Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 1: Line 1:  
कुंभपर्व भारतीय तीर्थयात्रा परंपरा का एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है। सनातन संस्कृति में विशेष पर्वों, त्योहारों या संक्रान्तियों के अवसर पर नदी स्नान की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, कुंभ पर्व भी प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित किया जाने वाला नदी-स्नान परंपरा से जुडा एक अमृत पर्व है। कुंभ मेले का प्रति बारह वर्षों में बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र की खगोलीय ग्रह स्थिति के आधार पर हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजन होता है। यह पर्व मुख्य तीन परंपराओं तीर्थयात्रा, खगोलीय ग्रहस्थिति और नदी पूजा का सम्मिश्रण है। यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ आस्था, त्याग, समर्पण, प्रतिबद्धता और सहकार्य की भावना का सन्देश देता है।  
 
कुंभपर्व भारतीय तीर्थयात्रा परंपरा का एक अद्वितीय और दिव्य पर्व है। सनातन संस्कृति में विशेष पर्वों, त्योहारों या संक्रान्तियों के अवसर पर नदी स्नान की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, कुंभ पर्व भी प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित किया जाने वाला नदी-स्नान परंपरा से जुडा एक अमृत पर्व है। कुंभ मेले का प्रति बारह वर्षों में बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र की खगोलीय ग्रह स्थिति के आधार पर हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजन होता है। यह पर्व मुख्य तीन परंपराओं तीर्थयात्रा, खगोलीय ग्रहस्थिति और नदी पूजा का सम्मिश्रण है। यह आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ आस्था, त्याग, समर्पण, प्रतिबद्धता और सहकार्य की भावना का सन्देश देता है।  
    +
{{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=ReWiJ4pd6Kc
 +
|alignment=right
 +
|dimensions=500x248
 +
|container=frame
 +
|description=KUMBH-Eternal Journey of Indian Civilisation-A Documentary Film. Courtesy: INDIA INSPIRES  FOUNDATION.}}
 
==परिचय॥ Introduction==
 
==परिचय॥ Introduction==
 
वैदिक काल से ही संक्रान्ति एवं ग्रहण आदि काल में तीर्थ क्षेत्र नदी के तटों पर स्नान, दान और यज्ञानुष्ठान की परम्परा चली आ रही है। किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि पौराणिक काल में भी आज की तरह सामूहिक रूप से कुंभ स्नान के मेले आयोजित किये जाते थे। कुंभ पर्व से संबंधित प्राचीन श्लोक प्रमाण रूप में अवश्य प्राप्त होते हैं लेकिन उनका शास्त्रीय मूल ग्रन्थों में उद्धरण नहीं प्राप्त होता है।<ref name=":4">डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, प्रस्तावना (पृ० १)।</ref>
 
वैदिक काल से ही संक्रान्ति एवं ग्रहण आदि काल में तीर्थ क्षेत्र नदी के तटों पर स्नान, दान और यज्ञानुष्ठान की परम्परा चली आ रही है। किन्तु यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि पौराणिक काल में भी आज की तरह सामूहिक रूप से कुंभ स्नान के मेले आयोजित किये जाते थे। कुंभ पर्व से संबंधित प्राचीन श्लोक प्रमाण रूप में अवश्य प्राप्त होते हैं लेकिन उनका शास्त्रीय मूल ग्रन्थों में उद्धरण नहीं प्राप्त होता है।<ref name=":4">डॉ० मोहन चन्द तिवारी, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-parva-kumbh-history-and-tradition-vedic-to-modern-period-uaf620/ अमृत पर्व कुम्भ : इतिहास और परम्परा], ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली, प्रस्तावना (पृ० १)।</ref>
Line 14: Line 19:     
तीर्थ की महिमा पर्व से तथा पर्व की महिमा तीर्थ से बढती है। पर्व और तीर्थ में घनिष्ठ साहचर्य है। प्रायः सभी पर्वों पर किसी न किसी तीर्थ में  स्नान, दान, जप आदि का महत्व बतलाया गया है। पर्वों का उल्लेख करते हुये विष्णु पुराणमें कहा गया है - <blockquote>चतुर्दश्यष्टमी कृष्णा अमावास्याथ पूर्णिमा। पर्वाण्येतानि राजेन्द्र रविसंक्रान्तिरेव च॥ (विष्णुपुराण)</blockquote>चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा और सूर्य की संक्रान्तियाँ ये सभी पर्व संज्ञक होती हैं। इनके अतिरिक्त सूर्य और चन्द्र ग्रहण को भी पर्व कहा जाता है। ये सभी कालखण्ड केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए पर्वकाल में स्नान-दानादि का अक्षय पुण्य होता है।<ref>आचार्य भगवतशरण शुक्ल, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-kumbha-parv-haridwar-ujjain-prayag-and-nasik-mzh357/#mz-expanded-view-111264803301 अमृत कुम्भ पर्व], शारदा संस्कृत संस्थान, वाराणसी (पृ० ११)।</ref>
 
