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प्राचीन भारतीय राज्यव्यवस्था का महत्वपूर्ण विचार है मण्डल सिद्धान्त अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों पर आधारित यह वह सिद्धान्त है जो एक राज्य को उसकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर विजिगीषु राज्य का मित्र अथवा शत्रु बनाता है। मण्डल सिद्धान्त का उद्भव कहाँ से हुआ उस विषय में ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। वैदिक वांग्मय में मण्डल सिद्धान्त का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। मनुस्मृति और महाभारत में इस सिद्धान्त का विस्तृत विवेचन किया गया है।
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मण्डल सिद्धान्त प्राचीन भारतीय राज्यव्यवस्था का महत्वपूर्ण विचार है। अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों पर आधारित यह वह सिद्धान्त है जो एक राज्य को उसकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर विजिगीषु राज्य का मित्र अथवा शत्रु बनाता है। मण्डल सिद्धान्त का उद्भव कहाँ से हुआ उस विषय में ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। वैदिक वांग्मय में मण्डल सिद्धान्त का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। मनुस्मृति महाभारत और अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने इस सिद्धान्त का विस्तृत विवेचन किया गया है।
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कौटिल्य ने विदेश नीति के संबंध में दो प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। पडोसी राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए मण्डल सिद्धान्त और अन्य राज्यों के साथ व्यवहार निश्चित करने के लिए छः लक्षणों वाली षाड्गुण्य नीति।
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==परिचय॥ Introduction==
 
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==परिचय==
   
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में मण्डल सिद्धान्त का विशेष वर्णन किया है। अर्थशास्त्र के छठे अधिकरण के दूसरे अध्याय में मंडल सिद्धान्त का वर्णन किया है। मंडल का अर्थ है - राज्यों का वृत्त। मण्डल सिद्धान्त 12 राज्यों के वृत्र पर आधारित है। इसके केन्द्र में एक ऐसा राज्य जो अपने पडोसी राज्यों को अपने राज्य में मिला लेने के लिए सदैव तत्पर रहता है। इसमें कुल मिलाकर 12 राज्य होते हैं - विजिगीषु, अरि, मित्र, अरिमित्र, मित्र-मित्र, अरि मित्र-मित्र, पार्ष्णिग्राह, आक्रन्द, पार्ष्णिग्रहासार, आक्रन्दासार, माध्यमा और उदासीन। आचार्य कौटिल्य ने राज्यों के पारस्परिक व्यवहार के संबंधों का स्वरूप निर्धारित करते हुए दो सिद्धान्तों का विवेचन किया है -<ref>डॉ० नरेश कुमार, [https://gdcbhojpur.com/files/Prachin_Chintak.pdf प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतक "मनु"], महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली (पृ० 8)।</ref>  
 
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में मण्डल सिद्धान्त का विशेष वर्णन किया है। अर्थशास्त्र के छठे अधिकरण के दूसरे अध्याय में मंडल सिद्धान्त का वर्णन किया है। मंडल का अर्थ है - राज्यों का वृत्त। मण्डल सिद्धान्त 12 राज्यों के वृत्र पर आधारित है। इसके केन्द्र में एक ऐसा राज्य जो अपने पडोसी राज्यों को अपने राज्य में मिला लेने के लिए सदैव तत्पर रहता है। इसमें कुल मिलाकर 12 राज्य होते हैं - विजिगीषु, अरि, मित्र, अरिमित्र, मित्र-मित्र, अरि मित्र-मित्र, पार्ष्णिग्राह, आक्रन्द, पार्ष्णिग्रहासार, आक्रन्दासार, माध्यमा और उदासीन। आचार्य कौटिल्य ने राज्यों के पारस्परिक व्यवहार के संबंधों का स्वरूप निर्धारित करते हुए दो सिद्धान्तों का विवेचन किया है -<ref>डॉ० नरेश कुमार, [https://gdcbhojpur.com/files/Prachin_Chintak.pdf प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतक "मनु"], महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली (पृ० 8)।</ref>  
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मण्डल सिद्धान्त के आधार पर कौटिल्य ने इस बात की ओर निर्देशित किया है कि कौन से राज्य मित्र हो सकते हैं और कौन से राज्य शत्रु। अतः राजा को अपनी नीतियों का निर्धारण इन तथ्यों को ध्यान में रखकर करना चाहिये या बनाना चाहिये। <ref>डॉ० जितेन्द्र बहादुर सिंह, [https://www.ijhssi.org/papers/v2(4)/version-1/L02046166.pdf वैश्विक समस्या के रूप में आतंकवादः विश्लेषणात्मक अध्ययन], सन- अप्रैल 2013, शोध पत्रिका-इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस इन्वेंशन (पृ० 62)।</ref>
 
