होगा।
 
हमें यदि पुन: अपने राष्ट्र को याने भारतीय जीवन दृष्टीवाले समाज को संगठित करना है तो हमें संगठन का अर्थ, संगठन की जीवनी शक्ति, संगठन के कारक तत्त्व, संगठन को चिरंजीवी बनानेवाले पहलू आदि सभी का विचार करना होगा।
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सामाजिक संगठन की जीवनी शक्ति
 
सामाजिक संगठन की जीवनी शक्ति
 
संगठन की जीवनी शक्ति बनी रहने के लिये निम्न बातें आवश्यक होतीं हैं।
 
संगठन की जीवनी शक्ति बनी रहने के लिये निम्न बातें आवश्यक होतीं हैं।
१.  प्रत्येक अवयव की और ईकाई की सभी आवश्यकताओं का समायोजन हो।       २. सामान्यत: इकाई याने संगठन की आवश्यकताओं को अवयवों की आवश्यकताओंपर वरीयता होगी|       ३. ईकाईयों के अवयवों के परस्परावलंबन में ही ईकाई का जीवन है।   ४. ईकाई के प्रत्येक अवयव की भूमिका अपने कर्तव्यों और अन्य अवयवोंके अधिकारों की पूर्ति का आग्रह करनेवाली हो।    ५. संगठन के उद्देष्य के और अवयवों के प्रयोजन के आधारपर अवयवों में कार्य विभाजन हो।       ६. प्रत्येक अवयव की संगठन के उद्देष्य में निष्ठा हो।       ७. मुखिया में पूर्ण विश्वास हो। मुखिया की आज्ञाओं का अनुपालन करने की अवयवों की मानसिकता रहे।       ८. नेतृत्व क्षमतावान हो।
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१.  प्रत्येक अवयव की और ईकाई की सभी आवश्यकताओं का समायोजन हो।       २. सामान्यत: इकाई याने संगठन की आवश्यकताओं को अवयवों की आवश्यकताओंपर वरीयता होगी|       ३. ईकाईयों के अवयवों के परस्परावलंबन में ही ईकाई का जीवन है।   ४. ईकाई के प्रत्येक अवयव की भूमिका अपने कर्तव्यों और अन्य अवयवोंके अधिकारों की पूर्ति का आग्रह करनेवाली हो।    ५. संगठन के उद्देश्य के और अवयवों के प्रयोजन के आधारपर अवयवों में कार्य विभाजन हो।       ६. प्रत्येक अवयव की संगठन के उद्देश्य में निष्ठा हो।       ७. मुखिया में पूर्ण विश्वास हो। मुखिया की आज्ञाओं का अनुपालन करने की अवयवों की मानसिकता रहे।       ८. नेतृत्व क्षमतावान हो।
 
भारतीय राष्ट्र/समाज संगठन
 
भारतीय राष्ट्र/समाज संगठन
 
उपर्युक्त संगठन के सूत्रों के आधारपर ही हमारे पूर्वजों ने समाज को संगठित किया था।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                समाज घटकों की स्वाभाविक आवश्यकताओं पर आधारित रचनाओं के कारण ही ये संगठन दीर्घकाल तक बने रहे’   
 
उपर्युक्त संगठन के सूत्रों के आधारपर ही हमारे पूर्वजों ने समाज को संगठित किया था।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                समाज घटकों की स्वाभाविक आवश्यकताओं पर आधारित रचनाओं के कारण ही ये संगठन दीर्घकाल तक बने रहे’   
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