तीर्थ की महिमा पर्व से तथा पर्व की महिमा तीर्थ से बढती है। पर्व और तीर्थ में घनिष्ठ साहचर्य है। प्रायः सभी पर्वों पर किसी न किसी तीर्थ में  स्नान, दान, जप आदि का महत्व बतलाया गया है। पर्वों का उल्लेख करते हुये विष्णु पुराणमें कहा गया है - <blockquote>चतुर्दश्यष्टमी कृष्णा अमावास्याथ पूर्णिमा। पर्वाण्येतानि राजेन्द्र रविसंक्रान्तिरेव च॥ (विष्णुपुराण)</blockquote>चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या, पूर्णिमा और सूर्य की संक्रान्तियाँ ये सभी पर्व संज्ञक होती हैं। इनके अतिरिक्त सूर्य और चन्द्र ग्रहण को भी पर्व कहा जाता है। ये सभी कालखण्ड केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए पर्वकाल में स्नान-दानादि का अक्षय पुण्य होता है।<ref>आचार्य भगवतशरण शुक्ल, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/amrit-kumbha-parv-haridwar-ujjain-prayag-and-nasik-mzh357/#mz-expanded-view-111264803301 अमृत कुम्भ पर्व], शारदा संस्कृत संस्थान, वाराणसी (पृ० ११)।</ref>
 +
 +
मकर संक्रान्ति या पौष पूर्णिमा से यह मेला प्रारम्भ होता है और मेले का सरकारी प्रबंध शिवरात्रि तक रहता है। कल्पवासी और धार्मिक संस्थाओं के कार्यक्रम प्रतिवर्ष की तरह पूरे महीने चलते ही हैं परन्तु महात्मा, साधु-संत आदि मकर संक्रान्ति के पहले आते हैं और बंसत पंचमी का स्नान करके चले जाते हैं। उस अवसर पर प्रति वर्ष वहाँ डेरा लगाने वाले साधु-सन्यासी, धर्मप्रचारक और कल्पवासियों के अतिरिक्त देश के सभी प्रमुख अखाडे एकत्रित होते हैं। उनकी सवारियाँ (जुलूस) मकर संक्रान्ति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी को संगम स्नान के लिए शाही स्नान से जाती हैं। उनके स्नान करने के क्रम इस प्रकार हैं- पहले निर्वाणी, फिर निरंजनी, जूना, वैरागी, दिगम्बर, निर्मोही, उदासी और अन्त में निर्मल अखाड़े के साधु स्नान करते हैं। जुलूस में हाथी, बैण्ड, झंडे आदि सभी शाही अंग होते हैं। उस समय देश के कोने-कोने से करोड़ों यात्री त्रिवेणी स्नान के लिए आते हैं। साथ ही विदेशों से भी हजारों लोग उस मेले का आनन्द लेने के लिए आते हैं।<ref>शोधकर्ता- विनय प्रकाश यादव ,[https://ia601409.us.archive.org/33/items/in.ernet.dli.2015.480649/2015.480649.Prayag-ke.pdf प्रयाग के प्राचीन स्थलों का संजाति इतिहास (झूँसी क्षेत्र के विशेष सन्दर्भ में)], सन् २००२, शोधकेन्द्र- मानव विज्ञान विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद (पृ० ४१)।</ref>
 +
 