मण्डल सिद्धान्त के आधार पर कौटिल्य ने इस बात की ओर निर्देशित किया है कि कौन से राज्य मित्र हो सकते हैं और कौन से राज्य शत्रु। अतः राजा को अपनी नीतियों का निर्धारण इन तथ्यों को ध्यान में रखकर करना चाहिये या बनाना चाहिये। <ref>डॉ० जितेन्द्र बहादुर सिंह, [https://www.ijhssi.org/papers/v2(4)/version-1/L02046166.pdf वैश्विक समस्या के रूप में आतंकवादः विश्लेषणात्मक अध्ययन], सन- अप्रैल 2013, शोध पत्रिका-इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंस इन्वेंशन (पृ० 62)।</ref>
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==मंडल की अवधारणा==
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==मंडल सिद्धान्त की अवधारणा॥ Mandal Siddhant ki  Avadharana==
 
मंडल एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है वृत्त। भारतीयों ने ब्रह्मांड को आवश्यक रूप में प्रस्तुत करने के लिए चित्रात्मक विशेषताओं को बताया है। मंडल दुनिया को ज्यामिति के संदर्भ में प्रोजेक्ट करता है। कौटिल्य ने एक राजनीतिक ज्यामिति विकसित करने के लिए मंडल के आकार का उपयोग किया जो विभिन्न राजनीतिक वास्तविकताओं के लिए जिम्मेदार है।
 