==परिभाषा॥ Definition==
 
==परिभाषा॥ Definition==
 
कुंभ शब्दका अर्थ साधारणतः घडा ही है, किन्तु इसके पीछे जनसमुदायमें पात्रताके निर्माणकी रचनात्मक शुभभावना, मंगलकामना एवं जन-मानसके उद्धारकी प्रेरणा निहित है। कुंभ का शब्दार्थ प्रकार है -<blockquote>कुं पृथ्वीं भावयन्ति संकेतयन्ति भविष्यत्कल्याणादिकाय महत्याकाशे स्थिताः बृहस्पत्यादयो ग्रहाः संयुज्य हरिद्वार-प्रयागादितत्तत्पुण्यस्थानविशेषानुद्दिश्य यस्मिन् सः कुंभः।<ref name=":1" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' पृथ्वीको कल्याणकी आगामी सूचना देनेके लिये या शुभ भविष्यके संकेतके लिये हरिद्वार, प्रयाग आदि पुण्य-स्थानविशेषके उद्देश्यसे महाकाशमें बृहस्पति आदि ग्रहराशि उपस्थित हों जिसमें उसे कुंभ कहते हैं।<blockquote>कुम्भो राश्यन्तरे हस्तिमूर्धांशे राक्षसान्तरे कार्मुके वारनार्या च घटे॥ (मेदिनीकोष १०६/२,३)</blockquote>अर्थात कुम्भ शब्द राशिविशेष, हाथी के मस्तक का मांसपिण्ड, राक्षसविशेष, धनुष, वेश्यापति तथा कलश अर्थों में प्रयुक्त होता है।
 
कुंभ शब्दका अर्थ साधारणतः घडा ही है, किन्तु इसके पीछे जनसमुदायमें पात्रताके निर्माणकी रचनात्मक शुभभावना, मंगलकामना एवं जन-मानसके उद्धारकी प्रेरणा निहित है। कुंभ का शब्दार्थ प्रकार है -<blockquote>कुं पृथ्वीं भावयन्ति संकेतयन्ति भविष्यत्कल्याणादिकाय महत्याकाशे स्थिताः बृहस्पत्यादयो ग्रहाः संयुज्य हरिद्वार-प्रयागादितत्तत्पुण्यस्थानविशेषानुद्दिश्य यस्मिन् सः कुंभः।<ref name=":1" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' पृथ्वीको कल्याणकी आगामी सूचना देनेके लिये या शुभ भविष्यके संकेतके लिये हरिद्वार, प्रयाग आदि पुण्य-स्थानविशेषके उद्देश्यसे महाकाशमें बृहस्पति आदि ग्रहराशि उपस्थित हों जिसमें उसे कुंभ कहते हैं।<blockquote>कुम्भो राश्यन्तरे हस्तिमूर्धांशे राक्षसान्तरे कार्मुके वारनार्या च घटे॥ (मेदिनीकोष १०६/२,३)</blockquote>अर्थात कुम्भ शब्द राशिविशेष, हाथी के मस्तक का मांसपिण्ड, राक्षसविशेष, धनुष, वेश्यापति तथा कलश अर्थों में प्रयुक्त होता है।
Line 51: Line 59:  
|-
 
|-
 
|प्रयागराज
 
|प्रयागराज
| बृहस्पति और सूर्य मकर राशि में।
+
|बृहस्पति और सूर्य मकर राशि में।
 
|त्रिवेणी संगम पर स्नानादि।
 
|त्रिवेणी संगम पर स्नानादि।
 
|-
 
|-
| हरिद्वार
+
|हरिद्वार
 
|सूर्य और बृहस्पति कुंभ राशि में।
 
|सूर्य और बृहस्पति कुंभ राशि में।
 
|गंगा स्नानादि हरिद्वार में।
 
|गंगा स्नानादि हरिद्वार में।
Line 60: Line 68:  
|उज्जैन
 
|उज्जैन
 
|सिंहस्थ योग।
 
|सिंहस्थ योग।
| क्षिप्रा नदी का महत्व।
+
|क्षिप्रा नदी का महत्व।
 
|-
 
|-
|नाशिक
+
| नाशिक
 
|बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में।
 
|बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में।
 
|गोदावरी नदी का महत्व।
 
|गोदावरी नदी का महत्व।
Line 69: Line 77:  
===प्रयाग में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Prayag===
 
===प्रयाग में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Prayag===
   −
प्रयाग को तीर्थराज कहा गया है जहाँ त्रिवेणीमें स्नान करने का विशेष माहात्म्य है जिसमें गंगा, यमुना तथा सरस्वतीका संगम होता है। इसका क्षेत्रफल 5 योजन है जहाँ जाने से अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थोंका वास रहता है, अतः इस महीनेमें यहाँ वास करने से कल्पवास के बराबर फल प्राप्त होता है।<ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.429895/page/n344/mode/1up पौराणिक कोश], ज्ञान मण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 336)।</ref> प्रयागमें खगोलीय ग्रहस्थिति के आधार पर अर्धकुम्भी एवं पूर्णकुम्भ का आयोजन होता है। प्रयाग के कुम्भकाल में दो प्रकार की ग्रह-स्थितियाँ रहती हैं - <ref>हिन्दुस्तानी त्रैमासिक - कुम्भ विशेषांक, प्रो० सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव - [https://archive.org/details/20200715_20200715_0737/page/n6/mode/1up कुम्भ पर्व का ज्योतिष शास्त्रीय आधार], सन 2019, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० 52)।</ref>   
+
प्रयाग को तीर्थराज कहा गया है जहाँ त्रिवेणीमें स्नान करने का विशेष माहात्म्य है जिसमें गंगा, यमुना तथा सरस्वतीका संगम होता है। इसका क्षेत्रफल 5 योजन है जहाँ जाने से अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है।<ref>डॉ० श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव, [https://archive.org/details/wg978/page/n27/mode/1up प्रयाग की पाण्डित्य परम्परा], सन २०१६, ईस्टर्न बुक लिंकर्स (पृ० २५)।</ref> माघ महीने में यहाँ सब तीर्थोंका वास रहता है, अतः इस महीनेमें यहाँ वास करने से कल्पवास के बराबर फल प्राप्त होता है।<ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.429895/page/n344/mode/1up पौराणिक कोश], ज्ञान मण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 336)।</ref> प्रयागमें खगोलीय ग्रहस्थिति के आधार पर अर्धकुम्भी एवं पूर्णकुम्भ का आयोजन होता है। प्रयाग के कुम्भकाल में दो प्रकार की ग्रह-स्थितियाँ रहती हैं - <ref>हिन्दुस्तानी त्रैमासिक - कुम्भ विशेषांक, प्रो० सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव - [https://archive.org/details/20200715_20200715_0737/page/n6/mode/1up कुम्भ पर्व का ज्योतिष शास्त्रीय आधार], सन 2019, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० 52)।</ref>   
    
#प्रथम स्थिति में सूर्य और चन्द्र की मकरराशि में युति और बृहस्पति का सूर्य के उच्चगृह अर्थात मेष में स्थित होकर सूर्य चन्द्र से केन्द्र का सम्बन्ध बना लेता है।
 
#प्रथम स्थिति में सूर्य और चन्द्र की मकरराशि में युति और बृहस्पति का सूर्य के उच्चगृह अर्थात मेष में स्थित होकर सूर्य चन्द्र से केन्द्र का सम्बन्ध बना लेता है।
Line 87: Line 95:  
*दान, यज्ञ और उपनिषद और पुराणादि धार्मिक प्रवचन सुनना आदि
 
*दान, यज्ञ और उपनिषद और पुराणादि धार्मिक प्रवचन सुनना आदि
   −
===नासिक में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Nashik===
+
=== नासिक में कुंभ पर्व॥ Kumbh Parva in Nashik ===
 
[[File:Nasik Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः नासिक कुंभ]]
 