मंडल एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है वृत्त। भारतीयों ने ब्रह्मांड को आवश्यक रूप में प्रस्तुत करने के लिए चित्रात्मक विशेषताओं को बताया है। मंडल दुनिया को ज्यामिति के संदर्भ में प्रोजेक्ट करता है। कौटिल्य ने एक राजनीतिक ज्यामिति विकसित करने के लिए मंडल के आकार का उपयोग किया जो विभिन्न राजनीतिक वास्तविकताओं के लिए जिम्मेदार है।
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==मण्डल सिद्धांत का विश्लेषण==
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==परराष्ट्र नीति - मण्डल सिद्धांत एवं षाड्गुण्य नीति==
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परराष्ट्र नीति प्रत्येक राज्य की अनिवार्य आवश्यकता है, जिसके बिना राज्य अपना अस्तित्व लम्बे समय तक कायम नहीं कर सकता क्योंकि दूसरे राज्यों के साथ सम्बन्धों से वह अपने अनेक हितों की पूर्ति करता है। इसीलिये परराष्ट्र नीति में यह कहा जाता है कि इसमें किसी राज्य का स्थाई शत्रु या स्थाई मित्र नहीं होता। राज्य का आन्तरिक दृष्टि के साथ-साथ बाहरी दृष्टि से शक्ति सम्पन्न होना बहुत आवश्यक है। इसके लिये राज्य को अपने मित्र राज्य सहित अन्य राज्यों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करना चाहिये। राजा अपनी कूटनीति का इस तरह से कार्यान्वयन करे कि शत्रु राजा भी बिना युद्ध किये उसके प्रभुत्व को स्वीकार कर ले और मित्र राजा भी उसके साथ प्रगाढता स्थापित करने का प्रयास करने लगे। मनु ने परराष्ट्र संबंधों पर विचार करते हुए दो प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। ये सिद्धान्त हैं -
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#'''मण्डल सिद्धान्त'''
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#'''षाड्गुण्य नीति'''
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'''मण्डल सिद्धांत॥ Mandala Siddhanta'''
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राजा को महत्वाकांक्षी होना चाहिये तथा उसे अपने राज्य के विस्तार हेतु हर संभव प्रयास करना चाहिये। इस दृष्टि से राजा को मण्डल सिद्धान्त के आधार पर दूसरे राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने चाहिये। मण्डल सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दू विजिगीषु राजा (विजय प्राप्ति की इच्छा रखने वाला राजा) होता है। विजिगीषु राजा को केन्द्र मानते हुये बारह राज्यों के मण्डल सिद्धान्त की रचना की गई है।
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षाड्गुण्य नीति॥ Shadgunya Niti
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{{Main|Shadgunya (षाड्गुण्य)‎}}मण्डल सिद्धान्त के माध्यम से सुनिश्चित हो जाता है कि कौनसा राज्य उसके प्रति किस प्रकार का दृष्टिकोण रखता है? उसके पश्चात राज्य हितों में वृद्धि करने के लिए षाड्गुण्य नीतिका प्रयोग करना चाहिये। षाड्गुण्य नीति का आशय है, छः लक्षणों वाली नीति। इसके अन्तर्गत यह बतलाया गया है कि राज्य द्वारा अलग-अलग परिस्थितियों मेम दूसरे राज्यों के प्रति किस प्रकार की नीति अपनानी जानी चाहिये। षाड्गुण्य नीति वैदेशिक सम्बन्धों के क्षेत्र में विवेक सम्मत विकल्पों का विवेचन प्रस्तुत करती है।
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==मण्डल सिद्धांत का विश्लेषण॥ Mandal siddhant ka Vishleshan==
 
मनु ने भी इसी बातपर बल दिया है कि राजा को महत्त्वाकांक्षी होना चाहिए तथा उसे अपने राज्य के विस्तार हेतु हर संभव प्रयास करना चाहिये। इस दृष्टि से राजा को मण्डल सिद्धान्त के आधार पर दूसरे राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने चाहिए। मण्डल सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दू विजिगीषु राजा (विजय प्राप्ति की इच्छा रखने वाला राजा) होता है। विजिगीषु राजा को केन्द्र मानते हुए 12 राज्यों के मण्डल सिद्धान्त की रचना की गई है। जिससे यह बताया गया है कि विजिगीषु राज्य की सीमा के आधार पर स्थित राज्यों स्थिति एवं सामर्थ्य के अनुसार उनके साथ नीति का संचालन करना चाहिए। यदि कोई इसकी अनदेखी करता है तो उसे सम्भावित दुष्परिणामों को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। मण्डल शब्द का अर्थ है चक्र या घेरा। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सन्दर्भ में इसका अर्थ है राजमण्डल अर्थात राजा या राज्यों का चक्र या घेरा।
 
मनु ने भी इसी बातपर बल दिया है कि राजा को महत्त्वाकांक्षी होना चाहिए तथा उसे अपने राज्य के विस्तार हेतु हर संभव प्रयास करना चाहिये। इस दृष्टि से राजा को मण्डल सिद्धान्त के आधार पर दूसरे राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने चाहिए। मण्डल सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दू विजिगीषु राजा (विजय प्राप्ति की इच्छा रखने वाला राजा) होता है। विजिगीषु राजा को केन्द्र मानते हुए 12 राज्यों के मण्डल सिद्धान्त की रचना की गई है। जिससे यह बताया गया है कि विजिगीषु राज्य की सीमा के आधार पर स्थित राज्यों स्थिति एवं सामर्थ्य के अनुसार उनके साथ नीति का संचालन करना चाहिए। यदि कोई इसकी अनदेखी करता है तो उसे सम्भावित दुष्परिणामों को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। मण्डल शब्द का अर्थ है चक्र या घेरा। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सन्दर्भ में इसका अर्थ है राजमण्डल अर्थात राजा या राज्यों का चक्र या घेरा।
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'''बारह राज्यों का वृत्त'''
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'''बारह राज्यों का वृत्त॥ Circle of Twelve States'''
    
'''विजिगीषु -''' अपने राज्य के विस्तार की आकांक्षा रखने वाला राजा विजिगीषु कहलाता है। इसका स्थान मंडल के बीच में होता है।
 
'''विजिगीषु -''' अपने राज्य के विस्तार की आकांक्षा रखने वाला राजा विजिगीषु कहलाता है। इसका स्थान मंडल के बीच में होता है।
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इस प्रकार कौटिल्य कहता है कि राजा को राज्य की दृष्टि और स्थिति को ध्यान में रखकर नीति का निर्धारण करना चाहिए, ऐसा करने से राज्य के हितों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो सकती है और राज्य एक शक्ति के रूप में उभरकर अपनी पहचान कायम कर सकता है।  
 
इस प्रकार कौटिल्य कहता है कि राजा को राज्य की दृष्टि और स्थिति को ध्यान में रखकर नीति का निर्धारण करना चाहिए, ऐसा करने से राज्य के हितों में उत्तरोत्तर वृद्धि हो सकती है और राज्य एक शक्ति के रूप में उभरकर अपनी पहचान कायम कर सकता है।  
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==मत्स्य न्याय एवं मण्डल सिद्धान्त==
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==मत्स्य न्याय एवं मण्डल सिद्धान्त॥ Matsya Nyaya evam Mandal siddhanta==
 
प्राचीन राजनैतिक प्रणाली में मत्स्य न्याय का सिद्धान्त अपनाया जाता था। अर्थात जिस प्रकार छोटी मछली बडी मछली को खा जाती है, उसी प्रकार बडे राज्य भी छोटे राज्यों का दमन करते थे। इस स्वाभाविक स्थिति से मुक्ति हेतु एक राज्य दूसरे राज्य की सहायता करता था अर्थात वे आपस में मित्रवत संबंध रखते थे।  इसी सिद्धान्त को मण्डल सिद्धान्त नाम दिया गया। यह सिद्धान्त राज्यों में शक्ति संतुलन का कार्य करता था, जिसमें आवश्यकता पडने पर एक राज्य अपने मित्र राज्य की सहायता करता था इसी कारण कहीं-कहीं मित्र के लिए सुबद्ध शब्द का प्रयोग किया है।
 
प्राचीन राजनैतिक प्रणाली में मत्स्य न्याय का सिद्धान्त अपनाया जाता था। अर्थात जिस प्रकार छोटी मछली बडी मछली को खा जाती है, उसी प्रकार बडे राज्य भी छोटे राज्यों का दमन करते थे। इस स्वाभाविक स्थिति से मुक्ति हेतु एक राज्य दूसरे राज्य की सहायता करता था अर्थात वे आपस में मित्रवत संबंध रखते थे।  इसी सिद्धान्त को मण्डल सिद्धान्त नाम दिया गया। यह सिद्धान्त राज्यों में शक्ति संतुलन का कार्य करता था, जिसमें आवश्यकता पडने पर एक राज्य अपने मित्र राज्य की सहायता करता था इसी कारण कहीं-कहीं मित्र के लिए सुबद्ध शब्द का प्रयोग किया है।
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==मण्डल सिद्धान्त का वर्तमान परिदृश्य में महत्व==
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==मण्डल सिद्धान्त का वर्तमान परिदृश्य में महत्व॥ Importance of Mandal Theory in the present scenario==
    