[[File:Nasik Kumbha .PNG|thumb|खगोलीय ग्रहस्थितिः नासिक कुंभ]]
   Line 111: Line 119:  
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात तीर्थस्थलों (सप्तपुरी) में से एक है। पुराणों में इसका हरिद्वार एवं गंगाद्वार नाम प्राप्त होता है। पद्मपुराण में हरिद्वार का अनेक बार उल्लेख हुआ है एवं षष्ठभाग के अध्याय 21, 23 एवं 217 में हरिद्वार का महत्व अत्यंत विस्तार से वर्णन है।  हरिद्वार में कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। यहां छह वर्ष में अर्ध कुम्भ एवं बारह वर्ष में पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार में इसका आयोजन गंगा नदी के किनारे विशेष ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥ (कुम्भ पर्व)  </blockquote>
 
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात तीर्थस्थलों (सप्तपुरी) में से एक है। पुराणों में इसका हरिद्वार एवं गंगाद्वार नाम प्राप्त होता है। पद्मपुराण में हरिद्वार का अनेक बार उल्लेख हुआ है एवं षष्ठभाग के अध्याय 21, 23 एवं 217 में हरिद्वार का महत्व अत्यंत विस्तार से वर्णन है।  हरिद्वार में कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। यहां छह वर्ष में अर्ध कुम्भ एवं बारह वर्ष में पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार में इसका आयोजन गंगा नदी के किनारे विशेष ज्योतिषीय गणनाओं और खगोलीय संयोगों पर आधारित होता है - <blockquote>कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम्॥ (कुम्भ पर्व)  </blockquote>
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है। यह महापुण्य वाला तीर्थ है। नारदपुराण में कुम्भपर्व से संबंधित उल्लेख प्राप्त होता है कि -  <blockquote>योऽस्मिन्क्षेत्रे नरः स्नायात्कुंभेज्येऽजगे रवौ। स तु स्याद्वाक्पतिः साक्षात्प्रभाकर इवापरः॥ (ना०पु० 66/ 44-45)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-_%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC%E0%A5%AC नारद पुराण], उत्तरार्ध - अध्याय - 66, श्लोक - 44-45।</ref> </blockquote>गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य के होने से जो योग होता है उसमें स्नान करने से मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।  
 
कुंभ राशिमें बृहस्पति हो तथा मेष राशिपर सूर्य हो तो हरिद्वारके कुंभमें स्नान करनेसे मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है। यह महापुण्य वाला तीर्थ है। नारदपुराण में कुम्भपर्व से संबंधित उल्लेख प्राप्त होता है कि -  <blockquote>योऽस्मिन्क्षेत्रे नरः स्नायात्कुंभेज्येऽजगे रवौ। स तु स्याद्वाक्पतिः साक्षात्प्रभाकर इवापरः॥ (ना०पु० 66/ 44-45)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D-_%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%83/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%AC%E0%A5%AC नारद पुराण], उत्तरार्ध - अध्याय - 66, श्लोक - 44-45।</ref> </blockquote>गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ राशि में बृहस्पति, मेष में सूर्य के होने से जो योग होता है उसमें स्नान करने से मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।  
== कुंभ पर्व का इतिहास॥ History of Kumbh Parva==
+
==कुंभ पर्व का इतिहास॥ History of Kumbh Parva==
 
वेद पुराणोक्त वचनों के अतिरिक्त कुम्भपर्व की प्राचीनता के प्रबल प्रमाण के रूप में चीनी यात्री ह्वेनसांग की सातवीं शताब्दी में प्रयाग यात्रा उल्लेखनीय है, जहां उसने संगम तट पर राजा हर्ष को एक बडे आयोजन में मुक्त-हस्त से दान करते हुए देखा था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा हर्षवर्द्धन अपने पूर्वजों के अनुसरण में हर छठवें वर्ष प्रयाग आकर अपनी विगत पाँच वर्षों में अर्जित सम्पत्ति को एक भव्य धार्मिक आयोजन के दौरान दान कर देते थे। यह आयोजन संगम तट पर अनेक दिन चलता था। इनके अतिरिक्त प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक देव, गौडीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु, भक्त शिरोमणि तुलसीदास जैसे धार्मिक पुरुषों ने मध्यकाल में कुम्भमेलों के दौरान प्रयाग आकर यहाँ स्नान कर पुण्यलाभ किया।<ref name=":3" />
 