*राज्य के सुरक्षा सम्बन्धी निर्णय निर्माण में
 
*राज्य के सुरक्षा सम्बन्धी निर्णय निर्माण में
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मंडल सिद्धान्त का केंद्रीय आधार एक राज्य की स्थिति को दुश्मन या सहयोगी के रूप में राज्य के स्थान के संबंध में स्थापित करने में निहित है। कौटिल्य विजिगीषु (विजेता या महत्वाकांक्षी राजा) को मंडल सिद्धान्त के संदर्भ बिंदु के रूप में मानते हैं और चार बुनियादी वृत्तों की वकालत करते हैं।  
 
मंडल सिद्धान्त का केंद्रीय आधार एक राज्य की स्थिति को दुश्मन या सहयोगी के रूप में राज्य के स्थान के संबंध में स्थापित करने में निहित है। कौटिल्य विजिगीषु (विजेता या महत्वाकांक्षी राजा) को मंडल सिद्धान्त के संदर्भ बिंदु के रूप में मानते हैं और चार बुनियादी वृत्तों की वकालत करते हैं।  
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==मंडल सिद्धान्त का महत्व==
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==मंडल सिद्धान्त का महत्व॥ Importance of Mandal Theory ==
 
कौटिल्य के मंडल सिद्धान्त का कोई महत्व नहीं है। वस्तुतः यदि मंडल सिद्धान्त का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में करें, तो कौटिल्य के मंडल सिद्धान्त की सार्थकता सिद्ध होगी।
 
कौटिल्य के मंडल सिद्धान्त का कोई महत्व नहीं है। वस्तुतः यदि मंडल सिद्धान्त का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में करें, तो कौटिल्य के मंडल सिद्धान्त की सार्थकता सिद्ध होगी।
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==राज्य की परराष्ट्र नीति अथवा मण्डल सिद्धान्त==
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==राज्य की परराष्ट्र नीति अथवा मण्डल सिद्धान्त॥ Rajya ki pararashtra Niti Athava Mandal Siddhanta==
 
कौटिल्य ने अन्तर्राज्य सम्बन्धों को अत्यधिक महत्व प्रदान किया है। कौटिल्य के अनुसार राज्य की सुरक्षा तथा प्रजा का सुख तभी संभव है जबकि राज्य दूसरे राज्यों से इस प्रकार सम्बन्ध निर्धारित करे कि या तो किसी प्रकार के आक्रमण की आशंका ही न रहे तथा यदि राज्य को युद्ध में उलझना ही पडे तो उसकी सुरक्षा को किसी प्रकार की जाँच न आए।
 
कौटिल्य ने अन्तर्राज्य सम्बन्धों को अत्यधिक महत्व प्रदान किया है। कौटिल्य के अनुसार राज्य की सुरक्षा तथा प्रजा का सुख तभी संभव है जबकि राज्य दूसरे राज्यों से इस प्रकार सम्बन्ध निर्धारित करे कि या तो किसी प्रकार के आक्रमण की आशंका ही न रहे तथा यदि राज्य को युद्ध में उलझना ही पडे तो उसकी सुरक्षा को किसी प्रकार की जाँच न आए।
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==मंडल सिद्धान्त एवं वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय राजनीति==
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==मंडल सिद्धान्त एवं वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय राजनीति॥ Mandal theory and current international politics==
 
कौटिल्य द्वारा प्रस्तुत मंडल सिद्धान्त न केवल उस समय के राजाओं के लिए तैयार किया गया था अपितु इस सिद्धान्त का आज भी महत्त्व बना हुआ है। वर्तमान एक ध्रुवीय विश्व राजनीति में संयुक्त राज्य अमरीका का वर्चस्व देखा जा सकता है, जिसकी कल्पना हम कौटिल्य के विजिगीषु राज्य से कर सकते हैं, जो अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र अपना उत्तरोत्तर प्रभाव बढा रहा है।
 