वेद पुराणोक्त वचनों के अतिरिक्त कुम्भपर्व की प्राचीनता के प्रबल प्रमाण के रूप में चीनी यात्री ह्वेनसांग की सातवीं शताब्दी में प्रयाग यात्रा उल्लेखनीय है, जहां उसने संगम तट पर राजा हर्ष को एक बडे आयोजन में मुक्त-हस्त से दान करते हुए देखा था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा हर्षवर्द्धन अपने पूर्वजों के अनुसरण में हर छठवें वर्ष प्रयाग आकर अपनी विगत पाँच वर्षों में अर्जित सम्पत्ति को एक भव्य धार्मिक आयोजन के दौरान दान कर देते थे। यह आयोजन संगम तट पर अनेक दिन चलता था। इनके अतिरिक्त प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानक देव, गौडीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु, भक्त शिरोमणि तुलसीदास जैसे धार्मिक पुरुषों ने मध्यकाल में कुम्भमेलों के दौरान प्रयाग आकर यहाँ स्नान कर पुण्यलाभ किया।<ref name=":3" />
   −
==कुम्भ पर्व का महत्व ॥ Importance of Kumbh parva ==
+
==कुम्भ पर्व का महत्व ॥ Importance of Kumbh parva==
 
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार कुंभ-पर्व के निर्णीत स्थानों में कुंभ-योग के समय तत्तत्सम्प्रदाय सम्मानित साधु-महात्माओं के समवाय द्वारा संसार के सर्वविध कष्टों के निवृत्यर्थ देश, समाज, राष्ट्र और धर्म आदि समस्त विश्व के कल्याण-सम्पादनार्थ निष्काम-भावनापुरस्सर वेदादि शास्त्रानुकूल अमूल्य दिव्य उपदेशों से जगत्कल्याण करना ही कुंभ-पर्व का महान उद्देश्य है और साथ ही कुंभ संबंधी निरुक्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि बारह वर्षों के अंतराल पर दुर्भिक्ष, अवर्षण संबंधी जो अनिष्टकारी ग्रहयोग और प्राकृतिक प्रकोप समय-समय पर उत्पन्न होते हैं, कुंभपर्व के अवसर पर उनकी शांति और देश की सुखसमृद्धि हेतु तपस्वीजनों द्वारा किए जाने वाले सामूहिक यज्ञानुष्ठान आदि धार्मिक कृत्य भी इस पर्व के विशेष प्रयोजन रहे हैं।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/fnnM_kumbha-parva-mahatmya-by-kapil-dev-dwivedi-1986-gyanpur-vishw-bharati-anusandhan-parishad/page/15/mode/2up कुम्भपर्व-माहात्म्य], सन 1986, विश्व भारती अनुसंधान परिषद, वाराणसी (पृ० 16)।</ref> कुंभ पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का परिचायक है -  
 
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार कुंभ-पर्व के निर्णीत स्थानों में कुंभ-योग के समय तत्तत्सम्प्रदाय सम्मानित साधु-महात्माओं के समवाय द्वारा संसार के सर्वविध कष्टों के निवृत्यर्थ देश, समाज, राष्ट्र और धर्म आदि समस्त विश्व के कल्याण-सम्पादनार्थ निष्काम-भावनापुरस्सर वेदादि शास्त्रानुकूल अमूल्य दिव्य उपदेशों से जगत्कल्याण करना ही कुंभ-पर्व का महान उद्देश्य है और साथ ही कुंभ संबंधी निरुक्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि बारह वर्षों के अंतराल पर दुर्भिक्ष, अवर्षण संबंधी जो अनिष्टकारी ग्रहयोग और प्राकृतिक प्रकोप समय-समय पर उत्पन्न होते हैं, कुंभपर्व के अवसर पर उनकी शांति और देश की सुखसमृद्धि हेतु तपस्वीजनों द्वारा किए जाने वाले सामूहिक यज्ञानुष्ठान आदि धार्मिक कृत्य भी इस पर्व के विशेष प्रयोजन रहे हैं।<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/fnnM_kumbha-parva-mahatmya-by-kapil-dev-dwivedi-1986-gyanpur-vishw-bharati-anusandhan-parishad/page/15/mode/2up कुम्भपर्व-माहात्म्य], सन 1986, विश्व भारती अनुसंधान परिषद, वाराणसी (पृ० 16)।</ref> कुंभ पर्व केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, किन्तु यह भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का परिचायक है -  
   Line 126: Line 134:  
#व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था
 
#व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था
 
इस प्रकार कुंभ पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, महान परंपराओं और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। यह संस्कृति का पुनरुत्पादन करता है और इसे सामाजिक प्रभुत्व बनाए रखने के एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
 
इस प्रकार कुंभ पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, महान परंपराओं और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। यह संस्कृति का पुनरुत्पादन करता है और इसे सामाजिक प्रभुत्व बनाए रखने के एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
 +
 +
== कुंभ मेला और पुष्कर पर्व॥ kumbh mela aur pushkar parva==
 +
कुंभ मेला और पुष्कर पर्व दोनों ही सनातन धर्म में नदी स्नान परंपरा से जुडे हुये आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव हैं। इन दोनों पर्वों के आयोजन का आधार प्राचीन खगोलशास्त्र, पौराणिक मान्यताएं, तीर्थक्षेत्र और नदियों के महत्ता पर आधारित है। किन्तु कुम्भ मेला का गुरु और सूर्य की खगोलीय ग्रहस्थिति के आधार पर तीर्थेक्षेत्र प्रयागराज में त्रिवेणी संगम, हरिद्वार में गंगा, उज्जैनमें क्षिप्रा और नासिक में गोदावरी के तट पर ही बारह वर्ष में आयोजन होता है। पुष्कर पर्व हर वर्ष भारतीय ज्योतिष में गुरु ग्रह के राशि परिवर्तन के अनुसार एक विशेष नदी के किनारे मनाया जाता है और पुष्करकाल में ब्रह्मादि देवता, ऋषि, पितृदेवता और ब्रह्मांड के समस्त तीर्थ उस नदी में प्रवेश करते हैं यह पुष्कर पर्व प्रत्येक नदी के साथ गुरु ग्रह के राशि परिवर्तन का संयोग होता है जो कि गुरु के राशि परिवर्तन वाले दिन से प्रारंभ होकर बारह दिनों तक चलता है। इसमें भी कुंभ पर्व की तरह ही नदी स्नान, दान, जप, होम, श्राद्धादि कर्म विशेष फल प्रद होते हैं। पुष्कर पर्व उत्तर और दक्षिण को जोडने वाला नदी स्नान महोत्सव है। गुरु का राशि परिवर्तन के आधार पर इन बारह नदियों के तट पर मेषादि बारह राशियों में संचरण पर पुष्कर पर्व आयोजित होता है -<ref>मूल्यविमर्श पत्रिका, गिरिजा शंकर त्रिपाठी, [https://bhu.ac.in/Images/files/Mulyavimarsa-2019-20.pdf भारतीय संस्कृति के आधारस्तम्भ कुम्भमहापर्व], सन् २०२०, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (पृ० ६)।</ref>
 +
{| class="wikitable"
 +
|+प्रमुख नदियाँ एवं पुष्कर पर्व
 +
!क्रम संख्या
 +
!नदी का नाम
 +
!गुरु राशि प्रवेश
 +
|-
 +
|01
 +
|गंगा
 +
|मेष राशि
 +
|-
 +
|02
 +
|नर्मदा
 +
|वृष राशि
 +
|-
 +
|03
 +
|सरस्वती
 +
|मिथुन राशि
 +
|-
 +
|04
 +
|यमुना
 +
|कर्क राशि
 +
|-
 +
|05
 +
|गोदावरी
 +
|सिंह राशि
 +
|-
 +
|06
 +
|कृष्णा
 +
|कन्या राशि
 +
|-
 +
|07
 +
|कावेरी
 +
|तुला राशि
 +
|-
 +
|08
 +
|भीमा
 +
|वृश्चिक राशि
 +
|-
 +
|09
 +
|पुष्कर वाहिनी
 +
|धनु राशि
 +
|-
 +
|10
 +
|तुंग भद्रा
 +
|मकर राशि
 +
|-
 +
|11
 +
|सिन्धु
 +
|कुम्भ राशि
 +
|-
 +
|12
 +
|प्राणहिता
 +
|मीन राशि
 +
|}
 +
पुष्कर पर्व और कुंभ मेला, दोनों भारतीय धार्मिक परंपरा की विविधता और गहराई को दर्शाते हैं। ये आयोजन न केवल धार्मिक, अपितु सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय महत्व रखते हैं। इन दोनों पर्वों का अध्ययन यह समझने में सहायक होता है कि भारतीय परंपराएं खगोलीय, भौगोलिक और सांस्कृतिक तत्वों को किस प्रकार से जोड़ती हैं।
    