कौटिल्य द्वारा प्रस्तुत मंडल सिद्धान्त न केवल उस समय के राजाओं के लिए तैयार किया गया था अपितु इस सिद्धान्त का आज भी महत्त्व बना हुआ है। वर्तमान एक ध्रुवीय विश्व राजनीति में संयुक्त राज्य अमरीका का वर्चस्व देखा जा सकता है, जिसकी कल्पना हम कौटिल्य के विजिगीषु राज्य से कर सकते हैं, जो अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र अपना उत्तरोत्तर प्रभाव बढा रहा है।
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==सारांश==
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==निष्कर्ष॥ Summary==
 
भारतीय राजनीतिक चिन्तन में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है - मण्डल सिद्धान्त। इसका सार यह है कि हर देश को विश्व की राजनीति में सावधानी से रहना चाहिये। अनेक देश विस्तारवादी नीति पर चलकर अन्य देशों को हडप लेने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक जागरूप देश को पास व दूर के हर देश पर नजर रखनी चाहिये और अपने हर शत्रु का मुकाबला करने के लिये अपने मित्र देशों को पहले से ही तैयार रखना चाहिये। इसके लिये उसे अरि, विजिगीषु, मध्यम व उदासीन - इन चारों की गतिविधि पर ध्यान देना चाहिये।<ref>कौशल पंवार, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/94924/1/Unit-16.pdf अन्तर्राष्ट्र्रीय राजनीति के सिद्धान्त मण्डल व षड्गुण], सन् 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० 12)।</ref>
 
भारतीय राजनीतिक चिन्तन में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है - मण्डल सिद्धान्त। इसका सार यह है कि हर देश को विश्व की राजनीति में सावधानी से रहना चाहिये। अनेक देश विस्तारवादी नीति पर चलकर अन्य देशों को हडप लेने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक जागरूप देश को पास व दूर के हर देश पर नजर रखनी चाहिये और अपने हर शत्रु का मुकाबला करने के लिये अपने मित्र देशों को पहले से ही तैयार रखना चाहिये। इसके लिये उसे अरि, विजिगीषु, मध्यम व उदासीन - इन चारों की गतिविधि पर ध्यान देना चाहिये।<ref>कौशल पंवार, [https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/94924/1/Unit-16.pdf अन्तर्राष्ट्र्रीय राजनीति के सिद्धान्त मण्डल व षड्गुण], सन् 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० 12)।</ref>
    
मंडल सिद्धान्त कौटिल्य की विदेश-नीति संबंधी सूझ-बूझ और व्यावहारिक राजनीति में उसकी दक्षता तथा दूरदर्शिता का परिचायक है। मंडल-सिद्धान्त अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के मूलभूत सिद्धान्तों और वास्तविक तथ्यों तथा घटनाओं पर आधारित है। कौटिल्य का मंडल-सिद्धान्त आज भी विदेश नीति का स्थायी प्रकाश स्तम्भ है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र कूटनीति और रणनीतिक अध्ययन में एक अग्रणी कृति है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध में उनके योगदान पर वांछित ध्यान नहीं दिया गया है। कौटिल्य ने विदेश नीति के संचालन में एक राज्य के भूगोल और आर्थिक नींव को महत्व दिया।
 
मंडल सिद्धान्त कौटिल्य की विदेश-नीति संबंधी सूझ-बूझ और व्यावहारिक राजनीति में उसकी दक्षता तथा दूरदर्शिता का परिचायक है। मंडल-सिद्धान्त अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के मूलभूत सिद्धान्तों और वास्तविक तथ्यों तथा घटनाओं पर आधारित है। कौटिल्य का मंडल-सिद्धान्त आज भी विदेश नीति का स्थायी प्रकाश स्तम्भ है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र कूटनीति और रणनीतिक अध्ययन में एक अग्रणी कृति है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध में उनके योगदान पर वांछित ध्यान नहीं दिया गया है। कौटिल्य ने विदेश नीति के संचालन में एक राज्य के भूगोल और आर्थिक नींव को महत्व दिया।
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==उद्धरण==
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==उद्धरण॥ References==
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
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[[Category:Arthashastra]]
 
[[Category:Arthashastra]]
 
<references />
 
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