==निष्कर्ष॥ Summary==
 
==निष्कर्ष॥ Summary==
भारतवर्ष में पर्वों और त्योहारों के अवसर पर किए जाने वाले नदी स्नान की परम्परा को तरह ही कुंभ मेला सूर्य की स्थिति के अनुसार कुंभ पर्व की तिथियां निश्चित होती हैं।<ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.429895/page/n119/mode/1up पौराणिक कोश], सन 1971, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 113)।</ref> मकर के सूर्य में प्रयागराज, मेष के सूर्य में हरिद्वार, तुला के सूर्य में उज्जैन और कर्क के सूर्य में नासिक का कुंभ पर्व पडता है।<ref name=":3">डॉ० उदय प्रताप सिंह, [https://archive.org/details/20200715_20200715_0757/mode/1up हिन्दुस्तानी त्रैमासिक - कुम्भ विशेषांक], सन् 2019, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० 13)।</ref>   
+
भारतवर्ष में पर्वों और त्योहारों के अवसर पर किए जाने वाले नदी स्नान की परम्परा को तरह ही कुंभ मेला सूर्य की स्थिति के अनुसार कुंभ पर्व की तिथियां निश्चित होती हैं।<ref>राणाप्रसाद शर्मा, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.429895/page/n119/mode/1up पौराणिक कोश], सन 1971, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी (पृ० 113)।</ref> मकर के सूर्य में प्रयागराज, मेष के सूर्य में हरिद्वार, तुला के सूर्य में उज्जैन और कर्क के सूर्य में नासिक का कुंभ पर्व पडता है।<ref name=":3">डॉ० उदय प्रताप सिंह, [https://archive.org/details/20200715_20200715_0757/mode/1up हिन्दुस्तानी त्रैमासिक - कुम्भ विशेषांक], सन् 2019, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज (पृ० 13)।</ref> अखाड़ों की नींव डाली और उन्हें चार पवित्र धार्मिक स्थलों-प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक, जहाँ पहले से ही भिन्न-भिन्न मुहूर्तों में स्नानदान करने की पुराणप्रोक्त परम्परा थी, पर अनुयायियों समेत विशिष्ट अवसरों पर प्रवास कर स्नानादि करने की अनुज्ञा दी। अखाड़ों द्वारा यह नियतावधिक प्रवास तथा स्नानादि का पर्व ही परवर्ती काल में कुम्भपर्व के रूप में प्रसिद्ध हुआ। 25 कुछ लोगों का मत है कि प्रयाग का प्राचीन मेला बौद्धकाल में 'महादानपर्व' के रूप में आयोजित होता था, जिसे शंकराचार्य ने व्यवस्थित कर वर्तमान कुम्भपर्व के रूप में परिवर्तित कर दिया। उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने उनके निर्देशानुसार, जनसाधारण से सम्पर्क करने तथा उन्हें धर्माचरण के नियमों से अवगत कराने के लिए प्रत्येक बारहवें वर्ष कुम्भपर्व में दशनामी संन्यासियों का भाग लेना आवश्यक कर दिया।<ref>त्रिनाथ मिश्र, [https://archive.org/details/AWlP_kumbh-gatha-by-trinath-mishra-anamika-publication/page/17/mode/1up कुंभ-गाथा], सन १९८९, अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद (पृ० १७)।</ref>   
    
==उद्धरण॥ References==
 
==उद्धरण॥ References==
1,075

edits

Navigation menu